स्वर्ण जीतने वाली हेप्टेथलीट स्वप्ना बर्मन की कहानी
१५ अक्टूबर २०१८
एशियाई खेलों में सोना जीतने वाली भारत की पहली हेप्टेथलीट स्वप्ना बर्मन की जिंदगी काफी मुश्किलों भरी रही है. अत्यंत गरीबी और शारीरिक विकृति को उन्होंने अपनी सफलता की राह में बाधक नहीं बनाने दिया.
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21 साल की स्वप्ना यह कह चुकी हैं कि उनकी प्राथमिकता सोने का तमगा हासिल करने से कहीं ज्यादा सरकारी नौकरी हासिल करना था. स्वप्ना ने समाचार एजेंसी आईएएनएस से बातचीत में कहा, "मैं जब अपने मोहल्ले में हाई जंप की प्रैक्टिस करती थी और स्थानीय प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेती थी, तब मेरा एक ही लक्ष्य था कि किसी तरह कोई सरकारी नौकरी मिल जाए. उस समय वही मेरा सपना था."
स्वप्ना अपने माता-पिता की चार संतानों में सबसे छोटी हैं. उनके माता-पिता को अभी तक अपनी जरूरतों की पूर्ति के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है. उत्तर बंगाल में राजबोंशी जनजाति से आने वाली स्वप्ना की मां लोगों के घरों में साफ सफाई का काम करती थीं. इसके अलावा वह चाय बगान में भी काम करती थीं.
सात साल पहले लकवाग्रस्त होकर बिस्तर पकड़ने से पहले स्वप्ना के पिता पंचानन बर्मन वैन रिक्शा चलाते थे. स्वप्ना ने बताया, "आजीविका चलाने के लिए मेरे अन्य तीन भाई-बहन संघर्ष करते थे. मैं सबसे छोटी हूं. इसलिए मेरे पिता ने सोचा कि मैं खेलों से कुछ कमाऊं, तो उससे परिवार को मदद मिलेगी."
अगस्त में हुए एशियाई खेलों के दौरान दो दिन के कार्यक्रम में सात दौर के कड़े मुकाबले में कुल 6,026 अंक हासिल कर अपने करियर का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाली स्वप्ना ने न सिर्फ वित्तीय बाधाओं को पार किया, बल्कि अपने दोनों पैरों की छह अंगुलियों की परेशानियों को भी मात दी. स्वप्ना ने कहा, "मेरा सपना अब अपने देश को आगे ले जाना और आप सबको गौरवांवित करना है." उन्होंने कहा कि अभी तो उनके सफर की बस शुरुआत ही हुई है.
जकार्ता में दांत के संक्रमण से होने वाले दर्द को कम करने के लिए स्वप्ना ने दाएं गाल पर फीता बांध कर स्पर्धा में हिस्सा लिया था. उन्होंने बताया, "अपनी स्पर्धा से पहले मैं कुछ नहीं खा पाई थी. मैं इतना बीमार थी कि आपको बता नहीं सकती. मैं सिर्फ यह जानती थी कि मुझे जीतना है, क्योंकि मेरे सालों का संघर्ष इसी पर निर्भर था."
स्वप्ना के इस सफर की शुरुआत घोषपारा गांव जाने वाली धान के खेतों की पंगडंडी से हुई, जहां उन्होंने पहली बार दौड़ लगाई थी. ट्रैक व फील्ड एथलीट हरिशंकर रॉय को भी प्रशिक्षण दे चुके सुभाष सरकार लंबे समय तक स्वप्ना के कोच रहे हैं. उन्होंने अपनी यादों को ताजा करते हुए कहा, "मैंने सबसे पहले 2011 में जलपाईगुड़ी में स्वप्ना बर्मन को एक झलक देखा था. वहां मेरे कुछ विद्यार्थी थे, जिन्होंने मुझसे कहा, सर, इसे अपने साथ कोलकाता ले जाइए. वह बहुत अच्छी है."
सुभाष सरकार 1992 से भारतीय खेल प्राधिकरण (साई) के प्रशिक्षिक रहे हैं. उन्होंने कहा कि छोटी और गठीली कद-काठी की स्वप्ना से शुरुआत में वे प्रभावित नहीं हुए, लेकिन रायकोटपारा स्पोर्टिंग एसोसिएशन के सचिव समीर दास ने उनसे स्वप्ना को अपने साथ ले जाने का आग्रह किया. सरकार ने बताया कि समीर का इसी साल जून में निधन हो गया, लेकिन उन्होंने चेतावनी दी थी कि स्वप्ना को अगर उचित मार्गदर्शन व प्रोत्साहन नहीं मिलेगा, तो वह अपनी मां के साथ चाय बगान में काम करने लगेगी.
