सऊदी अरब और उसके सहयोगियों ने जब 2015 में यमन पर बमबारी शुरू की तो उन्हें भरोसा था कि चंद दिनों के भीतर जीत उनकी होगी. लेकिन साढ़े तीन साल से ज्यादा हो गए और लड़ाई जारी है. हूथी बागी सऊदी गठबंधन को कड़ी टक्कर दे रहे हैं.
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सवाल यह है कि गोला बारूदी की कमी से जूझने वाले यमन के हूथी विद्रोही कैसे ताकतवर सऊदी गठबंधन का मुकाबला कर पा रहे हैं. हूथी विद्रोहियों का संबंध अल्पसंख्यक जैदी शिया समुदाय से है और पहाड़ी इलाके वाले उत्तरी यमन में उनका पारंपरिक रूप से दबदबा रहा है.
उन्हें अपना नाम उनके दिवंगत आध्यात्मिक नेता बदरेद्दीन अल हूथी और उनके बेटे हुसैन से मिला है. 1990 के दशक में हूथियों ने सांप्रदायिक भेदभाव के खिलाफ आंदोलन शुरू किया. 2004 से 2010 के बीच वे यमन की तत्कालीन सरकार के खिलाफ छह बार लड़े. 2009-10 में उन्होंने सऊदी अरब की सीमा में घुस कर उससे भी लोहा लिया.
आधिकारिक तौर पर हूथी बागी खुद को अंसारुल्लाह कहते हैं जिसका शाब्दिक अर्थ होता है 'अल्लाह के समर्थक'. हूथियों ने अरब क्रांति में हिस्सा लिया और दशकों से सत्ता में जमे अली अब्दुल्ला सालेह को हटने के लिए मजबूर होना पड़ा.
देखिए इस हाल में है यमन
भूख दोषी है या युद्ध
18 साल की सैदा अहम बाघीली उस यमन में कुपोषित बच्चों का प्रतीक है, जहां पिछले डेढ़ साल से गृह युद्ध छिड़ा हुआ है. ये दर्दनाक तस्वीरें बताती हैं कि युद्ध देश के साथ क्या करता है.
तस्वीर: Reuters/A.Zeyad
खाना बंद
सैदा खाना नहीं खा सकती. सिर्फ लिक्विड पर जिंदा है.
तस्वीर: Reuters/A.Zeyad
पांच साल से बीमार
वह 5 साल से बीमार हैं लेकिन अब खाना बिल्कुल बंद हो गया है.
तस्वीर: Reuters/A. Zeyad
भेड़ों के बीच
सैदा पहले भेड़ चराती थीं. उनका घर शान गांव में है.
तस्वीर: Reuters/A. Zeyad
गरीबी
सैदा के पिता के पास इतना पैसा नहीं है कि उसका इलाज करा सकें.
तस्वीर: Reuters/A. Zeyad
मदद
एक समाजसेवी संस्था की मदद से उसे अस्पताल में भर्ती कराया गया है.
तस्वीर: Reuters/A. Zeyad
डेढ़ करोड़ भूखे
सैदा के देश में डेढ़ करोड़ लोगों ने 19 महीने से पेट भर खाना नहीं खाया है.
तस्वीर: Getty Images/B. Stirton
10 हजार मौतें
यमन के गृह युद्ध में अब तक 10 हजार लोग मारे जा चुके हैं.
तस्वीर: AFP/Getty Images
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इसके बाद देश में मची उथल पुथल में उन्होंने अपने दुश्मन अली अब्दुल्लाह सालेह को साथ ले लिया और उनकी जगह देश की बागडोर संभालने वाली और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्य अब्दरब्बू मंसूरी हादी की सरकार को अपदस्थ कर दिया.
जब हूथी बागियों ने राजधानी सना पर कब्जा कर लिया तो सऊदी अरब और उसके साथियों ने मार्च 2015 में हस्तक्षेप करने का फैसला किया. इस बीच, हूथी बागियों के सालेह के साथ मतभेद पैदा हो गए और उनकी दिसंबर 2017 में हत्या कर दी गई.
