ऐसा एक भी दिन नहीं गुजर रहा, जब हरियाणा से महिलाओं के साथ दुष्कर्म की खबर ना आ रही हों. क्या वजह है कि हरियाणा औरतों के लिए इतना खतरनाक बन गया है?
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हरियाणा में सब कुछ ठीक नहीं है. 'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ' अभियान के सरकारी शोर के बीच राज्य में लगातार हो रही दुष्कर्म और हत्या की घटनाओं ने मनोहर लाल खट्टर सरकार के महिला सुरक्षा के दावों की पोल खोलकर रख दी है. वह भी ऐसे समय में, जब बेटियों के लिए मोदी सरकार के अभियान के सबसे ज्यादा कारगर होने की खबरें इसी हरियाणे से आ रही थीं.
हरियाणा की चंद कामयाब महिलाओं की उपलब्धियों का ढोल पीटकर और बाकी बहू-बेटियों की दुर्दशा पर पर्दा डालकर कहीं लोगों को बेवकूफ तो नहीं बनाया जा रहा है? बड़ा सवाल यह है कि देशभर की महिलाएं असुरक्षा के साए में जी रही हैं, लेकिन महिलाओं की बदहाली की सूई हर बार 'खाप प्रधान राज्य' हरियाणा पर ही आकर क्यों रुकती है?
शान है घूंघट
कांग्रेस की राष्ट्रीय प्रवक्ता एवं पार्टी के संचार विभाग की संयोजक प्रियंका चतुर्वेदी ने समाचार एजेंसी आईएएनएस से कहा, "जिस बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ रिपोर्ट का जिक्र किया जा रहा है कि हरियाणा इसमें अव्वल है, उस रिपोर्ट में कई कमियां पाई गई हैं. एक ऑडिट में यह सच्चाई सामने आई है. दरअसल, सरकार ने अपनी छवि सुधारने के लिए जानबूझकर गलत डाटा पेश किया था."
गाय क्यों बन रही हैं ये महिलाएं?
फोटोग्राफर सुजात्रो घोष ने गाय बचाने के नाम पर हिंसा और महिला सुरक्षा के मुद्दे को जोरदार ढंग से उठाया है. उनकी फोटो आपको साधारण लगेंगी लेकिन उन सभी में महिलाओं ने जिस तरह गाय के मुखौटे पहने हैं, वे उन्हें खास बनाते हैं.
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मकसद
फोटोग्राफर सुजात्रो घोष कहते हैं कि उनके इस प्रोजेक्ट का मकसद महिलाओं के खिलाफ होने वाली हिंसा के मुद्दे को उठाना है. उनके मुताबिक, "अगर हम गाय को बचा सकते हैं तो फिर महिलाओं को क्यों नहीं."
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महिला सुरक्षा की अनदेखी
उनका कहना है कि गाय को बचाने के नाम पर लोगों की सरे आम हत्याएं हो रही हैं लेकिन महिलाओं की सुरक्षा को अनदेखा किया जा रहा है.
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महिलाओं के खिलाफ अपराध
भारत में 2012 के निर्भया कांड के बाद महिला सुरक्षा के लिए नियम कड़े किये गये लेकिन 2015 में महिलाओं के खिलाफ अपराधों के 327,390 मामले दर्ज किये गये हैं.
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सामाजिक अड़चनें
बहुत से मामले तो दर्ज ही नहीं होते हैं क्योंकि कई बार पीड़ित को हमलावरों की तरफ से दोबारा परेशान किये जाने का डर रहता है तो कई बार सामाजिक रूप से कलंलित होने का डर.
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गाय के नाम पर
दूसरी तरफ भारत में गाय के नाम पर हिंसा के एक के बाद एक कई मामले सामने आये हैं. कथित गौरक्षकों की गतिविधियों में सरेआम कई लोगों की हत्या की गयी है.
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सराहना
घोष का कहना है कि सबसे पहले उन्होंने अपनी दोस्तों और परिवार की महिलाओं की मास्क के साथ फोटो ली. लेकिन अब बहुत सी और महिलाएं भी उनके प्रोजेक्ट का हिस्सा बनना चाहती हैं.
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आलोचना
इस बीच सुजात्रो घोष को सोशल मीडिया पर निशाना भी बनाया गया है. कई लोग उन पर गाय का अपमान करने का आरोप लगा रहे हैं.
