एशियाई खेलों में भारत के लिए हेप्टाथलॉन का स्वर्ण जीतने के बाद मिली शोहरत और इज्जत से स्वप्ना अभिभूत हैं लेकिन जकार्ता जाने से पहले उनके लिए हालात बिल्कुल अलग थे. इस एथलीट को एक समय उसके दोस्तों तक ने नकार दिया था.
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इन परिस्थितियों में स्वप्ना के सामने खुद को साबित करने की चुनौती थी, जो उनके काफी करीब रहते हुए भी उन्हें पदक का दावेदार नहीं मान रहे थे. स्वप्ना ने हेप्टाथलॉन में भारत को ऐतिहासिक स्वर्ण दिला कर उन्हें खारिज करने वालों को गलत साबित कर दिया है.
बंगाल सरकार ने जलपाईगुड़ी के रिक्शा चालक की बेटी स्वप्ना के लिए 10 लाख रुपये का पुरस्कार और सरकारी नौकरी की घोषणा की. हालांकि पुरस्कार राशि देखने और सुनने में काफी कम है लेकिन स्वप्ना ने इसे लेकर कोई नकारात्मक बात नहीं कही. अपनी तैयारी के दिनों से ही नकारात्मक लोगों से घिरी स्वप्ना के जीवन में अब रोशनी है और इसी कारण उन्हें जो कुछ मिला, उससे वह संतुष्ट नजर आ रही हैं.
समाचार एजेंसी आईएएनएस से बातचीत के दौरान भी स्वप्ना ने यह स्वीकार किया. स्वप्ना ने कहा, "मैं अपनी तैयारी के दिनों से नकारात्मक लोगों से घिरी थी. मेरे दोस्तों तक ने मुझे नकार दिया था. मैंने सबको गलत साबित किया. मैं अब खुश हूं. सरकार ने मुझे नौकरी और 10 लाख रुपये देने का ऐलान किया है, यह मुझे मीडिया के ही माध्यम से पता चला. लोग यह भी कह रहे हैं कि यह रकम कम है लेकिन मुझे किसी से शिकायत नहीं. मैं इससे खुश हूं."
एशियाई खेलों की सात स्पर्धाओं में कुल 6026 अंकों के साथ पहला स्थान हासिल करने वाली स्वप्ना के लिए हालांकि कुछ भी आसान नहीं रहा है. दोनों पैरों में छह-छह अंगुलियां होने के कारण उन्हें अलग परेशानी झेलनी पड़ी और फिर अपनी स्पर्धा से ठीक पहले उन्हें दांत में दर्द की शिकायत हुई. यही नहीं, ट्रेनिंग के दौरान उन्हें टखने में भी चोट लगी थी. इन सब मुश्किलों को लांघते हुए स्वप्ना ने अपने सपने को सच साबित किया है.
स्वप्ना ने कहा, "एशियाई चैम्पियनशिप और एशियाई खेलों के बीच में मैं चोटिल हो गई थी. मेरे टखने में चोट थी. इसके बावजूद मैं ट्रेनिंग करती थी. कैंप के दौरान मेरे दोस्तों तक ने मुझे नकार दिया था. उनके मुताबिक मैं पदक नहीं जीत सकती थी लेकिन मैंने हार नहीं मानी."
उन्होंने कहा, "मैंने जितना सुना, वह यह है कि वे लोग (मेरे दोस्त) कहते थे कि इसको लेकर जाएंगे तो क्या मिलेगा? ये पदक ला सकती है क्या? चोटिल होने के कारण वे मेरी काबिलियत पर शक करने लगे थे. मुझे उनकी इन बातों का बहुत बुरा लगा. अगर आपके बारे में कोई पहले से ही सोच ले कि आप उस काम को नहीं कर पाएंगी, जिसके लिए आप इतनी मेहनत कर रही हैं तो इससे आपका मनोबल नीचे हो जाता है."
स्वप्ना ने कहा कि लम्बी कूद उनकी पसंदीदा स्पर्धा थी लेकिन वह इसमें ज्यादा सफल नहीं हो पाईं. हालांकि उन्होंने भाला फेंक अच्छा करने पर खुशी जताई.
