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समाज

हाथरस मामले में न्याय की उम्मीद

चारु कार्तिकेय
१४ अक्टूबर २०२०

उत्तर प्रदेश के हाथरस में 14 सितंबर को एक दलित महिला के साथ सामूहिक बलात्कार और हत्या के मामले में कानूनी कार्रवाई को इलाहाबाद हाई कोर्ट में चल रही सुनवाई से बल मिला है.

Indien Uttar PRadesh | Proteste nach Vergewaltigung
तस्वीर: Jit Chattopadhyay/Pacific Press/picture-alliance

मंगलवार को सुनवाई के बारे में विस्तृत जानकारी सामने आई जिसमें स्पष्ट नजर आ रहा है कि अदालत ने पूरे मामले में पुलिस और प्रशासन की भूमिका पर गंभीर सवाल उठाए हैं. मामले की जांच अब सीबीआई कर रही है लेकिन उसके पहले ही अदालत ने स्वतः ही मामले को संज्ञान में ले लिया था. सबसे पहले तो अदालत ने उत्तर प्रदेश पुलिस को बलात्कार की संभावना को नकारने के लिए फटकारा.

पीड़िता ने मरने से पहले अपने बयान में चार लोगों पर उसके साथ सामूहिक बलात्कार और मारपीट का आरोप लगाया था, लेकिन उत्तर प्रदेश पुलिस ने कहा था कि किसी भी मेडिकल रिपोर्ट में वीर्य के ना मिलने से बलात्कार की पुष्टि नहीं हुई है. मीडिया में आई खबरों के अनुसार इलाहाबाद हाई कोर्ट ने पुलिस पर बरसते हुए कहा, "आपको कैसे मालूम कि पीड़िता का बलात्कार नहीं हुआ? क्या जांच पूरी हो गई है? कृपया 2013 में बने बलात्कार के नए कानून को पढ़ें."

2013 में कानून में संशोधन करके बलात्कार के पुष्टि के लिए वीर्य के मिलने की अनिवार्यता को समाप्त कर दिया गया था. यह भी प्रावधान जोड़ा गया था कि बलात्कार का आरोप दर्ज करने के लिए पीड़िता का बयान काफी है और उसे झूठा साबित करने की जिम्मेदारी आरोपी और बचाव पक्ष पर होगी. हाई कोर्ट ने पुलिस को पीड़िता के शव का आधी रात को जबरन उसके परिवार की अनुमति के बिना दाह संस्कार करने के लिए भी फटकारा.

10 अक्टूबर को नई दिल्ली में आंबेडकर भवन के बाहर हाथरस मामले में उत्तर प्रदेश सरकार के रवैय्ये के खिलाफ प्रदर्शन का दृश्य.तस्वीर: Mayank Makhija/NurPhoto/picture-alliance

कोर्ट ने कहा कि पीड़िता के परिवार की धार्मिक मान्यताओं के अनुसार उसका दाह संस्कार पीड़िता और उसके परिवार का अधिकार था और पुलिस द्वारा जबरदस्ती किए जाने से उनके मानवाधिकारों का उल्लंघन हुआ है. अदालत ने आदेश दिया कि इसके लिए पुलिस और प्रशासन की जवाबदेही तय की जानी चाहिए. अदालत ने यह भी कहा कि जैसे आरोपियों का जुर्म साबित होने से पहले उन्हें दोषी नहीं माना जा सकता, वैसे ही पीड़िता के चरित्र का हनन करने का भी किसी को अधिकार नहीं है.

पूरे मामले में जिला मजिस्ट्रेट (डीएम) की जवाबदेही पर भी अदालत ने प्रश्न चिन्ह खड़े किए और उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा सिर्फ जिला एसपी के खिलाफ कार्रवाई करने की आलोचना की. अदालत ने राज्य सरकार को डीएम के खिलाफ भी कार्रवाई करने और पीड़िता के परिवार को पूरी सुरक्षा देने का आदेश दिया.

इलाहाबाद हाई कोर्ट से फटकार पड़ने के बाद, बुधवार को उत्तर प्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से अपील की कि सर्वोच्च अदालत खुद सीबीआई की जांच की निगरानी करे. सरकार ने अदालत से यह भी अपील की कि वो सीबीआई को हर पंद्रह दिनों में जांच की स्थिति पर एक रिपोर्ट देने का भी निर्देश दे. इस अपील पर सुप्रीम कोर्ट में गुरूवार को सुनवाई होगी.

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