वर्ष 2011 में लुधियाना में स्कूल स्तर की स्पर्धा में स्वप्ना को ऊंची कूद में स्वर्ण पदक मिला. कोच सरकार फिर भी प्रभावित नहीं थे, लेकिन अगले कुछ साल में स्वपना ने आकर्षक प्रदर्शन किए. सरकार ने कहा, "मैं उसकी प्रतिभा को देखकर हैरान था. 2012 में उसने हाई जंप में 57, 61, 63, 67 और 71 अंक हासिल किए. उसने ऊंची कूद में जूनियर स्तर की राष्ट्रीय स्पर्धा में दो-तीन बार रिकॉर्ड कायम किए. वह औसत से बेहतर थी."
2018 के एशियाई खेलों में इन्होंने भारत को दिलाया गोल्ड
कॉमनवेल्थ खेलों के बाद अब एशियाई खेलों में भी भारतीय खिलाड़ियों ने अच्छा प्रदर्शन किया है. उम्मीद है कि ओलंपिक में भी इन खिलाड़ियों का यह सफर जारी रहेगा. एक नजर एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीतने वाले खिलाड़ियों पर.
तस्वीर: Xinhua/Wang Lili
बजरंग पूनिया, कुश्ती
'गोल्डन बॉय' नाम से मशहूर बजरंग पूनिया ने एशियन गेम्स 2018 में भारत को पहला स्वर्ण पदक दिलाया. जीत के बाद पूनिया ने अपना पदक स्वर्गीय पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को समर्पित किया. हरियाणा के सोनीपत निवासी पूनिया का नाम राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार के दावेदारों में सबसे आगे हैं.
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विनेश फोगाट, कुश्ती
फोगाट सिस्टर्स-गीता और बबीता की चचेरी बहन विनेश ने रियो ओलिंपिक की कसर कॉमनवेल्थ और एशियन गेम्स में पूरी कर दी है. 50 किलोग्राम वर्ग में वह एशियाई खेलों में कुश्ती का गोल्ड जीतने वाली पहली भारतीय महिला बनीं. वापसी में एयरपोर्ट पर ही इनकी सगाई भी हो गई. इनका लक्ष्य टोक्यो ओलंपिक में मेडल जीतकर अपने गुरु महाबीर फोगाट का सपना पूरा करना है.
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सौरभ चौधरी, शूटिंग
16 साल के निशानेबाज सौरभ चौधरी ने 10 मीटर एयर पिस्टल के मेन्स इवेंट में गोल्ड मेडल जीता है. एशियन गेम्स में छोटी उम्र में ऐसा कारनामा करने वाले वह पहले भारतीय हैं. इसी इवेंट में भारत के अभिषेक वर्मा ने ब्रॉन्ज मेडल अपने नाम किया. मेरठ के कलीना गांव के रहने वाले अभिषेक ने 2015 में शूटिंग शुरू की. मशहूर शूटर जसपाल राणा से उन्होंने शूटिंग के गुर सीखे.
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तजिंदरपाल सिंह, शॉटपुट
अपने पांचवें प्रयास में 20.75 मीटर गोला फेंककर तजिंदरपाल सिंह तूर ने भारत को गोल्ड मेडल जीता दिया. तूर का यह प्रयास एशियन गेम्स में नया रिकॉर्ड बन गया. 23 साल के तजिंदर पंजाब के मोगा के रहने वाले हैं. वह क्रिकेटर बनना चाहते थे, लेकिन पिता ने उन्हें व्यक्तिगत खेल के लिए प्रोत्साहित किया और उन्होंने शॉटपुट में हाथ आजमाया.
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नीरज चोपड़ा, जैवलिन
20 वर्षीय नीरज ने एशियन गेम्स में 88.06 मीटर भाला फेंक न सिर्फ गोल्ड मेडल जीता बल्कि अपना ही वर्ल्ड रिकॉर्ड तोड़ दिया. पानीपत निवासी नीरज को कबड्डी खेलने का शौक था. उन्होंने अपने दोस्त की सलाह पर कबड्डी छोड़कर जैवलिन की प्रैक्टिस शुरू की. इसके लिए नीरज ने सबसे पहले वजन घटाया. फिर उनकी मेहनत और प्रैक्टिस रंग लाई और वह पदक जीतते चले गए.