2018 के एशियाई खेलों में इन्होंने भारत को दिलाया गोल्ड
कॉमनवेल्थ खेलों के बाद अब एशियाई खेलों में भी भारतीय खिलाड़ियों ने अच्छा प्रदर्शन किया है. उम्मीद है कि ओलंपिक में भी इन खिलाड़ियों का यह सफर जारी रहेगा. एक नजर एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीतने वाले खिलाड़ियों पर.
तस्वीर: Xinhua/Wang Lili
बजरंग पूनिया, कुश्ती
'गोल्डन बॉय' नाम से मशहूर बजरंग पूनिया ने एशियन गेम्स 2018 में भारत को पहला स्वर्ण पदक दिलाया. जीत के बाद पूनिया ने अपना पदक स्वर्गीय पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को समर्पित किया. हरियाणा के सोनीपत निवासी पूनिया का नाम राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार के दावेदारों में सबसे आगे हैं.
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विनेश फोगाट, कुश्ती
फोगाट सिस्टर्स-गीता और बबीता की चचेरी बहन विनेश ने रियो ओलिंपिक की कसर कॉमनवेल्थ और एशियन गेम्स में पूरी कर दी है. 50 किलोग्राम वर्ग में वह एशियाई खेलों में कुश्ती का गोल्ड जीतने वाली पहली भारतीय महिला बनीं. वापसी में एयरपोर्ट पर ही इनकी सगाई भी हो गई. इनका लक्ष्य टोक्यो ओलंपिक में मेडल जीतकर अपने गुरु महाबीर फोगाट का सपना पूरा करना है.
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सौरभ चौधरी, शूटिंग
16 साल के निशानेबाज सौरभ चौधरी ने 10 मीटर एयर पिस्टल के मेन्स इवेंट में गोल्ड मेडल जीता है. एशियन गेम्स में छोटी उम्र में ऐसा कारनामा करने वाले वह पहले भारतीय हैं. इसी इवेंट में भारत के अभिषेक वर्मा ने ब्रॉन्ज मेडल अपने नाम किया. मेरठ के कलीना गांव के रहने वाले अभिषेक ने 2015 में शूटिंग शुरू की. मशहूर शूटर जसपाल राणा से उन्होंने शूटिंग के गुर सीखे.
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तजिंदरपाल सिंह, शॉटपुट
अपने पांचवें प्रयास में 20.75 मीटर गोला फेंककर तजिंदरपाल सिंह तूर ने भारत को गोल्ड मेडल जीता दिया. तूर का यह प्रयास एशियन गेम्स में नया रिकॉर्ड बन गया. 23 साल के तजिंदर पंजाब के मोगा के रहने वाले हैं. वह क्रिकेटर बनना चाहते थे, लेकिन पिता ने उन्हें व्यक्तिगत खेल के लिए प्रोत्साहित किया और उन्होंने शॉटपुट में हाथ आजमाया.
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नीरज चोपड़ा, जैवलिन
20 वर्षीय नीरज ने एशियन गेम्स में 88.06 मीटर भाला फेंक न सिर्फ गोल्ड मेडल जीता बल्कि अपना ही वर्ल्ड रिकॉर्ड तोड़ दिया. पानीपत निवासी नीरज को कबड्डी खेलने का शौक था. उन्होंने अपने दोस्त की सलाह पर कबड्डी छोड़कर जैवलिन की प्रैक्टिस शुरू की. इसके लिए नीरज ने सबसे पहले वजन घटाया. फिर उनकी मेहनत और प्रैक्टिस रंग लाई और वह पदक जीतते चले गए.
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स्वर्ण सिंह, नौकायान
मूलतः पंजाब के रहने वाले और झारखंड के रामगढ़ कैंट स्थित सिख रेजीमेंटल सेंटर में सूबेदार पद पर कार्यरत स्वर्ण सिंह ने रोइंग यानि नौकायान में गोल्ड मेडल जीता है. स्वर्ण सिंह के बारे में जब रामगढ़वासियों पता चला तो खुशी की लहर दौड़ गई. तस्वीर में तिरंगे के अन्य विजेता दत्तू भोकानल (बाएं) और ओम प्रकाश.
