मई के अंत में अलेक्सांडर आईएसएस पहुंचेंगे. उनका तो सपना पूरा हो जाएगा लेकिन करीब 35 फीसदी जर्मन लोगों को उनसे ईर्ष्या होगी जिनका अंतरिक्ष में जाने का सपना फिलहाल अधूरा ही रहेगा.
एक सर्वे के मुताबिक जर्मनी में हर तीसरा व्यक्ति जीवन में एक बार तारों के साथ घूमना चाहता है, इसमें पैसा कोई भूमिका नहीं निभाता. जर्मन प्रेस एजेंसी डीपीए द्वारा करवाए गए सर्वे के मुताबिक औरतें अंतरिक्ष के मामले में जरा बच कर ही रहती हैं.
1070 लोगों के सर्वे में से 68 प्रतिशत महिलाओं ने अंतरिक्ष यात्रा से इनकार कर दिया. जबकि 49 पुरुष वहां जाना चाहते थे. 18 साल से ऊपर के लोगों को इस सर्वे में शामिल किया गया था. इसमें से 65 फीसदी का मानना था कि धरती से बाहर जीवन है.
क्या आने वाले दिनों में इंसान दूसरे ग्रहों पर जा कर रह सकेगा, इसके जवाब में मत बंट गए. 45 फीसदी के मुताबिक ऐसा हो सकता है लेकिन इतने ही ऐसा सोचने वाले भी थे कि नहीं हो सकेगा.
जर्मनी के अलेक्सांडर गैर्स्ट तीसरे ऐसे जर्मन हैं जो अंतरिक्ष में जाएंगे. इससे पहले 2006 में थोमास राइटर और 2008 में हंस श्लेगेल आईएसएस पर गए थे. करीब 15 साल से आईएसएस आसमान में है और इसमें हर समय कोई न कोई प्रयोग, काम चलता रहता है. अधिकतर समय रूसी और अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री यहां होते हैं. ये लोग छह महीने धरती से बाहर आसमान में गुजारते हैं. यूरोप के अलावा कनाडा, जापान, रूस और अमेरिका भी इसमें शामिल हैं.
ब्लैक होल यानि कृष्ण विवर के बारे में पूरी जानकारी नहीं मिल पाई है. घनघोर अंधेरे और उच्च द्रव्यमान वाले इन ब्लैक होल्स की तस्वीरें इस गैलेरी में.
तस्वीर: NASAब्लैक होल वास्तव में कोई छेद नहीं है, यह तो मरे हुए तारों के अवशेष हैं. करोड़ों, अरबों सालों के गुजरने के बाद किसी तारे की जिंदगी खत्म होती है और ब्लैक होल का जन्म होता है.
तस्वीर: cc-by-sa 2.0/Ute Krausयह तेज और चमकते सूरज या किसी दूसरे तारे के जीवन का आखिरी पल होता है और तब इसे सुपरनोवा कहा जाता है. तारे में हुआ विशाल धमाका उसे तबाह कर देता है और उसके पदार्थ अंतरिक्ष में फैल जाते हैं. इन पलों की चमक किसी गैलेक्सी जैसी होती है.
तस्वीर: NASAमरने वाले तारे में इतना आकर्षण होता है कि उसका सारा पदार्थ आपस में बहुत गहनता से सिमट जाता है और एक छोटे काले बॉल की आकृति ले लेता है. इसके बाद इसका कोई आयतन नहीं होता लेकिन घनत्व अनंत रहता है. यह घनत्व इतना ज्यादा है कि इसकी कल्पना नहीं की जा सकती. सिर्फ सापेक्षता के सिद्धांत से ही इसकी व्याख्या हो सकती है.
तस्वीर: NASA and M. Weiss (Chandra X -ray Center)यह ब्लैक होल इसके बाद ग्रह, चांद, सूरज समेत सभी अंतरिक्षीय पिंडों को अपनी ओर खींचता है. जितने ज्यादा पदार्थ इसके अंदर आते हैं इसका आकर्षण बढ़ता जाता है. यहां तक कि यह प्रकाश को भी सोख लेता है.