यमन में जारी लड़ाई को बहुत से लोग दो क्षेत्रीय ताकतों सऊदी अरब और ईरान की तनातनी का नतीजा मानते हैं. सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान पर खास तौर से यमन की आग में घी डालने के आरोप लगते हैं.
सऊदी अरब और ईरान के बीच पिसता यमन
सऊदी अरब-ईरान के बीच पिसता यमन
अरब दुनिया में शुमार यमन की गिनती दुनिया के गरीब देशों में होती है. साल 2011 के बाद से देश में राजनीतिक खींचतान जारी है. हालात बिगड़े और साल 2015 से यहां गृहयुद्ध शुरू हो गया है. एक नजर इस युद्ध की वजहों पर.
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कब हुई शुरुआत
देश के आंतरिक मसलों से शुरू हुआ यह युद्ध आज कई मुल्कों के बीच की लड़ाई बन गया है. साल 2011 में अरब वसंत की लहर जब यमन पहुंची तो साल 1978 से यमन की सत्ता पर काबिज अली अबदुल्लाह सालेह को हटाने की आवाज उठने लगी. उस वक्त हुए सत्ता परिवर्तन में राष्ट्रपति की कुर्सी अबेदरब्बो मंसूर हादी को मिल गई और तब से वही देश के राष्ट्रपति हैं.
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नई सरकार की नाकामी
नए राष्ट्रपति हादी को सत्ता मिलने से पूर्व राष्ट्रपति सालेह का वफादार खेमा नाराज हो गया. हादी सरकार के सामने भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, खाद्य संकट जैसी बुनियादी समस्याएं भी थीं. साथ ही अल कायदा जैसे आंतकी गुटों से निपटना भी उसके लिए एक चुनौती था. कुल मिलाकर स्थिरता की उम्मीद से जिस नई सरकार का गठन किया गया था वह असल काम करने में नाकाम रही.
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कहां से लगी चिंगारी
नई सरकार की इस प्रशासनिक नाकामी का फायदा उठाते हुए हूथी विद्रोहियों ने देश के उत्तरी प्रांत सदा और उसके आसपास के इलाके पर कब्जा कर लिया. हूथी विद्रोही यमन के अल्पसंख्यक शिया जैदी मुसलमानों की नुमाइंदगी करते हैं. साल 2000 के दौरान इन हूथी विद्रोहियों ने उस वक्त राष्ट्रपति रहे सालेह की फौज के खिलाफ कई लड़ाइयां लड़ी लेकिन ये संघर्ष उत्तरी यमन के सूबे सदा तक ही सीमित रहे.
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दुश्मन-दुश्मन हुए साथ
अब तक हूथी विद्रोही, सालेह को अपना दुश्मन मानते थे. लेकिन हादी सरकार को सत्ता से हटाने के लिए सालेह खेमे ने हूथी विद्रोहियों से हाथ मिला लिया. दुश्मनों की इस दोस्ती का असर हुआ और साल 2014 में हूथी विद्रोही और सालेह की फौज ने मिलकर यमन की राजधानी सना पर नियंत्रण स्थापित कर लिया. इसके बाद यमन के दूसरे सबसे बड़े शहर अदन को लक्ष्य बनाया गया.
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शिया-सुन्नी युद्ध
शिया मुसलमानों की नुमाइंदगी करने वाले हूथी विद्रोहियों के बढ़ते प्रभाव के चलते साल 2015 में सऊदी अरब, यमन के इस गृहयुद्ध में हादी सरकार को समर्थन देने लगा. सऊदी अरब, ईरान पर हूथियों का साथ देने का आरोप लगाता है. ईरान और सऊदी अरब के रिश्ते अच्छे नहीं हैं. सऊदी अरब कहता है कि ईरान, अरब जगत पर अपना असर बढ़ाने के लिए ऐसा कर रहा है.
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सऊदी अरब के साथ
सऊदी अरब का साथ सुन्नी बहुल कतर, कुवैत, संयुक्त अरब अमीरात, बहरीन, मिस्र, जोर्डन जैसे देश सीधे-सीधे दे रहे हैं. इसके अलावा सेनेगल, मोरक्को, सूडान भी इसके साथ हैं. अमेरिका, ब्रिटेन समेत कई यूरोपीय देशों से सऊदी अरब को हथियार और अन्य सहायता भी मिलती है. वहीं दूसरी तरफ ईरान हूथी विद्रोहियों का साथ देने से इनकार करता है.
