दुनिया भर के कीटों के साम्राज्य में से 1000 कीट लुप्त होने जा रही हैं. वैज्ञानिक इसे लेकर चिंता जता रहे हैं. जैव विविधता से लेकर फसलों के उगने और तमाम दूसरी प्राकृतिक गतिविधियों में इन कीटों की अहम भूमिका होती है.
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जलवायु परिवर्तन, कीटनाशक, प्रकाश प्रदूषण और खर पतवार नाशकों की वजह से धरती हर साल 1 से 2 फीसदी कीटों को खो रही है. कनेक्टिकट यूनिवर्सिटी के कीटविज्ञानी डेविड वागनर प्रोसीडिंग्स ऑफ नेशनल एकेडमीज ऑफ साइंसेज की 12 रिसर्चों के पैकेज के प्रमुख लेखक हैं. इन रिसर्चों में दुनिया भर के 56 वैज्ञानिकों ने हिस्सा लिया है. वागनर के मुताबिक वैज्ञानिकों को यह पता लगाना होगा कि क्या कीटों के लुप्त होने की दर दूसरे जीवों की तुलना में ज्यादा बड़ी है. वागनर का कहना है, "कुछ कारण हैं जो चिंता बढ़ा" रहे हैं क्योंकि वे कीटनाशकों, खरपतावार नाशकों और प्रकाश प्रदूषण के "हमलों का निशाना" बन रहे हैं.
वैज्ञानिकों का कहना है कि इस पहेली के सारे टुकड़े उनके सामने नहीं आए हैं, इसलिए उन्हें इसका परिमाण और जटिलता समझने में दिक्कत हो रही है. इसी वजह से वे दुनिया का ध्यान भी इस ओर ठीक से नहीं दिला पा रहे हैं. रिसर्च रिपोर्ट के सह लेखक और इलिनोय यूनिवर्सिटी की कीटविज्ञानी मेय बेरेनबाउम का कहना है, "कीटों का कम होने की मात्रा का आकलन करना और घटने की दर का पता लगाना बहुत मुश्किल है."
मामला और ज्यादा इसलिए बिगड़ गया है क्योंकि लोग कीटों को पसंद नहीं करते. कीट दुनिया भर में खाने पीने की चीजों के लिए जरूरी परागण में मदद करते हैं, खाद्य श्रृंखला में अहम भूमिका निभाते हैं और कूड़े के निपटारे में मदद करते हैं. बावजूद इसके इंसान को इनकी परवाह नहीं है. वागनर कीटों को ऐसा धागा मानते हैं जिनसे धरती और जीवन का आधार बना है.
कीटों में सबसे ऊंचा दर्जा है मधुमक्खियों और तितलियों का. इन्हें देख कर कीटों की समस्याों और उनकी घटती तादाद का आकलन किया जा सकता है. खासतौर से मधुमक्खी. बीमारियों, परजीवियों, कीटनाशकों, खर पतवार नाशकों और भोजन की कमी के कारण उनकी संख्या में नाटकीय कमी आई है. जलवायु परिवर्तन के कारण जिन इलाकों का वातावरण सूख रहा है, वहां तितलियों को भोजन की दिक्कत हो रही है. इसके अलावा खेती से खर पतावार और फूल हटाए जाने के कारण उन्हें मकरंद नहीं मिल पा रहा. वागनर कहते हैं कि अमेरिका में तो एक विशाल जैविक रेगिस्तान बन रहा है जिसमें बस सोयाबीन और मक्का ही बाकी बचेगा.
सोमवार को जारी हुए रिसर्च पेपर में कोई आंकड़ा नहीं दिया गया है लेकिन समस्या की एक विशाल और अधूरी तस्वीर दिखाई गई है ताकि लोगों का ध्यान खींचा जा सके. वैज्ञानिकों ने अब तक करीब 10 लाख कीटों की प्रजातियों का पता लगाया और माना जाता है कि अभी करीब 40 लाख प्रजातयों की खोज होनी बाकी है.
डेलावेयर यूनिवर्सिटी के डग टेलेमी इस रिसर्च में शामिल नहीं थे लेकिन उनका कहना है कि दुनिया ने, "बीते 30 सालों में कीटों को मारने के नए तरीके ढूंढने पर अरबों डॉलर खर्च किए हैं और उसकी तुलना में उन्हें संरक्षित करने पर महज चवन्नी अठन्नी ही खर्च किया है."