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स्वर्ण सिंह, नौकायान
मूलतः पंजाब के रहने वाले और झारखंड के रामगढ़ कैंट स्थित सिख रेजीमेंटल सेंटर में सूबेदार पद पर कार्यरत स्वर्ण सिंह ने रोइंग यानि नौकायान में गोल्ड मेडल जीता है. स्वर्ण सिंह के बारे में जब रामगढ़वासियों पता चला तो खुशी की लहर दौड़ गई. तस्वीर में तिरंगे के अन्य विजेता दत्तू भोकानल (बाएं) और ओम प्रकाश.
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राही सरनोबत, शूटिंग
एशियाई खेलों में शूटिंग में गोल्ड जीतने वाली पहली भारतीय महिला खिलाड़ी राही सरनोबत (बीच में) ने 25 मीटर पिस्टल में 34 अंक का स्कोर किया. राही को पिछले साल कोहनी में गंभीर चोट का सामना करना पड़ा था. फिर उन्हें अपनी तकनीक में बदलाव करने की जरूरत महसूस हुई. इसलिए दो बार विश्व विजेता और जर्मनी के ओलंपिक पदक विजेता मुंखबायर दोर्चसुरेन से ट्रेनिंग लेनी शुरू की.
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मनजीत सिंह, जिनसन जॉनसन- 800 मीटर
पुरुषों की 800 मीटर दौड़ में भारत को दोहरी सफलता मिली. मनजीत सिंह ने 1:46:15 मिनट में 800 मीटर की दूरी तय कर स्वर्ण पदक हासिल किया. वहीं जिनसन जॉनसन 1:46:35 मिनट में दूसरे स्थान पर रहे. कॉमनवेल्थ खेलों में हिस्सा ले चुके मनजीत ने बेरोजगारी के बाद भी प्रैक्टिस जारी रखी. जून में उनका बेटा पैदा हुआ, लेकिन अति व्यस्तता के कारण वह अभी तक बेटे से नहीं मिल पाए है.
अरपिंदर सिंह, ट्रिपल जंप
अरपिंदर सिंह ने 16.77 मीटर के जंप के साथ भारत की झोली में गोल्ड मेडल डाला. 48 साल बाद भारत को इस इवेंट में स्वर्ण पदक मिला है. अरपिंदर ने छह में से तीन जंप गलत लगाए थे, फिर भी कोई और खिलाड़ी उन्हें पछाड़ने में नाकाम रहा. वहीं, इसी इवेंट में भारत के राकेश बाबू छठे स्थान पर रहे. इससे पहले अरपिंदर ने साल 2014 के कॉमनवेल्थ गेम्स में कांस्य पदक जीता था.
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स्वप्ना बर्मन, हेप्टाथलन
रिक्शाचालक की इस बेटी ने साबित कर दिया है कि कुछ भी नामुमकिन नहीं है. हेप्टाथलन में स्वप्ना ने गोल्ड मेडल जीता है. इस खेल के पहले स्टेज में 100 मीटर रेस लगानी होती है. दूसरा हाई जंप, तीसरा शॉटपुट, चौथा 200 मीटर रेस, पांचवा लॉन्ग जंप, छठा जैवलिन थ्रो और आखिर में 800 मीटर रेस होती है. दोनों पैरों में छह उंगली होने के कारण स्वप्ना चाहती हैं कि कोई कंपनी उनके लिए जूते बनाए, ताकि वह आसानी से खेल सके.
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सरकार उसके बाद स्वप्ना को हाई जंप से हेप्टेथलॉन में ले आए. उन्होंने कहा, "उसके कद को लेकर ऊंची कूद में थोड़ी चिंता थी, लेकिन उसमें संभावना देखकर मुझे पक्का विश्वास था कि वह इसमें एशियाई खेल में पदक जीतेगी. इसलिए मैंने उसे हेप्टेथलॉन में शिफ्ट कर दिया." 2013 में स्वप्ना ने अपनी पहली ही स्पर्धा में गुंटूर में रजत पदक हासिल किया. सरकार ने बताया कि उसके बाद उसने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा.
