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बर्बादी रोकता तेल उद्योग

३० नवम्बर २०१३

मौसम और फसल के हिसाब से दुनिया भर में अलग अलग किस्म के खाद्य तेल का इस्तेमाल किया जाता है. पारंपरिक ढंग से तेल बनाने में बहुत ज्यादा कच्चा माल लगता है. पिसाई में बचे चूरे को भी पौष्टिक आहार बनाने की कोशिश हो रही है.

तस्वीर: Fotolia/PhotoSG

सरसों, नारियल, सूरजमुखी, जैतून, पाम, सोया और रेपसीड ऑयल, बाजार में खाने के तेल की तमाम किस्में मौजूद रहती हैं. अक्सर ग्राहक भी तय नहीं कर पाते कि कौन सा तेल उनके लिए बेहतर होगा. हर तेल की अपनी खासियत है. कोई बेकिंग के लिए, कोई पकाने के लिए तो कोई सलाद और पास्ता के लिए बेहतर है. हालांकि जर्मनी में ज्यादातर यहीं उगने वाली सरसों प्रजाति के रेपसीड तेल का इस्तेमाल किया जाता है.

जर्मनी के एक बड़े सुपरमार्केट स्टोर एडेका की प्रमुख मार्टिना कोर्ड इसकी वजह बताती हैं, "हमारे ग्राहकों के लिए अहम है कि तेल इलाके से ही आया हो, क्योंकि उनका प्रोडक्ट पर भरोसा है."

कोल्ड प्रेस्ड ऑयल

घरेलू बाजार में तेल बेचने वाली कई कंपनियां हैं. इनमें नई तकनीक और टिकाऊ कारोबार का नारा देने वाली टॉयटोबुर्ग ऑयल मिल भी है. ऑयल मिल अपने राज्य नॉर्थ राइन वेस्टफेलिया के किसानों से ही दाना खरीदती है. कच्चा माल उन्हीं किसानों से खरीदा जाता है जो पर्यावरण संबंधी मानकों का पालन करते हैं. आए दिन मिल में 13-14 टन दाने से लदे ट्रैक्टर पहुंचते हैं.

मिल में डालने से पहले हर खेप की जांच की जाती है. जांच क काम खुद मिल निदेशक मिषाएल रास करते हैं. उनके संतुष्ट होने के बाद ही बीजों को मिल में आगे बढ़ाया जाता है. मिषाएल कहते हैं, "हम कोल्ड प्रेस्ड ऑयल बनाते हैं, लिहाजा कच्चे माल की क्वालिटी हमारे लिए अहम है. अंत में तेल को सुधारने की संभावना नहीं होती. लिहाजा हमें जो बीज में मिलता है, वही बोतल में भी मिलता है. इसीलिए हमारी प्रोसेसिंग में क्वालिटी का बड़ा महत्व है."

जर्मनी में सरसों प्रजाति के रेपसीड के खेततस्वीर: picture-alliance/Bildagentur Huber

चक्कों से फिल्टर तक

इस ऑयल मिल की प्रोसेसिंग की एक खासियत यह है कि यहां सबसे पहले रोलर रेपसीड के कड़वे छिलके को तोड़ देता है. उसके बाद छन्नी और ब्लोअर छिलके को बीज के गूदे से अलग करते हैं. छिलका जानवरों का चारा बनाने वाले उद्योगों को भेज दिया जाता है. इसके बाद बेहद ठंडे चक्कों से बीजों को मसल कर उनसे तेल निकाला जाता है. पिसाई से निकला तेल सीधे फिल्टर से गुजरते हुए बोतल में बंद हो जाता है. ऐसा करने से तेल को सफाई की अतिरिक्त प्रक्रिया से नहीं गुजरना पड़ता. इससे ऊर्जा भी बचती है और रसायनों का इस्तेमाल भी नहीं होता.

तेल निकालने के बाद बचे चूरे को केक कहा जाता है. इसमें अहम प्रोटीन होता है. आम तौर पर कोल्ड प्रेस्ड ऑयल बनाने वाली दूसरी मिलें इस केक को पशुओं का चारा बनाने वाले उद्योगों को भेज देती हैं लेकिन टॉयटोबुर्ग ऑयल मिल ऐसा नहीं करती. मिषाएल कहते हैं, "हम इस केक को दोबारा पीसते हैं, इससे हमें गहरे काले पेस्ट की जगह पीला सूखा पाउडर मिलता है. यह नॉन एलर्जिक है, हम चाहते हैं कि इसे सीधे सीधे इंसान के पोषण में इस्तेमाल किया जा सके. रेपसीड प्रोटीन सबसे अच्छा प्रोटीन है, जो दुनिया भर के फूलों में मिलता है."

रेपसीड की खेती और इसके फायदे, रेपसीड ऑयल निकालने के टिकाऊ तरीके से टॉयटोबुर्ग ऑयल मिल कारोबार में बढ़िया तड़का लगा रही है.

रिपोर्ट: उटे वाल्टर/ओ सिंह

संपादन: ईशा भाटिया

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