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हक के लिए पूरे साल लड़ती रहीं महिलाएं

२२ दिसम्बर २०१०

नया साल दस्तक दे रहा है. ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि 2010 में कौन सी महिलाएं सुर्खियों में रहीं. कौन सी महिलाओं ने दुनिया को प्रभावित किया.

तस्वीर: picture-alliance/ dpa/dpaweb

सू-ची की रिहाईः

सबसे पहले बात दुनिया की सबसे साहसी महिलाओं में से एक. बीसियों साल से घर में नजरबंद रहीं म्यांमार की आंग सांग सू-ची को 13 नवंबर को आखिरकार रिहा कर दिया गया. उनके प्रशंसकों में रिहाई के बाद खुशी की लहर छा गई.

नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित 65 साल की आंग सान सू-ची सैनिक सरकार के खिलाफ अपने अहिंसक विरोध के लिए दुनिया भर में हिम्मत और धीरज का प्रतीक बन गईं हैं और हजारों महिलाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत भी. अपनी मीठी बोली के लिए जाने वाली सू-ची अपने पति और दो बेटों से दशकों तक जुदा रहने के बाद भी इस पर अफसोस नहीं करतीं हैं. सूची ने इसके बाद डॉयचे वेले के साथ खास इंटरव्यू किया.

तस्वीर: AP

"मुझे डर नहीं लगता. मुझे फिर गिरफ्तार किया जा सकता है. लेकिन इस डर से मैं अपने काम में बदलाव नहीं करूंगी. जोखिम है और मैं गिरफ्तार भी नहीं होना चाहती क्योंकि उससे मेरे संघर्ष में अड़चनें आएंगी."-आंग सांग सू-ची

भारत की महिलाओं के लिए 9 मार्च 2010 एक विशेष दिन रहा. उस दिन राज्यसभा ने सालों बाद महिला आरक्षण बिल को पास किया जिसके तहत संसद और विधानसभाओं में 33 प्रतिशत सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित किए जाएंगे. डॉयचे वेले ने भारत में महिला अधिकार पर विस्तार से रिपोर्टिंग की.

ब्राजील की राष्ट्रपतिः

ब्राजील में भी एक महिला ने बडी जीत हासिल की. दिल्मा रुसैफ अक्टूबर में देश की पहली महिला राष्ट्रपति बनीं. रूढ़ीवादी ब्राजील में दो बार तलाक ले चुकी दिल्मा की जीत अहम है. 63 साल की दिल्मा ने अर्थशास्त्र की पढ़ाई की और इसी दौरान उन्होंने सैनिक शासन के खिलाफ आवाज उठाया. इसकी वजह से उन्हें कुछ दिन कैद भी किया गया. दिल्मा कहतीं हैं कि इन अनुभवों ने उनको वह बनाया जो वह आज हैं.

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"मुझे मेरा बचपन तानाशाही में बिताना पड़ा और तानाशाही के पहले से आखिरी दिन तक मैंने इसके खिलाफ संघर्ष किया. मै राजनैतिक वजहों से कैद लोगों का समर्थन करना चाहती हूं. मै नहीं चाहती कि अपनी राय व्यक्त करने के लिए किसी को अपराधी बनाया जाए." -दिल्मा रुसैफ

लेडी गागा का जलवाः

24 साल की लेडी गागा ने 3 साल की करियर में करीब 7 करोड़ अल्बम बेचे. उनके गाने दुनिया के कई देशों में नंबर वन पर पहुंचे और उनको इस साल सर्वश्रेष्ठ सांग और सर्वश्रएष्ठ अल्बम के लिए दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कार ग्रैमी से नवाजा गया. सितंबर में लॉस एंजिलिस में दिए गए एमटीवी म्यूजिक अवॉर्ड्स के दौरान मीट ड्रेस की वजह से उनकी खूब अलोचना हुई.

तस्वीर: AP

लेकिन लेडी गागा का कहना था कि इस शॉकिंग ड्रेस के साथ वह लोगों के अंदर शाकाहारी बनने की इच्छा जगाना चाहती थी. वैसे, बेशक लेडी गागा आज के जमाने के सबसे रचनात्मक कलाकारों में एक हैं.

मधुर लेना मायरः

जितनी शॉकिंग लेडी गागा अपने व्यवहार के साथ लगती हैं उतनी ही प्यारी 20 साल की जर्मन गायिका लेना मायर लांदरूत जर्मनों को लगती हैं. उनकी सफलता परिकथा जैसी है. 2010 की शुरुआत में उन्हें एक टीवी शो में नॉर्वे की राजधानी ओस्लो में जर्मनी का प्रतिनिधित्व करने के लिए चुना गया. ओस्लो में 29 मई को यूरोविजन सांग कॉन्टेस्ट आयोजित हुआ और इस प्रतियोगिता को 28 साल बाद जर्मनी ने जीता. प्रतियोगिया में 39 देशों ने भाग लिया. लेना ने अपने गाने और अदा से पूरे युरोप को एक ही पल में मुग्ध कर दिया. उनका सांग सैटेलाइट हफ्तों तक जर्मनी और दूसरे यूरोपीय देशों में नंबर वन रहा.

तस्वीर: picture-alliance/dpa

सैंड्रा बुलकः

सैंड्रा बुलक को द ब्लाइंड साइड के लिए ऑस्कर मिला. इसके बाद उन्होंने अपने पति का शुक्रिया अदा किया. कुछ ही दिन बाद उनके पति के कई अफेयर सामने आ गए. हर अखबार और टीवी शो में यही चर्चा होने लगी कि कैसे सैंड्रा जब अपने करियर के शिखर पर पहुंचीं तो उनकी निजी जिंदगी टुकड़े टुकड़े हो गई.

तस्वीर: AP

खेल की दुनिया में 2010 साइना नहवाल का साल था. दुनिया की नंबर टू बैडमिंटन खिलाडी साइना ने कई टूर्नामेंट जीते और कॉ़मनवेल्थ गेम्स का गोल्ड मेडल भी. साथ ही उन्हें राजीव गांधी खेल रत्न से भी नवाजा गया.

और अंत में बात महिलाओं के लिए बनाई गई विशेष यूएन महिला एजेंसी की जिसकी अध्यक्ष बनीं चिली की राष्ट्रपति रहीं मिशेल बाचेलेत. संस्था में महिलाओं के लिए काम कर रही संयुक्त राष्ट्र की सभी चार संस्थाओं को शामिल किया गया है. बहुतों का मानना है कि यह एक ऐतिहासिक कदम है जिसके साथ महिलाओं और पुरुषों की खाई को कम किया जा सकता है.

तस्वीर: DW

साल जाते जाते एक बार फिर आवाज दे रहा है कि अभी महिलाओं के लिए बहुत कुछ किया जाना बाकी है. कहने के लिए तो दुनिया में पुरुष और महिलाएं आधे आधे हैं. लेकिन ईमानदारी से देखा जाए तो उन्हें अब भी एक चौथाई नहीं समझा जाता. शायद अगले साल बात बदल जाए.

रिपोर्टः प्रिया एसेलबॉर्न

संपादनः ए जमाल

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