कल्याणकारी नीतियों के लिए मशहूर कई यूरोपीय देश अब महिलाओं की सुरक्षा के मामले में काफी पीछे नजर आ रहे हैं. ओएससीई ने पूर्वी यूरोपीय देशों में महिलाओं की खराब स्थिति को बयान करती एक चौंकाने वाली रिपोर्ट पेश की है.
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ऑर्गनाइजेशन फॉर सिक्योरिटी एंड कोऑपरेशन इन यूरोप (ओएससीई) ने महिलाओं की स्थिति से जुड़ी एक चौंकाने वाली रिपोर्ट छापी है. इस रिपोर्ट के मुताबिक पूर्वी यूरोपीय देशों में महिलाओं के खिलाफ होने वाली हिंसा उभार पर है. सर्वे में 18-74 साल की उम्र वाली तकरीबन 15 हजार महिलाओं को शामिल किया गया. जिनका संबंध अल्बानिया, बोस्निया-हर्जगोविना, सर्बिया, यूक्रेन, कोसोवो, उत्तरी मेसेडोनिया, मोल्डोवा, मोंटेनेग्रो जैसे पूर्वी यूरोपीय देशों से था.
ओएससीई दुनिया का सबसे बड़ा क्षेत्रीय सुरक्षा संगठन है, जिसमें उत्तरी अमेरिका, यूरोप और एशिया के करीब 57 देश शामिल हैं. ओएससीई का मकसद दुनिया में लोकतांत्रिक व्यवस्था समेत शांति और स्थायित्व को प्रोत्साहन देना है.
क्या निकले नतीजे
सर्वे में शामिल तकरीबन 70 महिलाओं का कहना था कि वे 15 साल की उम्र से ही किसी न किसी प्रकार की हिंसा को झेल रही हैं. वहीं 30 फीसदी ने कहा कि उनके साथ ऐसी घटनाएं पिछले एक साल के दौरान हुईं.
23 फीसदी महिलाओं ने बताया कि उन्हें उनके किसी करीबी या पार्टनर ने ही शारीरिक और यौन हिंसा का शिकार बनाया है. वहीं 18 फीसदी महिलाओं के साथ ऐसा सलूक करने वाले उनके साथी नहीं थे.
31 फीसदी महिलाओं के साथ शारीरिक हिंसा करने वाले लोग कहीं न कहीं उनके परिवार से जुड़े थे. वहीं मनोवैज्ञानिक हिंसा, हिंसा का सबसे आम रूप हैं जिसे 60 फीसदी महिलाओं ने हमने पार्टनर के चलते झेला है.
रिपोर्ट कहती है कि हर महिला को किसी न किसी स्थिति में हिंसा का शिकार होना पड़ा है. लेकिन ऐसी महिलाएं जो गरीब तबके से आती हैं, आर्थिक रूप से कमजोर हैं और जिनके बच्चे हैं उनके साथ हिंसा का जोखिम काफी अधिक है.
ओएससीई ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि महिलाओं और लड़िकयों के साथ होने वाली हिंसा मानवाधिकारों का हनन है. ओएससीई ने इसे महिलाओं और लड़कियों की सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा करार दिया है.
समाज का रुख
समाज का महिलाओं के साथ कैसा रुख है, इस पर भी विस्तार से चर्चा की गई है. जिन देशों में यह सर्वे किया गया वहां की सोसाइटी के नियमों और बर्ताव को समझने की भी कोशिश की गई. इस विषय पर कहा गया है कि, "महिलाओं की कमजोर स्थिति, आज्ञा पालन की आदत और महिलाओं और लड़कियों के साथ होने वाली हिंसा इस क्षेत्र में अब भी व्याप्त हैं."
महिलाओं के खिलाफ हिंसा के मामले
बलात्कार और हत्या जैसे मामले हर बार इन मुद्दों पर नई बहस खड़ी करते हैं. इस मामले में आंकड़े भी कहते हैं कि स्थिति बहुत ही भयानक है. पढ़िए कि हाल के सालों में महिलाओं के खिलाफ हिंसा के कितने मामले दर्ज किये गये हैं.
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सामाजिक दबाव
2015 में भारत में महिलाओं से बलात्कार के 34651 मामले सामने आए थे. लेकिन ऐसे मामलों की संख्या भी कम नहीं जिनमें समाजिक दबाव के चलते बलात्कार के मामले पुलिस में दर्ज नहीं कराये जाते.
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बलात्कार के प्रयास
इसी तरह 2015 में बलात्कार के प्रयास के 4434 मामले दर्ज किये गये थे. 2014 में इस तरह के 4232 मामले सामने आये थे. 2014 की तुलना में इन आंकड़ों में बढ़ोत्तरी दर्ज की गयी.
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अपहरण
अपहरण के मामलों में 2014 की तुलना में 2015 में 3.4 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. 2015 में महिलाओं के अपहरण के 59277 मामले दर्ज किये गये. वहीं 2014 में यह आंकड़ा 57311 मामलों का था.
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दहेज
दहेज के चलते हुई मौतों का आंकड़ा 2015 में 7,634 था. 2014 में दहेज के चलते मौतों के 8455 मामले दर्ज हुए थे. इस कमी के बावजूद हर साल महिलाओं के खिलाफ होने वाली हिंसा के कुल आंकड़े बढ़ ही रहे हैं.