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राही सरनोबत, शूटिंग
एशियाई खेलों में शूटिंग में गोल्ड जीतने वाली पहली भारतीय महिला खिलाड़ी राही सरनोबत (बीच में) ने 25 मीटर पिस्टल में 34 अंक का स्कोर किया. राही को पिछले साल कोहनी में गंभीर चोट का सामना करना पड़ा था. फिर उन्हें अपनी तकनीक में बदलाव करने की जरूरत महसूस हुई. इसलिए दो बार विश्व विजेता और जर्मनी के ओलंपिक पदक विजेता मुंखबायर दोर्चसुरेन से ट्रेनिंग लेनी शुरू की.
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मनजीत सिंह, जिनसन जॉनसन- 800 मीटर
पुरुषों की 800 मीटर दौड़ में भारत को दोहरी सफलता मिली. मनजीत सिंह ने 1:46:15 मिनट में 800 मीटर की दूरी तय कर स्वर्ण पदक हासिल किया. वहीं जिनसन जॉनसन 1:46:35 मिनट में दूसरे स्थान पर रहे. कॉमनवेल्थ खेलों में हिस्सा ले चुके मनजीत ने बेरोजगारी के बाद भी प्रैक्टिस जारी रखी. जून में उनका बेटा पैदा हुआ, लेकिन अति व्यस्तता के कारण वह अभी तक बेटे से नहीं मिल पाए है.
अरपिंदर सिंह, ट्रिपल जंप
अरपिंदर सिंह ने 16.77 मीटर के जंप के साथ भारत की झोली में गोल्ड मेडल डाला. 48 साल बाद भारत को इस इवेंट में स्वर्ण पदक मिला है. अरपिंदर ने छह में से तीन जंप गलत लगाए थे, फिर भी कोई और खिलाड़ी उन्हें पछाड़ने में नाकाम रहा. वहीं, इसी इवेंट में भारत के राकेश बाबू छठे स्थान पर रहे. इससे पहले अरपिंदर ने साल 2014 के कॉमनवेल्थ गेम्स में कांस्य पदक जीता था.
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स्वप्ना बर्मन, हेप्टाथलन
रिक्शाचालक की इस बेटी ने साबित कर दिया है कि कुछ भी नामुमकिन नहीं है. हेप्टाथलन में स्वप्ना ने गोल्ड मेडल जीता है. इस खेल के पहले स्टेज में 100 मीटर रेस लगानी होती है. दूसरा हाई जंप, तीसरा शॉटपुट, चौथा 200 मीटर रेस, पांचवा लॉन्ग जंप, छठा जैवलिन थ्रो और आखिर में 800 मीटर रेस होती है. दोनों पैरों में छह उंगली होने के कारण स्वप्ना चाहती हैं कि कोई कंपनी उनके लिए जूते बनाए, ताकि वह आसानी से खेल सके.
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यह पूछे जाने पर कि जब एक स्पर्धा में आप अच्छा नहीं कर पातीं हैं तो दूसरी स्पर्धा के लिए खुद को कैसे तैयार करती हैं? उन्होंने कहा, "बस यही सोचती हूं कि एक में अच्छा नहीं किया तो क्या हुआ अभी तो छह बाकी हैं. अगले में अच्छा कर सकती हूं. पहले वाले को भूलकर अगले पर ध्यान देती हूं. मैंने जकार्ता में वैसा ही किया. मैं पहले दिन पिछड़ गई थी. लेकिन मैंने सोचा कि कोई बात नहीं अभी तीन स्पर्धा बाकी है. देखते हैं आगे क्या होता है."
यह पूछे जाने पर कि 800 मीटर कभी आपका पसंदीदा नहीं रहा और फिर कैसे इसमें अच्छा किया, स्वप्ना ने कहा, "मैंने बस यह सोच कर इसमें भाग लिया था कि मुझे चीन की लड़की के साथ मुकाबला करना है. अगर वह पहले नंबर पर रही तो मैं भी रहूंगी और अगर वह चौथे नंबर पर रही है तो मैं भी चौथे नंबर पर रहूंगी. कुछ भी हो जाए मुझे उसके साथ रेस समाप्त करनी है."