स्वप्ना 17 साल की उम्र में 17वीं फेडरेशन कप सीनियर एथलेटिक्स चैंपियनशिप में शामिल हुई और दक्षिण कोरिया में आयोजित होने वाले एशियाई खेलों के लिए क्वॉलीफाई किया. 2014 के एशियाई खेलों में वह पांचवें स्थान पर रही. लेकिन सामाजिक समस्याओं और पीठ की चोट के कारण 2015 से 2016 के बीच वह खेल से बाहर रही. वह वापस घर लौट चुकी थी और दोबारा मैदान में नहीं उतरने का मन बना चुकी थी. लेकिन कोच सरकार उसे दोबारा खेल में लेकर आए और 2017 में एशियाई एथलेटिक्स चैंपियनयशिप में सोना जीतने में वह कामयाब रही.
एशियाई खेलों में भारत ने कब सबसे ज्यादा पदक जीते?
क्या आप जानते हैं कि पहले एशियन गेम्स 1951 में नई दिल्ली में हुए? बीते सत्तर सालों में भारत का प्रदर्शन इन खेलों में बेहतर हुआ या खराब, जानिए.
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नई दिल्ली, 1951
पहले एशियाई खेलों में भारत को 15 स्वर्ण, 16 रजत और 20 कांस्य पदक मिले और वह कुल 51 पदकों के साथ तालिका में जापान के बाद दूसरे स्थान पर था. पहले एशियाई खेलों में कुल 11 देशों ने हिस्सा लिया था.
तस्वीर: AP
मनीला, 1954
दूसरे एशियाई खेल फिलीपींस की राजधानी मनीला में हुए, जिनमें कुल 18 देशों के खिलाड़ियों ने हिस्सा लिया. लेकिन पदक तालिका में भारत पांचवें स्थान पर खिसक गया. उसे 4 स्वर्ण, 4 रजत और 5 कांस्य समेत कुल 13 पदक मिले.
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टोक्यो, 1958
तीसरे एशियाई खेलों का मेजबान जापान की राजधानी टोक्यो शहर बना. इस बार 20 देशों के खिलाड़ियों में पदकों की होड़ थी. भारत की झोली में 5 स्वर्ण, 4 रजत और 5 कांस्य समेत कुल 14 पदक आए और उसे सातवीं रैंकिंग मिली.
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जकार्ता, 1962
इंडोनेशिया की राजधानी जकार्ता में एशियाई खेलों में भारत ने बेहतर प्रदर्शन किया और तीसरी रैकिंग के साथ कुल 52 पदक हासिल किए. इनमें 12 स्वर्ण, 13 रजत और 27 कांस्य पदक शामिल थे. फोटो में गोल्ड जीतने वाली भारतीय हॉकी टीम.
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बैंकॉक, 1966
थाईलैंड की राजधानी बैंकॉक में हुए एशियाई खेलों में भारत ने कुल 21 पदक हासिल किए. इनमें 7 स्वर्ण, 3 रजत और 11 कांस्य पदक शामिल थे. बैंकॉक एशियाई खेलों की पदक तालिका में भारत पांचवें स्थान पर रहा.
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बैंकॉक, 1970
1970 के एशियाई खेल दक्षिण कोरिया की राजधानी सोल में होने थे. लेकिन आर्थिक तंगी और सुरक्षा कारणों से उसके इनकार के बाद बैंकॉक में ही ये खेल हुए. इन खेलों में भारत को 6 स्वर्ण, 9 रजत और 10 कांस्य पदक मिले.
तस्वीर: pictur- alliance/AP Images
तेहरान, 1974
सातवें एशियन गेम्स का मेजबान ईरान की राजधानी तेहरान बना. कुल 25 देशों के खिलाड़ियों ने इन खेलों में हिस्सा लिया. इनमें से भारत को सातवीं रैंकिंग और कुल 28 पदक मिले, जिनमें 4 स्वर्ण, 12 रजत और 12 कांस्य पदक थे.
तस्वीर: Picture-Alliance/dpa/A. Taherkenareh
बैंकॉक, 1978
थाई राजधानी 1978 में तीसरी बार एशियाई खेलों की मेजबान बनी. हालांकि मूल रूप से ये खेल भी सिंगापुर में होने थे. लेकिन वित्तीय दिक्कतों के चलते ऐसा नहीं हो पाया. 1978 में भारत को 11 स्वर्ण, 11 रजत और 6 कांस्य पदक मिले.
