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हंगरी के सुधारों की कड़ी आलोचना

१२ मार्च २०१३

यूरोपीय आयोग ने हंगरी के संविधान में संशोधन और संवैधानिक अदालत के अधिकारों में कटौती की कड़ी आलोचना की है, जबकि हंगरी के अनुदारवादी प्रधानमंत्री ओरबान ब्रसेल्स के साथ विवाद का दाव खेल रहे हैं.

तस्वीर: Reuters

आयोग प्रमुख जोसे मानुएल बारोसो ने यूरोप परिषद के महासचिव थोरब्योर्न यागलंड के साथ एक संयुक्त बयान में कहा, "ये संशोधन कानूनसम्मत राज्य, यूरोपीय कानून और यूरोप परिषद के मानकों के लिए आदर के सिलसिले में संदेह पैदा करते हैं." बयान में कहा गया है कि ईयू और यूरोपीय परिषद के संविधान विशेषज्ञ हंगरी के संविधान में किए गए परिवर्तनों की जांच करेंगे.

जर्मन विदेश मंत्री गीडो वेस्टरवेले ने भी यूरोपीय मूल्यों के पालन की मांग की है. उन्होंने कहा, "हम यूरोप में मूल्यों का समुदाय हैं और इसे अंदर की तरफ सदस्य देशों के संविधान में भी दिखना चाहिए." विवादास्पद संशोधन का साया बर्लिन में हंगरी के राष्ट्रपति यानोस आडर और विदेश मंत्री गीडो वेस्टरवेले की बैठक पर भी पड़ा. विदेश मंत्रालय के एक प्रवक्ता ने कहा कि दोनों के बीच खुली और गरमागरम बातचीत हुई. आडर इस समय जर्मनी का दौरा कर रहे हैं. जर्मनी में सत्तापक्ष और विपक्ष दोनों ने ही हंगरी से लोकतांत्रिक सिद्धांतों पर अमल की मांग की है.

तस्वीर: Reuters

सोमवार को हंगरी की संसद ने ओरबान सरकार द्वारा पेश संविधान संशोधनों को पास कर दिया. संसद में ओरबान की पार्टी को प्रचंड बहुमत प्राप्त है. संशोधनों के जरिए संवैधानिक न्यायालय के अधिकारों में कटौती की गई है. भविष्य में सरकार स्वतंत्र न्यायपालिका के काम में हस्तक्षेप कर पाएगी. संविधान संशोधन बिल को ओरबान की फिदेश पार्टी के 265 सदस्यों का समर्थन मिला. 11 ने उसके खिलाफ मत दिया जबकि 33 ने मतदान में भाग नहीं लिया. विपक्षी सोशलिस्ट पार्टी के सांसदों ने मतदान का वहिष्कार किया.

संसद के फैसले से पहले ही लोकतंत्र को नुकसान पहुंचने की चिंता के कारण संशोधनों का विरोध हो रहा था और विदेशों में चिंता जताई जा रही थी. नया संविधान पिछले साल 2012 में ही लागू हुआ है. चौथे संविधान संशोधन में अन्य बातों के अलावा यह तय किया गया है कि संवैधानिक अदालत नया संविधान लागू होने से पहले अपने फैसलों को नए फैसलों का आधार नहीं बना पाएगा. आलोचकों का कहना है कि यह सर्वोच्च न्यायालय को कमजोर करने के लिए किया जा रहा है जिसने अतीत में लोकतंत्र को कमजोर करने वाले कानूनों को निरस्त करने के लिए मौलिक अधिकारों पर अपने पुराने फैसलों का सहारा लिया.

जर्मन राष्ट्रपति योआखिम गाउक के साथ हंगरी के राष्ट्रपति आडरतस्वीर: picture-alliance/dpa

इसके अलावा संवैधानिक अदालत भविष्य में संसद द्वारा पास संशोधनों की जांच सिर्फ संवैधानिक रूप से कर पाएगी, उसके टेक्स्ट की जांच नहीं कर पाएगी. इसके अलावा राष्ट्रीय कानून ब्यूरो की प्रमुख, जिसका चयन ओरबान ने किया है, खास मामलों को खास अदालतों को दे पाएगी. इस नियम की यूरोपीय संघ ने भी कड़ी आलोचना की थी. अन्य संशोधनों के जरिए संवैधानिक न्यायालय द्वारा निरस्त कानूनों को संविधान का दर्जा दे दिया गया है. इसमें सरकारी बहुमत से संसद द्वारा धार्मिक समुदाय का दर्जा दिया जाना और गैर सरकारी टेलिविजन में चुनावी प्रचार पर रोक शामिल है. इसके अलावा बेघर होने को अपराध घोषित कर दिया गया है.

यूरोपीय संसद के प्रमुख राजनीतिज्ञों ने भी यूरोपीय संघ से हंगरी में संविधान में हुए संशोधनों का जांच कराने की मांग है. लिबरल दल के नेता गी फरहोफश्टाट ने कहा कि जरूरत पड़ने पर ईयू को प्रतिबंध लगाने चाहिए क्योंकि विक्टर ओरबान की सरकार यूरोपीय सिद्धांतों और मूल्यों को लागू नहीं करना चाहती है. सोशल डेमोक्रैट और ग्रीन दलों ने भी संशोधनों को लोकतंत्र के लिए खतरा बताया है. मध्य-दक्षिणपंथी दल के प्रमुख जोसेफ डाल ने कहा कि जांच के बाद जरूरत पड़ने पर संगरी सरकार को परिवर्तन का सुझाव दिया जाना चाहिए.

मानवाधिकार संगठन एमनेस्टी इंटरनेशनल ने भी यूरोपीय संघ से अपने सदस्य देश के खिलाफ कार्रवाई करने की मांग की है. संस्था ने कहा है, "ताजा संशोधन इसमें संदेह नहीं रहने देते कि हंगरी की सरकार कानून के राज्य का सम्मान नहीं करती. संवैधानिक अदालत को नजरअंदाज करने और संविधान का इस्तेमाल अपने राजनीतिक हितों के लिए करने की सरकार की कोशिश यूरोपीय संघ के साझा जवाब की मांग करती है."

एमजे/एमजी (डीपीए, एपी)

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