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हुक्का बार पर रोक लगाने भर से क्या रुकेगा धूम्रपान

शिवप्रसाद जोशी
७ अगस्त २०१९

राजस्थान ने ई-सिगरेट के बाद हुक्का बार पर प्रतिबंध लगा दिया है. पिछले दिनों राज्य विधानसभा में ध्वनि मत से सिगरेट और अन्य तंबाकू उत्पाद संशोधन बिल 2019 पास किया गया था. पंजाब, महाराष्ट्र, गोवा, दिल्ली में इस पर रोक है.

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तस्वीर: picture-alliance/dpa/S.Strache

राजस्थान में बिल में किए गए संशोधन के मुताबिक अगर कोई व्यक्ति राज्य में हुक्का बार खोलता या संचालित करता है तो उसे 50 हजार रुपये से एक लाख रुपये तक के जुर्माने के साथ तीन साल की जेल की सजा हो सकती है. सरकार का दावा है कि कि हुक्का पीने की समस्या शहरी और अर्ध शहरी इलाकों में बहुत विकराल रूप लेती जा रही है और नौनिहाल भी इसकी चपेट में आ रहे हैं, इसीलिए ये बिल लाया गया है. पूरी दुनिया में तंबाकू से हर साल साठ लाख लोग मारे जाते हैं. इनमें से दस लाख मौतें भारत में होती हैं. इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च की एक रिपोर्ट के मुताबिक तीस प्रतिशत कैंसर तंबाकू से होते है. पुरुष मौतों में 42 प्रतिशत और महिलाओं में 18 प्रतिशत मौतें इस तंबाकू जनित कैंसर से होती हैं.

विज्ञापनों, सार्वजनिक स्थानों पर धूम्रपान करने और नाबालिगों को बिक्री पर रोक के बावजूद तंबाकू उत्पाद न सिर्फ धड़ल्ले से बिकते हैं बल्कि भारत में इसके खिलाफ आगाह या जागरूक करने का अभियान दुनिया के सबसे फिसड्डी अभियानों में एक बताया गया है. कनैडियन कैंसर सोसायटी के मुताबिक स्वास्थ्य से जुड़े खतरों के प्रति सही ढंग से सचेत कर सकने में सक्षम तंत्र के लिहाज से 198 देशों की सूची में भारत 136वें स्थान पर है.

स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय की ओर से जारी ग्लोबल एडल्ट टोबैको सर्वे 2 (गैट्स 2) के मुताबिक ग्रामीण इलाकों में हर तीसरा और शहरी इलाकों में हर पांचवां वयस्क तंबाकू का सेवन करता है. 15 साल से ऊपर की साढ़े 28 फीसदी वयस्क आबादी तंबाकू लेती है. इनमें से करीब 25 फीसदी वयस्क रोजाना तंबाकू का सेवन करते हैं. यही नहीं 35 प्रतिशत लोग धूम्रपान करने वालों की वजह से तंबाकू से जुड़ी बीमारियों की चपेट में आ जाते हैं. इस लिहाज से देखा जाए तो तंबाकू एक बड़ी जन स्वास्थ्य चुनौती बनता जा रहा है.

तस्वीर: Getty Images/AFP/F. Kember

भले ही समाज के कई हिस्सों, समुदायों और देहातों में तंबाकू का सेवन एक रिवायत की तरह देखा जाता हो, चाहे वो हुक्का पीने का चलन हो या बीड़ी फूंकने का. लेकिन इनमें निहित स्वास्थ्य खतरों को देखते हुए ये बहुत जरूरी है कि रिवायत या चलन की आड़ में इस समस्या को पनपने से रोका जाए क्योंकि यह एक व्यक्ति या कुछ व्यक्तियों तक सीमित नहीं है बल्कि इसका व्यापक और दूरगामी प्रभाव पड़ता है.

2030 के टिकाऊ विकास लक्ष्यों में गरीबी हटाने और अच्छा स्वास्थ्य भी शामिल है- इस प्रतिबद्धता को पूरा करने के लिए जरूरी है कि भारत अपनी नीतियों का प्रभावी क्रियान्वयन सुनिश्चित करे. तंबाकू उत्पादों की खपत के पैटर्न और प्रभावित आबादी का सही अध्ययन, तंबाकू से जुड़ी समस्याओं के सही मूल्यांकन, तंबाकू नियंत्रण कानूनों की समीक्षा और तंबाकू निरोधी अभियानों की गुणवत्ता का सही आकलन करना चाहिए.