तस्वीर: Getty Images/AWL Images RM
नई दिल्ली, 1982
भारत 1982 में दूसरी बार एशियाई खेलों का मेजबान बना. मेजबान देश ने कुल 57 पदक जीते जिनमें 13 स्वर्ण, 19 रजत और 25 कांस्य पदक शामिल थे. कुल 57 पदकों के साथ भारत को पदक तालिका में पांचवां स्थान मिला.
तस्वीर: AP
सोल, 1986
दक्षिण कोरिया की राजधानी 1986 में पहली बार एशियाई खेलों की मेजबान बनी. कुल 27 देशों ने इन खेलों में हिस्सा लिया. यहां भारत पदक तालिका में पांचवें स्थान पर रहा और उसे 5 स्वर्ण, 9 रजत और 23 कांस्य पदकों के साथ कुल 37 मेडल मिले.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo
बीजिंग, 1990
चीन में पहली बार एशियाई खेल हुए और राजधानी बीजिंग ने मेजबानी की. 36 देशों के खिलाड़ी पहुंचे. 183 स्वर्ण पदकों के साथ चीन ने सबसे ज्यादा 341 पदक जीते. लेकिन भारत को सिर्फ एक स्वर्ण, 8 रजत और 14 कांस्य पदक मिले.
तस्वीर: picture-alliance/Xinhua/He Huifei
हिरोशिमा, 1994
जापान 1994 में दूसरी बार एशियाई खेलों का मेजबान बना और हिरोशिमा में खेल हुए. बीजिंग के मुकाबले भारत ने अपना प्रदर्शन बेहतर करते हुए 4 स्वर्ण, 3 रजत और 15 कांस्य पदक जीते और पदक तालिका में उसे 8वीं रैंकिंग मिली.
तस्वीर: Imago/Xinhua
बैंकॉक, 1998
थाई राजधानी ने चौथी बार एशियाई खेलों की मेजबानी की, जिनमें हिस्सा लेने के लिए 41 देशों के कुल 6,554 खिलाड़ी पहुंचे. भारत ने इन खेलों में 7 स्वर्ण, 11 रजत और 17 कांस्य पदकों समेत कुल 35 पदक हासिल किए.
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बुसान, 2002
29 सितंबर से 14 अक्टूबर 2002 तक दक्षिण कोरिया के शहर बुसान में एशियाई खेल हुए. कुल 44 देशों के साढ़े सात हजार से ज्यादा खिलाड़ियों के बीच भारतीय खिलाड़ी 11 स्वर्ण, 12 रजत और 13 कांस्य समेत कुल 36 पदक जीत पाने में सफल रहे.
तस्वीर: Getty Images/Aflo
दोहा, 2006
एशियाई खेलों का पड़ाव 2006 में कतर की राजधानी दोहा बना. यह पहला मौका था जब एशिया ओलंपिक काउंसिल के सभी 45 देशों ने खेलों में हिस्सा लिया. यहां भारत ने 10 स्वर्ण, 17 रजत और 26 कांस्य समेत 53 पदक जीते.
तस्वीर: picture alliance/dpa
गुआंगजू, 2010
चीन के शहर गुआंगजू में हुए 2010 के एशियाई खेल भारत के प्रदर्शन के लिहाज से बेहतरीन खेल रहे, जहां भारत ने 14 स्वर्ण, 17 रजत और 34 कांस्य समेत कुल 65 पदक जीते. यहां पदक तालिका में भारत की रैंकिंग छठी रही.
तस्वीर: AP
इंचियोन, 2014
दक्षिण कोरिया 2014 में तीसरी बार एशियाई खेलों का मेजबान बना और इंचियोन शहर में हुए खेलों में 45 देशों के साढ़े नौ हजार खिलाड़ियों ने हिस्सा लिया. यहां भारत को 11 स्वर्ण, 10 रजत और 36 कांस्य समेत कुल 57 पदक मिले.
तस्वीर: Suhaimi Abdullah/Getty Images
जकार्ता, 2018
इंडोनेशिया की राजधानी में हो रहे 18वें एशियाई खेलों में भारत अब तक 11 स्वर्ण, 20 रजत और 23 कांस्य समेत कुल 53 पदक जीत चुका है. इन खेलों में 45 देशों के रिकॉर्ड 11,720 खिलाड़ी हिस्सा ले रहे हैं. पदक तालिका में चीन सबसे ऊपर है.
