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स्विस बैंकों का रहस्य खुलेगा

१५ अक्टूबर २०१३

स्विट्जरलैंड ने अपनी बैंकिंग के रहस्यों पर पड़ा ताला तोड़ दिया है. टैक्स चोरों को धरने के लिए चल रही अंतरराष्ट्रीय मुहिम के तहत हुए समझौते पर दस्तखत के साथ स्विस बैंकों की गोपनीयता का फायदा अब टैक्स चोरों को नहीं मिलेगा.

तस्वीर: Reuters

ऑर्गनाइजेशन फॉर इकोनॉमिक कॉपरेशन एंड डेवलपमेंड यानी ओईसीडी में टैक्स मामलों के प्रमुख पास्कर सेंट अमान्स ने समाचार एजेंसी एएफपी से कहा, इसके साथ ही "बैंकों की गोपनीयता खत्म" हो गई है. 60 से ज्यादा देशों के बीच हुए समझौते में स्विट्जरलैंड का शामिल होना शायद इस समझौते के लिए सबसे अहम बात है, क्योंकि माना जाता है कि दुनिया भर के टैक्स चोर स्विस बैंकों में ही अपना काला धन रखते हैं. भारत और जर्मनी समेत दुनिया के तमाम देश भ्रष्टाचारियों के खिलाफ कार्रवाई में स्विस बैंकों की गोपनीयता की वजह से परेशान हैं.

आपसी टैक्स सहयोग

ओईसीडी के महासचिव एंगेल गुरिया ने कहा कि टैक्स के मामलों में आपसी प्रशासनिक सहयोग पर बहुस्तरीय समझौते में स्विटजरलैंड का शामिल होना "इस बात का साफ और तगड़ा संकेत है कि वह उन देशों में शामिल हैं जो अंतरराष्ट्रीय टैक्स सहयोग को जरूरी मानते हैं." कई विकसित देशों के निर्देश पर फ्रांस में मुख्यालय वाले ओईसीडी ने टैक्स चोरी और काले धन के खिलाफ मुहिम शुरू की है. हालांकि अभी एक बड़ी बाधा को पार करना बाकी है. इस फैसले पर अभी स्विटजरलैंड की संसद की मुहर नहीं लगी है. जब तक इसकी वहां से पुष्टि नहीं हो जाती तब तक इस पर अमल नहीं हो सकता.

तस्वीर: Reuters

स्विस बैंकिंग की गोपनीयता की मौजूदा संरचना ने दूसरे विश्व युद्ध से पहले ही यह रूप हासिल कर लिया था. इसके जरिये नाजी शासन के पीड़ितों को अपनी संपत्ति को छिपा कर बचाने का एक जरिया मिला. स्विस बैंक अपने खाताधारकों के बारे में जानकारी देने के लिए प्रतिबद्ध नहीं हैं.

भारत भी प्रभावित

बाद में इसका इस्तेमाल दुनिया भर में टैक्स की चोरी करने और काले धन को छिपाने के लिये किया जाने लगा. माना जाता है कि भारत के टैक्स चोरों और भ्रष्टाचारियों ने भी कई लाख करोड़ की रकम स्विस बैंकों में जमा कर रखी है. 2008 में जब पूरी दुनिया में मंदी आई और इसके बात यूरोजोन कर्ज संकट में फंसा तब "टैक्सचोरों के स्वर्ग" स्विटजरलैंड की बैंकिंग नीतियों में बदलाव करने की मांग उठने लगी. अमेरिकी टैक्स विभाग ने खासतौर से स्विस बैंकों के खिलाफ बेहद कड़ा रुख अपनाया है. इसके साथ ही कई बड़े विवाद भी उठे जब स्विस बैंकों में खाता रखने वालों के बारे में कहीं और से जानकारी सामने आने लगी.

इस समझौते में फिलहाल दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देशों के समूह जी 20 के सदस्य देश और 40 दूसरे देश शामिल हैं. इन सभी देशों ने आपस में जानकारी साझा करने के साथ ही टैक्स की धोखाधड़ी रोकने के लिए साझा अभियान चलाने पर भी सहमति जताई है. अब तक होता यह था कि इस तरह के मामलों में जांच दूसरे देशों के कानून के जाल में उलझ जाती थी और टैक्स चोरों को इसका फायदा उठाने का मौका मिल जाता था.

तस्वीर: picture-alliance/dpa

यूरोप का बैंकिंग सुपरवाइजर

इसी बीच यूरोपीय संघ के अधिकारियों ने बैंकिंग सुपरवाइजर बनाने की योजना को मंजूरी दे दी. यह यूरोपीय सेंट्रल बैंक के जरिये संचालित होगा और यूरोपीय संघ के 130 बड़े बैंकों पर निगरानी रखेगा. 28 देशों के वित्त मंत्रियों की लग्जेमबर्ग में हुई बैठक में इसकी मंजूरी दी गई. उम्मीद की जा रही है कि यह अगले साल तक काम करने लगेगा और यूरोपीय बैंकों की बैलेंस शीट में संभावित पूंजी की कमी की पहचान करेगा. अगर सुपरवाइजर को लगा कि बैंक को मदद की जरूरत है तो बैंकों के बचाव वाली अथॉरिटी इसके लिए कदम उठाएगी. उसके पास इस काम के लिए एक फंड भी रहेगा.

इन सब उपायों को मिला कर यूरोपीय संघ का कथित बैंकिंग यूनियन तैयार हुआ है. यह एक कोशिश है यह तय करने की कि किसी एक देश के बैंक के फेल होने की स्थिति में उसका असर पूरे इलाके की स्थिरता पर ना पड़े. हालांकि अभी कुछ मुद्दों पर मंत्रियों के बीच समझौता होना बाकी है. खासतौर से बैंकों को बचाने वाली अथॉरिटी से जुड़े कई प्रावधानों के बारे में.

एनआर/एमजे(एएफपी,एपी)

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