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हरियाणा में सांप्रदायिक बीज बोती महापंचायतें

९ जुलाई २०२१

हरियाणा में महापंचायतें आयोजित की जा रही हैं, जिनमें मुस्लिम-विरोधी भड़काऊ भाषण दिए जा रहे हैं. सवाल उठ रहे हैं की पुलिस और प्रशासन इन महापंचायतों और उनमें दिए गए भड़काऊ भाषणों के खिलाफ कोई कार्रवाई क्यों नहीं कर रहे हैं.

Indien Proteste gegen Einwanderungsgesetz in Neu Delhi
तस्वीर: Reuters/D. Siddiqui

हरियाणा में अभी तक ऐसी दो महापंचायतें हो चुकी हैं. पहली 30 मई को नूह में हुई थी और दूसरी चार जुलाई को पटौदी में. दोनों इलाके दिल्ली से लगभग दो-ढाई घंटों की दूरी पर स्थित हैं दोनों में हरियाणा के बाकी हिस्सों के मुकाबले मुस्लिम आबादी ज्यादा है. नूह तो मेवात के ऐतिहासिक इलाके का हिस्सा है जो हरियाणा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश तक फैला हुआ है. दोनों महापंचायतों में कई हिंदुत्ववादी संगठनों के सदस्यों ने भाग लिया और विशेष रूप से मुसलमानों के खिलाफ नफरत भरे भाषण दिए. भाषण देने वालों में हरियाणा में बीजेपी के प्रवक्ता सूरज पाल अम्मु भी शामिल हैं.

इन भाषणों के कई वीडियो सोशल मीडिया पर मौजूद हैं. कई वीडियो तो खुद भाषण देने वालों ने सोशल मीडिया पर डाले हैं. नूह में हुई पहली महापंचायत में 16 मई को नूह में कुछ लोगों द्बारा पीट पीट कर मारे गए जिम प्रशिक्षक आसिफ की हत्या के आरोपियों के समर्थन में भाषण दिए गए. पटौदी वाली महापंचायत में "लव-जिहाद", "बाजार-जिहाद", "जमीन-जिहाद" जैसे शब्दों का इस्तेमाल हुआ और मुसलमानों पर तरह तरह के आरोप लगाए गए. सूरज पल अम्मू ने नूह में दिए अपने भाषण का वीडियो खुद फेसबुक पर लगाया था, जिसमें वो कहते हुए नजर आ रहे हैं, "कहा जाता है कि हिन्दू-मुस्लिम भाई भाई. किसके भाई? ये भाई नहीं, कसाई हैं...हम इन्हें गोली मार देंगे."

जामिया में गोली चलाने वाला

यह वीडियो उन्होंने अपने फेसबुक पेज पर से हटा दिया है, लेकिन यह सोशल मीडिया पर आज भी मौजूद है. पटौदी महापंचायत में कई और वक्ताओं के अलावा अम्मु ने फिर से भड़काऊ भाषण दिए. इस भाषण के वीडियो भी सोशल मीडिया पर मौजूद हैं. इनमें से एक वीडियो में वो कह रहे हैं, "इन पाकिस्तानी कुत्तों को हम मकान किराए पर नहीं देंगे इस प्रस्ताव पर मुझे आपत्ति है...इन हरामजादों को देश से बाहर निकालो यह प्रस्ताव पास होना चाहिए." 

इस महापंचायत में भाषण देने वालों में रामभक्त गोपाल भी शामिल थे जिसने जनवरी 2020 में जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के बाहर नागरिकता कानून के खिलाफ प्रदर्शन करने वालों पर गोली चलाने के लिए पुलिस ने गिरफ्तार किया था. गोपाल के भी वीडियो सोशल मीडिया पर मौजूद हैं. उनमें से एक में वो, "जब मुल्ले काटे जाएंगे, राम राम चिल्लाएंगे" का नारा लगा रहे हैं. 

बताया जा रहा है कि रामभक्त गोपाल नूह महापंचायत में भी मौजूद थे और उन्होंने वहां भी भड़काऊ भाषण दिए थे.

लेकिन नूह और पटौदी दोनों ही जगह पुलिस ने इन भाषणों पर कोई कार्रवाई नहीं की है. मानेसर के डीसीपी ने मीडिया को बताया कि उन्हें इस महापंचायत की पहले से सूचना थी और महापंचायत के समय वहां पुलिस तैनात थी. उन्होंने यह भी जानकारी दी कि महापंचायत में 500-600 लोगों ने हिस्सा लिया था और कई भाषण दिए गए थे. जब पूछा गया कि भाषणों के खिलाफ उन्होंने कोई कार्रवाई क्यों नहीं की, तो उन्होंने कहा कि अभी तक उन्हें कोई शिकायत नहीं मिली है.

आखिर ध्रुवीकरण क्यों

स्थानीय मीडिया में आई खबरों में दावा किया गया है कि इन दो महापंचायतों के अलावा इससे छोटे स्तर पर इन इलाकों में कई पंचायतें हो चुकी हैं और आने वाले दिनों में और भी महापंचायतें आयोजित करने की योजना है. स्थानीय पत्रकार मनदीप पुनिया ने बताया कि पटौदी में घोषणा की गई कि अगली महापंचायत यहां से 25 किलोमीटर दूर रेवाड़ी में बुलाई जाएगी. उसके बाद वहां से करीब 55 किलोमीटर और आगे महेंद्रगढ़ में भी एक महापंचायत बुलाए जाने की संभावना व्यक्त की जा रही है.

