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स्वाइन फ़्लू विश्वव्यापी महामारी घोषित

११ जून २००९

स्वाइन फ़्लू के मामले सामने आने के लगभग महीने भर बाद विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसे विश्वव्यापी महामारी घोषित कर दिया है. चालीस साल में यह पहला मौक़ा है, जब किसी बीमारी को महामारी घोषित किया गया है.

स्वाइन फ्लू विश्वव्यापी महामारीतस्वीर: AP

जिनेवा में एक आपातकालीन बैठक के बाद विश्व स्वास्थ्य संगठन ने एच1एन1 फ़्लू यानी स्वाइन फ़्लू को बेहद ख़तरनाक बीमारी मानते हुए इसे विश्वव्यापी महामारी घोषित कर दिया. विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी डब्ल्यूएचओ ने इसके लिए सतर्कता का स्तर सबसे ऊपर यानी छह की घोषणा कर दी है. इस बैठक के बाद डब्ल्यूएचओ की निदेशक मारग्रेट" चेन ने कहा, ''मैंने यह इस विश्वव्यापी बीमारी के लिए सतर्कता का स्तर पांच से बढ़ाकर छह करने का फैसला किया है. यह बीमारी 21वीं सदी की पहली विश्वव्यापी महामारी है.

74 देशों में फैला स्वाइन फ़्लूतस्वीर: AP

डब्ल्यूएचओ की निदेशक चेन ने बताया कि, ''सतर्कता का स्तर बढ़ाकर छह कर देने का मतलब यह नहीं है कि इसके बाद इस बीमारी से ज़्यादा लोगों की जान जाएगी या बहुत बुरी स्थिति होगी.'' चेन स पहले डब्ल्यूएचओ की बैठक में लिए गए फैसलों की जानकारी देते हुए स्वीडन के स्वास्थ्य मंत्री मारिया लारसन ने भी कहा कि इस फैसले के बाद बहुत ज़्यादा घबराने की ज़रूरत नहीं है.

अप्रैल में पहली बार स्वाइन फ़्लू का मामला सामने आया था, जिसके बाद भारत सहित 74 देशों में इसके 28,000 से ज़्यादा मामले सामने आए. स्वाइन फ़्लू की वजह से कम से कम 141 लोगों की जान जा चुकी है.

सबसे नया मामला ग्वाटेमाला में आया है, जहां स्वाइन फ़्लू की वजह से किसी की मौत हो गई है, जबकि सबसे ज़्यादा एक सौ आठ मौतें मेक्सिको में हुई हैं. इससे पहले डब्ल्यूएचओ ने 40 साल पहले किसी फ्लू को विश्वव्यापी महामारी बताया था. 1968 में हांग कांग फ्लू की वजह से दस लाख लोगों की मौत हो गई थी.

हालांकि स्वाइन फ़्लू से ज़्यादा लोगों की जान नहीं गई है लेकिन इसका दायरा बढ़ता जा रहा है. उत्तर अमेरिकी देश मेक्सिको से शुरू हुई यह बीमारी अब यूरोप और एशिया के देशों तक पहुंच चुका है. जानकारों का कहना है दुनिया के दक्षिणी गोलार्ध में इस वायरस ने मौसमी नज़ले ज़ुकाम के मामलों को बढ़ाया है और इस वजह से भी इसे ख़तरनाक बीमारी घोषित करने का फ़ैसला किया गया होगा. हालांकि मेडिकल एक्सपर्ट का कहना है कि इससे घबराने की उतनी ज़रूरत नहीं है क्योंकि पिछली शताब्दियों के मुक़ाबले स्वाइन फ़्लू का असर बहुत कम है.


रिपोर्ट: एजेंसियां/ ए जमाल

संपादन: महेश झा

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