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स्वागत संस्कृति से अलगाव की ओर

बारबरा वेजेल
२६ सितम्बर २०१६

यूरोपीय संघ के नेताओं की शरणार्थियों पर हुई बैठक के बाद डॉयचे वेले की बारबरा वेजेल का कहना है कि बहस के केंद्र में अब मानवीयता नहीं बल्कि अलगाव है.

Wien  Angela Merkel  Donald Tusk EU Gipfel Balkan Route
तस्वीर: picture-alliance/dpa/C.Bruna

जब फरवरी में शरणार्थियों के यूरोप आने के बाल्कन रास्ते को बंद किया था तो ईयू में दबे छिपे विरोध हो रहा था. लोग कह रहे थे कि बाड़ लगाकर समस्या का समाधान नहीं होगा. यूरोप के मानवीय मूल्यों को भुलाया नहीं जाना चाहिए और यह भी नहीं कि यहां आने वाले लोगों को संरक्षण की जरूरत है. यह सिर्फ छह महीने पुरानी बात है. लेकिन अब किसी को यह याद नहीं. यूरोप ने शरणार्थियों को लेने और उनका बंटवारा करने की कोशिश की लेकिन उसमें पूरी तरह नाकाम रहा.

सारा ध्यान अलगाव पर

यूरोप परिषद के अध्यक्ष डोनाल्ड टुस्क का कहना है कि पश्चिमी बाल्कन के रास्ते को हमेशा के लिए बंद रहना चाहिए. पिछले कुछ महीनों में यूरोप के भविष्य सहित दूसरे प्रमुख मुद्दों पर उनका रुख बहुत से पूर्वी यूरोपीय नेताओं के विचारों के लगातार करीब जा रहा है. उन्हें खुद से सवाल पूछना चाहिए कि वे किसके नाम पर बोल रहे हैं क्योंकि वे हार्डलाइनर बनते जा रहे हैं. पोलैंड की लॉ एंड जस्टिस पार्टी, फ्रांस की नेशनल फ्रंट या जर्मनी की अल्टरनेटिव फॉर जर्मनी जैसी पार्टियां यूरोप भर में सत्ता में नहीं हैं. लेकिन वे राजनीतिक बहस और उसके टोन पर असर डाल रही हैं.

टुस्क नीतियों में हो रहे परिवर्तन का हिस्सा हैं. शरणार्थियों पर बहस में शर्म की सीमाएं पार कर ली गई हैं. यूरोप अलेप्पो में हो रही बमबारी को देख रहा है और उसके विरोध में खड़ा नहीं हो रहा है. इसी तरह वहां के और दूसरे संकटक्षेत्रों के शरणार्थियों का भविष्य उदासीनता का शिकार हो रहा है. यूरोपीय संघ में शरणार्थियों को सीमा पर ही रोकने पर सहमति है. लक्ष्य यूरोप की किलेबंदी करना है और सारा ध्यान अब बाहरी सीमा की रक्षा करने पर है. यहां तक कि पिछले साल मानवता की रक्षक के रूप में तारीफ पाने वाली जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल भी चुपचाप इस बदलाव में मदद दी है.

बर्बर होता रवैया

शरणार्थियों की बिगड़ती हालत पर रिपोर्ट लोकप्रिय नहीं है. कोई और ज्यादा नहीं जानना चाहता कि क्यों मिस्र के तट पर डूबी नौका में सवार 400 लोग अपने घरों से क्यों भाग रहे थे. बहुत से लोग डूब कर मर गए. इस तरह की खबरें हैं कि मानव तस्करों का हिंसक गुट युवा लोगों पर इस तरह की यात्राओं के लिए दबाव डाल रहा है. लेकिन ये बातें कौन सुनना चाहता है? इस साल सैकड़ों बच्चे भागने की कोशिश में डूब चुके हैं, लेकिन उनके बारे में किसी को पता नहीं. उनकी कहानियां अब नहीं कही जा रही हैं.

दक्षिण के लोगों की तकलीफ पर, भले ही उनके भागने के कारण अलग अलग क्यों न हों, यूरोप का एकमात्र जवाब सीमा पर गश्त बढ़ाना है. इंसान को मानवीय चुनौती समझना अब लोकप्रिय नहीं रहा. एक साल के अंदर वे गिनती और आंकड़ा बन कर रह गए हैं जिस पर किसी का दिल नहीं पसीजता. इस तरह यूरोप के राजनीतिज्ञ अति दक्षिणपंथियों द्वारा संचालित हो रहे हैं. बहस की भाषा और लहजा बर्बर होता जा रहा है और राजनीतिक कदम नई संगदिली के अनुरूप हैं. यूरोप ने मूलभूत सिद्धांतों के साथ विश्वासघात किया है और इन्हें किसी का ध्यान गए बिना खास बना दिया है. यह यूरोप की नई नीति के लिए अच्छा आधार नहीं है, जिस पर आने वाले दिनों में बहस होनी है.

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