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हुकूमत डूब गई, गर्व रह गया

ओंकार सिंह जनौटी२५ जनवरी २०१६

ब्रिटिश साम्राज्य टूट टूटकर एक छोटा सा टुकड़ा रह गया, लेकिन उसका दंभ अब भी बाकी है. ब्रिटेन के ज्यादातर लोगों को अब भी अपने साम्राज्यवादी अतीत पर शर्म नहीं आती बल्कि गर्व होता है.

तस्वीर: picture alliance/akg

1922 ब्रिटिश साम्राज्य का शिखर था. उस वक्त एक तिहाई दुनिया उसके नियंत्रण में थी. ब्रिटेन के बुद्धिजीवी और कुछ मौजूदा नेता अपने अतीत से शर्मिंदा होते हैं, लेकिन 59 फीसदी लोगों को उस पर गर्व है. ब्रिटिश साम्रज्यवाद के आलोचक कहते हैं कि ब्रिटेन की साम्राज्यवादी नीतियों के चलते भारत में लाखों लोग मारे गए. दूसरे इलाकों में भी स्थानीय लोगों को बर्बर हिरासत केंद्रों में रखा गया, साम्राज्यवादी सेना द्वारा व्यापक नरसंहार किया गया.

यूगव के सर्वेक्षण के मुताबिक ब्रिटेन के 49 फीसदी लोग ऐसा मानते हैं कि उनकी पुरानी हुकूमत ने अपने उपनिवेशों को पहले से बेहतर बनाया. 19 फीसदी लोगों ने माना कि उन्हें अपने देश के साम्राज्यवादी अतीत पर शर्म आती है. गर्व महसूस करने वालों में ज्यादातर लोग 60 साल से ज्यादा के हैं. सर्वे में हिस्सा लेने वाले 34 फीसदी लोगों ने माना कि ब्रिटेन अब भी एक साम्राज्य होता तो उन्हें अच्छा लगता.

तस्वीर: General Photographic Agency/Getty Images

2006 में ब्रिटेन के तत्कालीन प्रधानमंत्री टोनी ब्लेयर ने ब्रिटिश साम्राज्य की दास प्रथा के लिए माफी मांगी थी. ब्लेयर ने उसे "मानवता के खिलाफ अपराध" करार दिया. लेकिन ब्रिटेन के मौजूदा प्रधानमंत्री डेविड कैमरन इससे अलग राय रखते हैं. 2013 में भारत यात्रा के दौरान अमृतसर के स्वर्ण मंदिर गए कैमरन ने जलियांवाला बाग नरसंहार के लिए माफी मांगने से इनकार कर दिया. 1919 में हुए उस नरसंहार में ब्रिटेन की साम्राज्यवादी सेना ने 400 आम लोगों की हत्या की. कैमरन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ब्रिटेन दौरे के समय कोहिनूर हीरा भारत को लौटाने से भी इनकार किया था. कोहिनूर ब्रिटेन की रानी के मुकुट में लगाया गया है.

ब्रिटेन के मशहूर अखबार द इंडिपेंडेंट के मुताबिक देश के स्कूलों में अब भी ब्रिटिश साम्राज्य के बारे में विस्तार से नहीं पढ़ाया जाता है. पूर्व शिक्षा मंत्री माइकल गोव मानते हैं कि ब्रिटिश हुकूमत के बारे में स्कूलों में विस्तार से पढ़ाया जाना चाहिए. लेबर पार्टी के नेता जेरेमी कोर्बिन भी जोर देकर कहते हैं कि ब्रिटिश बच्चों को यह बताया जाना चाहिए कि साम्राज्यवादी नीतियों ने कितना नुकसान पहुंचाया.

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