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हाथ के हुनर से फैक्ट्रियों को टक्कर

२२ मार्च २०१३

अकसर कहा जाता है कि उद्योग छोटे कारोबारियों को तबाह कर देते हैं. लेकिन अगर हाथ में हुनर हो तो कुछ लोग बड़े उद्योगों को भी कड़ी टक्कर दे सकते हैं. जर्मनी की फैक्ट्रियों पर छोटी बेकरियां भारी पड़ रही हैं.

तस्वीर: Moreno Novello - Fotolia.com

यूरोप में हर साल लगभग सवा तीन करोड़ टन ब्रेड की खपत होती है. घंटे भर में हजारों ब्रेड बनाने वाली बड़ी बड़ी कंपनियां हैं, लेकिन इसके बावजूद यूरोपीय संघ के बाजार में छोटी बेकरियों और बड़ी कंपनियों की हिस्सेदारी बराबर है. हाथ के हुनर की वजह से छोटी बेकरियां बड़ी कंपनियों के सामने डटी हुई हैं.

फैक्ट्री बनाम बेकरी

जर्मनी में लोग सुबह बेकरी में जा कर ताजा ब्रेड खरीदना पसंद करते हैं. यही वजह है कि छोटी बेकरी चलाने वाले बेकर आधी रात में ही खमीर चढ़े आटे को गूंथने का काम शुरू कर देते हैं. बढ़िया ब्रेड बनाने के लिए अच्छी गुंथाई जरूरी है. पिसे अनाज से स्वादिष्ट ब्रेड बनाने का हुनर इन बेकरों को विरासत में मिलता है. बेकरी का काम अधिकतर पारिवारिक उद्योग की तरह है. लोग पीढ़ी दर पीढ़ी इसे करते आए हैं. जर्मनी में अपनी छोटी से बेकरी चलाने वाले मास्टर बेकर फ्रीडबेर्ट एंग्लेर्ट कहते हैं कि वह अपनी बनाई ब्रेड में जो सबसे महंगी चीज मिलाते हैं वह है समय.

जर्मनी में बनती हैं 300 से ज्यादा किस्म की ब्रेड.तस्वीर: Fotolia/Ludwig Berchtold

हाथ से गुंथे मिश्रण को दो घंटे के लिए छोड़ दिया जाता है और उसके बाद उसे भट्टी में पकाया जाता है.वहीं दूसरी ओर औद्योगिक पैमाने पर ब्रेड बनाने वाले प्लांट में गुथाईं से लेकर बड़ी लोई बनाने तक का ज्यादातर काम मशीनें करती हैं. जर्मनी की एक जानी मानी ब्रेड कंपनी हारी ब्रोट की फैक्ट्री में हर घंटे 2,000 लोइयां तैयार की जाती हैं. जर्मन भाषा में ब्रोट यानी ब्रेड. बेकरी मैनेजर मथियास मुलर का दावा है कि फैक्ट्री में बनी ब्रेड की क्वालिटी भी करीब छोटी बेकरी जैसी ही होती है.

साख का सवाल

क्रस्टी ब्रेड इस कंपनी का सबसे लोकप्रिय उत्पाद है. सिर्फ बर्लिन के प्लांट में ही हर दिन 40,000 क्रस्टी ब्रेड बनती हैं. कंपनी के पास सैकड़ों ब्रेड एक साथ सेंकने के लिए विशाल भट्टी है. आधुनिक प्लांट में हर सेकेंड ब्रेड की बारीकी से जांच की जाती है. जरा सी कोताही कंपनी की इज्जत को मिट्टी में मिला सकती है. हारी ब्रोट के मथियास मुलर मानते हैं कि गड़बड़ हो सकती है, "सैद्धांतिक रूप से देखा जाए तो ब्रेड में हमारी मशीन का कोई पेंच हो सकता है, कच्चे माल में खराबी हो सकती है."  इसीलिए सेंसर और डिटेक्टर से ब्रेड की जांच की जाती है. मेटल डिटेक्टर इन्हें पकड़ लेता है और ब्रेड को बाहर फेंक देता है.

मशीन में बनी ब्रेड की जगह लोग बेकरी की ताजा ब्रेड खाना पसंद करते हैं.तस्वीर: Fotolia/eyewave

बाजार में कंपनी के ब्रेड के एक लोफ की कीमत करीब दो यूरो यानी 140 रुपये है. जबकि छोटी बेकरी में बनी ब्रेड की कीमत तीन से पांच यूरो के बीच है. बड़े पैमाने पर उत्पादन की वजह से फैक्ट्री की ब्रेड सस्ती होती है. वहीं छोटी बेकरी का कारोबार दाम के बजाए बढ़िया ब्रेड खरीदने वाले ग्राहकों पर निर्भर है. छोटी बेकरी में जाने वाले खरीदार मानते हैं कि हाथ का काम हमेशा बेहतर होता है. यही वजह है कि कड़ी प्रतिस्पर्धा के बीच छोटी बेकरियां आज भी जर्मनी में मजबूती से टिकी हुई हैं.

रिपोर्ट: ओंकार सिंह जनौटी

संपादन: ईशा भाटिया

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