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छेड़खानी
छेड़खानी के मामलों का आंकड़ा काफी बड़ा है. साल 2015 में महिलाओं से छेड़खानी के 82,422 मामले दर्ज हुए. इसमें तेज वृद्धि हुई है. यह आंकड़ा 2011 में 42,968 मामलों का था.
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घरेलू हिंसा
सबसे ज्यादा मामले घरेलू हिंसा के दर्ज हुए. इस मामले में 2015 में 1,13,403 मामले दर्ज किये गये. यही आंकड़ा 2011 में 99,135 का रहा. रिपोर्ट के अनुसार घरेलू हिंसा के मामले हर साल बढ़ रहे हैं.
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हिंसा के मामले
गृह मंत्रालय की 2016-17 की रिपोर्ट के अनुसार साल 2016 में महिलाओं के खिलाफ हिंसा के कुल 3,27,394 मामले दर्ज किए गए थे. जबकि 2011 में इनकी तादाद 2,28,650 थी.
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वैवाहिक बलात्कार
महिला संगठन वैवाहिक बलात्कार को अपराध बनाना चाहती हैं, जबकि भारत सरकार का कहना है कि ऐसा करने से महिलाओं को पतियों को तंग करने का हथियार मिल जायेगा.
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औसतन दस में से छह महिलाएं मानती हैं कि महिलाओं के साथ होने वाली हिंसा एक सामान्य बात है. रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि कई महिलाएं तो इसलिए भी हिंसा संबंधी रिपोर्ट नहीं करती क्योंकि उन्हें प्रशासन पर भरोसा नहीं है. साथ ही उन्हें लगता है कि ऐसा करने से भी कुछ नहीं बदलेगा. संस्था का कहना है कि इस सर्वे का मकसद डाटा से जुड़ी कमी की भरपाई करना है. दरअसल 2014 में यूरोपीय संघ के देश में बीच हुए सर्वे में इन देशों के आंकड़ें नहीं थे.
भविष्य के लक्ष्य
ओएससीई के सेक्रेटरी जनरल थोमास ग्रेमिंगर ने इस रिपोर्ट को महिलाओं पर होने वाली हिंसा को खत्म करने की दिशा में एक अहम कदम बताया है. उन्होंने कहा, "हमें इन नतीजों का इस्तेमाल अपनी नीतियों के लक्ष्य हासिल करने के लिए करना चाहिए. मसलन महिलाओं के साथ हिंसा के मामलों को घटाना, हिंसा से बचे लोगों को सही सुविधाएं देना साथ ही महिलाओं और लड़कियों के लिए पूरी तरह से सुरक्षा को बढ़ाना." ओएससीई के इस सर्वे में कई पार्टनर भी थे जिनमें यूरोपियन कमीशन समेत संयुक्त राष्ट्र की संस्थाएं भी शामिल हैं.
औरतों के लिए खतरनाक भारतीय शहर
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के 2015 के आंकड़े दिखाते हैं कि किस शहर में महिलाओं के खिलाफ सबसे ज्यादा अपराध हुए. ये छह शहर सबसे ज्यादा खतरनाक साबित हुए.
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नंबर 6: दुर्ग-भिलाई, छत्तीसगढ़
दुर्ग और भिलाई दोनों नगरों को मिलाकर आंकड़े खतरनाक रहे. 10 लाख लोगों के इन शहरों में क्राइम रेट 16.4 रहा और रेप की दर रही 7.9.
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नंबर 5: नागपुर, महाराष्ट्र
राज्य की दूसरी राजधानी नागपुर में 2015 में रेप के 166 मामले दर्ज हुए और हिंसा 392. यानी रेप की दर रही 6.6 और हिंसक अपराधों की दर रही 15.7.
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नंबर 4: भोपाल, मध्य प्रदेश
राजधानी भोपाल में भी महिलाएं ज्यादा सुरक्षित नहीं हैं. 2015 में यहां 133 रेप हुए और हिंसा के 322 मामले दर्ज हुए. यानी रेप की दर 7.1 रही. हिंसक अपराधों की दर 17.1 रही.
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नंबर 3: ग्वालियर, मध्य प्रदेश
महिलाओं के खिलाफ रेप की दर यहां रही 10.4. हिंसक अपराधों की दर 17.1 रही. 2014 में भी यहां हालात कुछ अच्छे नहीं थे.
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नंबर 2: दिल्ली
भारत की राजधानी दिल्ली को कई बार लोग रेप कैपिटल भी बोलते हैं. आंकड़े भी खतरनाक हैं. यहां 1893 रेप केस हुए और हिंसा के 4563 मामले हुए. यहां रेप की दर रही 11.6 और हिंसा की 28.
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नंबर 1: जोधपुर
राजस्थान के किलों का शहर महिलाओं के लिए खतरनाक साबित हुआ है. यहां रेप के 152 मामले सामने आए और हिंसा के 440 मामले दर्ज हुए जिनमें यौन हिंसा भी शामिल है. यानी रेप की दर रही 13.4 और हिंसा की 38.7.