डब्ल्यूएचओ की चेतावनी के बाद फ्रांस ने कोविड-19 मरीजों के इलाज में हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन के उपयोग पर बैन लगा दिया है, लेकिन भारत में आईसीएमआर ने इसका समर्थन करते हुए कहा कि इसके कोई बड़े साइड इफेक्ट नहीं हैं.
विज्ञापन
फ्रांस की सरकार ने कोविड-19 मरीजों के इलाज में विवादित दवा हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन के उपयोग पर बैन लगा दिया है. प्रतिबंध लगाने से पहले फ्रांस के दो सलाहकार संस्थानों और विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इस दवा को लेकर चेतावनी दी थी कि कई अध्ययनों में इसे संभावित रूप से खतरनाक भी पाया गया है. हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन का इस्तेमाल आर्थेराइटिस और ल्यूपस जैसी बिमारियों के इलाज में किया जाता है.
कोरोना वायरस के फैलते प्रकोप को देखते हुए कई डॉक्टरों ने दवा की सलाह दी इसके बावजूद कि इस दवा के कोरोना वायरस से लड़ने की क्षमता के आकलन के लिए शोध का अभी तक अभाव है. इन डॉक्टरों में संक्रामक बीमारियों के एक फ्रांसीसी विशेषज्ञ भी हैं जिन्होंने पिछले सप्ताह अपनी सरकार को ही ये बता कर चौंका दिया कि वो खुद हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन ले रहे थे, कोविड-19 से सुरक्षात्मक उपाय के रूप में.
लेकिन फ्रांस के नए नियमों के तहत, इस दवा का अब सिर्फ कोरोना वायरस के खिलाफ क्षमता की जांच करने के लिए क्लीनिकल ट्रायल में उपयोग किया जा सकता है. इससे ये स्पष्ट नहीं होता कि यही फ्रांसीसी डॉक्टर दिदिएर राओल मार्सेल में स्थित अपने अस्पताल में इसका इस्तेमाल जारी रख पाएंगे या नहीं. राओल पहले ही लांसेट मेडिकल पत्रिका में पिछले हफ्ते छपी एक अध्ययन की व्यापक रिपोर्ट को खारिज कर चुके हैं. इस अध्ययन में पाया गया था कि हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन या इससे जुड़े हुए कंपाउंड क्लोरोक्विन को देने से कई मरीजों में मृत्यु का खतरा बढ़ गया.
इस दवा का मलेरिया के इलाज में भी उपयोग किया जाता है. इसे फ्रांस की दवा कंपनी सनोफी प्लैकवेनिल ब्रांड नाम से बेचती है. सनोफी ने प्रस्ताव दिया था कि अगर अध्ययनों में साबित हो पाया कि इस दवा का कोविड-19 के खिलाफ सुरक्षित रूप से उपयोग किया जा सकता है तो वो इसके लाखों डोज सरकारों को दे देगी. फ्रांस के इस कदम से हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन पर विवाद और गहरा गया है.
अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप इसका समर्थन कर चुके हैं और यह भी कह चुके हैं कि वो इसका नियमित सेवन भी कर चुके हैं. लेकिन विश्व स्वास्थ्य संगठन इसका समर्थन नहीं कर रहा है और इसके इस्तेमाल के बारे में चेतावनी दे रहा है. वहीं, अमेरिका की तरह भारत ने भी कोरोनावायरस के खिलाफ इसके इस्तेमाल को समर्थन दिया है. भारत के सर्वोच्च बायोमेडिकल शोध संस्थान आईसीएमआर ने इसका समर्थन करते हुए कहा कि इसके कोई बड़े साइड इफेक्ट नहीं हैं.
डॉनल्ड ट्रंप ने भारत से मलेरिया की दवा हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन मंगाई थी. लेकिन क्या यह दवा वाकई कोविड-19 का इलाज कर सकती है?
तस्वीर: Reuters/F. Grulovic
किस दवा की बात हो रही है?
डॉनल्ड ट्रंप भारत से जो दवा मंगाना चाहते हैं उसका नाम है हाइड्रॉक्सी-क्लोरोक्वीन. 1940 के दशक से इस दवा का इस्तेमाल मलेरिया का इलाज करने के लिए होता रहा है.
तस्वीर: AFP/G. Julien
मलेरिया और कोरोना का क्या नाता है?
मलेरिया मच्छर के काटने से होता है और कोविड-19 वायरस से. इसलिए दोनों का एक दूसरे से कोई लेना देना नहीं है. ऐसा नहीं है कि जिन लोगों को मलेरिया का खतरा ज्यादा होता है उन्हें कोविड-19 का खतरा भी होगा.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/P. Pleul
कोरोना के लिए मलेरिया की दवा क्यों?
