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हवाई जहाज़ से तारों की ताक झांक

२६ फ़रवरी २०१०

हब्बल, चंद्रा या कैप्लर जैसे अंतरिक्ष आधारित दूरदर्शियों की उपयोगिता के बावजूद निर्माण में लगने वाले समय और अंतरिक्ष में भेजने पर ख़र्च के चलते वैज्ञानिक दूसरे विकल्प ढूंढने लगे हैं. सोफ़िया वेधशाला ऐसा ही एक विकल्प है.

तस्वीर: AP

सोफ़िया स्ट्रैटोस्फ़ेरिक ऑब्ज़र्वैटरी फॉर इन्फ्रारेड एस्ट्रोनॉमी का संक्षिप्त रूप है. हिंदी में अर्थ हुआ अवरक्त खगोल वैज्ञानिक खोज के लिए स्ट्रैटोस्फ़ियर वेधशाला. यह वास्तव में एक जेट विमान है, जो 17 टन भारी एक अंतरिक्ष दूरदर्शी को लेकर वायुमंडल की स्ट्रैटोस्फियर कहलाने वाली परत में जाएगा, जैसा कि श्टुटगार्ट विश्वविद्यालय के सोफ़िया इंस्टीट्यूट की प्रवक्ता ड्यौर्टे मेलर्ट बताती हैं:

तस्वीर: AP

"सोफ़िया की मदद से हम उन तारों का अध्ययन करना चाहते हैं, जो इन्फ्रारेड किरणें उत्सर्जित करते हैं. सोफ़िया अमेरिकी अंतरिक्ष अधिकरण नासा और जर्मन अधिकरण डीएलआर की एक साझी हवाई वेधशाला है. यह बोइंग 747 विमान का एक छोटा संस्करण है. विमान के पिछले भाग में 17 टन भारी एक टेलीस्कोप लगा है".

खगोलविद सीधे तारों के पास नहीं पहुंच सकते, इसलिए हर संभव तरीके से जानना चाहते हैं कि तारे अपने बारे में किस रूप में हमें क्या जानकारियां भेज रहे हैं. समस्या यह है कि हमारी पृथ्वी का वायुमंडल हमें दिखायी पड़ने वाले प्रकाश की तरंगों को छोड़ कर वर्णक्रम की अधिकतर ऐसी विद्युतचुंबकीय तरंगें सोख लेता है, जो तारों सितारों से आती हैं, पर जिन्हें हमारी आंखें देख नहीं पातीं. इसी कारण जो चीज़ें पृथ्वी पर स्थित दूरदर्शी नहीं देख पाते, उन्हें देखने के लिए अंतरिक्ष में दूरदर्शी भेजे जाने लगे.

लेकिन अंतरिक्ष में गए बिना, ज़मीन से 10 से 15 किलोमीटर की ऊंचाई पर स्ट्रैटोस्फ़ियर मे जा कर भी ज़मीन पर की अपेक्षा कहीं बेहतर ढंग से ब्रह्मांड में झांका जा सकता है. जेट विमान इसी ऊंचाई पर उड़ते हैं. वे किसी भी दिन उड़ और उतर सकते हैं. इसलिए उनका रखरखाव और मरम्मत हबल टेलीस्कोप जैसे अंतरिक्ष आधारित दूरदर्शियों की अपेक्षा कहीं आसान और सस्ता काम है.

"सोफ़िया की मदद से हम 12 से 14 किलोमीटर की ऊंचाई पर उड़ सकते हैं. पृथ्वी के वायुमंडल की 99 प्रतिशत जलवाष्प इस ऊंचाई तक नहीं पहुंच पाती."

हवा में मिली भाप और धूल कणों के इस ऊंचाई पर नहीं होने से दूरदर्शी की पहुंच कई गुना बढ़ जाती है.दूसरा बड़ लाभ यह है कि अंतरिक्ष आधारित दूरदर्शियों के डिज़ाइन और निर्माण में ही 5 से 10 साल लग जाते हैं. इसलिए, तकनीकी विकास की दृष्टि से वे अंतरिक्ष में पहुंचने के पहले ही वर्षों पुराने हो चुके होते हैं.

तस्वीर: NASA

हवाई जहाज़ क्योंकि हर दिन उड़ और उतर सकता है, इसलिए उस में रखे दूरदर्शी के हार्ड और सॉफ्टवेयर को हर समय तकनीकी प्रगति के अनुकूल बनाया जा सकता है. एक ही काम करने वाले दो या तीन समानांतर उपकरणों की ज़रूरत भी नहीं पड़ती, जैसा कि उपग्रहों के मामले हमेशा करना पड़ता है, ताकि एक उपकरण फ़ेल हो जाने पर दूसरा उसकी जगह ले सके.

"हम हमेशा नवीवतम उपकरण इस्तेमाल कर सकते हैं, कई प्रकार के उपकरण ले जा सकते हैं और बेहतर ढंग से अपने अध्ययन कर सकते हैं."

18 दिसंबर 2009 को सोफ़िया दूरदर्शी वाला विमान पूंछ में बनी तीन मीटर ब़ड़ी एक खुली हुई खिड़की के साथ उड़ा. दुनिया के इतिहास में यह पहली बार था कि किसी विमान ने इतने बड़े खुले हुए हिस्से के साथ उड़ान की. 17 टन भारी टेलीस्कोप इस खुली खिड़की से बाहर खुले आकाश की तरफ देख सकता था. शीघ्र ही दूर अंतरिक्ष से आ रही ही इन्फ्रारेड, यानी अवरक्त किरणों की सहायता से तारों का नियमित अध्ययन भी शुरू हो जायेगा.

ड्यौर्टे मेलर्ट बताती हैं," तारे गैसों के ऐसे बड़े बड़े बादलों से बनते हैं, जो समय के साथ घने होते जाते हैं. इन बादलों से एक ही समय सैकड़ों, हज़ारों तारे बन सकते हैं. इस प्रक्रिया के दौरान बादलों वाली सामग्री का एक हिस्सा बाहर की ओर धकेल दिया जाता है. वह ठंडा पड़ने पर उस जगह के चारो ओर धूल के बादल बन कर फैल जाता है, जहां तारे जन्म ले रहे होते हैं. दृश्यमान प्रकाश धूल के इन बादलों को भेद नहीं पाता, क्योंकि धूलकणों का आकार भी लगभग उतना ही बड़ा होता है, जितनी दृश्यमान प्रकाश की वेवलेंग्थ यानी तरंग-लंबाई होती है. इन्फ्रारेड किरणों की तरंग-लंबाई धूलकणों से बड़ी होती है, इसलिए वे धूल के बादलों के पार जा सकती हैं. इस तरह इन्फ्रारेड टेलीस्कोप की सहायता से हम देख सकते हैं कि धूल के बादलों के पीछे क्या हो रहा है, तारे कैसे बने या अब भी बन रहे हैं."

सोफ़िया परियोजना 20 वर्ष चलेगी और उन तारों के बारे में हमारे ज्ञान में निश्चित रूप से वृद्धि करेगी, जिन पर धूल के बादलों का पर्दा पड़ा हुआ है.

रिपोर्ट: राम यादव

संपादन: एस गौड़

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