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उम्मीद
घोष को उम्मीद है कि लोग उनके इस संदेश को सही से समझेंगे कि जिस तरह गाय को बचाने की कोशिश हो रही हैं, उसी तरह महिलाओं को भी बचाने की जरूरत है.
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उन्होंने आगे कहा, "हरियाणा सरकार महिलाओं पर जुल्म को लेकर गंभीर कहां से होगी, जब राज्य के मुखिया ही इस तरह की वारदातों को छोटी-मोटी घटनाएं कहकर कन्नी काट लेते हैं. यहां महिलाओं को आजादी के नाम पर बगैर कपड़ों के घूमने की नसीहत दी जा रही है. आंदोलन कर रही महिलाओं को वेश्या कहा जा रहा है. घूंघट को शान से जोड़कर देखा जा रहा है."
चतुर्वेदी हैं, "हद है, सरकार का एक मंत्री एक महिला का पीछा करता दिखता है. क्या ऐसी सरकार महिला सुरक्षा को लेकर कभी गंभीर हो सकती है? जब सरकार ही महिलाओं को लेकर असंवेदनशील होगी तो अपराध बढ़ेंगे ही."
गाय ज्यादा जरूरी
सवाल यह भी उठता है कि क्या हरियाणा की पृष्ठभूमि पर आधारित 'दंगल' जैसी कुछेक फिल्मों से राज्य की छवि चमकी है? प्रियंका चतुर्वेदी कहती हैं, "फिल्मों से समाज पर थोड़ा बहुत प्रभाव पड़ सकता है, लेकिन राज्य की छवि नहीं चमकाई जा सकती. महिलाओं की सुरक्षा को लेकर धरातल पर पूरे मन से काम करने की जरूरत है."
वह बताती हैं, "हरियाणा सामूहिक दुष्कर्म में नंबर वन है. सरकार का ध्यान महिलाओं की सुरक्षा से ज्यादा गायों को बचाने पर है क्योंकि यह आरएसएस के एजेंडे में शामिल है. हां, गायों को भी बचाया जाना चाहिए, लेकिन दोनों को एक तराजू में नहीं तोला जा सकता."
औरतों के लिए खतरनाक भारतीय शहर
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के 2015 के आंकड़े दिखाते हैं कि किस शहर में महिलाओं के खिलाफ सबसे ज्यादा अपराध हुए. ये छह शहर सबसे ज्यादा खतरनाक साबित हुए.
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नंबर 6: दुर्ग-भिलाई, छत्तीसगढ़
दुर्ग और भिलाई दोनों नगरों को मिलाकर आंकड़े खतरनाक रहे. 10 लाख लोगों के इन शहरों में क्राइम रेट 16.4 रहा और रेप की दर रही 7.9.
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नंबर 5: नागपुर, महाराष्ट्र
राज्य की दूसरी राजधानी नागपुर में 2015 में रेप के 166 मामले दर्ज हुए और हिंसा 392. यानी रेप की दर रही 6.6 और हिंसक अपराधों की दर रही 15.7.
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नंबर 4: भोपाल, मध्य प्रदेश
राजधानी भोपाल में भी महिलाएं ज्यादा सुरक्षित नहीं हैं. 2015 में यहां 133 रेप हुए और हिंसा के 322 मामले दर्ज हुए. यानी रेप की दर 7.1 रही. हिंसक अपराधों की दर 17.1 रही.
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नंबर 3: ग्वालियर, मध्य प्रदेश
महिलाओं के खिलाफ रेप की दर यहां रही 10.4. हिंसक अपराधों की दर 17.1 रही. 2014 में भी यहां हालात कुछ अच्छे नहीं थे.
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नंबर 2: दिल्ली
भारत की राजधानी दिल्ली को कई बार लोग रेप कैपिटल भी बोलते हैं. आंकड़े भी खतरनाक हैं. यहां 1893 रेप केस हुए और हिंसा के 4563 मामले हुए. यहां रेप की दर रही 11.6 और हिंसा की 28.
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नंबर 1: जोधपुर
राजस्थान के किलों का शहर महिलाओं के लिए खतरनाक साबित हुआ है. यहां रेप के 152 मामले सामने आए और हिंसा के 440 मामले दर्ज हुए जिनमें यौन हिंसा भी शामिल है. यानी रेप की दर रही 13.4 और हिंसा की 38.7.
