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समाज

हाथरस में प्रशासन की कठोर कार्रवाई

६ अक्टूबर २०२०

उत्तर प्रदेश के हाथरस में 19 वर्षीय दलित महिला के कथित बलात्कार और हत्या के मामले में प्रशासन द्वारा राजनीतिक दलों, एक्टिविस्टों और पत्रकारों के खिलाफ कठोर कार्रवाई लगातार बढ़ती जा रही है.

Indien Neu-Delhi | Proteste nach Gruppenvergewaltigung
तस्वीर: Mayank Makhija/NurPhoto/picture-alliance

मंगलवार सुबह हाथरस जा रहे एक पत्रकार और तीन एक्टिविस्टों को उत्तर प्रदेश पुलिस ने मथुरा में गिरफ्तार कर लिया. पुलिस का दावा है कि चारों पॉप्युलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) नामक संस्था के सदस्य हैं. पुलिस के अनुसार चारों के नाम हैं अतीक-उर-रहमान, सिद्दीक कप्पन, मसूद अहमद और आलम और चारों के मोबाइल, लैपटॉप और कुछ साहित्य को जब्त कर लिया गया है.

मीडिया में आई खबरों के अनुसार केरल यूनियन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स ने कहा है कि इनमें से सिद्दीक कप्पन पत्रकार हैं और संगठन की दिल्ली इकाई के सचिव भी हैं. संगठन के अनुसार कप्पन सोमवार को हाथरस के लिए निकले थे लेकिन उसके बाद उनसे अभी तक किसी का संपर्क नहीं हो पाया है. यूनियन ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को एक पत्र लिख कर कप्पन को रिहा करने की मांग की है. कप्पन के पीएफआई के सदस्य होने का सार्वजनिक रूप से कोई प्रमाण उपलब्ध नहीं है.

आदित्यनाथ पहले से पीएफआई के खिलाफ रहे हैं. उन्होंने संस्था को राज्य में नागरिकता कानून के खिलाफ पिछले साल शुरू हुए विरोध प्रदर्शनों का जिम्मेदार ठहराया था और उस पर प्रतिबंध लगाने की मांग की थी.

एफआईआर में पुलिस ने कहा है कि हाथरस में विरोध प्रदर्शनों के जरिए राज्य में जाती के नाम पर दंगे भड़काने की एक "अंतरराष्ट्रीय साजिश" रची गई थी.तस्वीर: Jit Chattopadhyay/Pacific Press/picture-alliance

इस बीच हाथरस मामले में उत्तर प्रदेश पुलिस ने कम से का 19 एफआईआर दर्ज की हैं और मुख्य एफआईआर में करीब 400 लोगों के खिलाफ राजद्रोह, षडयंत्र, राज्य में शांति भंग करने का प्रयास और धार्मिक नफरत को बढ़ावा देने जैसे आरोप लगाए हैं. कुछ मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक एक एफआईआर में यह आरोप भी लगाया गया है कि "उपद्रवी तत्वों ने पीड़िता के परिवार को सरकार के खिलाफ झूठ बोलने के लिए 50 लाख रुपयों की पेशकश की थी."

कुछ खबरों में यह भी बताया गया है कि एक एफआईआर में पुलिस ने यह भी कहा है कि हाथरस में विरोध प्रदर्शनों के जरिए राज्य में जाती के नाम पर दंगे भड़काने की एक "अंतरराष्ट्रीय साजिश" रची गई थी. इस बीच पूरे मामले पर सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई के दौरान उत्तर प्रदेश सरकार ने अदालत में कहा है कि पीड़िता के शव का रात को दाह संस्कार इसलिए किया गया क्योंकि सुबह बड़े पैमाने पर हिंसा होने की संभावना थी.

सरकार के अनुसार उसके पास गुप्त सूचना थी की अगली सुबह पीड़िता और आरोपियों के समुदाय के लाखों लोग, मीडिया और राजनीतिक दलों के नेता जमा होने वाले थे, जिसके बाद हिंसा भी हो सकती थी. सरकार ने यह भी कहा कि राज्य में बाबरी मस्जिद को गिराए जाने के मुकदमे में फैसला सुनाए जाने के संबंध में भी चेतावनी जारी थी. 

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