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हजार हमलों में फंसे हजारा

२ जुलाई २०१४

पाकिस्तानी शहर कराची में दो साल पहले कुवत हैदर पर हमला हुआ. 24 साल के हैदर तब बच तो गए लेकिन आज भी उस घटना को ठीक से बयान नहीं कर पाते हैं. वह नहीं चाहते कि दुश्मनों के साथ भी ऐसा हो.

तस्वीर: Reuters

हजारा समुदाय के हैदर कहते हैं, "मैं नहीं चाहता कि मेरे बड़े से बड़े दुश्मन के साथ ऐसा हो, जैसा 18 जून 2012 को मेरे साथ हुआ." बलूचिस्तान के रहने वाले हैदर अपनी बहन और तीन चचेरे भाइयों के साथ एक बस पर चढ़े. सुबह पौने आठ में चली इस बस को बलूचिस्तान की राजधानी क्वेटा में आईटी यूनिवर्सिटी जाना था.

जैसे ही वे पहुंचे, विस्फोटकों से भरी एक कार इस बस में टकरा दी गई. हैदर बताते हैं, "मुझे सिर्फ इतना याद है कि मेरा सिर बस के फ्लोर से टकराया. फिर मैं बेहोश हो गया. जब होश आया, तो देखा कि चारों तरफ लोग चीख चिल्ला रहे हैं. लोग बस से बाहर निकल रहे थे, उन्हें डर था कि कहीं इसमें विस्फोट न हो जाए. मैं भी किसी तरह निकला." संयोग था कि हैदर को ज्यादा चोट नहीं आई. वह अपनी बहन और चचेरे भाइयों को लेकर अस्पताल भागे. दूसरे लोग इतने भाग्यशाली नहीं थे. बस में 70 छात्र थे, जिनमें से चार घटनास्थल पर ही मर गए. दर्जनों दूसरे छात्र विस्फोट में बुरी तरह घायल हुए.

अगली पीढ़ी को भी भयतस्वीर: picture-alliance/ dpa/dpaweb

लगातार हो रहे हमले

यह कोई पहला मौका नहीं था कि हजारा समुदाय के लोगों को निशाना बनाया गया था. जानकारों का कहना है कि यह कोई आखिरी मामला भी नहीं था. ह्यूमन राइट्स वॉच की रिपोर्ट बताती है कि 2010 से 2014 के बीच शिया हजारा समुदाय के लोगों को पाकिस्तान में खास तौर पर निशाना बनाया गया. रिपोर्ट के मुताबिक शिया समुदाय के 450 लोगों को 2012 में निशाना बनाया गया, 2013 में 400 को. इनमें हमेशा सबसे ज्यादा संख्या हजारा लोगों की रही थी.

नैन नक्श की वजह से हजारा समुदाय के लोग दूर से पहचाने जा सकते हैं. वे मंगोलों की तरह दिखते हैं और पारसी बोलते हैं. बुनियादी तौj पर वे अफगानिस्तान में रहते थे, जहां से पिछली सदी में पाकिस्तान पहुंच गए. पाकिस्तान में तीन से चार लाख हजारा हैं, जिनमें से ज्यादातर क्वेटा में रहते हैं.

हजारा लोगों को निशाना बनाने का सिलसिला 2008 में शुरू हुआ और हर किस्सा पहले से ज्यादा दर्दनाक लगता है. कभी ईरान में तीर्थ के लिए जाते हुए उन्हें बस से उतार कर मार दिया जाता है, कभी उन्हें बम से उड़ा दिया जाता है, तो कभी मस्जिद में नमाज पढ़ते वक्त.

पाकिस्तान का मतलब..

लश्कर ए जंगवी पाकिस्तान में एक प्रतिबंधित सुन्नी गुट है. बताते हैं कि इसका अल कायदा और पाकिस्तानी तालिबान के साथ करीबी रिश्ता है. शिया और हजारा लोगों पर ज्यादातर हमलों की जिम्मेदारी यही गुट लेता आया है. तीन साल पहले हजारा समुदाय के इलाके मरियाबाद में एक पर्चा बांटा गया, जिसमें लिखा था, "पाकिस्तान का मतलब शुद्ध लोगों की जगह और शियाओं को यहां रहने का अधिकार नहीं है. हमारा अभियान इस अशुद्ध समुदाय को खत्म करना है. हम पाकिस्तान के हर शहर और हर कोने में शिया और शिया हजारा समुदाय के लोगों को समाप्त करना चाहते हैं." इस सिलसिले में कई हमले किए जा चुके हैं.

हजारा समुदाय का विरोध प्रदर्शनतस्वीर: BANARAS KHAN/AFP/Getty Images

हैदर को याद है कि इस साल जनवरी भी उनके घर के पास एक बड़ा हमला हुआ और वह लोगों की मदद करने जाना चाहते थे, "लेकिन उसी वक्त मुझे अपनी मां को कहीं से पिक करने जाना था. अगर ऐसा नहीं होता, तो मैं भी मारा जाता." क्योंकि वहां एक के बाद एक दो धमाके हुए थे और दूसरे धमाके में वे लोग मारे गए, जो पहले धमाके के बाद घायलों को बचाने गए थे.

यह कैसा दृश्य

उसके बाद की घटना हैदर बयान नहीं कर पाता, "मैंने लाशें देखीं, सिरकटी लाशें. कटे हुए अंग. अजीब दृश्य था." मानवाधिकार गुटों का कहना है कि हर घटना के बाद सरकार एक ही तरह का बयान दे देती है. पाकिस्तान के मानवाधिकार कमीशन की अध्यक्ष जोहरा यूसुफ कहती हैं, "हमने उस वक्त की सरकार के सामने ये बात रखी लेकिन हमें आज तक पता नहीं चल पाया कि लश्कर ए जंगवी के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं की गई."

इस बीच हजारा लोगों के लिए स्थिति और खराब होती जा रही है. ह्यूमन राइट्स वॉच के एशिया निदेशक ब्रैड एडम्स के मुताबिक, "हजारा समुदाय के लोगों के लिए कोई रास्ता, कोई अस्पताल, कोई स्कूल और कोई दुकान सुरक्षित नहीं है." मानवाधिकार संगठन का अनुमान है कि 30,000 हजारा पाकिस्तान छोड़ कर भाग चुके हैं. इसकी वजह से क्वेटा में मानव तस्करी भी बढ़ रही है क्योंकि वे मानव तस्करों को भारी पैसे देकर ऑस्ट्रेलिया या यूरोप भागना चाहते हैं.

एजेए/एमजे (आईपीएस)

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