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हिमालय के पौधों की तपस्या का फल

२३ नवम्बर २०१२

हिमालय के पौधों में जीवित रहने की गजब की कला है. कड़क सर्दी और रुखे माहौल में भी हिमालय के कई पौधे हरे रहते हैं. अब इन पौधों के जीन की मदद से सूखे को झेल सकने वाली फसलें बनाने की कोशिश की जा रही है.

तस्वीर: gettyimages/AFP

पानी की कमी के कारण अक्सर फसलें खराब हो जाती हैं. कपास और धान को काफी पानी की जरूरत पड़ती है. भारत में अक्सर समय पर बरसात न होने के कारण इन्हें नुक्सान पहुंचता है. लेकिन हिमालय के रूखे माहौल में उगने वाले पौधों में ऐसे जीन होते हैं जो बुरे मौसम का सामना कर सकते हैं. ये पौधे कड़ाके की सर्दी और वातावरण के रुखेपन को भी झेल जाते हैं. मंथन की पहली रिपोर्ट में बताया गया है कि किस तरह से इन पौधों के जीनों का अन्य फसलों में इस्तेमाल किया जा सकता है.

हिमालय की तलहटी पर बसे इलाकों में खास प्रयोग हो रहे हैं. ये प्रयोग भारतीय और जर्मन वैज्ञानिक कर रहे हैं. पौधों के जीनों को जर्मनी में यूलिष की प्रयोगशाला में लाया जा रहा है.

अनाज तो उग जाएगा लेकिन बढ़ती आबादी से पर्यावरण को बचाना बड़ी चुनौती है. दुनिया के हर हिस्से में शहरों पर जनसंख्या का बोझ बढ़ता जा रहा है. ऐसे में शहर लगातार गंदे भी हो रहे हैं. हनोई में वैज्ञानिकों ने एक ऐसा हल निकला है कि शहर भी बढ़ जाए और उसकी सुंदरता भी बनी रहे. योजनाकार शहर का एक हिस्सा ऐसे तैयार हैं कि हर तरह की बर्बादी कच्चा माल बन जाए.

पिछड़ेपन से लड़ता और दूर होता हनोईतस्वीर: DW

इंसान की 300 से ज्यादा बीमारियां जन्मजात हैं. आनुवांशिक बीमारियों के चलते लाखों बच्चे जान गंवाते हैं. लेकिन स्टेम सेल चिकित्सा की मदद से अब इन्हें काबू करने में सफलता मिलने लगी है. मंथन की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि किस तरह से इस्राएल में जर्मन वैज्ञानिकों की मदद से तंत्रिका तंत्र की कोशिश की जा रही है. वैज्ञानिक तंत्रिका तंत्र की गुत्थियों को सुलझाना चाह रहे हैं.

मंथन के लाइफ स्टाइल वाले हिस्से में इस बार झूलों पर एक रिपोर्ट है. जर्मनी में पार्कों और झूलों को बच्चों के विकास के लिए अहम माना जाता है. समय समय पर झूलों का क्वॉलिटी चेक भी होता है. यहां के झूलों की विदेश में भी बहुत मांग है. कुछ झूले तो रस्सियों से बन जाते हैं. यह सुनने में भले ही आसान लगे लेकिन काफी तकनीकी काम है. झूलों की फैक्टरी के भीतर जाकर रिपोर्ट तैयार की गई है.

बच्चों के साथ साथ मां की सेहत पर भी कार्यक्रम में ध्यान दिया गया है. प्रसव के बाद अक्सर महिलाओं का वजन बढ़ जाता है. बच्चे की वजह से वे अपनी सेहत पर ध्यान नहीं दे पातीं. ऐसे में ममीरोबिक नाम के एक स्पोर्ट का चलन बढ़ रहा है. रिपोर्ट में बताया गया है कि यह कैसे किया जाता है.

कीटा में बच्चेतस्वीर: picture-alliance/dpa

जर्मनी में सत्तर फीसदी महिलाएं कामकाजी हैं. मां बनाने के बाद यहां महिलाओं को तीन महीने से तीन साल तक की छुट्टी मिल सकती है, लेकिन फिर काम पर तो लौटना ही है. पर बच्चों को अकेले घर पर कैसे छोड़ा जाए, यह बात परेशान करने लगती है. इसीलिए जर्मनी में किंडरगार्टन या कीटा खूब चलते हैं.

तो इन सब रिपोर्टों के साथ मंथन का ताजा अंक शनिवार सुबह साढ़े दस बजे दूरदर्शन पर प्रसारित होगा. अपनी पसंदीदा रिपोर्टों को आप बाद में हमारी वेबसाइट पर भी देख सकते हैं. आप इन्हें डाउनलोड भी कर सकते हैं.

ईशा भाटिया/ओएसजे

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