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हिमाचल के लिए किस्मत चुनने का दिन

३ नवम्बर २०१२

हिमालय की गोद में बसे भारत के पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश में रविवार को विधानसभा चुनाव हो रहा है. राजनीति के अखाड़ेबाज प्रेम कुमार धूमल और वीरभद्र सिंह के रूप में राज्य की जनता अपनी किस्मत चुनेगी.

तस्वीर: picture-alliance/dpa

बीजेपी और कांग्रेस के नेता अपने अपने तरीके से लोगों को लुभाने में लगे हैं. एक तरफ मौजूदा सरकार की नाकामियों का लेखा जोखा है तो दूसरी तरफ महंगाई और भ्रष्टाचार की मुसीबतों का बोझ. इन्हीं के बीच जनता को अगले पांच साल के लिए अपना भविष्य चुनना है. सत्ताधारी बीजेपी और विपक्षी कांग्रेस पार्टी ने राज्य के सभी 68 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े किए हैं. बहुजन समाज पार्टी ने 66 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं और वह दोनों प्रमुख पार्टियों के वोट में सेंध लगाने की कोशिश में है.

इन तीनों के अलावा हिमाचल लोकहित पार्टी के 36, तृणमूल कांग्रेस के 25, समाजवादी पार्टी के 25, सीपीएम के 15, एनसीपी ओर स्वाभिमान पार्टी के 12-12 उम्मीदवार मैदान में हैं. सीपीआई के 7 और शिव सेना के 4 उम्मीदवार भी अपनी किस्मत आजमा रहे हैं. राज्य में 105 स्वतंत्र उम्मीदवारों ने भी जनता का प्रतिनिधि बनने के लिए अपनी उम्मीदवारी ठोकी है. सभी 459 उम्मीदवारों में सिर्फ 27 महिलाएं हैं. महिलाओं के लिए एक तिहाई सीटों के आरक्षण की बहस में लगी राष्ट्रीय पार्टियों ने भी उम्मीदवारों में महिलाओं का हिस्सा बढ़ाने का कोई प्रयास नहीं किया है.

चुनाव प्रचार करते राहुल गांधीतस्वीर: UNI

चुनाव के लिए 7253 पोलिंग बूथ बनाए गए हैं. इनमें  लाहौल और स्पिती के पोलिंग बूथ भी शामिल हैं जो सागर तल से 15000 फीट की ऊंचाई पर हैं. वोटों की गिनती का काम 20 दिसंबर को होगा.

मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल के नेतृत्व में सत्ताधारी पार्टी बीजेपी का हौसला बुलंद है. उसे उम्मीद है कि पंजाब की तरह ही यहां भी उसे ऐतिहासिक जीत मिलेगी और लगातार दूसरी बार सत्ता में आने का मौका मिलेगा. पंजाब की तरह ही हिमाचल में भी 1977 के बाद से कभी कोई पार्टी लगातार दो बार नहीं जीत सकी है. 2007 के चुनाव में बीजेपी को 41 और कांग्रेस को 23 सीटें मिली थी. बीएसपी को 3 सीट और एक निर्दलीय उम्मीदवार जीता था.

इन चुनावों में भ्रष्टाचार बड़ा मुद्दा है और दोनों प्रमुख पार्टियां एक दूसरे को ज्यादा भ्रष्ट बनाने में जुटी हैं. पूरे चुनाव अभियान के दौरान भ्रष्टाचार का ही मुद्दा छाया रहा. हालांकि आखिरी दिनों में बढ़ती कीमतों का मुद्दा एक बार फिर परवान चढ़ा. बीजेपी नेताओं ने एलपीजी सिलेंडर को सीमित करने और डीजल की कीमत बढ़ाने के कांग्रेस सरकार के फैसले को जम कर भुनाया और लोगों को यह बताने में कोई कसर नहीं छोड़ी की उनके मासिक बजट में इसका क्या असर होने वाला है.

चुनाव प्रचार करते नरेंद्र मोदीतस्वीर: picture-alliance/dpa

हिमाचल में रेल की सुविधा ना के बराबर है. ऐसे में डीजल यहां के घरों और अर्थव्यवस्था की जीवनरेखा है. इसी तरह वैकल्पिक ईंधन न होने की वजह से एलपीजी की जरूरत भी टाली नहीं जा सकती. धूमल ने राज्य की गृहिणियों को मुफ्त हॉट प्लेट का तोहफा दिया है.

रोजमर्रा की दिक्कतों के साथ ही राष्ट्रीय मुद्दे तो इन चुनावों में अपनी छाप छोड़ेंगे ही पर स्थानीय मुद्दों की भी कमी नहीं है. बीजेपी को हिमाचल लोकहित पार्टी के बैनर तले खड़े हुए अपने बागियों से भी निपटना होगा. माना जा रहा है कि 68 में से 12 सीटें ऐसी हैं जहां ये बागी नेता भारी असर डाल सकते हैं. 2007 के चुनावों की तुलना में यह एक बड़ा बदलाव है, जो नतीजों पर भारी असर डाल सकता है. पिछले चुनाव में 22 सीटें ऐसी थीं जहां जीत का अंतर 2500 से कम वोटों से था जबकि 40 सीटों पर 5000 से कम वोटों के अंतर से उम्मीदवार जीते.

ऐसी स्थिति में धूमल और वीरभद्र दोनों के लिए इधर उधर लुढ़कने वाले वोटर आखिरी वक्त तक अहम बने रहेंगे. अब तक की जमीनी स्थिति यह बता रही है कि बीजेपी हमीरपुर, उना, कुल्लू, चंबा, सोलन और नाहन जैसे छोटे जिलों में अच्छा प्रदर्शन कर सकती है, जबकि कांग्रेस अपने गढ़ शिमला और कांगड़ा में अपनी पकड़ बनाए रख सकती है.

एनआर/एमजे (पीटीआई)

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