स्वास्थ्यकर्मियों को हमलों से बचाने के लिए केंद्र सरकार ने एक अध्यादेश जारी कर एपिडेमिक डिजीजेज एक्ट में संशोधन कर दिया है. अब से स्वास्थ्यकर्मियों पर हमला एक संज्ञान योग्य अपराध होगा और इसमें बेल भी नहीं मिलेगी.
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भारत में स्वास्थ्यकर्मियों की एक पुरानी मांग को केंद्र सरकार ने मान लिया है. डॉक्टरों और अन्य स्वास्थ्यकर्मियों को हमलों से बचाने के लिए बुधवार 22 अप्रैल की देर रात केंद्र सरकार ने एक अध्यादेश जारी कर एपिडेमिक डिजीजेज एक्ट में संशोधन कर दिया. अध्यादेश के अनुसार अब से स्वास्थ्यकर्मियों पर हमला एक संज्ञान योग्य अपराध होगा और इसमें बेल भी नहीं मिलेगी.
अगर हमला होता है और किसी स्वास्थ्यकर्मी को मामूली चोट आती है तो दोषी पाए जाने वाले को 50 हजार से दो लाख तक का जुर्माना देना पड़ सकता है या उसे तीन महीने से पांच साल तक की जेल हो सकती है. अगर चोट गंभीर हुई तो जुर्माना न्यूनतम एक लाख से पांच लाख तक होगा और छह महीने से सात साल तक की जेल हो सकती है. इस अध्यादेश के दायरे में सिर्फ डॉक्टर ही नहीं बल्कि सामुदायिक स्तर पर काम करने वालीं आशा कार्यकर्ता तक सभी स्वास्थ्यकर्मी आएंगे.
अध्यादेश का एक और महत्वपूर्ण प्रावधान यह भी है कि पुलिस को हमले की जांच एक महीने में पूरी कर लेनी होगी. हमले की परिभाषा में स्वास्थ्यकर्मियों पर शारीरिक हमले के अलावा अस्पताल, क्लिनिक और अन्य मेडिकल संस्थानों और मोबाइल मेडिकल यूनिटों पर हमलों को भी शामिल किया गया है. अध्यादेश पास होने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट कर के कहा कि ये अध्यादेश कोविड-19 से लड़ने वाले हर स्वास्थ्यकर्मी की रक्षा करने के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता को दर्शाता है.
स्वास्थ्यकर्मियों की रक्षा के लिए एक विशेष कानून लाना पूरे देश में स्वास्थकर्मियों की पुरानी मांग रही है. डॉक्टरों पर हमले भारत में एक बड़ी समस्या है. लगभग एक साल पहले पूरे देश में इस तरह के हमलों के मामले काफी बढ़ गए थे जिसके बाद देश में डॉक्टरों ने हड़ताल कर दी थी और आंदोलन भी किया था. डॉक्टरों ने सरकार से उनकी सुरक्षा के लिए विशेष इंतजाम करने की मांग की थी. सरकार के आश्वासन के बाद ही उन्होंने अपना आंदोलन खत्म किया था.
महामारी के दौरान भी डॉक्टरों और अन्य स्वास्थकर्मियों पर कई हमले हुए हैं. कुछ ही दिनों पहले इंदौर के टाट पट्टी भाखल इलाके से संक्रमण के दो मामले सामने आने के बाद स्वास्थ्यकर्मी और नगरपालिका के कर्मचारी जब वहां रहने वालों की जांच करने गए तो स्थानीय लोगों ने जांच की अनुमति नहीं दी और जोर देने पर स्वास्थ्यकर्मियों पर ही हमला कर दिया. पुलिस ने किसी तरह से उन लोगों को वहां से बचा कर निकाल लिया. बाद में पुलिस की कार्रवाई में चार लोगों को हिरासत में लिया गया.
बुधवार 22 अप्रैल को ही मध्य प्रदेश के शिवपुर में एक गांव में हाल ही में लौटे एक व्यक्ति की मेडिकल जांच करने गए एक डॉक्टर और एक पुलिसकर्मी पर उस व्यक्ति के परिवार वालों ने पथराव कर दिया. इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने इन हमलों से स्वास्थ्यकर्मियों को बचाने के लिए एक कानून की मांग की थी और जब तक ऐसा कानून नहीं आ जाता तब तक पूरे देश में विरोध प्रदर्शन की घोषणा की थी. अध्यादेश पास होने के बाद संगठन ने प्रदर्शन रद्द कर दिया है.
