ब्रिटिश साम्राज्य टूट टूटकर एक छोटा सा टुकड़ा रह गया, लेकिन उसका दंभ अब भी बाकी है. ब्रिटेन के ज्यादातर लोगों को अब भी अपने साम्राज्यवादी अतीत पर शर्म नहीं आती बल्कि गर्व होता है.
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1922 ब्रिटिश साम्राज्य का शिखर था. उस वक्त एक तिहाई दुनिया उसके नियंत्रण में थी. ब्रिटेन के बुद्धिजीवी और कुछ मौजूदा नेता अपने अतीत से शर्मिंदा होते हैं, लेकिन 59 फीसदी लोगों को उस पर गर्व है. ब्रिटिश साम्रज्यवाद के आलोचक कहते हैं कि ब्रिटेन की साम्राज्यवादी नीतियों के चलते भारत में लाखों लोग मारे गए. दूसरे इलाकों में भी स्थानीय लोगों को बर्बर हिरासत केंद्रों में रखा गया, साम्राज्यवादी सेना द्वारा व्यापक नरसंहार किया गया.
यूगव के सर्वेक्षण के मुताबिक ब्रिटेन के 49 फीसदी लोग ऐसा मानते हैं कि उनकी पुरानी हुकूमत ने अपने उपनिवेशों को पहले से बेहतर बनाया. 19 फीसदी लोगों ने माना कि उन्हें अपने देश के साम्राज्यवादी अतीत पर शर्म आती है. गर्व महसूस करने वालों में ज्यादातर लोग 60 साल से ज्यादा के हैं. सर्वे में हिस्सा लेने वाले 34 फीसदी लोगों ने माना कि ब्रिटेन अब भी एक साम्राज्य होता तो उन्हें अच्छा लगता.
2006 में ब्रिटेन के तत्कालीन प्रधानमंत्री टोनी ब्लेयर ने ब्रिटिश साम्राज्य की दास प्रथा के लिए माफी मांगी थी. ब्लेयर ने उसे "मानवता के खिलाफ अपराध" करार दिया. लेकिन ब्रिटेन के मौजूदा प्रधानमंत्री डेविड कैमरन इससे अलग राय रखते हैं. 2013 में भारत यात्रा के दौरान अमृतसर के स्वर्ण मंदिर गए कैमरन ने जलियांवाला बाग नरसंहार के लिए माफी मांगने से इनकार कर दिया. 1919 में हुए उस नरसंहार में ब्रिटेन की साम्राज्यवादी सेना ने 400 आम लोगों की हत्या की. कैमरन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ब्रिटेन दौरे के समय कोहिनूर हीरा भारत को लौटाने से भी इनकार किया था. कोहिनूर ब्रिटेन की रानी के मुकुट में लगाया गया है.
ब्रिटेन के मशहूर अखबार द इंडिपेंडेंट के मुताबिक देश के स्कूलों में अब भी ब्रिटिश साम्राज्य के बारे में विस्तार से नहीं पढ़ाया जाता है. पूर्व शिक्षा मंत्री माइकल गोव मानते हैं कि ब्रिटिश हुकूमत के बारे में स्कूलों में विस्तार से पढ़ाया जाना चाहिए. लेबर पार्टी के नेता जेरेमी कोर्बिन भी जोर देकर कहते हैं कि ब्रिटिश बच्चों को यह बताया जाना चाहिए कि साम्राज्यवादी नीतियों ने कितना नुकसान पहुंचाया.
स्कॉटलैंड की आजादीः कुछ सवाल
18 सितंबर को स्कॉटलैंड की जनता जनमत सर्वेक्षण के जरिए तय करेगी कि क्या उसे 2016 से आजादी चाहिए. फिलहाल स्कॉटलैंड ब्रिटेन में आता है. इससे क्या फायदा होगा और क्या नुकसान, एक नजर तस्वीरों में.
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उम्मीद और नाउम्मीदी के बीच
आजाद स्कॉटलैंड, यह सिर्फ स्कॉटलैंड के लिए ही नहीं ब्रिटेन, यूरोप और नाटो के लिए बड़ा फैसला होगा.
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समर्थकों की दलील
आजादी के समर्थकों का मानना है कि 50 लाख की जनसंख्या वाले इस इलाके को कुछ नुकसान नहीं होगा. उत्तरी सागर में तेल के कुएं से मिलने वाले धन से वह अपने पैर पर खड़े हो सकते हैं. ब्रिटेन के तेल का अधिकतर हिस्सा स्कॉटलैंड से ही जाता है.
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विरोधकों का मत
आजादी के विरोधियों का मानना है कि अंतर से समानता ज्यादा है. उन्हें सबसे ज्यादा चिंता विपरीत आर्थिक परिणामों की है. एक मुद्दा कि उत्तरी सागर से मिलने वाला प्राकृतिक ईंधन और तेल कब तक चलेगा.
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मुद्रा कौन सी
जनमत संग्रह से पहले कई छोटी छोटी चीजें साफ नहीं हुई है. जैसे कि स्कॉटलैंड की मुद्रा क्या होगी, पाउंड या स्टरलिंग. क्या स्कॉटलैंड यूरोपीय संघ में जाएगा. ऐसे में क्या वहां भी यूरो चलेंगे. या क्या उसकी कोई अपनी मुद्रा होगी.
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परमाणु हथियार नहीं
फिलहाल परमाणु हथियार वाली पनडुब्बी क्लाइड नदी के मुहाने पर ग्लास्गो के उत्तर पश्चिमी हिस्से में रखी हुई हैं. स्कॉटलैंड के अलग होने पर ब्रिटेन की इन पनडुब्बियों का क्या होगा, उन्हें कहां रखा जाएगा, यह भी साफ नहीं है.
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कैसा देश
ब्रिटेन से अलग हुआ स्कॉटलैंड एक संवैधानिक राजशाही भी बन सकता है जिसकी प्रमुख ब्रिटिश महारानी एलिजाबेथ द्वितीय होंगी, जैसे कि कनाडा है. हालांकि कुछ लोग स्कॉटिश गणराज्य के बारे में भी सोच रहे हैं.
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नागरिकता और कर्ज
दोहरी नागरिकता के बारे में भी अभी तक कुछ तय नहीं किया गया है. क्या ब्रिटेन और स्कॉटलैंड दोनों का पासपोर्ट रखा जा सकेगा. स्कॉटलैंड को अगर अपनी मुद्रा पाउंड रखने की अनुमति मिलती है तो वह ब्रिटेन का थोड़ा कर्ज भी लेगा.
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यूरोप में
आजाद होने के बाद स्कॉटलैंड अपने आप यूरोपीय संघ में शामिल नहीं हो जाएगा. ब्रिटेन सरकार का कहना है कि अलग होने पर स्कॉटलैंड को सदस्यता के लिए आवेदन करना होगा.