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हिंदू के घर में बनी है मस्जिद

२ फ़रवरी २०११

पहली नजर में ही लगता है कि यह मस्जिद कुछ खास है. बाद में इसकी पुष्टि भी हो जाती है. जी हां, जिस मकान में यह मस्जिद बनी है और जहां लोग रोज बिना नागा नमाज अता करते हैं, वह एक हिंदू परिवार का है.

तस्वीर: DW

सांप्रदायिक तनाव के मौजूदा दौर में यह बात अजीब लग सकती है. लेकिन यह पूरी तरह सच है. पश्चिम बंगाल के बारासात के बसु परिवार के मकान में बनी इस मस्जिद की देखभाल बीते लगभग 50 वर्षों से इस परिवार के लोग ही करते हैं. इस मस्जिद और बसु परिवार के प्रति इलाके के मुसलमानों में काफी आदर है. यह परिवार इतने लंबे अरसे से उनके इबादतगाह का रखरखाव जो कर रहा है.

हिंदू मकान में मस्जिद

बसु परिवार के लोग इस मस्जिद की साफ-सफाई तो करते ही हैं, अल्पसंख्यक समुदाय के त्योहारों के मौंके पर इसका रंग-रोगन भी कराते हैं. देश के विभाजन के समय हजारों दूसरे परिवारों की तरह बसु परिवार भी पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में खुलना से यहां आ गया था. दोनों देशों के समझौते के तहत संपत्ति की अदला-बदली के तहत बारासात के नवपल्ली में इस परिवार को इस मकान के साथ 16 बीघे जमीन मिली थी. यह संपत्ति शेख वाजुद्दीन मौल्ला की थी. भारत में आने के बाद बसु परिवार ने देखा कि मकान में एक मस्जिद भी बनी है. बाद में कई अल्पसंख्यक संगठनों ने इस मस्जिद का जिम्मा लेना चाहा. लेकिन बसु परिवार ने इसे अपने कब्जे में ही रखा.

दीपक कहते हैं कभी मस्जिद को ढहाने की इच्छा नहीं हुईतस्वीर: DW

इस परिवार के दीपक बसु कहते हैं कि इस मस्जिद को ढहाने की इच्छा ही नहीं हुई. अब इस मस्जिद की देखभाल दीपक के जिम्मे ही है. इलाके में रसोई गैस और मिट्टी के तेल के कारोबार से जुड़े दीपक कहते हैं, "मस्जिद में नियमित तौर पर नमाज पढ़ी जाती है. यहां एक मौलवी भी हैं."

दीपक पुराने दिनों को याद करते हुए बताते हैं, "मेरे पिता नीरद कृष्ण बसु चटगांव बंदरगाह में अधिकारी थे. हमारा पुश्तैनी मकान खुलना जिले के फूलतला गांव में था. पिता 1965 में अपने दोनों पुत्रों-अरुण और दीपक के साथ भारत चले आए. खुलना की 16 बीघे जमीन के बदले भारत सरकार ने उनको यहां उतनी जमीन दी. यहां हमने देखा कि एक मस्जिद भी बनी है. लेकिन उसे तोड़ने की बजाय हमने उसकी मरम्मत और रखरखाव का फैसला किया."

मिसाल है यह मस्जिद

अब बसु परिवार की यह मस्जिद इलाके में सांप्रदायिक सद्भाव की मिसाल बन गई है. मस्जिद के मौलवी अख्तर अली भी इस बात की पुष्टि करते हैं. अली कहते हैं, "इसका श्रेय दीपक को है. वह मस्जिद के पूरे साल का खर्च उठाते हैं. बसु परिवार हमारे लिए एक आदर्श है."

दीपक बताते हैं कि हिंदू होने के कारण वह नमाज तो नहीं पढ़ते. लेकिन इस मस्जिद को अपने हाथों से साफ करते हैं और ईद के दौरान रोज इफ्तार पार्टी भी आयोजित करते हैं. वह कहते हैं, "खुलना के अपने गांव में हमने सांप्रदायिक सद्बाव की यही तस्वीर देखी है. जब तक मैं हूं, इस मस्जिद में नमाज पढ़ने के लिए आने वालों को कोई दिक्कत नहीं होगी."

सांप्रदायिक सद्भाव की अनोखी मिसाल है यह मस्जिदतस्वीर: DW

अब इलाके में जमीन की कीमत आसमान छू रही है. लेकिन दीपक इस मस्जिद की जमीन को किसी भी कीमत पर बेचने को तैयार नहीं हैं. वह कहते हैं, "हम तो इसे दोमंजिला बनाने की सोच रहे हैं ताकि आने वाली पीढ़ियों को भी कोई दिक्कत नहीं हो."

रिपोर्टः प्रभाकर,कोलकाता

संपादनः ए कुमार

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