1975 में देश में पहला तंबाकू निरोधी कानून बना था. जिसका नाम था सिगरेट अधिनियम जिसके तहत सिगरेट पीना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है की वैधानिक चैतावनी सिगरेट के पैकेटो और विज्ञापनों में दी जाती थी. लेकिन इसमें सिगरेट के अलावा अन्य उत्पाद इस कानून के दायरे में नहीं थे.

1981 के प्रदूषण नियंत्रण कानून में धूम्रपान को वायु प्रदूषण का कारक के रूप में रखा गया. 1988 के मोटर वाहन कानून में सार्वजनिक वाहनों में धूम्रपान वर्जित कर दिया गया. खाद्य पदार्थ मिलावट निरोधी कानून 1955 का इस्तेमाल करते हुए सरकार ने 1990 में तंबाकू चबाने को हानिकारक बताने वाली स्वास्थ्य चेतावनी जारी की, ड्रग्स और कॉस्मेटिक एक्ट 1940 के तहत सरकार ने 1992 में तंबाकू वाले टूथपेस्ट और मंजन बेचने पर पाबंदी लगा दी. 2000 के केबल टीवी नेटवर्क संशोधन अधियम के तहत तंबाकू और शराब के विज्ञापनों के प्रसारण पर रोक लगा दी गई. 2003 में सिगरेट और अन्य तंबाकू उत्पाद अधिनियम (सीओटीपीए) ने 1975 के सिगरेट कानून की जगह ले ली.

तस्वीर: DW/S. Waheed

समय समय पर राज्य सरकारें अपने यहां इस कानून में संशोधन करती रही हैं. भारत ने विश्व स्वास्थ्य संगठन के तंबाकू नियंत्रण कन्वेंशन पर भी दस्तखत किए हैं. 2008 में सरकार ने 21 राज्यों के 42 जिलों में राष्ट्रीय तंबाकू नियंत्रण कार्यक्रम शुरू किया. स्वास्थ्य चूंकि राज्य का विषय है तो राज्यों के अपने कानून इस दिशा में संशोधित होते रहे हैं लेकिन उनमें समरूपता और बहुआयामी रणनीतियों का अभाव है. कानूनों का अनुपालन और क्रियान्वयन भी एक समस्या है. और देहाती ग्रामीण क्षेत्रों में पंचायत स्तर तक धूम्रपान निरोधी अभियान अपनी पकड़ नहीं बना पाए हैं.

अध्ययनों के मुताबिक देश के कृषि सेक्टर में तंबाकू उद्योग का कुल योगदान बहुत मामूली है. तंबाकू उत्पादन में करीब साढ़े तीन करोड़ लोगों को रोजगार मिला हुआ और कृषि श्रम शक्ति का ये दशमलव पांच फीसदी है. असंगठित क्षेत्र में बीड़ी उत्पादन सबसे बड़ा तंबाकू उद्योग है. रही बात इस उद्योग से मिलने वाले राजस्व की तो इस बारे में किए गए अध्ययन बताते हैं कि तंबाकू से होने वाली बीमारियों के खतरों और उपचार से जुड़े आर्थिक बोझ के सामने कुल राजस्व कुछ भी नहीं है.

प्रभावी तंबाकू नियंत्रण सर्वोच्च प्राथमिकता होना चाहिए, स्वास्थ्य से जुड़ा मुद्दा होने के कारण ही नहीं बल्कि गरीबी कम करने के एक उपाय के रूप में भी. लेकिन बात तंबाकू सेवन और निषेध की बाइनरी तक सीमित नहीं है, एक व्यापक सामाजिक-आर्थिक-सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य को समझने की भी जरूरत है, जहां तंबाकू सेवन मजबूरी या लत बन जाता है या फिर विलासिता. इस पूंजीगत विसंगति को भी समझ लेना चाहिए जिसके चलते एक ओर तंबाकू से तबाहियां होती हैं दूसरी ओर उसका कारोबार फलता फूलता दिन रात तरक्की करता जाता है.

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