एनआर/आईबी (एपी)
अब कीड़े वाले खाने के लिए हो जाएं तैयार
दुनिया का खाद्य उद्योग अब पर्यावरण पर दबाव डालने लगा है. बढ़ती आबादी के चलते अब सब के लिए भोजन जुटाना आसान नहीं है. ऐसे में वैज्ञानिकों और उद्योग जगत की नजर ऐसे कीड़े-मकौड़ों पर जा टिकी है जिन्हें खाया जा सकता है.
तस्वीर: Getty Images/S. Gallup
कीट युक्त भोजन
दुनिया की आबादी लगातार बढ़ रही है जिसके चलते अब कृषि योग्य भूमि कम होती जा रही है. पिछले 40 सालों में दुनिया की तकरीबन एक तिहाई कृषि भूमि समाप्त हो गई है. वहीं पर्यावरण का असर मांस उत्पादन पर भी पड़ा है. ऐसे में कई लोगों का मानना है कि भविष्य में कीट युक्त भोजन ही एक बेहतर विकल्प होगा. मसलन जापान में अंड़े के साथ खाए जा रहे इस टिड्डे को एक अच्छा विकल्प माना जा सकता है.
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कांगो में झींगा और इल्ली
इंसान प्रागैतिहासिक काल से कीट खा रहा है और आज भी यह सिलसिला जारी है. दुनिया में आज भी कुछ खास संस्कृतियां इनका इस्तेमाल किसी न किसी तरीके से करती हैं. कांगों में एक व्यक्ति जैतून के तेल में पकी इस भुनी हुई इल्ली को खा रहा है. यह खाना सस्ता है, साथ ही प्रोटीन का बहुत बड़ा खजाना है.
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धीरे-धीरे लोकप्रिय
कीट युक्त भोजन दुनिया के कई देशों में खाया जाता है. लेकिन यूरोप और उत्तरी अमेरिका के क्षेत्रों में कीटों को इस तरह खाना आम नहीं है. हालांकि अब पर्यावरणविदों से मिलने वाले प्रोत्साहन के चलते इनकी लोकप्रियता में इजाफा हुआ है. इस तस्वीर में सिडनी का एक बावर्ची ऐसी ही एक डिश को दिखा रहा है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/S. Khan
लाभ कितना?
लेकिन इस तरह कीटों की खेती करने का लाभ क्या है? अगर पशुपालन युक्त खेती को देखें, तो उसके मुकाबले कीटों की खेती में कम भूमि और पानी का इस्तेमाल होता है. साथ ही ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन भी इसमें कम होता है. इसके अलावा कीटों को बहुत कम भोजन की आवश्यकता होती है और इन्हें जानवरों और मछलियों के लिए भोजन के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है.
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तेल का विकल्प
इंडोनेशिया का एक स्टार्टअप बाइटबैक ऐसे ही कीटों वाले पौष्टिक आहार के इस्तेमाल को बढ़ावा दे रहा है ताकि तारपीन के तेल का इस्तेमाल कम किया जा सके. इंडोनेशिया और अन्य दक्षिण एशियाई देशों में इस तेल को तैयार करने के तरीके को पर्यावरण के अनुकूल नहीं माना जाता है, जिसके चलते लंबे समय से इसकी आलोचना हो रही थी. बाइटबैक के संस्थापकों का जोर कीड़े वाले ऐसे पौष्टिक खाने पर है, जो प्रोटीन युक्त हो.
तस्वीर: Founders Valley/Biteback Indonesia
कीड़े वाली लॉलीपॉप
दुनिया भर में मांस की मांग साल 2050 तक 75 फीसदी बढ़ सकती है. इतनी बड़ी मात्रा में उत्पादन के लिए जरूरी कृषि भूमि और पशुओं आवश्यकता होगी. साथ ही प्रोटीन के अच्छे विकल्पों की तलाश तेज करनी होगी. एंटोमौफैजी को लेकर आश्वस्त लोग पाक कला में कीटों पर विश्वास जताते हैं. मानव द्वारा कीटों का भोजन के रूप में इस्तेमाल एंटोमौफैजी कहलाता है. तस्वीर में कीटों से बनी लॉलीपॉप को दिखाया गया है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/K. Bleier
आसान नहीं अपनाना
कीटों से बना भोजन भविष्य की खाद्य जरूरतों को पूरा करने में सहायक हो सकता है लेकिन अब भी इस क्षेत्र में विकास की आवश्यकता है. स्वयं को ऐसे खाने के लिए तैयार करना आसान नहीं है. तस्वीर में नजर आ रहा भुनी हुई मधुमक्खियों से बना केक बर्लिन के पर्यावरण मेले मे खाया गया था. लेकिन दुनिया को अधिक व्यावहारिक कीट वाले भोजन के इस्तेमाल पर गौर करना चाहिए. (आर्थर सुलिवान/एए)