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पूर्व राष्ट्रपति की हत्या
हूथी विद्रोहियों का साथ देने वाले यमन के पूर्व राष्ट्रपति सालेह ने साल 2017 में हूथियों का तीन साल पुराना साथ छोड़ने की घोषणा की थी. साथ ही कहा था कि वह सऊदी अरब और विद्रोहियों के बीच वार्ता के पक्ष में हैं. सालेह के इस प्रस्ताव को सऊदी अरब ने भी सकारात्मक ढंग से लिया था. लेकिन हूथी विद्रोहियों ने सालेह पर धोखे का आरोप लगाते हुए उनकी हत्या कर दी थी.
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अलगाववादियों की भूमिका
इन सब के बीच यहां अलगाववादियों की भी भूमिका बहुत अहम है. साल 1990 में दक्षिणी और उत्तरी यमन को मिलाकर यमन राष्ट्र का गठन किया गया था. लेकिन अब भी दक्षिण यमन के क्षेत्र में अलगाववादी भावना शांत नहीं हुईं हैं. अलगाववादी पहले हूथी विद्रोहियों के खिलाफ सरकार का समर्थन करते थे. लेकिन अब ये गुट सरकार पर भ्रष्टाचार और भेदभाव का आरोप लगाते हैं जिसके बाद तनाव बढ़ा है.
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आतंकी संगठनों की सक्रियता
आतंकी गुट अल कायदा और इस्लामिक स्टेट से जुड़े चरमपंथी संगठन भी दोनों पक्षों पर हमला करते रहते हैं. साल 2015 से शुरू हुए इस गृहयुद्ध में अब तक आठ हजार से भी अधिक लोग मारे जा चुके हैं और 42 हजार से भी अधिक लोग घायल हुए हैं. संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक यमन में दो करोड़ से भी अधिक लोगों को तत्काल मदद की जरूरत है. देश के इस आंतरिक संकट ने मानवीय त्रासदी का रूप ले लिया है.
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आज के हालात
देश की मौजूदा सरकार फिलहाल अदन को अपना ठिकाना बनाए हुए है. लेकिन अदन की सरकारी इमारतों पर अलगाववादियों का कब्जा है. वहीं राजधानी सना में हूथी विद्रोहियों का कब्जा है. जमीनी स्तर पर यमन में हालात बहुत खराब है. डब्ल्यूएचओ के आंकड़ों मुताबिक देश में महामारी शुरू होने के बाद से हैजे के चलते अब तक दो हजार से अधिक मौतें हो चुकी हैं.
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सऊदी अरब और उसका सहयोगी अमेरिका कहते हैं कि शिया बहुल ईरान हूथी बागियों को सैन्य समर्थन दे रहा है. यहां तक कि बागियों को बैलेस्टिक मिसाइल के हिस्से भी दिए जा रहे हैं जिन्हें वे सऊदी सीमा की तरफ दाग रहे हैं.
ईरान ऐसे आरोपों से इनकार करता है. उसका कहना है कि वह सिर्फ राजनीतिक रूप से हूथियों का समर्थन करता है. पूर्व यमनी एयर फोर्स अधिकारी ब्रिगेडियर जमाल अल मोम्मारी ने एएफपी को बताया ईरानी हथियार, विशेषज्ञ और "बैलिस्टिक मिसाइल तैयार करने के उपकरण" 2015 में पहुंचे.
सुरक्षा विश्लेषक एलेक्सांद्र मित्रेस्की कहते हैं कि ईरान प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष, दोनों तरह से हूथियों की मदद कर रहा है. उन्होंने कहा, "जहां भी और जब भी संभव हुआ, ईरान ने हूथी विद्रोहियों को सैन्य साजो सामान के साथ साथ ट्रेनिंग भी दी है और इसी के दम पर वह सऊदी अरब को टक्कर दे रहे हैं."
