दुनिया के सबसे सुरक्षित देशों में शुमार स्वीडन इन दिनों अपने नागरिकों को संकट और युद्ध की स्थिति से निपटने की सलाह दे रहा है. सरकार ने नागरिकों के लिए ऐसे पर्चे तैयार किए हैं जिनमें ऐसे दिशानिर्देश दिए गए हैं.
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इन पर्चों में रसद से लेकर पानी तक की व्यवस्था करने को लेकर सुझाव शामिल हैं. लेकिन चौंकाने वाली बात ये है कि स्वी़डन पिछले 200 सालों में किसी भी तरह के सैन्य विवाद में नहीं पड़ा है. तो फिर क्यों खुशहाली और शिक्षा के क्षेत्र में जगह बनाने के चलते खबरों में आने वाला यह देश अब संकट और युद्ध की बातों के चलते सुर्खियों में आया है. जानकारों के मुताबिक स्वीडन को यह चिंता बाल्टिक सागर में रूस के बढ़ते प्रभाव के चलते सता रही है.
पर्चे का नाम है, "इफ क्राइसिस और वार कम्स." 20 पन्नों वाली इस बुकलेट में बताया गया है कि कैसे बम शेल्टर का पता करें, कैसे साफ पानी तक पहुंचें, आपातकालीन स्थिति में रसद स्टॉक करें और कैसे प्रचार वाली खबरों में से असली समाचार की पहचान करें. शीतयुद्ध की समाप्ति के बाद यह पहला मौका है जब स्वीडन ने इस तरह का जन अभियान चलाया है.
स्वीडिश सिविल कंटेंजेंसी एजेंसी ने मीडिया से बातचीत में कहा, "स्वीडन की गिनती भले ही दुनिया के सुरक्षित देशों में होती हो लेकिन फिर भी खतरा मौजूद है. इसलिए जरूरी है कि लोगों को खतरों के बारे में जानकारी रहे, ताकि अगर कभी कुछ गंभीर घटे तो हम तैयार रहें." मार्च 2014 में रूस ने यूक्रेन के क्रीमिया इलाके को अपने क्षेत्र में मिला लिया था. तभी से रूस को लेकर स्वीडन का संशय बढ़ा है.
स्वीडन ने रूस पर बार-बार एयरस्पेस के उल्लघंन का आरोप लगाया है. एक मौके पर स्वीडिश प्रशासन ने स्टॉकहोम द्वीपसमूह के पास एक अज्ञात पनडुब्बी देखे जाने की भी बात कही थी. 1814 के बाद स्वीडन अब तक किसी भी तरह के सैन्य विवाद में नहीं उलझा है. लेकिन 2016 में स्वीडिश सरकार ने देश का सैन्य खर्च बढ़ाने की घोषणा की थी. यह भी माना जाता है कि द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान स्वीडन तटस्थ रहा था लेकिन कुछ जानकार इस पर सवाल उठाते हैं.
द्वितीय विश्वयुद्ध का समय
द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान आधिकारिक रूप से स्वीडन ने "नॉन बेलिगरेंस" की नीति अपनाने की घोषणा की थी. इस नीति का मतलब था कि न तो स्वीडन मित्र राष्ट्रों को सहयोग देगा और न ही धुरी शक्तियों के साथ जाएगा. लेकिन फिनलैंड के साथ स्वीडन की नजदीकी इस पर प्रश्न चिन्ह लगाती है. फिनलैंड उस वक्त युद्ध में जर्मनी का सहयोग कर रहा था.
1945: त्रासदी का अंत
हार, मुक्ति और कब्जा. मई 1945 में जर्मनी के आत्मसमर्पण के साथ यूरोप में द्वितीय विश्वयुद्ध खत्म हुआ. जर्मनी मलबे में था. अमेरिकी और सोवियत सैनिक जर्मनी के सैनिकों और नागरिकों से मिले जिनके खिलाफ वे सालों से लड़ रहे थे.
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अंत की शुरुआत
नॉर्मंडी में 6 जून 1944 को मित्र राष्ट्रों की सेना के उतरने के साथ नाजी जर्मनी के पतन की शुरुआत का बिगुल बज गया. 1945 के शुरू में अमेरिकी सैनिक जारलैंड पहुंचे और जारब्रुकेन के करीब उन्होंने एक गांव पर कब्जा कर लिया. अभी तक जर्मन सैनिक हथियार डालने को तैयार नहीं थे.