जब भी संकट की घड़ी आती है तो कुछ लोग मदद के लिए आगे आते हैं. डीडब्ल्यू हिन्दी ने अपनी यूट्यूब कम्युनिटी से पूछा कि कौन हैं आपके आसपास मौजूद कोरोना नायक. ये रही उनकी सूची.
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डॉक्टर, नर्स और अन्य मेडिकल पेशेवर
भारत ही नहीं पूरे विश्व में सबसे ज्यादा खतरे का सामना कर रहे मेडिकल पेशेवरों को ही आपमें से सबसे ज्यादा लोगों ने कोरोना के दौर का नायक बताया है. हालत ये है कि देश के तमाम हिस्सों में कई डॉक्टर, नर्स और दूसरे स्वास्थ्यकर्मी मरीजों को बचाते बचाते खुद संक्रमित हो रहे हैं. कई लोगों ने इस मौके पर संकल्प लेने का आह्वान किया है कि भविष्य में इनसे मारपीट और हिंसा की हरकतें फिर कभी न की जाएं.
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सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करने वाले सभी लोग
अजय माने ने मराठी में लिखे अपने संदेश में आशा जताई है कि अगर विदेश से आए लोग खुद को कुछ दिनों के लिए कैद कर लेते तो शायद बाद में ऐसी नौबत नहीं आती. धर्मेंद्र राम ने उन लोगों को चुना है जो सोशल डिस्टेंसिंग कर कोरोना संक्रमण के चक्र से बाहर रह रहे हैं. ज्ञानेन्द्र सिंह कहते हैं कि इस समय का प्रयोग वह पौधों की सेवा और योग में कर रहे हैं और दूसरे लोगों को भी लॉकडाउन का पालन करने के लिए समझा रहे हैं.
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पुलिसकर्मी
दीपक जायसवाल मानते हैं कि इस कठिन दौर में पुलिस वाले सच्चे नायक बन कर उभरे हैं. वहीं कुछ लोगों ने अस्पतालों में सेक्योरिटी गार्ड की नौकरी करने वालों को अपना कोरोना नायक बताया है जिनका आने वाले मरीजों से सामना होता है. पावर प्लांट में टेक्नीशियन का काम करने वाले सत्यजीत परीजा अपने काम को बेहद अहम बताते हैं क्योंकि बिना पावर के कुछ भी नहीं हो पाएगा.
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लोकल किराना स्टोर और सब्जी वाले
जावेद टायरवाला स्थानीय किराना की दुकान चलाने वालों और सब्जी बेचने वालों के काम से खासे प्रभावित हैं. उमा सिंह ने अपना अनुभव लिख भेजा है कि उनके एरिया का दुकानदार राहुल अग्रवाल सही रेट पर अपनी कार में लाद कर उनके घर तक राशन पहुंचा गया. जाहिर है हर जगह ऐसा नहीं हो रहा है जैसा कि इलाहाबाद से एक पाठक ने लिखा है कि वहां कुछ दुकानदार स्टूडेंट्स को भी चार गुना दाम में समान बेच रहे हैं.
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बैंक कर्मी
बीआर रतूड़ी कहते हैं कि महामारी के इस दौर में बैंक कर्मी भी नायक हैं जो जान जोखिम में डाल कर भी लोगों के कैश चेक ले रहे हैं. मनीष जायसवाल ने लिखा है इस दौर में उनके लिए कोरोना नायक गांव के पड़ोस की दुर्गा जनरल स्टोर दुकान है जो जरूरत के सामान के साथ जरूरी बैंकिंग सेवाएं भी प्रदान करती है. बैंकिंग की सुविधा प्राथमिकता सेवाओं में शामिल है इसलिए मेडिकल, पुलिस की तरह ही बैंककर्मी भी सेवा दे रहे हैं.
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नागरिक समूह, एनजीओ
बिहार राज्य के दरभंगा जिले में मानवाधिकार एवं सामाजिक न्याय का एक संगठन चलाने वाले रोहित कुमार सिंह के बारे में बिहारी बाबू ने लिखा है कि लॉकडाउन के बाद से वे रिक्शा और ठेला चालकों, मजदूरी करने वाले ऐसे 40 से 45 घरों में रोजाना राशन पहुंचा रहे हैं जिनकी रोजी रोटी छिन गई है. बिहार से ही सविता ने लिखा है कि उनके क्षेत्र में ‘मानस’ संस्था अच्छा काम कर रही है इसलिए उनके लिए यही असली कोरोना नायक हैं.