सऊदी नेतृत्व वाले गठबंधन का दावा है कि ईरान समर्थित लेबनानी मिलिशिया हिजबुल्ला के सदस्य भी हूथियों को ट्रेनिंग देते हुए यमन में मारे गए हैं. हिजबुल्ला इससे इनकार करता है.
जानिए सऊदी क्राउन प्रिंस को
सऊदी अरब को बदलने चला एक नौजवान शहजादा
31 साल के सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने अपने फैसलों से ना सिर्फ सऊदी अरब में, बल्कि पूरे मध्य पूर्व में खलबली मचा रखी है. जानिए वह आखिर क्या करना चाहते हैं.
तस्वीर: picture alliance/AP Photo/H. Ammar
अहम जिम्मेदारी
शाह सलमान ने अपने 57 वर्षीय भतीजे मोहम्मद बिन नायेफ को हटाकर अपने बेटे मोहम्मद बिन सलमान को क्राउन प्रिंस घोषित किया है. प्रिंस मोहम्मद बिन नायेफ से अहम गृह मंत्रालय भी छीन लिया गया है.
तस्वीर: picture-alliance/abaca/Balkis Press
संकट में मध्य पूर्व
सुन्नी देश सऊदी अरब में यह फेरबदल ऐसे समय में हुआ है जब एक तरफ ईरान के साथ सऊदी अरब का तनाव चल रहा है तो दूसरी तरफ कतर से रिश्ते तोड़ने के बाद खाड़ी देशों में तीखे मतभेद सामने आये हैं.
तस्वीर: Reuters/Saudi Press Agency
सब ठीक ठाक है?
कुछ लोगों का कहना है कि यह फेरबदल सऊद परिवार में अंदरूनी खींचतान को दिखाता है. लेकिन सऊदी मीडिया में चल रही एक तस्वीर के जरिये दिखाने की कोशिश की गई है कि सब ठीक ठाक है. इसमें प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान प्रिंस मोहम्मद बिन नायेफ का हाथ चूम रहे हैं.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/Al-Ekhbariya
तेजी से बढ़ता रुतबा
2015 में सऊदी शाह अब्दुल्लाह का 90 की आयु में निधन हुआ था. उसके बाद शाह सलमान ने गद्दी संभाली है. तभी से मोहम्मद बिन सलमान का कद सऊदी शाही परिवार में तेजी से बढ़ा है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/R. Jensen
सत्ता पर पकड़
नवंबर 2017 में सऊदी अरब में कई ताकतवर राजकुमारों, सैन्य अधिकारियों, प्रभावशाली कारोबारियों और मंत्रियों को भ्रष्टाचार के आरोपों में गिरफ्तार किया गया है. आलोचकों ने इसे क्राउन प्रिंस की सत्ता पर पकड़ मजबूत करने की कोशिश बताया.
तस्वीर: Fotolia/eugenesergeev
सुधारों के समर्थक
नये क्राउन प्रिंस आर्थिक सुधारों और आक्रामक विदेश नीति के पैरोकार हैं. तेल पर सऊदी अरब की निर्भरता को कम करने के लिए मोहम्मद बिन सलमान देश की अर्थव्यवस्था में विविधता लाना चाहते हैं.
तस्वीर: picture alliance/AP Photo/H. Ammar
तेल का खेल
सऊदी अरब दुनिया का सबसे बड़ा तेल निर्यातक देश है. उसकी जीडीपी का एक तिहायी हिस्सा तेल उद्योग से आता है जबकि सरकार को मिलने वाले राजस्व के तीन चौथाई का स्रोत भी यही है. लेकिन कच्चे तेल के घटते दामों ने उसकी चिंता बढ़ा दी है.
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सत्ता पर पकड़
मोहम्मद बिन सलमान क्राउन प्रिंस होने के अलावा उप प्रधानमंत्री और रक्षा मंत्री भी हैं. इसके अलावा तेल और आर्थिक मंत्रालय भी उनकी निगरानी में हैं, जिसमें दिग्गज सरकारी तेल कंपनी आरामको का नियंत्रण भी शामिल है.