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प्रतीक से ज्यादा
हिटलर की टुकड़ियों की हार को रोकना काफी समय से संभव नहीं था, फिर भी राजधानी बर्लिन में अप्रैल 1945 में जमकर लड़ाई हो रही थी. सोवियत सेना शहर के बीच में ब्रांडेनबुर्ग गेट तक पहुंच गई थी. उसके बाद के दिनों में राजधानी बर्लिन में हजारों सैनिकों और गैर सैनिक नागरिकों ने आत्महत्या कर ली.
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कोलोन में पेट्रोलिंग
पांच साल में 262 हवाई हमलों के बाद राइन नदी पर स्थित शहर कोलोन में भी मई 1945 में युद्ध समाप्त हो गया. करीब करीब पूरी तरह नष्ट शहर में कुछ ही सड़कें बची थीं जिनपर अमेरिकी सैनिक गश्त कर रहे थे. ब्रिटिश मार्शल आर्थर हैरिस के बमवर्षकों ने शहर का हुलिया बदल दिया था जो आज भी बना हुआ है.
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प्रतीक वाली तस्वीर
जर्मनी को दो ओर से घेरने वाली सेनाओं का मिलन टोरगाऊ में एल्बे नदी पर स्थित पुल के मलबे पर हुआ. 25 अप्रैल 1945 को सोवियत सेना की 58वीं डिवीजन और अमेरिकी सेना की 69वीं इंफेंटरी डिवीजन के सैनिक एक दूसरे से मिले. इस प्रतीकात्मक घटना की यह तस्वीर पूरी दुनिया में गई.
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सदमे में विजेता
अमेरिकी सेना के पहुंचने तक म्यूनिख के निकट दाखाऊ में स्थित नाजी यातना शिविर में बंदियों को मारा जा रहा था. इस तस्वीर में अमेरिकी सैनिकों को शवों को ट्रांसपोर्ट करने वाली एक गाड़ी पर देखा जा सकता है. दिल के कड़े सैनिक भी संगठित हत्या के पैमाने पर अचंभित थे.
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विजय का झंडा
2 मई 1945 को एक सोवियत सैनिक ने बर्लिन में संसद भवन राइषटाग पर हसिया हथौड़े वाला सोवियत झंडा लहरा दिया. शायद ही और कोई प्रतीक तृतीय राइष के पतन की ऐसी कहानी कहता है जैसा कि विजेता सैनिकों द्वारा नाजी सत्ता के एक केंद्र पर झंडे का लहराना.
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18 मिनट में मौत
उत्तर जर्मनी के छोडे शहर एम्डेन का त्रासदीपूर्ण दुर्भाग्य. 6 सितंबर 1944 को वहां पर कनाडा के लड़ाकू विमानों ने 18 मिनट के अंदर 15,000 बम गिराए. एम्स नदी और समुद्र के मुहाने पर स्थित बंदरगाह पर अंतिम हवाई हमला 25 अप्रैल 1945 को हुआ. युद्ध में बुरी तरह बर्बाद हुए यूरोपीय शहरों में एम्डेन भी शामिल है.
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मोर्चे से युद्धबंदी
जो जर्मन सैनिक युद्ध में बच गया उसके लिए युद्धबंदी का जीवन इंतजार कर रहा था. सोवियत कैद के बदले ब्रिटिश और अमेरिकी सेना के कैद को मानवीय समझा जाता था. 1941 से 1945 के बीच 30 लाख जर्मन सैनिक सोवियत कैद में गए. उनमें से 11 लाख की मौत हो गई. अंतिम युद्धबंदियों को 1955 में रिहा किया गया.
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सबसे अहम खबर
यही खबर पाने के लिए अमेरिकी सैनिक लड़ रहे थे. 2 मई 1945 को अमेरिकी सैनिकों को सेना के अखबार स्टार एंड स्ट्राइप्स से अडोल्फ हिटलर की मौत के बारे में पता चला. सैनिकों के चेहरों पर राहत की झलक देखी जा सकती है. द्वितीय विश्वयुद्ध का अंत करीब आ रहा था.
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मलबे में उद्योग
पहले विश्वयुद्ध की तरह स्टील और हथियार बनाने वाली एसेन शहर की कंपनी क्रुप हिटलर के विजय अभियान में मदद देने वाली प्रमुख कपनी थी. यह परंपरासंपन्न कंपनी मित्र देशों की सेनाओं की बमबारी के प्रमुख लक्ष्यों में एक है.1945 तक क्रुप के कारखानों में हजारों बंधुआ मजदूरों से काम लिया जाता था.
