कोरोना संक्रमण पर हुए एक रिसर्च के अनुसार फ्लू और कोविड-19 में फर्क करने का सबसे आसान तरीका है स्वाद और गंध पर ध्यान देना. रिसर्चरों के अनुसार ज्यादातर संक्रमित लोगों में इसकी कमी देखी गई.
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अमेरिका और ब्रिटेन के वैज्ञानिकों ने मिल कर एक ऐसा ऐप तैयार किया है जिसमें कोविड-19 से बीमार हुए लोग अपने संक्रमणों की जानकारी दे सकते हैं. इस ऐप पर लोगों से मिली जानकारी के आधार पर ही वैज्ञानिक यह पता लगाने में कामयाब हुए हैं कि कोरोना संक्रमण में स्वाद और गंध की अनुभूति पर असर होता है. अधिकतर लोगों ने कहा कि संक्रमण के दौरान उन्हें स्वाद और गंध का कोई अंदाजा ही नहीं रहा. पॉजिटिव टेस्ट करने वाले 60 फीसदी लोगों ने ऐसा होने की बात कही.
लंदन के किंग्स कॉलेज के अनुसार अब तक केवल बुखार, खांसी और सांस लेने में तकलीफ जैसे लक्षणों पर ही ध्यान दिया जा रहा था लेकिन अब नए लक्षणों से बीमारी का पता लगाने में और मदद मिल सकेगी. ऐप बनाने वालों का कहना है कि अगर सभी संक्रमित लोग अपने अपने तजुर्बों को ऐप पर डालें तो इससे रिसर्चरों को बहुत फायदा हो सकता है.
यह रिसर्च अमेरिका के हावर्ड मेडिकल स्कूल के साथ मिलकर की जा रही है. हावर्ड मेडिकल स्कूल के एंड्र्यू चैन का कहना है, "ऐप पर आधारित इस रिसर्च के जरिए कोविड-19 के हॉटस्पॉट का पता लगाने में मदद मिल सकेगी. साथ ही नए लक्षणों का पता लगाया जा सकेगा. यह तय किया जा सकेगा कि कहां क्वारंटीन करना है, कहां वेंटिलेटर भेजने हैं और भविष्य में कहां संक्रमण फैलने का खतरा सबसे ज्यादा है."
ब्रिटेन के किंग्स कॉलेज के प्रोफेसर टिम स्पेक्टर का कहना है, "अगर हम बाकी लक्षणों के साथ तुलना कर के देखें तो पता चलता है कि स्वाद और गंध का अहसास ना होने वालों पर कोविड-19 का खतरा तीन गुना ज्यादा था." स्पेक्टर के अनुसार ब्रिटेन में ऐसे 50,000 लोग मौजूद हो सकते हैं जिनका अब तक टेस्ट नहीं हुआ है लेकिन जो संभवतः कोरोना वायरस से संक्रमित हैं. 24 से 29 मार्च के बीच करीब 15 लाख लोग इस ऐप का इस्तेमाल कर अपने लक्षणों की जानकारी दे चुके थे. हालांकि इसमें से सिर्फ 1702 का ही आधिकारिक रूप से टेस्ट हुआ था और इनमें से पॉजिटिव टेस्ट करने वालों की संख्या मात्र 579 ही थी.
इंसान अपनी नाक का इस्तेमाल सांस लेने और गंध की पहचान करने के लिये करते हैं. भावनात्मक स्तर पर कभी-कभी इसके चलते तनातनी भी हो जाती है. लेकिन जानवरों की नाक इंसानों के मुकाबले अधिक एडवांस हैं. डालते हैं एक नजर.
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चमकदार नाक
बंदरों की प्राचीनतम प्रजातियों में शुमार मैंडरिल बंदरों की नाक इनके शरीर का सबसे उजला हिस्सा होती है. नर बंदरों की नाक अन्य बंदरों के मुकाबले अधिक चमकदार होती है. जब ये बंदर गुस्से में पागल हो जाते हैं तो इनकी नाक के नीले हिस्से की चमक और भी बढ़ जाती है. नाक का लाल रंग शरीर में खून के प्रवाह को दर्शाता है
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ऑल-राउंडर नाक
हाथी अपनी सूंड का इस्तेमाल गंध की पहचान करने के लिये, दुश्मन को पटखनी देने के लिये और स्नॉर्कल के लिये करते हैं. स्नॉर्कल एक तरह का उपकरण होता है जिसका इस्तेमाल इंसान पानी में तैरते वक्त सांस लेने के लिये करते हैं. लेकिन जानवर अपनी नाक के जरिये ही सांस लेते हैं. हाथी की सूंड इसकी नाक और होंठ का मिश्रण होता है.
उभरी हुई नाक के चलते ही इन जानवरों का नाम एलिफेंट सील पड़ा. नाक का उभार आपको हाथी की सूंड याद दिला सकता है. मेटिंग (सहवास) सीजन में नर एलिफेंट अपने मुंह को रक्त और हवा के साथ ऊपर उठाता है और अपने प्रतिद्वंद्वियों को दूर करने के लिए जोर से शोर करते हैं. नर और मादा दोनों ही अपनी नाक से नमी को अवशोषित करते हैं.
तस्वीर: picture alliance/dpa/WILDLIFE
डंक मारने वाली नाक
समुद्री जीव उरकिन को ट्रिगरफिश का पसंदीदा भोजन माना जाता है. उरकिन को हासिल करने के लिये ये मछलियां अपनी लंबी नाक का इस्तेमाल करती हैं. लजीज उरकिन का शिकार करने के लिये ये मछली (तस्वीर में पिकासो मछली नजर आ रही है) पानी को जोर से फेंकती हैं और मुंह से उरकिन पर डंक मारती है.
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90 सेंटीमीटर लंबी नाक
विशाल एंटईटर के शरीर में नाक की तरह नजर आने वाला ये हिस्सा असल में थूथन है. असली नाक इसकी नोंक पर हैं. इसका इस्तेमाल यह एंटईटर सूंघने और भोजन की खोज के लिये करते हैं. जब इसे कोई लजीज भोजन नजर आता है यह अपनी 90 सेंटीमीटर लंबी जीभ निकाल कर उसे तपाक से पकड़ लेते हैं.
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प्लग-सॉकेट जैसी नाक
प्लग-सॉकेट की तरह दिखने वाली सुअर की नाक बदसूरत लग सकती है लेकिन यह बेहद ही संवेदनशील हिस्सा होता है. यह मिट्टी में 50 सेंमी गहरी चीजों को भी महसूस कर सकती हैं. सूंघने की क्षमता कुत्तों के मुकाबले सुअरों में अधिक होती है और इसलिये इन्हें कुकुरमुत्तों की खोज के लिये बेहतरीन माना जाता है.
कुत्तों की पग प्रजाति में नाक का आकार चौकोर होता है. माना जाता है कि सदियों पहले चीन के राजा के पास पग को पालने के विशेषाधिकार थे. बाद में ये पेंटिंग में महिलाओं के साथ भी नजर आये. लोगों ने इन कुत्तों को मनोरंजन के लिये पाला लेकिन ये कुत्ते अपने कमजोर श्वसन तंत्र से ग्रस्त हैं. इनके श्वसन अंग अत्यधिक संकुचित हैं जो इनकी बीमारी का कारण हैं.