रोहतक में चुनाव अभियान समाप्ति पर है, 12 मई को मतदान होना है. इस संसदीय क्षेत्र के लोगों का मानना है कि इस बार 2016 के जाट प्रदर्शन के आधार पर वोटों का विभाजन होगा.
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लगातार चौथी बार हरियाणा की रोहतक सीट से चुनाव लड़ रहे दीपेंद्र हुड्डा यहां अपने पिता भूपेंद्र सिंह हुड्डा के मुख्यमंत्री बनने के बाद 2004 से लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं. दीपेंद्र हुड्डा यहां से भाजपा के उम्मीदवार अरविंद शर्मा से मुकाबला कर रहे हैं, जो चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल हुए हैं.
रोहतक के कुछ लोगों का कहना है कि इस बार का चुनावी प्रचार मुख्यत: जाट और गैर-जाट और 35 अन्य बिरादरियों पर केंद्रित है, जो जिले की 16 लाख आबादी में से 30 प्रतिशत हिस्सेदारी रखती है. भाजपा ने यहां कांग्रेस और अन्य विपक्षी पार्टियों की तरफ से प्रधानमंत्री उम्मीदवार नहीं होने बनाम प्रधानमंत्री मोदी के निर्णायक शासन का मुद्दा उठाया है.
यहां के डीएलएफ कॉलोनी निवासी जगदीश मलिक ने आईएएनएस से कहा, "फरवरी 2016 में जाट प्रदर्शन के बाद जाट और गैर-जाटों की चर्चा को बल मिला है.' वहीं झज्जर रोड निवासी बिरेंद्र कुमार कहते हैं, "हम फरवरी 2016 के जाट प्रदर्शन को नहीं भूल सकते, जब हमने बंदूक और चाकू लिए कई लोगों को वाहनों पर आते और संपत्ति को निशाना बनाते व दुकानों को लूटते देखा." यह पूछे जाने पर कि क्या जिले में कोई विकास कार्य हुआ है? उन्होंने कहा, "दीपेंद्र और उनके पिता ने रोहतक में ढेर सारे काम किए हैं, जो दिखाई देता है. लेकिन लोग जाट प्रदर्शन के कारण पार्टियों से खफा हैं."
लोग हालांकि यहां दीपेंद्र हुड्डा के खिलाफ किसी तरह की सत्ता विरोधी लहर से इनकार करते हैं, लेकिन वे उन पर व उनके पिता पर आरोप लगाते हैं कि उन्होंने जाट प्रदर्शन के दौरान नुकसान को रोकने के लिए कुछ नहीं किया. संसदीय क्षेत्र में प्रचार अभियान के दौरान, दीपेंद्र हुड्डा प्राय: जिले में विभिन्न जाति समूहों के बीच सामाजिक गठबंधन की बात करते हैं, जिसमें 2016 के प्रदर्शन के बाद व्यवधान उत्पन्न हो गया था.
दूसरी तरफ, भाजपा ने कांग्रेस पर जाट प्रदर्शन के जरिए मनोहर लाल खट्टर सरकार को अस्थिर करने के लिए जाटों को भड़काने का आरोप लगाया है. कांग्रेस ने यहां लंबे समय से शासन किया है और इस क्षेत्र को हुड्डा परिवार का गढ़ माना जाता है. लेकिन पार्टी इस बार अपने गढ़ को बचाने के लिए कड़ी चुनौती का सामना कर रही है. कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने भी यहां दीपेंद्र हुड्डा के समर्थन में रोड शो किया है.
रोहतक में हुड्डा कॉम्प्लेक्स निवासी कपिल गुलाटी ने कहा, "शहर के स्थानीय मुद्दे भी महत्वपूर्ण हैं..जैसे पानी की कमी और कानून-व्यवस्था की स्थिति."
यह पूछे जाने पर कि कौन इस चुनाव में चहेता उम्मीदवार है? उन्होंने कहा, "इसमें कोई संदेह नहीं कि दीपेंद्र हमारे चहेते हैं, क्योंकि वह स्थानीय हैं और जब भी जरूरत पड़ती है, वह उपलब्ध होते हैं..जबकि कोई नहीं जानता कि अरविंद शर्मा कहां से आए हैं." रोहतक में 12 मई को मतदान होंगे.
--आईएएनएस
विरोध संस्कृति के सितारे
विरोध की संस्कृति की सबसे ताजा मिसाल अमेरिका में पुलिस हिंसा का प्रतिरोध करती एक महिला की तस्वीर है. ये तस्वीर सोशल मीडिया पर जंगल की आग की तरह फैल गई. बार बार ऐसी तस्वीरें समूचे आंदोलन का प्रतीक बन जाती है.
