हिमाचल में 1,700 प्रवासी पक्षियों के मरने से खलबली
४ जनवरी २०२१प्रवासी पक्षियों की मौत कांगड़ा के महाराणा प्रताप सागर नाम के जलाशय में हो रही है. इसे पौंग डैम के नाम से भी जाना जाता है. वन विभाग का कहना है कि पंछियों के नमूने जालंधर और भोपाल की लैब को भेजे गए हैं ताकि उनकी मौत का कारण खोजा जा सके.
प्रवासी पक्षियों का पसंदीदा बसेरा
शिमला से करीब 300 किलोमीटर दूर कांगड़ा का पौंग इन प्रवासी पक्षियों का पसंदीदा विश्राम स्थल है. इस झील में हर साल साइबेरिया और मध्य एशिया के ठंडे इलाकों से सर्दियों में पक्षी आते हैं और फरवरी-मार्च तक रहते हैं. पिछले साल हुई गणना के मुताबिक पौंग जलाशय क्षेत्र में कुल 1.15 लाख मेहमान परिंदे आए थे. इस साल 15 दिसंबर तक 56,000 पक्षी पौंग के इस इलाके में इकट्ठा हो चुके थे.
वन विभाग के मुताबिक 31 जनवरी तक पौंग जलाशय में इस साल आए पक्षियों की संख्या पता चल सकेगी. कुल 60 हजार एकड़ में फैला पौंग जलाशय 1975 में बना था. ये इलाका एक वन्य जीव अभ्यारण्य भी है और जलाशय महाशीर मछलियों प्रचुरता के लिए जाना जाता है.
दो प्रयोगशालाओं में हो रही है जांच
हमीरपुर वाइल्ड लाइफ डिवीजन के उप वन संरक्षक (डीसीएफ) राहुल रोहाणे ने डीडब्ल्यू को बताया कि मर रहे पक्षी बार हेडेड गूज (एक प्रकार की बत्तख) प्रजाति के हैं. रोहाणे के मुताबिक, "पक्षियों के मरने की पहली घटना 28 दिसंबर को हमारे नोटिस में आई, जब चार पक्षी मरे पाए गए. उसके बाद से पूरे इलाके की छानबीन की और कई पक्षी मरे मिले. अब तक 1700 पक्षी मर चुके हैं."
अधिकारी पक्षियों की मौत का कारण जानने के लिए लैब टेस्ट के नतीजों का इंतजार कर रहे हैं. रोहाणे ने बताया, "हमने जालंधर की रीजनल डिसीज डायग्नोस्टिक लैब (आरडीडीएल) और भोपाल के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हाइ सिक्योरिटी एनिमल डिसीज (निशाद) को जांच के लिए नमूने भेजे हैं. हम जांच रिपोर्ट के बाद ही कारण बता सकेंगे. मरने वाले पक्षियों में 90 प्रतिशत बार हेडेड गूज हैं.”
मौत के सामान्य कारण
भारत के कई इलाकों में दुनिया के ठंडे प्रदेशों से पक्षी विश्राम या प्रजनन करने आते हैं. पौंग में इन पक्षियों को जहर देने की आशंका जताई गई थी लेकिन अभी वन विभाग के अधिकारी ऐसी संभावना को नकार रहे हैं. मेहमान परिंदों के मरने की घटनाएं पहले भी होती रही हैं. 2019 में जयपुर की सांभर झील में कई हजार परिंदे मरे मिले थे जिनमें प्रवासी पक्षियों की दो दर्जन से अधिक प्रजातियां शामिल थी. तब इंडियन वेटिनरी संस्थान (आईवीआरआई) की जांच से पता चला था कि इन पक्षियों को एवियन बॉटुलिज्म नाम बीमारी हो गई थी जो जलपक्षियों को पंगु बना देती है.
जानकार कहते हैं कि बैक्टीरिया और वायरस से होने वाले संक्रमण, अत्यधिक तापमान या अचानक जल भराव और किसी नए क्षेत्र में वातावरण का जहरीलापन (टॉक्सिसिटी) कई बार पक्षियों के मरने का कारण बनते हैं. इससे पहले 2006 में उत्तराखंड के रानीखेत इलाके में भी कई स्टेप ईगल मरे पाए गए थे.
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