उत्तर प्रदेश के हाथरस में 19 वर्षीय दलित महिला के कथित बलात्कार और हत्या के मामले में प्रशासन द्वारा राजनीतिक दलों, एक्टिविस्टों और पत्रकारों के खिलाफ कठोर कार्रवाई लगातार बढ़ती जा रही है.
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मंगलवार सुबह हाथरस जा रहे एक पत्रकार और तीन एक्टिविस्टों को उत्तर प्रदेश पुलिस ने मथुरा में गिरफ्तार कर लिया. पुलिस का दावा है कि चारों पॉप्युलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) नामक संस्था के सदस्य हैं. पुलिस के अनुसार चारों के नाम हैं अतीक-उर-रहमान, सिद्दीक कप्पन, मसूद अहमद और आलम और चारों के मोबाइल, लैपटॉप और कुछ साहित्य को जब्त कर लिया गया है.
मीडिया में आई खबरों के अनुसार केरल यूनियन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स ने कहा है कि इनमें से सिद्दीक कप्पन पत्रकार हैं और संगठन की दिल्ली इकाई के सचिव भी हैं. संगठन के अनुसार कप्पन सोमवार को हाथरस के लिए निकले थे लेकिन उसके बाद उनसे अभी तक किसी का संपर्क नहीं हो पाया है. यूनियन ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को एक पत्र लिख कर कप्पन को रिहा करने की मांग की है. कप्पन के पीएफआई के सदस्य होने का सार्वजनिक रूप से कोई प्रमाण उपलब्ध नहीं है.
आदित्यनाथ पहले से पीएफआई के खिलाफ रहे हैं. उन्होंने संस्था को राज्य में नागरिकता कानून के खिलाफ पिछले साल शुरू हुए विरोध प्रदर्शनों का जिम्मेदार ठहराया था और उस पर प्रतिबंध लगाने की मांग की थी.
इस बीच हाथरस मामले में उत्तर प्रदेश पुलिस ने कम से का 19 एफआईआर दर्ज की हैं और मुख्य एफआईआर में करीब 400 लोगों के खिलाफ राजद्रोह, षडयंत्र, राज्य में शांति भंग करने का प्रयास और धार्मिक नफरत को बढ़ावा देने जैसे आरोप लगाए हैं. कुछ मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक एक एफआईआर में यह आरोप भी लगाया गया है कि "उपद्रवी तत्वों ने पीड़िता के परिवार को सरकार के खिलाफ झूठ बोलने के लिए 50 लाख रुपयों की पेशकश की थी."
कुछ खबरों में यह भी बताया गया है कि एक एफआईआर में पुलिस ने यह भी कहा है कि हाथरस में विरोध प्रदर्शनों के जरिए राज्य में जाती के नाम पर दंगे भड़काने की एक "अंतरराष्ट्रीय साजिश" रची गई थी. इस बीच पूरे मामले पर सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई के दौरान उत्तर प्रदेश सरकार ने अदालत में कहा है कि पीड़िता के शव का रात को दाह संस्कार इसलिए किया गया क्योंकि सुबह बड़े पैमाने पर हिंसा होने की संभावना थी.
सरकार के अनुसार उसके पास गुप्त सूचना थी की अगली सुबह पीड़िता और आरोपियों के समुदाय के लाखों लोग, मीडिया और राजनीतिक दलों के नेता जमा होने वाले थे, जिसके बाद हिंसा भी हो सकती थी. सरकार ने यह भी कहा कि राज्य में बाबरी मस्जिद को गिराए जाने के मुकदमे में फैसला सुनाए जाने के संबंध में भी चेतावनी जारी थी.
एनसीआरबी के ताजा आंकड़ों के मुताबिक 2019 में भारत में महिलाओं के प्रति अपराध 7.3 प्रतिशत बढ़ गए. करीब 31 प्रतिशत मामलों के लिए महिला के किसी ना किसी जानने वाले को ही जिम्मेदार पाया गया. और क्या कहते हैं आंकड़े?
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बिगड़ते हालात
2018 के मुकाबले 2019 में महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराध में बढ़ोतरी दर्ज की गई. 2018 में महिलाओं के खिलाफ हुए 3,78,236 अपराधों के मुकाबले 2019 में 4,05,861 अपराध दर्ज किए गए. प्रति एक लाख महिलाओं पर अपराध की दर 62.14 दर्ज की गई, जो 2018 में 58.8 प्रतिशत थी. सबसे ज्यादा मामले उत्तर प्रदेश में दर्ज किए गए (59,853) और असम में प्रति एक लाख महिलाओं पर सबसे ज्यादा अपराध की दर दर्ज की गई (177.8).
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प्रतिदिन 87 बलात्कार
2019 में भारत में बलात्कार के कुल 31,755 मामले दर्ज किए गए, यानी औसतन प्रतिदिन 87 मामले. सबसे ज्यादा मामले राजस्थान में दर्ज किए गए (5,997). उत्तर प्रदेश में 3,065 मामले और मध्य प्रदेश में 2,485 मामले दर्ज किए गए. प्रति एक लाख आबादी के हिसाब से बलात्कार के मामलों की दर में भी राजस्थान सबसे आगे है (15.9 प्रतिशत), लेकिन उसके बाद स्थान है केरल (11.1) और हरियाणा का (10.9).
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परिचित था हमलावर
महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों में 30.9 प्रतिशत मामलों के आरोपी पति या उसके रिश्तेदार जिम्मेदार पाए गए. कुल मामलों में 21.8 प्रतिशत मामले महिला की मर्यादा को भंग करने के इरादे से किए गए हमले के, 17.9 प्रतिशत अपहरण के और 7.9 प्रतिशत बलात्कार के थे.
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दहेज संबंधी अपराध भी जारी
आंकड़ों में स्पष्ट नजर आ रहा है कि देश में दहेज से संबंधित अपराध अभी भी हो रहे हैं. उत्तर प्रदेश में दहेज की वजह से उत्पीड़न के कुल 2,410 मामले दर्ज किए गए और बिहार में 1,210.
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तेजाब से हमले
2019 में पूरे देश में कुल 150 एसिड अटैक के मामले दर्ज किए, जिनमें से 42 उत्तर प्रदेश में दर्ज किए गए और 36 पश्चिम बंगाल में.
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दलित महिलाओं का बलात्कार
राजस्थान में सबसे ज्यादा दलित महिलाओं के साथ बलात्कार के मामले दर्ज किए गए (554), लेकिन उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में भी स्थिति ज्यादा अलग नहीं है. उत्तर प्रदेश में 537 मामले सामने आए और मध्य प्रदेश में 510. प्रति एक लाख आबादी पर दलित महिलाओं के साथ बलात्कार के मामलों की दर में 4.6 प्रतिशत के साथ केरल सबसे आगे है. उसके बाद 4.5 प्रतिशत के साथ मध्य प्रदेश और राजस्थान का स्थान है.