दो हफ्ते से लगातार चले रहे विरोध प्रदर्शनों और देश में कामकाज लगभग रुक जाने के बाद लेबनान के प्रधानमंत्री ने आखिरकार इस्तीफा देने का एलान कर दिया है.
विज्ञापन
सु्न्नी राजनेता साद अल हरीरी ने टेलीविजन पर राष्ट्र को संबोधित किया. उन्होंने कहा, "लेबनान के लोगों ने (अर्थव्यवस्था में) गिरावट को रोकने के लिए राजनीतिक समाधान के इस फैसले का पिछले 13 दिन से इंतजार किया है. मैंने इस दौरान लोगों की आवाज सुन कर यह कोशिश की है ताकि कोई रास्ता निकले." उन्होंने यह भी कहा, "हमारे लिए अब समय आ गया है कि हमें एक झटका लगे, हम संकट का सामना करें. मैं बादबा (प्रेसिडेंशियल) पैलेस जा रहा हूं, सरकार का इस्तीफा देने. राजनीतिक जीवन में हमारे सभी सहयोगियों की और हमारी जिम्मेदारी है कि हम लेबनान की रक्षा करें और अर्थव्यवस्था को खड़ा करें."
इससे पहले शिया मुसलमानों के गुट हिज्बुल्ला की वफादार माने जाने वाली एक भीड़ ने बेरुत में प्रदर्शनकारियों के एक शिविर पर हमला कर उसे तहस नहस कर दिया. सेंट्रल बेरूत में काले कपड़े पहने कुछ लोगों की भीड़ ने हाथों में डंडे और पाइप ले रखे थे और उन्होंने विरोध करने जमा हुए कार्यकर्ताओं के शिविर पर हमला कर दिया. यह शिविर पिछले कुछ दिनों से चल रहे प्रदर्शनों के केंद्र में है. पिछले हफ्ते हिज्बुल्ला के नेता सैयद हसन नसरल्ला ने कहा था कि प्रदर्शनकारियों ने जिन सड़कों को बंद किया था, उन्हें खोला जाना चाहिए. नसरल्लाह का यह भी कहना है कि प्रदर्शनकारियों को विदेशी दुश्मनों से पैसा मिल रहा है और वो उनका एजेंडा चला रहे हैं. 2008 में हिज्बुल्ला ने राजधानी बेरुत का नियंत्रण अपने हाथ में ले लिया था, उसके बाद से यह बेरुत की सड़कों पर अब तक का सबसे बड़ा संघर्ष कहा जा रहा है.
देश की राजनीति में व्यापक भ्रष्टाचार को लेकर लेबनान में विरोध प्रदर्शनों का सिलसिला इसी महीने 17 अक्टूबर को शुरू हुआ. बीते 10 दिनों से सरकार का पूरा काम काज ठप्प हो गया है, यहां तक कि बैंक और स्कूल कॉलेज के साथ कारोबार भी बंद पड़े हैं.
देश 1975-90 में हुए गृहयुद्ध के बाद पहली बार इतनी खराब आर्थिक स्थिति का सामना कर रहा है. लेबनानी मुद्रा पाउंड की हालत बेहद खराब है. बीते महीनों में डॉलर का एक काला बाजार भी उभर आया है. विदेशी मुद्रा का कारोबार करने वाले तीन डीलरों ने बताया कि सोमवार को एक डॉलर 1700 लेबनानी पाउंड में मिल रहा था जो मंगलवार को 1800 तक चला गया जबकि डॉलर की आधिकारिक कीमत 1507.5 पाउंड ही है.
हरीरी का इस्तीफा एक तरह से ताकतवर हिज्बुल्ला की नाफरमानी है क्योंकि नसरल्लाह ने चेतावनी दी थी कि इस तरह के कदम से सत्ता के गलियारे में एक खतरनाक खालीपन आएगा. संविधान के मुताबिक हरीरी की कैबिनेट अगली सरकार का गठन होने तक कार्यवाहक सरकार के रूप में काम करती रहेगी. हरीरी ने पिछले हफ्ते कुछ सुधारों का एलान कर लोगों की नाराजगी दूर करने की कोशिश की थी. इसमें गठबंधन सरकार के सहयोगी दलों को भी भरोसे में लिया गया था. इन कदमों में भ्रष्टाचार के खिलाफ कदम उठाने और आर्थिक सुधारों की बात थी. हालांकि इन पर तुरंत कदम ना उठाए जाने की वजह से प्रदर्शनों को शांत नहीं किया जा सका और विरोध करने वाले सरकार के इस्तीफे पर अड़ गए.
एनआर/एके(रॉयटर्स)
जानिए कौन है इस्राएल का जानी दुश्मन हिजबुल्ला
लेबनान में एक सियासी पार्टी और एक चरमपंथी संगठन के तौर पर हिजबुल्ला की ताकत लगातार बढ़ रही है. इस शिया संगठन के बढ़ते प्रभाव के कारण न सिर्फ लेबनान में बल्कि समूचे मध्य पूर्व में तनाव पैदा हो रहा है.