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लैंगिक असमानता भी वजह
हरियाणा में इन अपराधों को संबल देने में क्या खाप पंचायतों की अहम भूमिका रही है? इस सवाल पर महिला कार्यकर्ता मानसी प्रधान कहती हैं, "यह सच है. खाप पंचायतों के बर्बर फैसलों और लैंगिक असमानता की वजह से राज्य की छवि तार-तार हुई है. यूं तो महिलाएं देश में कहीं भी सुरक्षित नहीं हैं, लेकिन हरियाणा में हालात बद से बदतर हैं. आए दिन महिलाओं के खिलाफ अपराध की खबरें सुनने को मिल रही हैं. लोक गायिकाओं की हत्या हो रही है. प्रेमी जोड़ों में खाप का आतंक है. पुरुषों के मुकाबले स्त्रियों को वह सम्मान नहीं दिया जा रहा, जिसकी वह हकदार हैं."
राष्ट्रीय महिला आयोग की पूर्व अध्यक्ष ललिता कुमारमंगलम कहती हैं कि स्त्री-पुरुष अनुपात को लेकर हरियाणा का जिस तरह का इतिहास रहा है, वह अभी भी इसके आड़े आ रहा है. उनका कहना है, "महिलाओं के खिलाफ अपराध के मामले तो देशभर से सामने आ रहे हैं, लेकिन क्योंकि लैंगिक असमानता का मुद्दा हरियाणा में बरसों से रहा है, तो यकीनन स्त्री-पुरुष भेदभाव के मामले में पहली नजर हरियाणा पर ही जाती है. समाज का दृष्टिकोण बदलने से सुधार संभव है. इसे राजनीतिक चश्मे से देखना बंद करना होगा."
ऋतु तोमर (आईएएनएस)
रेप के लिए कहां कितनी सजा
हाल ही में जर्मनी ने अपने बलात्कार विरोधी कानून को और सख्त बनाने के लिए कदम उठाए हैं. जानिए, जर्मनी में और बाकी देशों में रेप के लिए क्या कानून है.
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जर्मनी
जर्मन कानून में अब तक रेप की कोशिश का विरोध न करने पर मामला रेप का नहीं बनता था. अब इस परिभाषा में बदलाव किया गया है. अब छूने, अंगों को टटोलने और दबोचने को भी यौन हिंसा के दायरे में लाया गया है.
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फ्रांस
फ्रांस में रेप का मतलब है ऐसी कोई भी यौन गतिविधि जिसमें दोनों की सहमति ना हो. वहां 20 साल तक की सजा हो सकती है. गाली-गलौज पर भी दो साल तक की सजा का प्रावधान है.
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इटली
1996 में इटली के रेप विरोधी कानून में व्यापक बदलाव किए गए. इसके बाद पत्नी के साथ जबर्दस्ती को भी रेप के दायरे में लाया गया. इसके लिए 10 साल तक की सजा हो सकती है.
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स्विट्जरलैंड
स्विट्जरलैंड में रेप तभी माना जाता है जब योनि संसर्ग हुआ हो. अन्य यौन हमलों को यौन हिंसा माना जाता है. इसके लिए 10 साल तक की जेल हो सकती है. 2014 के बाद शादी में भी रेप को अपराध माना गया है.
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स्वीडन
स्वीडन में जबरन किसी के कपड़े उतारने पर भी दो साल की कैद हो सकती है. मजबूर लोगों का यौन शोषण, मसलन सोते वक्त या नशे की हालत में या किसी तरह डरा कर सेक्स करने की कोशिश करना भी रेप है.
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अमेरिका
अमेरिका में अलग-अलग राज्यों में रेप की परिभाषा अलग-अलग है. लेकिन वहां सेक्स में सहमति पर जोर दिया गया है. सेक्स से पहले स्पष्ट सहमति जरूरी है.
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सऊदी अरब
यहां रेप के लिए मौत की सजा का प्रावधान है. हालांकि रेप को साबित करना बहुत मुश्किल है. जो महिलाएं रेप की शिकायत करती हैं अगर वे साबित ना कर पाईं तो उन्हें भी सजा हो सकती है.
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भारत
निर्भया कांड के बाद भारत में रेप विरोधी कानून में कई बदलाव किए गे हैं. अब रेप के लिए आमतौर पर सात साल से उम्रकैद तक की सजा का प्रावधान है. लेकिन विशेष परिस्थितियों में जैसे कि पुलिस हिरासत में रेप, रिश्तेदार या टीचर द्वारा रेप के मामले में 10 साल से उम्र कैद तक भी हो सकती है. अगर पीड़िता की मौत हो जाती है तो मौत की सजा भी हो सकती है.