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हांगकांग को सिर्फ लोकतंत्र चाहिए

१३ जून २०१९

हांगकांग में विरोध प्रदर्शन करते लाखों लोग नए प्रत्यर्पण कानून के खिलाफ आवाज उठाने के अलावा जो एक चीज चाहते हैं वह है लोकतंत्र. ऐसा लोकतंत्र जो अमेरिका, जर्मनी जैसे देशों में नजर आता है. बता रहे हैं आलेक्जांडर गोएरलाख.

Hongkong Proteste gegen Auslieferungsgesetz
तस्वीर: imago images / ZUMA Press

हांगकांग के लोगों ने बेहद प्रभावीशाली ढंग से दुनिया को दिखाया है कि लोकतंत्र के लिए संघर्ष करना कितना अहम है. मैं 2017-18 के शैक्षणिक सत्र में हांगकांग यूनिवर्सिटी में बतौर स्कॉलर गया था और वहां मैंने देखा कि कैसे महीने दर महीने लोगों का मूड खराब हो रहा था और लोग हताश होते जा रहे थे. साल 2014 के अंब्रेला मूवमेंट में लोकतंत्र के लिए प्रदर्शन कर रहे छात्र जोशुआ वॉन्ग से जुड़े छात्रों को इस दौरान जेल की सजा भी हो गई थी.

यहां इस बात पर ध्यान देना जरूरी है कि प्रदर्शनकारी सिर्फ वही मांग कर रहे हैं जिस पर बीजिंग के कम्युनिस्ट नेतृत्व ने सहमति जताई थी. चीन को हांगकांग सौंपने की शर्त और हांगकांग के संविधान का मूल कानून,  साफ-साफ कहता है कि हांगकांग, चीन के साथ रहकर "एक राष्ट्र दो व्यवस्था" की अवधारणा पर काम कर सकता है. अन्य शब्दों में कहा जाए तो इसका मतलब है कि हांगकांग अपने अधिकार क्षेत्र में लोकतांत्रिक भी हो सकता है.

प्रोफेसर डॉक्टर आलेक्जांडर गोएरलाखतस्वीर: Harvard University/D. Elmes

हालांकि अब तक चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने अपने तरीकों और शब्दों से बताया कि वह सहमत नियमों पर नहीं चलना चाहते.  इस घटना ने बताया है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चीन को किसी भी समझौते में एक विश्वसनीय साथी नहीं माना जा सकता.

कानूनों पर सवाल

इस रुख के चलते ही छात्र आंदोलन हुए थे. आज की तारीख में हांगकांग में लाखों लोग चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग और कम्युनिस्ट सत्ता के विरोध में प्रदर्शन कर रहे हैं क्योंकि हांगकांग के अधिकारों का बार-बार हनन किया जा रहा है. कानूनी कार्रवाई के लिए अब लोगों को हांगकांग से चीन भेजा जाने लगा है जो पहले केवल एक तय अवधि की जेल की सजा मिलने पर ही संभव था.

नए नियम निश्चित रूप से स्वतंत्र, लोकतांत्रिक दौर का अंत होंगे क्योंकि अब कानून हांगकांग के नियंत्रण में नहीं होंगे. यह हांगकांग में मूल कानून का अंत होगा और डर की स्थिति की शुरुआत होगी जिसे पहले से ही तिब्बत और शिनजियांग प्रांत के लोग भुगत रहे है. एक आंकड़े के मुताबिक तिब्बत और शिनजिंयाग में चीन अब तक करीब 20 लाख से अधिक लोगों को परिवारों से अलग कर रीएजुकेशन कैंपों में भेजा जा चुका है.

दुर्भाग्य से इसी डर को आज हांगकांग झेल रहा है. हांगकांग के लोग बेहद प्रभावशाली ढंग से इसका विरोध कर रहे हैं और अब उन्हें पूरी दुनिया का सहयोग चाहिए. उनका डर सही है और शिनजियांग यह साबित कर चुका है.