तस्वीर: IANS
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एशियाई खेलों से पहले सब कुछ योजनाबद्ध तरीके से चल रहा था और लेकिन पटियाला में राष्ट्रीय शिविर के दौरान टखने की चोट, घुटने की नस में खिंचाव और पेट के निचले हिस्से में तकलीफ के कारण उसके अभियान पर एक बार फिर खतरे के बादल छा गए थे. हालांकि सरकार ने कहा कि इस बार वह हार नहीं मानने वाली थी, जबकि एथलेटिक्स फेडरेशन के अधिकारी भी उसकी फिटनेस को लेकर आश्वस्त नहीं थे.
स्वप्ना का अगला लक्ष्य 2020 का ओलंपिक है. हालांकि 2019 में वह किसी बड़ी स्पर्धा में हिस्सा नहीं ले पाएगी, क्योंकि उसे जल्द स्वस्थ होने की जरूरत है.
रिपोर्ट: देबयन मुखर्जी (आईएएनएस)
सऊदी अरब में महिलाओं के योग स्टूडियो
महिलाओं के लिए सऊदी अरब पिछले एक साल में तेजी से बदला है. अब देश की महिलाएं खुद को चुस्त-दुरुस्त रखने के लिए योग को अपना रहीं हैं. आज से कुछ साल पहले तक सऊदी में योग को गैर-इस्लामिक माना जाता था.
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योग अब खेल है
लंबे वक्त तक सऊदी अरब में योग को हिंदू धार्मिक परंपराओं का हिस्सा माना जाता रहा. इसे करना गैर इस्लामिक माना जाता था, लेकिन सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने योग को एक खेल के रूप मान्यता दी है. जिसके बाद से देश के बड़े शहरों में योग लोकप्रिय हो रहा है.
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योग के लिए नफरत!
कई सौ लोगों को प्रशिक्षित कर चुकी 38 साल की नौफ मारवाई, देश में अरब योगा फाउंडेशन के नाम से एक संस्था चलाती हैं. वह योग के प्रचार-प्रसार के लिए कई सालों से काम कर रहीं हैं. उन्होंने बताया, "मुझे बहुत परेशान किया जाता था, नफरत और घृणा भरे संदेश भेजे जाते थे. पांच साल पहले तक यहां योग के बारे में सोचना भी असंभव था."
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उद्योग बन रहा है योग
महिलाएं मानती हैं कि रोजाना योग करने से उनकी जिंदगी में सकारात्मक बदलाव आए हैं. मारवाई बताती हैं, "योग को मान्यता मिलने के कुछ महीने के भीतर ही मक्का, मदीना सहित देश के कई शहरों में योगा स्टूडियो और योग प्रशिक्षकों का एक नया उद्योग खड़ा हो गया है."
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मौलवियों की आपत्ति
मारवाई ने बताया कि मौलवियों को सबसे बड़ी आपत्ति "सूर्य नमस्कार" से थी. इस आसन में मंत्रों के साथ सूर्य का अभिवादन किया जाता है. एक मौलवी का तर्क था कि मुस्लिम प्रार्थनाओं में जिस तरह की शारीरिक क्रियाएं होती हैं वह शरीर के लिए पर्याप्त हैं.
तस्वीर: AFP/Getty Images/A. Hilabi
योग करने वाले हिंदू हैं?
मारवाई से योग सीखने वाले कई छात्र कहते हैं कि उन पर मजहब को धोखा देने का आरोप लगता है. कई लोगों से सोशल मीडिया पर पूछा जाता है कि क्या वे हिंदू हैं? या क्या वे हिंदू हो गए हैं? लेकिन इसे सीखने वाले मानते हैं कि योग एक खेल है, और इसका धर्म से कोई लेना-देना नहीं है.
तस्वीर: AFP/Getty Images/A. Hilabi
बदलता सऊदी अरब
योग के साथ-साथ पिछले एक साल में सऊदी महिलाओं को कई अधिकार मिले हैं. अब वे अपनी मर्जी के कपड़े पहन सकती हैं, गाड़ी ड्राइव कर सकती हैं, फ्लाइंग स्कूल, सिनेमाघरों के अलावा महिलाओं के लिए जिम के दरवाजे भी खुल गए हैं.