तस्वीर: Getty Images/C. Furlong
हिजबुल्ला का उदय
हिजबुल्ला का मतलब है अल्लाह का पक्ष. 1982 में दक्षिणी लेबनान पर इस्राएल के हमले के बाद मुस्लिम मौलवियों ने कई शिया हथियारबंद गुटों को मिलाकर हिजबुल्ला की बुनियाद रखी. अब इस शिया गुट के पास न सिर्फ अपनी राजनीतिक पार्टी है बल्कि उसकी सैन्य शाखा भी है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
इस्राएल का विरोध
लेबनान के गृहयुद्ध में हिजबुल्ला ने बड़ी भूमिका निभाई. उसने दक्षिण लेबनान से इस्राएली फौज को बाहर करने के लिए गुरिल्ला युद्ध का सहारा लिया. इस्राएल 2000 में वहां से हटा. इस्राएल और हिजबुल्ला ने 2006 में भी लड़ाई लड़ी. लेबनान की रक्षा के लिए इस्राएल के खिलाफ खड़े होने की वजह उसे समाज में भरपूर समर्थन मिलता है.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/M. Zaatari
ईरान की मदद
अपने गठन के बाद से ही हिजबुल्ला को ईरान और सीरिया की तरफ से सैन्य, वित्तीय, और राजनीतिक समर्थन मिलता रहा है. आज हिजबुल्लाह की सैन्य शाखा लेबनान की सेना से कहीं ज्यादा ताकतवर है और उसे क्षेत्र का एक बड़ा अर्धसैनिक बल माना जाता है.
तस्वीर: Reuters/O. Sanadiki
राजनीतिक ढांचा
1975 से 1990 तक चले लेबनान के गृहयुद्ध के बाद हिजबुल्लाह ने राजनीति पर ध्यान केंद्रित किया. वह लेबनान की शिया आबादी के एक बड़े हिस्से का प्रतिनिधित्व करता है. ईसाई जैसे अन्य धार्मिक समुदायों के साथ उसका गठबंधन है. हसन नसरल्लाह 1992 से हिजबुल्ला के प्रमुख हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
सैन्य शाखा
हिजबुल्ला ने गृह युद्ध खत्म होने के बाद भी अपनी सैन्य शाखा को खत्म नहीं किया. प्रधानमंत्री साद हरीरी के फ्यूचर मूवमेंट जैसे कई राजनीतिक दल चाहते हैं कि हिजबुल्लाह हथियार छोड़ दे. लेकिन हिजबुल्ला की दलील है कि इस्राएल और अन्य चरमपंथी गुटों से रक्षा के लिए उसकी सैन्य शाखा बहुत जरूरी है.
तस्वीर: picture-alliance/AA
आतंकवादी संगठन?
अमेरिका, इस्राएल, कनाडा और अरब लीग समेत दुनिया के कई देश और संगठन हिजबुल्लाह को एक आतकंवादी संगठन मानते हैं. हालांकि ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया और यूरोपीय संघ हिजबुल्ला की राजनीतिक गतिविधियों और सैन्य शाखा में अंतर करते हैं.
तस्वीर: picture-alliance/Pacific Press/I. Press
सीरिया में हिजबुल्ला
सीरिया के गृहयुद्ध में हिजबुल्ला राष्ट्रपति बशर अल असद का समर्थन कर रहा है. हिजबुल्ला ने सीरिया से हथियारों की सप्लाई के रूट को सुरक्षित बनाया और असद के लिए चुनौती बन रहे सुन्नी चरमपंथी गुटों के खिलाफ लेबनान के आसपास एक बफर जोन बनाया.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/Syrian Central Military Media
सांप्रदायिकता
हिजबुल्ला सऊदी अरब और ईरान के बीच चलने वाले क्षेत्रीय संघर्ष के केंद्र में रहा है. लेकिन हिजबुल्ला की बढ़ती हुई राजनीतिक और सैन्य ताकत और सीरिया में हस्तक्षेप के कारण लेबनान और पूरे क्षेत्र में शिया-सुन्नी तनाव बढ़ता रहा है.
तस्वीर: dapd
इस्राएल के साथ नया विवाद
सीरिया युद्ध के जरिए ईरान और हिजबुल्ला दोनों ने अपने सैन्य और राजनीतिक प्रभाव को बढ़ाया है. इस्राएल इस बात को अपने लिए खतरा समझता है और इसीलिए उसने सीरिया में ईरान और हिजबुल्ला के ठिकानों पर हमले किए हैं. हिजबुल्लाह और इस्राएल के बीच युद्ध की अटकलें भी लग रही हैं.