'एक देश, दो व्यवस्था' ही वो नारा था जिससे ताइवान को पीपुल रिपब्लिक ऑफ चाइना के साथ लाने के इस्तेमाल किया गया था. लेकिन ताइवान में जो रिपब्लिक ऑफ चाइना है दरअसल वही वैध चीन है, जिसकी सेना को साल 1949 में माओ त्से तुंग के नेतृत्व में विद्रोहियों ने हरा दिया था और ताइवान के द्वीप पर वापस लौटने को मजबूर कर दिया था.

राष्ट्रपित शी जिनपिंग हाल के सालों में ताइवान के साथ भी बेरुखी जताते रहे हैं. इस साल जनवरी में उन्होंने ताइवान द्वीप के खिलाफ युद्ध की धमकी दी थी. जर्मनी जैसे पश्चिमी देशों ने इस पर उन्हें नरम रुख रखने की हिदायत जिसके बाद उनके तेवर जरूर कुछ बदले. 

वहीं दूसरी ओर ताइवान कहता आया है कि उसका चीन के साथ सहयोग करते हुए अपना विशिष्ट चरित्र और पहचान बनाए रखना संभव नहीं है.  ताइवान एक लोकतांत्रिक देश है और अपना संसदीय लोकतंत्र बनाए रखना चाहता है. ताइवान में हुए सनफ्लावर मूवमेंट को चीन के सामने इसलिए सफलता मिली थी क्योंकि ताइवान आजाद है. ताइवान में हुए इस विरोध प्रदर्शन में कोई भी छात्र जेल नहीं गया. अब उनमें से अधिकतर या तो देश की संसद में हैं या या ऑक्सफोर्ड या लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स जैसे विश्वप्रसिद्ध यूनिवर्सिटी में पढ़ रहे हैं.     

आकर्षक नहीं चीन का मॉडल

हांगकांग के लोग कम से कम ताइवान के लोगों की तरह रहना चाहते हैं. इस वक्त हांगकांग सिर्फ वहीं कानूनी दर्जे की मांग कर रहा है जिसका वादा कभी खुद पीपुल रिपब्लिक ऑफ चाइना ने किया था.

वहीं बीजिंग ने इस पर सख्त रुख अपना लिया है और इन विरोध प्रदर्शनों के लिए अमेरिका पर आरोप लगा रहा है. जो जाहिर है गलत है, दुष्प्रचार है. मैंने खुद देखा और कई हांगकांग निवासियों से बात की. वे सिर्फ पश्चिमी लोकतंत्र चाहते हैं. वो लोकतंत्र जो ताइवान, जर्मनी और अमेरिका जैसे मुल्कों में बना हुआ है. अगर चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग स्वयं भी कहे कि चीन का मॉडल दुनिया से अलग है तो भी उसमें हांगकांग के लोगों की कोई रुचि नहीं है. उन्हें वह नहीं चाहिए.  

इसके उलट हांगकांग अब शी जिनपिंग से उक्ता चुका है. "ताउम्र राष्ट्रपति" बन चुके शी जिनपिंग के अपने देश में भी कई दुश्मन है. राष्ट्रपति के तौर तरीके चीन के समझौते मानने की साख पर सवाल उठा रहे हैं जो अर्थव्यवस्था पर भी असर डालेगा. स्वतंत्र देशों के लोगों को अब भी यह उम्मीद बनी हुई है चीन जरूर शी जिनपिंग और उनके तौर तरीकों से निकल पाएगा. 

आलेक्जांडर गोएरलाख ब्रिटेन के कैंब्रिज विश्वविद्यालय के इंस्टीटयूट ऑन रिलीजन एंड इंटरनेशनल स्टडीज में वरिष्ठ रिसर्च एसोसिएट हैं. वे कार्नेगी काउंसिल फॉर एथिक्स इन इंटरनेशनल अफेयर्स के वरिष्ठ फेलो भी हैं. वे हार्वर्ड विश्वविद्यालय से भी कई भूमिकाओं में जुड़े रहे हैं. एक समीक्षक के रूप में वे डॉयचे वेले, न्यू यॉर्क टाइम्स, स्विस दैनिक और बिजनेस पत्रिकाओं के लिए कॉलम भी लिखते हैं.

एए/आरपी

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