तस्वीर: X-ray: NASA/CXC/MIT/C.Canizares, M.Nowak; Optical: NASA/STScIसभी तारे मरने के बाद ब्लैक होल नहीं बनते. पृथ्वी जितने छोटे तारे तो बस सफेद छोटे छोटे कण बन कर ही रह जाते हैं. इस मिल्की वे में दिख रहे बड़े तारे न्यूट्रॉन तारे हैं जो बहुत ज्यादा द्रव्यमान वाले पिंड हैं.
तस्वीर: NASA and H. Richer (University of British Columbia)अंतरिक्ष विज्ञानी ब्लैक होल को उनके आकार के आधार पर अलग करते हैं. छोटे ब्लैक होल स्टेलर ब्लैक होल कहे जाते हैं जबकि बड़े वालों को सुपरमैसिव ब्लैक होल कहा जाता है. इनका भार इतना ज्यादा होता है कि एक एक ब्लैक होल लाखों करोड़ों सूरज के बराबर हो जाए.
तस्वीर: NASA/CXC/MIT/F.K. Baganoff et alब्लैक होल देखे नहीं जा सकते, इनका कोई आयतन नही होता और यह कोई पिंड नहीं होते. इनकी सिर्फ कल्पना की जाती है कि अंतरिक्ष में कोई जगह कैसी है. रहस्यमय ब्लैक होल को सिर्फ उसके आस पास चक्कर लगाते भंवर जैसी चीजों से पहचाना जाता है.
तस्वीर: X-ray: NASA/CXC/Wisconsin/D.Pooley & CfA/A.Zezas; Optical: NASA/ESA/CfA/A.Zezas; UV: NASA/JPL-Caltech/CfA/J.Huchra et al.; IR: NASA/JPL-Caltech/CfA1972 में एक्स रे बाइनरी स्टार सिग्नस एक्स-1 के हिस्से के रूप मे सामने आया ब्लैक होल सबसे पहला था जिसकी पुष्टि हुई. शुरुआत में तो रिसर्चर इस पर एकमत ही नहीं थे कि यह कोई ब्लैक होल है या फिर बहुत ज्यादा द्रव्यमान वाला कोई न्यूट्रॉन स्टार.
तस्वीर: NASA/CXCसिग्नस एक्स-1 के बी स्टार की ब्लैक होल के रूप में पहचान हुई. पहले तो इसका द्रव्यमान न्यूट्रॉन स्टार के द्रव्यमान से ज्यादा निकला. दूसरे अंतरिक्ष में अचानक कोई चीज गायब हो जाती. यहां भौतिकी के रोजमर्रा के सिद्धांत लागू नहीं होते.
तस्वीर: NASA/CXC/M.Weissयूरोपीय दक्षिणी वेधशाला के वैज्ञानिको ने हाल ही में अब तक का सबसे विशाल ब्लैक होल ढूंढ निकाला है. यह अपने मेजबान गैलेक्सी एडीसी 1277 का 14 फीसदी द्रव्यमान अपने अंदर लेता है.
तस्वीर: ESO/L. Calçadaब्लैक होल के पार देखना कभी खत्म नहीं होता. ये अंतरिक्ष विज्ञानियों को हमेशा नई पहेलियां देते रहते हैं.
तस्वीर: NASA/CXC/SAO/A.Prestwich et al सर्वे में शामिल लोगों में से 51 फीसदी का मानना है कि जर्मनी को भी आने वाले दिनों में अंतरिक्ष में इंसान भेजने चाहिए. हालांकि 35 फीसदी इसका विरोध करते हैं.
28,000 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार पर हर 90 मिनट में सूरज ढलता है और उगता है. ये स्टेशन सौर ऊर्जा से चलता है. आईएसएस अंतरिक्ष में लटका हुआ दूसरा स्टेशन है. 2001 में प्रशांत महासागर में रूसी स्टेशन मीर डूब गया था.
एएम/आईबी (डीपीए,एएफपी)