1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

मेडिकल साइंस का भविष्य

११ जून २०१४

पर्सनलाइज्ड ड्रग थेरेपी यानि मरीज के व्यक्तिगत गुणों और उसकी आनुवांशिक संरचना के हिसाब से उसके लिए दवा तैयार करना. स्वास्थ्य विशेषज्ञों के बीच अब यह आम राय बन चुकी है कि मेडिकल साइंस का भविष्य कुछ ऐसा ही होगा.

तस्वीर: Fotolia/motorlka

दवाओं का हर व्यक्ति के हिसाब से ढाला जाना क्यों जरूरी है इसे समझने के लिए एक उदाहरण लेते हैं. एड्स के लिए जिम्मेदार एचआईवी वायरस को मारने के लिए जब मरीज को दवाईयां दी जाती हैं तो करीब तीन प्रतिशत एचआईवी पॉजिटिव लोगों में इसके जानलेवा दुष्प्रभाव हो सकते हैं. फेफड़ों के कैंसर के एडवांस स्टेज वाले करीब 15 फीसदी मरीजों में भी खास उनके लिए तैयार की गई दवाएं देकर इलाज करना संभव है

इन दोनों बीमारियों के इलाज में दवाएं देने से पहले अगर मरीज की आनुवंशिक संरचना को समझ लिया जाए तो उन्हें दुष्प्रभावी दवाओं के खतरे से बचाया जा सकता है. अगर दवा देने से पहले मरीज के जेनेटिक, मॉलिकुलर और सेलुलर स्तर तक की जांच कर ली जाए तो सैद्धांतिक रूप से यह जानकारी पाई जा सकती है कि दवा का मरीज पर कोई दुष्प्रभाव तो नहीं होगा, दवा असर करेगी या नहीं और उसे कितनी मात्रा में दिया जाना चाहिए..

मरीज की आनुवंशिक संरचना के हिसाब से मिले दवातस्वीर: Fotolia/majcot

जर्मनी दे रहा है महत्व

पर्सनलाइज्ड मेडिसिन (पीएम) को स्वास्थ्य की दुनिया का एक असीम संभावनाओं से भरा क्षेत्र माना जा रहा है. जर्मनी की शिक्षा मंत्री योहाना वांका ने पिछले साल घोषणा की थी कि 2016 तक इस क्षेत्र में शोध और विकास को बढ़ावा देने के लिए जर्मन सरकार 10 करोड़ यूरो खर्च करेगी. जर्मन एसोसिएशन ऑफ रिसर्च बेस्ड फार्मास्यूटिकल कंपनीज (वीएफए) के अनुसार जर्मनी में अब तक 30 से 40 के बीच दवाईयां पर्सनलाइज्ड मेडिसिन में इस्तेमाल के लिए आधिकारिक रूप से स्वीकार की जा चुकी है.

वीएफए के अनुसार आजकल जिस रोग के लिए पीएम दवाओं का सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया जा रहा है, वह है ट्यूमर थेरेपी. जर्मन सोसायटी फॉर हिमेटोलॉजी एंड मेडिकल ऑन्कोलॉजी के डायरेक्टर बैर्नहार्ड वोएरमन बताते हैं, "हमें पर्सनलाइज्ड मेडिसिन से काफी उम्मीदें हैं. मकसद यह है कि दवा उसे दी जाए जिसपर वह असर करे." कैंसर की कुछ दवाओं को अनुमोदित करने के लिए यह शर्त भी रखी गई है कि उन्हें देने से पहले मरीज में वह खास तरह की कैंसर कोशिका पाई जाए जिसपर दवा सीधे असर करती है. वोएरमन बताते हैं कि अभी मौजूद 100 से ज्यादा कैंसर की दवाओं में से 20 से भी कम ऐसी हैं जिन्हें देने से पहले मरीज की पूर्व जांच की जा रही है.

अभी मंहगा है यह विकल्प

फिलहाल जर्मनी में इस तरह के जेनेटिक टेस्टिंग की कीमत है करीब 400 यूरो. जर्मनी और यूरोप के कई देशों में सभी निवासियों का स्वास्थ्य बीमा जरूरी होता है जिसमें उनकी ज्यादातर स्वास्थ्य समस्याओं की देखभाल शामिल होती है. अफसोस इस बात का है कि जेनेटिक टेस्टिंग का खर्चा अभी जर्मनी के सरकारी स्वास्थ्य बीमा के अंतर्गत नहीं आता. कुछ बीमा कंपनियां ऐसे जांचों का खर्चा उठा लेती है जिनको ना कराने से आगे चलकर कैंसर के इलाज का भारी भरकम खर्च उठाना पड़ सकता है.

जर्मनी जैसे विकसित देशों में अभी भी मौजूद सुविधाओं को देखते हुए भारत जैसे विकासशील देशों में इस तरह की पर्सनलाइज्ड मेडिसिन के चलन में आने में काफी वक्त लगता दिख रहा है.

आरआर/एमजे(डीपीए)

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी को स्किप करें

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें को स्किप करें