हाइड्रॉक्सी-क्लोरोक्वीन का इस्तेमाल मलेरिया के अलावा ऑटो-इम्यून बीमारियों को ठीक करने के लिए भी होता रहा है. कोरोना वायरस शरीर के इम्यून सिस्टम पर हमला करता है. इसलिए इस दवा से इम्यून सिस्टम को बचाने की बात हो रही है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/AP/NIAID-RML
क्या अमेरिका के पास नहीं है यह दवा?
ऐसी रिपोर्टें हैं कि अमेरिका में यह दवा पहले से ही भारी मात्रा में मौजूद है लेकिन डॉनल्ड ट्रंप इसे स्टॉक करना चाह रहे हैं. अमेरिका में बिना डॉक्टर की पर्ची के भी यह दवा खरीदी जा सकती है लेकिन इस बीच आम लोग इसे नहीं खरीद पा रहे हैं.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/E. Vucci
डॉक्टरों का क्या कहना है?
खुद अमेरिका में ही डॉक्टरों की राय इस पर बंटी हुई है. ट्रंप के समर्थक इसे आजमाने की पैरवी कर रहे हैं लेकिन अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन की अध्यक्ष का कहना है कि वे इसके इस्तेमाल की सलाह नहीं देंगी.
तस्वीर: Imago Images/Panthermedia/Kzenon
रिस्क क्या है?
इस दवा का साइड इफेक्ट होने पर दिल पर बुरा असर पड़ सकता है. ब्लड प्रेशर कम हो सकता है, मांसपेशियों और नसों को नुकसान हो सकता है. सीने में दर्द के साथ साथ धड़कनें कम हो सकती हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/imageBROKER
क्या पहले कभी इस्तेमाल हुई है?
राजस्थान में डॉक्टरों ने स्वाइन फ्लू, मलेरिया और एचआईवी की दवाओं को मिला कर इस्तेमाल किया और उन्हें सफलता मिली. हालांकि इस मिश्रण के बाकी मरीजों पर इस्तेमाल की बात सामने नहीं आई है.
तस्वीर: picture-alliance/NurPhoto/R. Shukla
कहां से आया दवा के इस्तेमाल का आइडिया?
किसी भी दवा को मरीजों पर तब ही इस्तेमाल किया जाता है जब लैब में उस पर टेस्ट हो चुके हों. इस दवा के मामले में भी ऐसा ही है. कुछ ऐसे टेस्ट हुए जिनके परिणाम आशाजनक दिखाई दिए.
तस्वीर: Reuters/F. Grulovic
रिसर्च क्या कहती है?
एक रिसर्च ने दिखाया कि इस दवा के सेवन से कोरोना वायरस का शरीर की कोशिकाओं में प्रवेश करना मुश्किल हो जाता है. एक अन्य रिसर्च के अनुसार इस दवा लेने से मरीजों को कोई फायदा नहीं हुआ. लेकिन यह रिसर्च सिर्फ 11 लोगों पर की गई.
तस्वीर: picture-alliance/PantherMedia
क्या ज्यादा लोगों पर भी हुई रिसर्च?
चीन में हुई एक रिसर्च ने दिखाया कि 10 अस्पतालों में कुल 100 मरीजों को जब यह दवा दी गई तो उनकी तबियत में सुधार आया. लेकिन तुलना करने के लिए इस रिसर्च में ऐसे मरीजों का कोई आंकड़ा नहीं था जिन्हें यह दवा नहीं दी गई.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/Hao Yuan
ट्रंप ने कौन सी रिसर्च पढ़ी?
डॉनल्ड ट्रंप ने कहा है, "फ्रांस में उन्होंने (रिसर्चरों ने) एक बहुत अच्छा टेस्ट किया है." इसी को आधार बनाते हुए उन्होंने अमेरिका में इसके इस्तेमाल की अनुमति दी है.
तस्वीर: picture-alliance/O. Contreras
कितनी विश्वसनीय है फ्रांस की रिसर्च?
मार्च में जब फ्रांस में कोरोना वायरस फैलने लगा तब वहां कुछ रिसर्चरों ने हाइड्रॉक्सी-क्लोरोक्वीन पर शोध शुरू किया. इस शोध पर अमेरिकी चैनल फॉक्स न्यूज पर हुई चर्चा के तुरंत बाद ट्रंप ने इसकी तारीफ शुरू कर दी.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/empics/C. Ball
WHO का क्या कहना है?
विश्व स्वास्थ्य संगठन इस वक्त कोरोना वायरस पर छह अलग अलग दवाओं को टेस्ट कर रहा है. इस वायरस को ले कर जल्दी प्रतिक्रिया ना देने को लेकर WHO की काफी आलोचना हो रही है.
तस्वीर: Getty Images/AFP
अब आगे क्या?
कोरोना स्थिति को देखते हुए अमेरिका समेत कई देश लैब टेस्टिंग का इंतजार नहीं करना चाहते हैं. ऐसे में बहुत मुमकिन है कि मौजूदा मरीजों पर ही ट्रायल एंड एरर किया जाएगा और शायद उसके बाद ही पता चलेगा कि दवा कारगर है या नहीं.