प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने पिछले साल जून में पर्यावरण संस्था ग्रीनपीस के विदेशी फंड पर रोक लगा दी थी. अब अदालत ने इसे गैरकानूनी ठहराया है.
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सरकार का आरोप था कि गैरसरकारी संस्था ग्रीनपीस अपने अभियानों से विकास योजनाओं को नुकसान पहुंचा रही है और इसके लिए उसे विदेश से पैसा मिल रहा है. सरकार के अनुसार खुफिया एजेंसी की एक रिपोर्ट ग्रीनपीस कार्यकर्ताओं द्वारा किए जा रहे षड़यंत्र की ओर इशारा करती है और संस्था द्वारा बिजली और खनन के क्षेत्रों में की जा रही रोकटोक से देश की अर्थव्यवस्था पर बुरा असर पड़ रहा है. ग्रीनपीस सरकार द्वारा चलाई जा रही विकास योजनाओं में पर्यावरण को हो रहे नुकसान का विरोध कर रही है.
दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश के बाद भारत में ग्रीनपीस के अध्यक्ष समित आइश ने एक बयान में कहा, "हमें खुशी है कि अदालत ने यह बात मानी कि सरकार की मंशा हम पर कीचड़ उछालने की थी और यह सरासर गैरकानूनी तरीका था. अदालत ने एक महत्वपूर्ण संदेश दिया है कि सरकार को नागरिक समाज को उत्पीड़ित करने की अपनी मुहिम पर अब रोक लगानी होगी."
अदालत ने कहा है कि सरकार के पास फंड को रोकने की कोई वाजिब वजह नहीं है और वह फौरन विदेशी फंड को रिलीज करे. ग्रीनपीस ने बताया कि चार महीने पहले ही दिल्ली हाईकोर्ट ने गृहमंत्रालय से फंड पर लगी रोक हटाने को कहा था लेकिन इस पर अमल नहीं किया गया. ग्रीनपीस के करीब तीन लाख डॉलर के विदेशी फंड को फ्रीज किया गया है. बीते साल नवंबर में ग्रीनपीस के प्रमुख कुमी नाइडू ने नरेंद्र मोदी से पाबंदी हटाने के अपील की थी.
इसके अलावा पिछले कुछ महीनों में ग्रीनपीस कार्यकर्ताओं के विदेश जाने पर भी रोक लगाई गयी है. ग्रीनपीस ने इसे सरकार की "गुंडागर्दी" बताया है. हाल ही में ग्रीनपीस की एक वरिष्ठ कार्यकर्ता प्रिया पिल्लै को ब्रिटेन जाने से रोका गया और उनके पासपोर्ट पर "ऑफलोड" की स्टैम्प लगाई गयी. पिल्लै को इस रोक का कारण भी नहीं बताया गया.
ग्रीनपीस का आरोप है कि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार भारत के लिए कई विकास योजनाओं का वायदा कर सरकार बनाने में सफल हुई है लेकिन ये योजनाएं पर्यावरण को भारी नुकसान पहुंचाने वाली हैं और इन्हें केवल पूंजीपतियों के मुनाफे को ध्यान में रख कर बनाया जा रहा है.
आईबी/एमजे (एपी, एएफपी)
मॉडल गांवों के जरिए विकास
आजादी के सात दशक बाद भी भारत के गांवों की तस्वीर बहुत ज्यादा नहीं बदली है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विकास के लिए सांसद आदर्श ग्राम योजना शुरू की है, लेकिन सांसदों द्वारा गांवों को गोद लेने पर भी राजनीति हो रही है.
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मोदी की पसंद
भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश में बदलाव लाने के लिए कई पहलकदमियां की हैं. स्वच्छता अभियान में प्रमुख लोगों को शामिल करने के अलावा उन्होंने सांसदों से अपने अपने चुनाव क्षेत्र में एक गांव को गोद लेने का भी आग्रह किया. प्रधानमंत्री ने वाराणसी के जिस जयापुर गांव को गोद लिया है उसकी 100 फीसदी आबादी हिंदू है.
