हवा हवाई श्रीदेवी ने तीन दशक लंबे अपने सिने करियर में लगभग 200 फिल्मों में काम किया. इनमें चांदनी और लम्हे जैसी हिन्दी फिल्मों के अलावा तेलुगू, तमिल और मलयालम फिल्में भी शामिल हैं. एक नजर श्रीदेवी के फिल्मी सफर पर.
विज्ञापन
बॉलीवुड में श्रीदेवी का नाम एक ऐसी अभिनेत्री के रूप में लिया जाता है जिन्होंने अपनी दिलकश अदाओं और दमदार अभिनय से अस्सी और नब्बे के दशक में दर्शकों के दिल में अपनी खास पहचान बनाई. श्रीदेवी का असली नाम श्रीयम्मा यंगर है. 13 अगस्त 1963 को तमिलनाडु के एक छोटे से गांव मीनमपट्टी में उनका जन्म हुआ. श्रीदेवी ने अपने सिने करियर की शुरुआत महज चार वर्ष की उम्र में एक तमिल फिल्म से की. 1976 तक उन्होंने कई दक्षिण भारतीय फिल्मों में बतौर बाल कलाकार काम किया. बतौर अभिनेत्री उन्होंने अपने करियर की शुरुआत तमिल फिल्म मुंदरू मुदिची से की थी. 1977 की फिल्म '16 भयानिथनिले' की सफलता के बाद श्रीदेवी स्टार अभिनेत्री बन गयीं.
'मैं तेरी दुश्मन दुश्मन तू मेरा'
हिन्दी फिल्मों में बतौर अभिनेत्री श्रीदेवी ने अपने सिने करियर की शुरुआत 1979 में फिल्म 'सोलहवां सावन' से की लेकिन फिल्म असफल होने के बाद वे हिन्दी फिल्म उद्योग छोड़ दक्षिण भारतीय फिल्मों की ओर लौट गयीं. 1983 में श्रीदेवी ने एक बार फिर फिल्म 'हिम्मतवाला' के जरिए हिन्दी फिल्मों की ओर अपना रूख किया. फिल्म की सफलता के बाद बतौर अभिनेत्री वे हिन्दी फिल्म इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाने में कामयाब हो गयीं. 1983 में ही उनकी एक और अहम फिल्म 'सदमा' रिलीज हुई. हालांकि फिल्म टिकट खिड़की पर असफल रही लेकिन दर्शक आज भी ऐसा मानते हैं कि यह श्रीदेवी के करियर की सर्वश्रेष्ठ फिल्मों में से एक है.
इसके बाद 1986 में आई फिल्म 'नगीना' जो श्रीदेवी के करियर की महत्वपूर्ण फिल्मों में शुमार की जाती है. इस फिल्म में श्रीदवी ने इच्छाधारी नागिन का किरदार निभाया. उन पर फिल्माया गीत 'मै तेरी दुश्मन दुश्मन तू मेरा' में उन्होंने जबरदस्त नृत्य शैली का परिचय दिया. फिर 1987 में 'मिस्टर इंडिया' श्रीदेवी की सबसे कामयाब फिल्म साबित हुई. साल 1989 में श्रीदेवी के करियर की एक और महत्वपूर्ण फिल्म 'चालबाज' रिलीज हुई. इस फिल्म में श्रीदेवी ने दो जुड़वा बहनों की भूमिका निभाई. श्रीदेवी के लिए यह किरदार काफी चुनौतीपूर्ण था लेकिन उन्होंने अपने सहज अभिनय से न सिर्फ इसे अमर बना दिया, बल्कि आने वाली पीढ़ी की अभिनेत्रियों के लिए उदाहरण के रूप में पेश किया है.
बॉलीवुड के अहम पड़ाव
पहली प्रसिद्ध अभिनेत्रीः देविका रानी
हिन्दी फिल्मों की पहली बड़ी अभिनेत्री देविका रानी ने 1933 में पहली बार पर्दे पर किस करके हलचल मचा दी. उनके पति हिमांशु रॉय भी फिल्में बनाते थे. जर्मन फिल्मकार फ्रांत्स ओस्टेन के साथ मिल कर उन्होंने कई अंतरराष्ट्रीय फिल्मों को शक्ल दी.
