चीन ने मंगलवार को हांगकांग के लिए एक नया राष्ट्रीय सुरक्षा कानून पारित कर दिया जिसके बारे में आलोचकों और कई पश्चिमी सरकारों का कहना है कि वो हांगकांग में स्वतंत्रता को खत्म कर देगा और उसकी स्वायत्ता को खोखला कर देगा.
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चीन की रबड़-मोहर वाली संसद ने कानून को सर्वसम्मति से पारित कर दिया. इसे करीब छह सप्ताह पहले सार्वजनिक किया गया था और उसी समय इसने हांगकांग और पूरी दुनिया को चौंका दिया था.
अमेरिका और ब्रिटेन से ले कर यूरोपीय संघ और संयुक्त राष्ट्र तक चिंता व्यक्त कर चुके हैं कि इस कानून का इस्तेमाल चीन द्वारा उठाए गए कदमों की आलोचना को समाप्त करने के लिए हो सकता है. चीन के मुख्य भूभाग में इसी तरह के कानून पहले से हैं जिनके जरिए वहां विरोध को कुचल दिया जाता है.
एक अभूतपूर्व कदम के तहत इस कानून को पारित करने के लिए हांगकांग की विभाजित विधायिका को नजरअंदाज कर दिया गया और इसकी शब्दावली को शहर के 75 लाख नागरिकों से गुप्त रखा गया.
बीजिंग की तरफ झुकाव रखने वाली हांगकांग की सबसे बड़ी पार्टी डीएबी ने कानून का स्वागत किया. बीजिंग की आधिकारिक नीतियों को हांगकांग तक पहुंचाने वाले दो अखबारों वेन वाई पो और ता कुंग पाओ ने भी कानून के पारित होने की पुष्टि की. इसके अलावा हांगकांग के दूसरे मीडिया संगठनों ने भी बीजिंग में अज्ञात सूत्रों का हवाला देते हुए कानून के पारित होने की पुष्टि की.
लेकिन नागरिकों को अभी भी यह मालूम नहीं है कि इस कानून में क्या क्या प्रावधान हैं और इसके तहत क्या क्या गैर-कानूनी घोषित कर दिया गया है. बीजिंग द्वारा नियुक्त की गई हांगकांग की नेता कैरी लैम ने मंगलवार को अपनी साप्ताहिक प्रेस वार्ता में ना तो कानून के पारित होने की पुष्टि की और ना उसके प्रावधानों पर कोई टिप्पणी दी.
विपक्ष के एक सांसद क्लॉडिओ मो ने कहा कि नए कानून में आखिर है क्या यह बात लोगों को इसके लागू होने के बाद पता चलेगी, ये उपहासपूर्ण है. जाने माने लोकतांत्रिक आंदोलनकारी जॉशुआ वॉन्ग ने ट्वीट कर कहा, "जिस हांगकांग को दुनिया आज से पहले जानती थी, उसका अंत हो चुका है. असंतुलित शक्ति और बुरी तरह से परिभाषित कानून शहर को एक रहस्मयी पुलिस राज्य में बदल देंगे." वॉन्ग और तीन और आंदोलनकारियों ने घोषणा की कि लोकतंत्र की तरफ झुकाव रखने वाली जिस डेमोसिस्टो पार्टी की उन्होंने स्थापना की थी, वे उस से इस्तीफा दे रहे हैं.
हांगकांग एक पूर्व ब्रिटिश कॉलोनी है जिसे 1997 में चीन को "एक देश, दो प्रणालियां" नाम से जाने जाने वाले एक समझौते के तहत दिया गया था. इस समझौते के तहत 50 सालों तक शहर को कई चीजों में स्वतंत्रता और न्यायिक और विधायी स्वायत्ता दी गई थी. इस फार्मूला की वजह से ही शहर एक वैश्विक व्यापार केंद्र बन पाया, जिसे एक भरोसेमंद न्यायपालिका और राजनीतिक स्वतंत्रता और मजबूत बनाती थी.
आलोचक लंबे समय से चीन पर आरोप लगाते रहे हैं कि वह इन सब आजादियों को धीरे धीरे खत्म करता रहा है, लेकिन यह नया कानून अभी तक का सबसे विवादस्पाद कदम है.
चीन की आधिकारिक समाचार एजेंसी शिन्हुआ में कुछ दिनों पहले इस कानून का सारांश छपा था और उसमें लिखा था कि पहली बार चीन की सुरक्षा एजेंसियां हांगकांग में अपने दफ्तर खोल पाएंगी. हांगकांग और चीन के मुख्य भू-भाग के बीच जो कानूनी दीवार थी, उसे गिराते हुए बीजिंग ने यह भी कहा है कि कुछ मामलों में उसका अधिकार होगा.