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विपक्ष का चुनाव
मुलायम सिंह की समाजवादी पार्टी मुसलमानों के प्रतिनिधित्व का दावा करती है. उनके बेटे और यूपी के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव सांसद हैं. प्रधानमंत्री को जवाब देने के लिए उन्होंने अपने संसदीय क्षेत्र इत्र नगरी कन्नौज के सैय्यदपुर सकरी गांव को गोद लिया जहां 85 फीसदी मुस्लिम बसते हैं.
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परंपरा पर जोर
कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने पुश्तैनी चुनाव क्षेत्र रायबरेली में उड़वा को चुना है जबकि उनके बेटे राहुल गांधी ने अमेठी के जगदीशपुर को गोद लिया है. 1857 में भारत की आजादी की पहली लड़ाई में यहां के लोग अंग्रेजों की गोलियों का निशाना बने थे. इन्हें इलाके में शहीदों के गांव के रूप में जाना जाता है.
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सड़कें नहीं
सांसदों द्वारा गांवों को गोद लेने में सबसे ज्यादा सियासत उत्तर प्रदेश में हो रही है. इस प्रांत ने भारत को सबसे ज्यादा प्रधानमंत्री दिए हैं. विकास के साथ गांवों में भी समृद्धि आई है लेकिन संरचनाओं का सही विकास नहीं हुआ है. बच्चे अभी भी पैदल चलकर कई किलोमीटर दूर स्कूलों में जाते हैं.
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नई तकनीक
आधुनिक तकनीक गांवों तक भी पहुंची है. किसानों को खेतों में काम करते समय मोबाइल फोन पर बातें करते देखना बड़ी बात नहीं है. मोबाइल फोन ने उन्हें तत्काल सूचना पाने की नई संभावनाएं भी दी हैं.
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खेतों में मस्ती
कितनी आसान बना दी है मोबाइल ने जिंदगी. खेतों पर फसल कटवाने के बाद फसल की रखवाली करना बहुत बोरियत भरा होता था. अब यह समय मोबाइल या टैबलेट पर गाना सुनते हुए या फिल्म देखते हुए काटा जा सकता है.
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संरचना का अभाव
कभी गांवों में चूल्हा जलाने के लिए लकड़ी या उपले का इस्तेमाल होता था. अब वहां भी गैस खरीदने की हैसियत हो गई है लेकिन उपभोक्ताओं को पहुंचाने के साधन नहीं हैं. लोगों को गाड़ियों या साइकिल पर गैस का सिलेंडर लाना होता है.
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पैसा आया रोड नहीं
किसानों के पास पैसा आया, कारें उनके पहुंच में आईं हैं. लेकिन गांवों में रोड नहीं बने हैं. गांवों का विकास करने के लिए सांसदों को बहुत श्रम करना होगा. गांवों की काया पलटने के लिए उन्हें रहने योग्य भी बनाना होगा.
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गृह मंत्री का गांव
गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने लखनऊ के जिस गांव बेंती को गोद लिया है उसकी करीब ढाई हजार की आबादी पिछड़ों और दलितों की है. बेंती के लोग राजनाथ सिंह के इस फैसले से बेहद खुश हैं. अब वहां जल्द ही बैंक की शाखा खुलेगी.
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पलायन रुके
डिश एंटेना ने टेलिविजन को गांव गांव तक पहुंचा दिया है. उसकी वजह से आधुनिक विकास की खबरें पहुंची हैं और लोगों की उम्मीदें जगी हैं. अब जरूरत है विकास का ढांचा बनाने की ताकि गांव रहने लायक हों और लोग शहरों की ओर न भागें.
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कब पटेंगी दूरियां
राजीव गांधी की बेटी प्रियंका वाड्रा प्रधानमंत्रियों के परिवार में दिल्ली में पैदा हुई और वहीं रहती भी हैं. गांवों को कर्मभूमि बताने वाले उनके जैसे नेताओं को सोचना होगा कि गांवों का विकास कैसे हो. ये घर क्या हमेशा फूस के ही रहेंगे.