तस्वीर: Getty Images/R. Stothard
गोलियाथ के खिलाफ डेविड
जुलाई 2016: मोमबत्ती की तरह सीधी और मूर्ति की तरह शांत. ये तस्वीर है न्यू यॉर्क की ईशिया इवांस की जो दंगा विरोधी पुलिस की एक कतार के सामने अडिग होकर खड़ी है. यह तस्वीर लुइजियाना के बैटन रूज में ब्लैक लाइव्स मैटर्स विरोध प्रदर्शन के दौरान खींची गई है. क्या यह तस्वीर अमेरिका में पुलिस की नस्ली हिंसा का विरोध करने वाले आंदोलन का प्रतीक बनेगी?
तस्वीर: Reuters/J. Bachman
नागरिक सवज्ञा
दिसंबर 1955: पब्लिक ट्रांसपोर्ट की एक बस में सांवले रंग वाली रोजा पार्क को एक सफेद चमड़ी वाले पैसेंजर के लिए सीट छोड़ने को कहा गया. विरोध करने पर उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और 10 डॉलर का जुर्माना किया गया. मार्टिन लुथर किंग के नागरिक अधिकार आंदोलन ने एक साल तक बसों का बहिष्कार किया. बाद में सुप्रीम कोर्ट ने नस्ली भेदभाव को असंवैधानिक घोषित कर दिया.
तस्वीर: picture alliance/AP Images
फूल सी बच्ची
अक्टूबर 1967: 17 वर्षीया जेन रोज कासमीर ने वाशिंगटन में वियतनाम युद्ध के खिलाफ एक प्रदर्शन के दौरान पुलिस की तनी हुई बंदूकों के सामने हाथों में गुलदावदी का फूल थाम रखा है. कई साल बाद युद्ध विरोधी कासमीर ने कहा था, "वे नौजवान ही तो थे. वे मेरे दोस्त या मेरे भाई हो सकते थे. और वे पूरे मामले में पीड़ित ही थे."
तस्वीर: Marc Riboud/Magnum Photos
युद्ध के बदले प्यार
मार्च 1969: हिप्पी आंदोलन के सितारे जॉन लेनन और योको ओनो एक बिस्तर में. एक नवविवाहित जोड़े के लिए इसमें कुछ भी खास नहीं है. लेकिन दोनों ने एम्सटरडम के एक लक्जरी होटल में प्रेस को बेड इन के लिए बुलाया और संदेश दिया, मेक लव नॉट वार. ये पीआर एक्शन इतना कामयाब हुआ कि इसे दो महीने बाद मॉन्ट्रियाल में फिर से दोहराया गया.
तस्वीर: picture alliance/AP Images
अनजाना विद्रोही
जून 1989: खरीदारी का झोले लिए यह व्यक्ति चीनी सेना के टैंक के सामने उसे रोक कर खड़ा हो गया. एक दिन पहले ही साम्यवादी सरकार ने राजधानी बीजिंग में लोकतांत्रिक आंदोलन को कुचल दिया था. कितने लोग मारे गए किसी को पता नहीं. बहुत से फोटोग्राफरों ने ये तस्वीर खींची लेकिन टैंक को रोके खड़े शांतिपूर्ण विद्रोही का नाम कोई नहीं खोज पाया है.
तस्वीर: picture alliance/AP/J. Widener
वायरल वीडियो
नवंबर 2011: एक वीडियो ऑकुपाई आंदोलन का प्रतीक बन गया. कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के डेविस कैंपस में फीस बढ़ाने के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे छात्रों ने जब धरने से हटने से मना कर दिया तो एक पुलिस वाले ने उन्हें तितर बितर करने लिए उन पर पेपर स्प्रे करना शुरू कर दिया. वीडियो वाइरल हो गया और पुलिस के बल प्रयोग पर बहस छिड़ गई.
तस्वीर: picture alliance/AP Images/W. Tilcock
लाल परी
मई 2013: सेइदा सुंगर अपने लाल लिबास में इस्तांबुल के गेजी आंदोलन का प्रतीक बन गई. गेजी पार्क को खत्म कर वहां इमारतें बनाने वाले प्रोजेक्ट के खिलाफ प्रदर्शन करने वाले हजारों लोगों में वे भी शामिल थीं. यह राष्ट्रपति रेचप तय्यप एर्दोवान की सरकार के खिलाफ छह महीने तक चले विरोध प्रदर्शनों की शुरुआत थी जिसमें 8 लोग मारे गए.
तस्वीर: Reuters
आस्था में भरोसा
जनवरी 2014: यूक्रेन की राजधानी कीएव में मैदान आंदोलन के दौरान धूल का गुबार. रूस समर्थक सरकार की दंगा विरोधी पुलिस और पश्चिम समर्थक आंदोलनकारियों के बीच खड़ा एक ऑर्थोडॉक्स पादरी. उसे आसपास के हंगामे की कोई चिंता नही. वह आराम से प्रार्थना कर रहा है और ईश्वर को याद कर रहा है.