इन महापंचायतों और इनमें दिए जाने वाले मुस्लिम-विरोधी भाषणों को उत्तर प्रदेश के विधान सभा चुनावों से जोड़ कर देखा जा रहा है. हरियाणा में विधान सभा चुनावों में अभी तीन साल बाकी हैं, जबकि उत्तर प्रदेश में 2022 में विधान सभा चुनाव होने वाले हैं. जानकारों का मानना है कि संभव है कि इस तरह के आयोजनों के जरिए सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की कोशिश की जा रही हो. मेवात इलाके में उत्तर प्रदेश का मथुरा और उसके आस-पास के इलाके भी आते हैं. उत्तर प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार शरत प्रधान मानते हैं कि इन महापंचायतों का उत्तर प्रदेश चुनावों से संबंध हो यह मानने के पुख्ता कारण हैं.

शामली में नए कृषि कानूनों के खिलाफ बुलाई गई एक महापंचायततस्वीर: Danish Siddiqui/REUTERS

वो बताते हैं कि इस समय बीजेपी का पूरा का पूरा चुनावी अभियान साम्प्रदायिक लाइनों पर ही चल रहा है और इससे पार्टी का एक उद्देश्य यह भी है कि धर्म के बैनर तले सभी जातियों को एक साथ लाया जा सके. उत्तर प्रदेश में 2012-13 में व्यापक रूप से सिर्फ ध्रुवीकरण ही नहीं, बल्कि साम्प्रदायिक हिंसा भी हुई थी. विशेष रूप से मेरठ, मुजफ्फरनगर और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के अन्य इलाकों में दंगे भड़क उठे थे. 2013 में मुजफ्फरनगर में हुए दंगों में कम से कम 62 लोग मारे गए थे और 50,000 से भी ज्यादा लोग बेघर हो गए थे.

2013 फिर से?

दंगों के पहले हरियाणा की इन महापंचायतों की तरह ही उस समय पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाट समुदाय की महापंचायतें बुलाई गई थीं और इसी तरह के भाषण दिए गए थे. दंगों के बाद 2014 के लोक सभा चुनावों में बीजेपी को प्रदेश की 80 में से 71 सीटों पर जीत हासिल हुई. फिर 2017 में विधान सभा चुनावों में भी पार्टी ने जीत हासिल कर प्रदेश में अपनी सरकार बनाई. प्रधान कहते हैं कि इस बार नए कृषि कानूनों और किसान आंदोलन की वजह से पश्चिमी उत्तर प्रदेश में लोगों के बीच बीजेपी के खिलाफ बहुत गुस्सा है.

उनका मानना है कि चूंकि पिछली बार की तरह इस बार यहां साम्प्रदायिक चिंगारी भड़काना मुश्किल है, इसलिए संभव है कि बीजेपी ने सोचा हो कि यह काम हरियाणा से किया जाए. उत्तर प्रदेश में साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण के और भी संकेत मिल रहे हैं. वरिष्ठ पत्रकार और न्यूजलॉन्ड्री के सम्पादक अतुल चौरसिया ने बताया कि प्रदेश में कथित जबरन धर्मांतरण के कुछ मामलों में पुलिस के आतंक विरोधी दस्ते द्वारा जांच शुरू करा के "लव-जिहाद" की साजिश को हवा दी जा रही है. अतुल मानते हैं कि यह भी ध्रुवीकरण कराने की ही एक कोशिश हो सकती है.

2013 के मुजफ्फरनगर दंगों की वजह से विस्थापित परिवारों का शामली में एक शिविरतस्वीर: SAJJAD HUSSAIN/AFP/Getty Images

इसके अलावा मई में बाराबंकी में स्थनीज़ा प्रशासन द्वारा दशकों पुरानी एक मस्जिद के तोड़ दिए जाने को भी ध्रुवीकरण के ही एक हथकंडे के रूप में देखा गया था. हालांकि कई जानकारों का यह भी मानना है कि उत्तर प्रदेश में इस समय बीजेपी की रणनीति अलग अलग जातियों को अपने बैनर तले लाने पर केंद्रित है. लेखक और राजनीतिक विश्लेषक बद्री नारायण ने डीडब्ल्यू से कहा कि इस समय बीजपी उत्तर प्रदेश में "अलग अलग सामाजिक समूहों को अपने साथ जोड़ने का प्रयास कर रही है."

उत्तर प्रदेश में जैसे जैसे चुनाव और करीब आते जाएंगे, पार्टियां अपने समर्थकों की लामबंदी के लिए तरह तरह के रास्ते अपनाएंगी. देखना होगा कि हरियाणा में आने वाले दिनों में इस तरह की और महापंचायतें होती हैं या नहीं और पिछली महापंचायतों में जो भाषण दिए गए हैं उन पर पुलिस कोई कार्रवाई करती है या नहीं.

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