कुछ पश्चिमी सरकारों ने इस कानून के पारित होने पर चीन को संभावित परिणामों की चेतावनी दी है. अमेरिका ने कहा है कि नए कानून का मतलब है कि हांगकांग अब विशेष दर्जे का अधिकारी नहीं है क्योंकि अब उसके पास चीन के मुख्य भू-भाग से पर्याप्त स्वायत्तता नहीं है. एक प्रतीकात्मक कदम उठाते हुए, अमेरिका ने सोमवार को हांगकांग को भेजे जाने वाले संवेदनशील रक्षा निर्यातों को रद्द कर दिया.
हांगकांग में चल रहे विरोध प्रदर्शन दुनियाभर की मीडिया में छाए हुए हैं. हांगकांग में प्रदर्शनकारी चीन से अधिक स्वायत्तता की मांग कर रहे हैं. हांगकांग में हो रहे प्रदर्शनों की पृष्ठभूमि क्या है.
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अंग्रेजों का हांगकांग में आना
हांगकांग पहले एक किसानों और मछुआरों का द्वीप हुआ करता था. यहां पर चीन के क्विंग साम्राज्य का राज चलता था. 1841 में पहली बार ब्रिटिश सेनाओं और क्विंग साम्राज्य के बीच ओपिअम का प्रथम युद्ध हुआ. इसमें ब्रिटिश सेनाओं की जीत हुई और पहली बार हांगकांग के कुछ हिस्से पर ब्रिटेन का शासन शुरू हुआ.
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हांगकांग पर ब्रिटिश शासन
इसके बाद क्विंग साम्राज्य कमजोर होता गया. ब्रिटिश और मजबूत होते गए. क्विंग और ब्रिटिशों के बाद युद्ध और संधियां चलती रहीं. ब्रिटेन ने हांगकांग के अलग-अलग हिस्से जीत लिए. 1898 में हुई एक संधि के बाद वर्तमान हांगकांग को ब्रिटेन को 99 साल के लिए लीज पर दे दिया गया. हांगकांग पूरी तरह ब्रिटेन के अधिकार में आ गया.
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हांगकांग की विकास यात्रा
ब्रिटेन का राज शुरू होने के बाद हांगकांग में विकास के काम भी होने लगे. 1911 में हांगकांग यूनिवर्सिटी, 1924 में एयरपोर्ट बनने के बाद हांगकांग ने तेजी से विकास किया. हांगकांग जल्दी ही दुनिया की तेजी से विकसित हो रही जगहों में शामिल हो गया. 1949 में चीन में नई व्यवस्था लागू हो गई लेकिन हांगकांग पर ब्रिटिश शासन चलता रहा. हांगकांग में ब्रिटेन एक गवर्नर नियुक्त कर शासन चलाता था.
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चीन के हवाले हांगकांग
ब्रिटेन ने हांगकांग को 99 साल की लीज पर लिया था. ये लीज 1997 में खत्म होने वाली थी. ऐसे में 1979 में पहली बार हांगकांग के गवर्नर मूरे मैकलेहोसे ने 1997 के बाद इसके भविष्य के बारे में सवाल उठाया. 1984 में ब्रिटेन और चीन के बीच समझौता हुआ कि 1 जुलाई 1997 को ब्रिटेन हांगकांग को चीन के अधिकार में सौंप देगा. लेकिन हांगकांग को कुछ विशेषाधिकार दिए जाएंगे.
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एक देश, दो व्यवस्था
तत्कालीन चीनी राष्ट्रपति डेंग जियाओपिंग ने हांगकांग को स्वायत्तता देने के लिए एक देश, दो व्यवस्था की मांग स्वीकार की. ये व्यवस्था जुलाई, 2047 तक के लिए मान्य है. हांगकांग बेसिक लॉ नाम से अलग कानून बनाया गया. इसके मुताबिक हांगकांग में स्वतंत्र मीडिया और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार होगा. यहां अलग संसद होगी जिसका निष्पक्ष चुनाव होगा. चीन की साम्यवादी व्यवस्था और नीतियां यहां लागू नहीं होती.
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जिनपिंग का एलान
2017 में हांगकांग की यात्रा पर गए चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने एलान किया कि 50 साल पूरे होने यानी जुलाई 2047 के बाद भी एक देश, दो व्यवस्था का कानून चलता रहेगा. हांगकांग की संसद के पूर्व राष्ट्रपति जास्पर त्सांग योक सिंग का मानना है कि हांगकांग बेसिक लॉ 2047 के बाद भी नहीं बदलेगा और यह व्यवस्था ऐसे ही चलती रहेगी.