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नष्ट बचपन
वे युद्ध को समझ नहीं सकते, फिर भी जर्मनी में हर कहीं दिखने वाला मलबा लाखों बच्चों के लिए खेलने की जगह है. मलबों से दबे जिंदा बमों से आने वाले खतरों के बावजूद वे यहां खेलते हैं. एक पूरी पीढ़ी के लिए युद्ध एक सदमा है जिसकी झलक जर्मनों की कड़ी मेहनत और किफायत में दिखती है.
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युद्ध से क्या बचा
युद्ध में इंसान. यह जर्मन सैनिक जिंदा बच गया. लेकिन जिंदगी सामान्य होने में अभी देर है. जर्मनी में 1945 में पीने का पानी, बिजली और हीटिंग लक्जरी थी. इसमें जिंदा रहने के लिए जीजिविषा, गुजारा करने की इच्छा और मुसीबतों और अभाव से निबटने का माद्दा चाहिए.
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बर्लिन में वसंत
युद्ध की समाप्ति के 70 साल बाद बर्लिन, ठीक ब्रांडेनबुर्ग गेट के सामने. वह जगह जहां अतीत वर्तमान के साथ नियमित रूप से टकराता है. मई 45- बर्लिन में वसंत के नाम वाली एक प्रदर्शनी राजधानी में जर्मनी सेना के आत्मसमर्पण और यूरोप में दूसरे विश्वयुद्ध के खात्मे की याद दिला रही है.
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स्वीडिश पत्रकार आर्ने रुथ अपनी किताब "थर्ड राइष" में लिखते हैं कि युद्ध के दौरान स्वीडन जर्मनी को लौह अयस्क की आपूर्ति करता था. जो जर्मनी के लिए युद्ध जारी रखने में अहम थी. इतना ही नहीं स्वीडन ने फिनलैंड के शहरों में मानवीय मदद भी भेजी थी. वहीं मित्र देशों की स्वीडन ने सैन्य खुफिया जानकारी हासिल करने में मदद की थी. साथ ही मित्र देशों की सेनाओं को अपना एयरबेस इस्तेमाल करने की अनुमति भी दी थी.
शीत युद्ध में रुख
युद्ध के बाद स्वीडन के लिए तटस्थ रहना आसान नहीं था. फिर भी स्वीडन न तो नाटो में शामिल हुआ और न ही वारसा संधि में. लेकिन स्वीडन का झुकाव अमेरिका की तरफ बना रहा. 2017 के पियू रिसर्च सर्वे बताते हैं कि स्वीडन में 47 फीसदी लोग नाटो की सदस्यता के लिए हामी भरते हैं तो वहीं 39 फीसदी इसके विरोध में हैं.
स्वीडन का एक बड़ा तबका यह भी मानता है कि देश को 200 साल की तटस्थता छोड़कर नाटो में शामिल हो जाना चाहिए. अगर वह ऐसा करता है तो रूस की ओर से होने वाला कोई भी हमला अमेरिका और नाटो के अन्य 28 सदस्यों पर हमला माना जाएगा. स्वीडन के अति राष्ट्रवादी राजनीतिक दल स्वीडन डेमोक्रेट्स को छोड़कर अमूमन सभी राजनीतिक पार्टियां नाटो में शामिल होने के पक्ष में नजर आती हैं.
दूसरा विश्व युद्ध तस्वीरों में
01 सितंबर, 1939 को अडोल्फ हिटलर के आदेश पर जर्मन सेना ने पोलैंड पर हमला किया. 08 मई, 1945 तक यूरोप के देश एक दूसरे से लड़ते रहे. जानिए कब क्या हुआ.
तस्वीर: AP
1939
पहली सितंबर के दिन जर्मनी ने पोलैंड पर हमला किया. पोलैंड के सहयोगियों फ्रांस और ब्रिटेन ने जर्मनी के खिलाफ तीन सितंबर को युद्ध का ऐलान किया.
अप्रैल 1940
अप्रैल 1940 में जर्मन सेना डेनमार्क की ओर बढ़ी और नॉर्वे पहुंचने के लिए इस देश को प्लेटफॉर्म बनाया. वहां से जर्मनी को युद्ध के लिए जरूरी कच्चा माल मिलता था. ब्रिटेन इस आपूर्ति को रोकना चाहता था, इसलिए उसने नॉर्वे सेना भेजी. लेकिन जून में नॉर्वे में भी सहयोगी देशों ने घुटने टेक दिए.