बेधड़क नाडियाः मैरी इवैंस
फियरलेस नाडिया के नाम से विख्यात मैरी इवैंस हिन्दी फिल्मों में काम करने वाली पहली अंतरराष्ट्रीय कलाकार थीं. सुनहरे बालों वाली गोल मटोल ऑस्ट्रेलियाई मैरी ने होमी वाडिया के साथ कई मारधाड़ वाली फिल्मों में काम किया बाद में उन्होंने होमी से शादी भी की.
हिन्दी सिनेमा की विश्व सुंदरीः ऐश्वर्या रॉय
सुंदरियों के मुकाबले और हिंदी फिल्मों में तो ऐश्वर्या ने पहले ही डंका बजवा दिया था 2003 में कान फिल्म फेस्टिवल की ज्यूरी में शामिल हो कर उन्होंने वो करिश्मा भी कर दिखाया जो पहले किसी और हिंदुस्तानी के हिस्से नहीं आई थी. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की किसी अभिनेत्री को ऐश्वर्या जितनी सुर्खियां नहीं मिलीं.
तस्वीर: AP
बॉक्स ऑफिस पर पहला बवालः शोले
खूब नाच गाना और प्यार मुहब्बत देखने के बाद हिन्दी फिल्मों की मुलाकात गब्बर सिंह से हुई. रामगढ़ में जय वीरू की गब्बर से जंग ने ऐसी आग लगाई कि बसंती की बड़ बड़ करती और जया बच्चन की खामोश मुहब्बत भी उसकी लपटों को मद्धिम न कर सकीं. 38 साल से धधकते शोलों की जुबान आज भी बच्चा बच्चा बोलता है.
तस्वीर: Mskadu
सिनेमा की शुरूआतः राजा हरिश्चंद्र
दादा साहब फाल्के की इसी फिल्म के साथ 1913 में हिन्दी सिनेमा का सफर शुरू हुआ जो अब 100 साल की उम्र हासिल कर चुका है. उस वक्त कहानियां धार्मिक ग्रंथों और ऐतिहासिक चरित्रों से ली जाती थीं. महिलाओं के किरदार भी पुरुष निभाया करते थे.
तस्वीर: gemeinfrei
बॉलीवुड के बापः दादा साहब फाल्के
आज जिन्हें हम दादा साहब फाल्के कह कर सम्मान देते हैं उन्हीं ढुंडीराज गोविंद फाल्के ने हिंदी सिनेमा की शुरूआत की. फोटोग्राफर के रूप में काम करने वाले दादा साहब फाल्के की मुलाकात जर्मनी के कार्ल हर्त्ज से हुई और उन्होंने लुमियरे बंधुओं के साथ भी काम किया. लुमियरे बंधुओं ने ही सिनेमेटोग्राफी विकसित की. इसके बाद दादा साहब फिल्में बनाने लगे और उनके नाम कोई 100 से ज्यादा फिल्में हैं.
तस्वीर: gemeinfrei
पहली बोलती फिल्मः आलम आरा
फिल्में तो बनने लगीं लेकिन वो खामोश थीं. 18 साल बाद आई आलम आरा हिन्दी की पहली बोलती फिल्म थी. इसके जरिए लोगों ने आवाज और संगीत से सजी चलती फिरती बोलती तस्वीरें देखी.
तस्वीर: public domain
आलोचकों के दुलारेः राज कपूर
राज कपूर की आवारा के साथ हिन्दी सिनेमा ने रूस, चीन समेत कई देशों में कदम रखे. फिल्म बहुत मशहूर हुई और इसे देखने वाले लोग भारतीयों को अब भी इस फिल्म से जोड़ कर देखते हैं. फिल्म का टाइटल सॉन्ग भी खासा लोकप्रिय हुआ. यहां तक कि दुनिया के कई देशों से राजकपूर को न्योते मिलने लगे.
पहली अंतरराष्ट्रीय कामयाबीः मदर इंडिया
असली भारत के असली गांव और उनकी सच्ची मुश्किलें. मदर इंडिया पर वास्तविकता की इतनी गहरी छाप थी कि किरदारों का दर्द लोगों के दिल में कहीं गहराई तक बैठ गया. फिल्म विदेशी फिल्मों की श्रेणी में ऑस्कर का नामांकन भी ले गई. फिल्म में पश्चिम के लोगों ने भारत की दिक्कतें देखीं और वो उनके मन में गहरी दर्ज हुई. नर्गिस मदर इंडिया बन गईं
पहला ऑस्करः सत्यजीत रे
बॉलीवुड की आम पहचान से एकदम दूर होने के बावजूद पाथेर पांचाली का जादू ऐसा है कि भुलाए नहीं भूलता. सत्यजीत और उनके सिनेमा ने भारत की दुनिया में जो छवि बनाई उससे वो आज भी पूरी तरह आजाद नहीं हो सका है. 1992 में सत्यजित रे को ऑस्कर मिला और वो तब यह पुरस्कार पाने वाले पहले भारतीय थे.