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हांगकांग के नागरिकों को भरोसा नहीं
जिनपिंग के खुले एलान के बाद भी हांगकांग के निवासियों को इस बात पर भरोसा नहीं है. उनका मानना है कि 2047 के बाद हांगकांग में भी चीन जैसी व्यवस्था लागू हो जाएगी. ऐसे में उनकी स्वतंत्रता का अधिकार भी छिन जाएगा. हांगकांग में फिलहाल कैरी लाम की सरकार है जो चीन की समर्थक मानी जाती हैं. यही वजह है कि हांगकांग के लोगों का चीन पर शक बढ़ रहा है.
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प्रत्यर्पण कानून का विरोध
लाम ने हांगकांग की संसद में एक बिल पेश किया जिसके मुताबिक हांगकांग के लोग जो चीन में अगर कोई अपराध करेंगे तो उनका चीन को प्रत्यर्पण किया जा सकेगा. तब तक ऐसा नहीं था. इस बिल का हांगकांग में काफी विरोध हुआ. लाम ने इस बिल को ठंडे बस्ते में डाल दिया लेकिन प्रदर्शनकारियों ने इसे पूरी तरह खत्म करने की मांग की.
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प्रदर्शनकारियों पर कार्रवाई से भड़का आक्रोश
प्रत्यर्पण कानून का विरोध कर रहे प्रदर्शनकारियों पर पुलिस ने बल प्रयोग किया. उन पर आंसू गैस के गोले और रबर की गोलियों का प्रयोग किया गया. कुछ लोग इसमें घायल हो गए. इससे प्रदर्शनकारी और भड़क गए. प्रदर्शनकारियों ने लाम के इस्तीफे और बल प्रयोग की जांच को लेकर प्रदर्शन शुरू कर दिया. पुलिस पर आरोप है कि लोगों को घायल करने के लिए बल प्रयोग किया गया.
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चुनाव से लेकर अलगाववाद तक
हांगकांग में कई प्रदर्शनकारी चीन से आजादी की मांग कर रहे हैं. हालांकि वहां की सभी राजनीतिक पार्टियां ऐसे प्रदर्शनकारियों से दूरी बना रही हैं. बड़ी संख्या में प्रदर्शनकारी हांगकांग में निष्पक्ष चुनावों की मांग कर रहे हैं. अब तक हांगकांग के नेता को एक चीन समर्थक समिति और चीन की सरकार द्वारा चुना जाता है. लाम भी इस तरीके से हांगकांग की नेता चुनी गई हैं.
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वर्तमान चुनाव का तरीका चीन के पक्ष में
हांगकांग की संसद में 70 सीटें हैं. इनमें से आधी सीटों पर चुनाव से प्रतिनिधि चुने जाते हैं. बची हुई आधी सीटों को फंक्शनल संसदीय क्षेत्र मानकर उन पर प्रतिनिधि मनोनीत किए जाते हैं. फिलहाल 43 सांसद चीन समर्थक हैं. ऐसे में इनका ही बहुमत है. हांगकांग बेसिक लॉ के मुताबिक संसद और उसका नेता स्वतंत्र रूप से चुना जाना चाहिए लेकिन अभी तक ऐसा नहीं हो सका है.
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चीन से क्या क्या अलग है हांगकांग में
चीन के पास हांगकांग के रक्षा और विदेश मामलों के ऊपर कानून बनाने का अधिकार है. इनके अलावा सभी मुद्दों पर हांगकांग के पास अपने कानून बनाने का अधिकार है. इसलिए हांगकांग को स्पेशल एडमिनिस्ट्रेटिव जोन कहा जाता है. हांगकांग की मुद्रा भी चीन से अलग है. चीन की मुद्रा युआन और हांगकांग की मुद्रा हांगकांग डॉलर है.
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चीन की सेना हांगकांग में नहीं आ सकती
चीन हांगकांग के रक्षा संबंधी मामलों पर कानून बनाने का अधिकार रखता है. हांगकांग बेसिक लॉ के अनुच्छेद 14 के मुताबिक चीन की सेना हांगकांग पर बाहरी हमले की स्थिति में रक्षा करेगी. चीन की सेना हांगकांग के आंतरिक मामलों में दखल नहीं दे सकती है. हाल में चल रहे प्रदर्शनों में चीन की सेना चीन सरकार के आदेश पर कानूनी रूप से दखल नहीं दे सकती है. हालांकि अगर हांगकांग सरकार मदद मांगे तो ऐसा हो सकता है.
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30 जून 2047 के बाद क्या होगा
हांगकांग का समाधान एक राजनीतिक समाधान हो सकता है. लेकिन यह समाधान चीन और हांगकांग दोनों को मान्य हो तभी संभव है. अगर दोनों तरफ के लोग किसी राजनीतिक समाधान पर राजी होते हैं तो 2047 के बाद भी वर्तमान व्यवस्था लागू रह सकती है. लेकिन हांगकांग में मौजूद चीन समर्थित सरकार कोई चीन समर्थक फैसला लेती है तो भविष्य अलग भी हो सकता है.