लक्जेम्बर्ग
10 मई को जर्मन सेना ने नीदरलैंड्स, बेल्जियम और लक्जेम्बर्ग पर हमला किया. इसके बाद सेना ने पेरिस का रुख किया. 22 जून के दिन फ्रांस ने हाथ खड़े कर दिए. और फ्रांस दो हिस्सों में बंटा. एक हिटलर के राज का हिस्सा और दूसरा विषी फ्रांस जहां जनरल पेटां का शासन था.
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ब्रिटेन का रुख
इसके बाद हिटलर ने ब्रिटेन का रुख किया. उसके बमों ने कोवेंट्री जैसे शहरों को तहस नहस कर दिया. साथ ही उत्तरी फ्रांस और दक्षिणी इंग्लैंड के बीच हवाई लड़ाई भी हुई. ब्रिटेन की रॉयल एयर फोर्स ने जर्मन विमानों को ध्वस्त कर दिया. 1941 की शुरुआत में जर्मन हवाई हमले काफी कम हो गए.
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1941
इंग्लैंड में हवाई मार खाने के बाद हिटलर ने ब्रिटेन के दक्षिणी और पूर्वी हिस्सों की ओर रुख किया. इसके बाद उत्तरी अफ्रीका, बाल्कान, सोवियत संघ और फिर युगोस्लाविया पर भी हमला किया गया.
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1942
शुरुआत में रेड आर्मी ने ज्यादा कार्रवाई नहीं की. लेकिन रूस पर चढ़ाई ने जर्मनी की हालत खराब कर दी. भारी नुकसान और मुश्किलों से जर्मनी का हमला कमजोर हुआ. हिटलर के हाथ में करीब करीब पूरा यूरोप, उत्तरी अफ्रीका और सोवियत संघ के कुछ हिस्से थे. लेकिन साल 1942 निर्णायक साबित हुआ.
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यातना शिविर
इटली की मदद से जर्मनी ने उत्तरी अफ्रीका में ब्रिटिश सेना पर जीत हासिल की लेकिन बाद में जर्मनी ढीला पड़ा. इधर पूर्वी इलाकों में हिटलर ने आउश्वित्स जैसे यातना गृह बना लिए थे. करीब 60 लाख लोग हिटलर के नस्लभेद का शिकार हुए.
तस्वीर: Yad Vashem Photo Archives
1943
उस साल जर्मनी के खिलाफ खड़ी सेनाएं मजबूत हुईं. और लड़ाई में रुख पलटने का प्रतीक स्टालिनग्राड बना. इस शहर के लिए लड़ाई में जर्मनी का उत्साह कमजोर हुआ. उत्तरी अफ्रीका में जर्मन और इटैलियन सैनिकों की हार के बाद मित्र देशों के लिए इटली का रास्ता खुला था.
तस्वीर: picture alliance/akg
1944
रेड आर्मी ने जर्मनी की सेना को पछाड़ना शुरू किया. युगोस्लाविया, रोमानिया, बुल्गारिया, पोलैंड, एक एक कर सारे सोवियत संघ के पास चले गए. छह जून को अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा और दूसरे देशों की सेना उत्तरी अफ्रीका की नॉर्मैंडी में उतरी. 15 अगस्त को पश्चिमी मित्र देशों ने दक्षिणी फ्रांस पर जवाबी हमला किया. 25 अगस्त के दिन पैरिस को जर्मन कब्जे से छुड़ा लिया गया.
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1944-45
1944-45 की सर्दियों में जर्मन सेना ने हमला करने की कोशिश की लेकिन पश्चिमी देश इस हमले को रोकने में कामयाब रहे. धीरे धीरे वे पश्चिम और पूर्व की ओर से जर्मन साम्राज्य की ओर बढ़े.
तस्वीर: imago/United Archives
1945
08 मई, 1945 को नाजी जर्मनी ने बिना किसी शर्त घुटने टेक दिए. 30 अप्रैल को हिटलर ने खुद को गोली मार आत्महत्या कर ली ताकि कोई उसे गिरफ्तार न कर सके. यूरोप के अधिकतर शहर छह साल के युद्ध के बाद मलबे में तब्दील हो चुके थे. दूसरे विश्व युद्ध में करीब पांच करोड़ लोग मारे गए. जनरल फील्ड मार्शल विल्हेल्म काइटेल ने मई 1945 को बर्लिन में संधिपत्र पर हस्ताक्षर किए.