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हर दिन 4 को मिली मौत की सज़ा !

२४ मार्च २००९

एमनेस्टी इंटरनेशल की ताज़ा रिपोर्ट बताती है कि दुनिया में पिछले साल 2,390 लोगों की मौत की सज़ा दी गई. चीन में सबसे ज़्यादा लोगों को मौत की सज़ा दी गई. लेकिन सज़ा-ए-मौत कितनी जायज़ है इस पर बहस अब भी चल रही है.

2008 में चीन में दी गई सबसे ज़्यादा मौत की सज़ातस्वीर: AP/DW

दुनिया के 59 देश ऐसे हैं जहां मौत की सज़ा दी जाती है. इनमें भारत, अमेरिका और चीन जैसे बड़े देश शामिल हैं. मौत की सज़ा के तहत भारत में फांसी पर लटकाया जाता है, तो दूसरे देशों में मुल्ज़िम को गोली मार दी जाती है, कई देश बिजली के करंट और ज़हरीली गैस का इस्तेमाल कर चुके हैं.

मौत की सज़ा पर होती रही है बहसतस्वीर: picture alliance / dpa

अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकारों से जुड़ी संस्था एमनेस्टी इंटरनेशनल की ताज़ा रिपोर्ट. इसमें कहा गया है कि वैसे तो 59 देशों में मौत की सज़ा का प्रावधान है लेकिन बीते साल सिर्फ़ 25 देश इसे अमल में लाए. लगभग 2400 लोगों को मौत की सज़ा दी गई. चीन, सऊदी अरब, अमेरिका, ईरान और पाकिस्तान, ये पांच ऐसे देश हैं, जहां सबसे ज़्यादा लोगों को सज़ा-ए-मौत दी गई. चीन में सबसे ज़्यादा, क़रीब 1700 लोगों को सज़ा सुनाई गई.

संयुक्त राष्ट्र दुनिया भर के देशों से लगातार ये अपील कर रहा है कि मौत की सज़ा को ख़त्म किया जाए. एमनेस्टी इंटरनेशल का कहना है कि इस दिशा में सकारात्मक बदलाव होते दिखाई दे रहे हैं. एमनेस्टी इंटरनेशनल के मार्टिन मैकफर्सन कहते हैं, ''2008 में मौत की सज़ा पाने वालों की संख्या बढ़ी है, दिक्कत चीन के साथ आ रही है. चीन में मौत की सज़ा पाने वाले लोगों के आंकड़े सार्वजनिक नहीं किए जाते हैं, लेकिन अब वहां भी बदलाव दिख रहा है. मौत की सज़ा पाने वाले की अपील पर फिर से गौर किया जा रहा है.''

तस्वीर: picture-alliance/ dpa/ DW-Fotomontage

यूरोपीय संघ से जुड़े किसी भी देश में मौत की सज़ा नहीं दी जाती और यूरोप में सिर्फ़ बेलारूस में मौत की सज़ा का प्रावधान है. संयुक्त राष्ट्र संघ और एमनेस्टी इंटरनेशनल का कहना है कि कई और देश मौत की सज़ा को ख़त्म करने लिए आगे बढ़ रहे हैं.

भारत में क्रूर अपराध करने या उसमें शामिल होने और देश के ख़िलाफ युद्ध छेड़ने जैसे मामलों में मौत की सज़ा का प्रावधान है. भारत में फांसी की सज़ा आख़िरी बार 2004 में धनंजय चटर्जी को दी गई थी. धनंजय को 14 साल की बच्ची से बलात्कार और उसकी हत्या का दोषी पाया गया था. ताज़ा फैसला इसी साल 13 फरवरी का है. जब ग़ाज़ियाबाद की विशेष सीबीआई अदालत ने निठारी कांड के आरोपी मोनिंदर सिंह पंढेर और सुरेंद्र कोहली दोनों को दोषी पाया और मौत की सज़ा सुनाई.

फांसी की सज़ा के विरोध में भारत के सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण कहते हैं, ''सभ्य समाज में फांसी की सज़ा के लिए कोई जगह नहीं है. कानून का मकसद न्याय करना होता है लेकिन न्याय का मतलब दोषी को प्रताड़ित करना नहीं होता है.''

भारत में निचली अदालत के फैसले के बाद भी दोषी सज़ा के खिलाफ़ ऊपरी अदालत का दरवाज़ा खटखटा सकता है और राहत न मिलने पर राष्ट्रपति से रहम की अपील कर सकता है.संसद भवन पर हमले के आरोपी अफ़जल गुरु को भी फांसी की सज़ा सुनाई गई है, अफज़ल ने राष्ट्रपति से रहम की अपील की है. जिस पर फैसला बाकी है. मौत की सज़ा पर बहस भले ही चलती रहे, लेकिन इतना तो तय है कि मुक़दमे की सुनवाई के दौरान हर देश में हर किसी को ज़रुरी कानूनी मदद पाने का हक़ है.

रिपोर्ट : एजेंसियां/ ओएसजे

एडीटर : एस गौड़

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