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हथियारों पर अंकुश आसान नहीं

५ अप्रैल २०१३

नई अंतरराष्ट्रीय संधि को संयुक्त राष्ट्र में अमेरिकी समर्थन से व्यापक मंजूरी तो मिल गई है लेकिन इसके बाद भी हथियारों के कारोबार पर लगाम आसान नहीं. खुद अमेरिका के लिए इसे अपने ही देश की संसद से पास कराना आसान नहीं होगा.

तस्वीर: imago stock&people

अमेरिका के सांसद इस संधि पर मुहर लगाने में इसलिए हिचकिचाएंगे क्योंकि इससे अमेरिकी लोगों के बंदूक रखने के अधिकार पर असर पड़ सकता है. 193 सदस्य देशों वाले संयुक्त राष्ट्र की आम सभा में यह संधि 3 के मुकाबले 154 वोट से पास की गई. 23 देशों ने संधि पर वोटिंग में हिस्सा नहीं लिया, जो दुनिया के बड़े हथियार निर्यातक देश हैं. उत्तर कोरिया, सीरिया और ईरान ने इसके खिलाफ वोट दिया.

अमेरिका ने संधि पर हां तो कर दी है लेकिन अमेरिका में इसे प्रभावशाली बनाने के लिए 100 सदस्यों वाले सीनेट की दो तिहाई यानी कम से कम 67 वोट हासिल करना जरूरी होगा. पिछले महीने ही अमेरिकी संसद एक प्रस्ताव को मंजूरी दे चुकी है जिसमें इस संधि का विरोध करने की बात कही गई है. जब यह प्रस्ताव पारित हुआ तब संधि का मसौदा भी तैयार नहीं हुआ था.

तस्वीर: imago stock&people

अमेरिका के ताकतवर नेशनल राइफल एसोसिएशन और बंदूक उद्योग के खेमेबाजों ने वादा किया है कि वो इस संधि के खिलाफ संघर्ष करेंगे. बहुत से सीनेटरों, प्रमुख रूप से रिपब्लिकन सीनेटरों के बीच संधि का विरोध करने के लिए बयान जारी करने की होड़ मची है.

अमेरिका दुनिया का सबसे बड़ा बंदूक निर्यात करने वाला देश है. दुनिया भर में मौजूद बंदूकों का 30 फीसदी यानी करीब एक तिहाई हिस्सा अमेरिका से निर्यात होता है. हथियार निर्यातकों में रूस दूसरे नंबर पर है जिसका हिस्सा करीब 26 फीसदी है. रूस और चीन संयुक्त राष्ट्र में संधि पर वोटिंग के दौरान बाहर रहने वाले देशों में हैं. रूस का कहना है कि इस संधि पर दस्तखत का फैसला करने से पहले कठोरता से विचार करना होगा.

तस्वीर: picture-alliance/dpa

अपने तरह की यह पहली संधि दुनिया में पारंपरिक हथियारों के 70 अरब डॉलर के कारोबार पर निगरानी रखेगी और मानवाधिकार का उल्लंघन करने वालों की पहुंच से हथियारों को बाहर रखने में मदद करेगी. अमेरिका इस संधि के लिए प्रतिबद्ध है लेकिन राजनयिकों और सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि इसमें चीन और रूस जैसे बड़े हथियार निर्यातकों को शामिल करना जरूरी है. अमेरिका हथियारों के अपने आयात निर्यात कानून के जरिए पहले ही संधि की बहुत सी शर्तों का पालन कर रहा है लेकिन संधि के लागू हो जाने के बाद दूसरे देशों के लिए भी इन्हें मानना जरूरी हो जाएगा.

व्हाइट हाउस ने बुधवार को कहा कि अभी यह फैसला नहीं हुआ है कि राष्ट्रपति इस पर दस्तखत करेंगे और न ही इसके लिए कोई समयसीमा तय की गई है. अगर राष्ट्रपति बराक ओबामा इस पर दस्तखत करते हैं तो सरकारी एजेंसियां पड़ताल करेंगी कि इसे सीनेट से पुष्टि कराने के लिए लिए भेजा जाए या नहीं.

तस्वीर: picture-alliance/dpa

मुश्किल है डगर

सीनेट से पुष्टि के लिए 67 वोट हासिल करने का मतलब है कि सभी डेमोक्रैट सांसदों का समर्थन. डेमोक्रैट सांसदों में आठ ने इस संधि के विरोध में पारित प्रस्ताव के पक्ष में वोट दिया था. इसके अलावा कम से कम 12 रिपब्लिकन या रिपब्लिकन खेमे के पूरे एक चौथाई सांसदों का समर्थन हासिल करना होगा जो किसी भी तरह के बंदूक नियंत्रण के बिल्कुल खिलाफ हैं.

अमेरिकी सीनेट अंतरराष्ट्रीय संधियों को लेकर अकसर आशंकाओं में घिरी रहती है क्योंकि उसे यह अमेरिका की ताकत पर अंकुश की तरह महसूस होता है. अमेरिकी राष्ट्रपति के दस्तखत किए जिन संधियों की सीनेट ने पुष्टि नहीं की, उनमें परमाणु परीक्षण पर रोक लगाने वाली सीटीबीटी भी है. सीनेट की सैन्य सेवा कमेटी में शामिल रिपब्लिकन सांसद जेम्स इन्होफे ने बयान जारी किया, "संयुक्त राष्ट्र की हथियार कारोबार संधि के लिए अमेरिका को बंदूक नियंत्रण कानून बनाना होगा जो हमारे यहां के चुने हुए अधिकारियों के बनाए गए कानून के ऊपर हो जाएगा."

एनआर/एजेए (एपी, रॉयटर्स)

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