कोई एक दशक तक हिन्दी फिल्मों को यश चोपड़ा वाली मोहब्बत करना सिखा कर शाहरुख विदेशों में बॉलीवुड का चेहरा बन गए. खासतौर से जर्मनी में तो वो बेहद लोकप्रिय हैं. लंबे समय तक यहां का एक टीवी चैनल उनकी फिल्मों को जर्मन भाषा में डब कर दिखाता रहा. डॉन 2 फिल्म का बहुत सा हिस्सा जर्मनी में ही शूट किया गया और हर साल शाहरुख यहां कम से कम एक बार तो आते ही हैं.
तस्वीर: Johannes Eisele/AFP/Getty Images
दुनिया के पर्दे परः लगान
पहली बार कोई हिन्दी फिल्म अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रिलीज हुई. लगान से पहले भारत के सपनों की दुनिया में या तो आजादी थी या फिर प्यार और पैसा. आशुतोष गोवारिकर और आमिर खान ने एक नया सपना दिया कुछ अनोखा और अच्छा कर दिखाने का. आमिर परफेक्शनिस्ट हो गए और उसके बाद एक एक कर बॉक्स ऑफिस, आलोचक, फिल्म समारोह उस पर मुहर लगाते चले गए.
तस्वीर: Getty Images/AFP
ऑस्कर में जय होः ए आर रहमान
'जय हो' गाने के लिए दो ऑस्कर और गोल्डन ग्लोब जीत कर ए आर रहमान ने दुनिया भर में धूम मचा दी. ऑस्कर ने पूरब के संगीत और कलाकारों का लोहा माना.
तस्वीर: imago stock&people
13 तस्वीरें1 | 13
डबल रोल वाली फिल्में
इसी साल श्रीदेवी की एक और सुपरहिट फिल्म 'चांदनी' प्रदर्शित हुई. यश चोपड़ा के निर्देशन में बनी इस फिल्म में श्रीदेवी ने चांदनी की शीर्ष भूमिका निभाई. इस फिल्म में उन्होंने अपनी बहुआयामी प्रतिभा का परिचय देते हुए न सिर्फ चुलबुला किरदार निभाया, बल्कि कुछ दृश्यों में अपने संजीदा अभिनय से दर्शकों को भावुक कर दिया. फिल्म में अपने दमदार अभिनय के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के फिल्मफेयर पुरस्कार के लिए नामांकित भी किया गया.
साल 1991 की फिल्म 'लम्हे' श्रीदेवी के करियर की अहम फिल्मों में शुमार की जाती है. इस फिल्म में उन्हें एक बार फिर से निर्माता-निर्देशक यश चोपड़ा के साथ काम करने का मौका मिला. इसमें श्रीदेवी ने मां और बेटी की दोहरी भूमिका निभाई. फिर 1992 में 'खुदागवाह' में श्रीदेवी एक बार फिर दोहरी भूमिका में नजर आईं. यूं तो पूरी फिल्म अमिताभ बच्चन के इर्द-गिर्द घूमती रही लेकिन श्रीदेवी ने अपनी दोहरी भूमिका से दर्शकों के दिलों पर अपने अभिनय की छाप छोड़ी.
1996 में निर्माता-निर्देशक बोनी कपूर के साथ शादी करने के बाद श्रीदेवी ने फिल्मों में काम करना काफी हद तक कम कर दिया. 1997 की फिल्म 'जुदाई' श्रीदेवी के करियर की अंतिम महत्वपूर्ण फिल्म साबित हुई. इस फिल्म में उनके अभिनय का नया रूप देखने को मिला. एक लंबे अंतराल के बाद 2012 में जब श्रीदेवी ने फिल्म 'इंग्लिश विंग्लिश' के साथ इंडस्ट्री में वापसी की, तो उन्होंने सिर्फ देश भर में ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी लोगों का दिल जीत लिया.