तस्वीर: picture-alliance/abaca/Balkis Press
जंग छेड़ी
पिता के गद्दी संभालते ही युवा राजकुमार को देश का रक्षा मंत्री बनाया गया था. इसके बाद उन्होंने कई अरब देशों के साथ मिलकर यमन में शिया हूथी बागियों के खिलाफ जंग शुरू की.
तस्वीर: picture alliance/dpa/Y. Arhab
आक्रामक विदेश नीति
यमन में हस्तक्षेप सऊदी विदेश नीति में आक्रामकता का संकेत है. इसके लिए अरबों डॉलर के हथियार झोंके गये हैं. इसके चलते सऊदी अरब के शिया प्रतिद्वंद्वी ईरान पर भी दबाव बढ़ा है.
तस्वीर: picture-alliance /ZUMAPRESS/P. Golovkin
ईरान पर तल्ख
ईरान को लेकर मोहम्मद बिन सलमान के तेवर खासे तल्ख हैं. वह भी अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप की तरह ईरान को मध्य पूर्व में अस्थिरता की जड़ मानते हैं. उन्हें ईरान के साथ कोई समझौता मंजूर नहीं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/AP/E. Vucci
युवा नेतृत्व
प्रिंस मोहम्मद सऊदी अरब में खूब लोकप्रिय हैं. उनके उभार को युवा नेतृत्व के उभार के तौर पर देखा जा रहा है. अर्थव्यवस्था के लिए उनकी महत्वाकांक्षी योजनाओं से कई लोगों को बहुत उम्मीदें हैं.
ईरानी मदद के आरोपों के बावजूद ऐसा लगता है कि हूथी बागियों के पास जो हथियार हैं, वे यमन सरकारी हथियार भंडारों से लूटे हुए हथियार हैं. सरकार समर्थक बलों के एक प्रवक्ता ब्रिगेडियर अब्दो मजली कहते हैं, "हूथियों के पास 90 फीसदी हथियार यमनी सेना के डिपो से लिए गए हथियार हैं." उनके मुताबिक यह हथियार तभी लूटे गए जब 2014 में उन्होंने सना पर कब्जा किया.
माजली कहते हैं कि सऊदी गठबंधन के लड़ाकू विमानों ने अपनी बमबारी में हूथियों के कुछ हथियारों को तबाह कर दिया है लेकिन विद्रोही देश के उत्तरी हिस्से में "खुफिया ठिकानों पर" अपने हथियार छिपाने में कामयाब रहे हैं.
वायरल हुई यमनी बच्ची की तस्वीर
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विद्रोहियों के पास किस तरह के हथियार हैं, यह बंदरगाह शहर होदिदा में हुई लड़ाइयों में देखने को मिला जहां सरकारी बलों को आगे बढ़ने से रोकने के लिए उन्होंने टैंक तैनात किए थे. मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक हूथियों ने बड़ी संख्या में बारूदी सुरंगें भी बिछाई और अपने कुछ हथियार भी खुद ही बनाए हैं, जिनमें रॉकेट और ड्रोन भी शामिल हैं.
हूथियों को अपने इलाके में लड़ने और क्षेत्रीय गठबंधन बनाने का भी फायदा हुआ है. यही वजह है कि वे मध्य पूर्व की कई बेहतरीन सेनाओं को एक साथ टक्कर दे रहे हैं. विश्लेषक मित्रेस्की कहते हैं कि हूथियों का संबंध भले ही उत्तरी यमन से हो लेकिन उन्हें पूरे देश की जानकारी है.
वह कहते हैं, "भूगोल के अलावा भी देखें तो विद्रोहियों को स्थानीय कबीलों का भरपूर सहयोग मिल रहा है. यमन आज भी कबीलों के आधार पर विभाजित देश है और हूथी इसी का फायदा उठा रहे हैं."
अंतरराष्ट्रीय क्राइसिस ग्रुप ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा कि सऊदी नेतृत्व वाले गठबंधन ने हूथी बागियों को शुरू में बहुत हल्के में लिया. ग्रुप कहता है, "हूथियों के पास संसाधन हैं, वे वचनबद्ध हैं, अनुभवी और बर्बर भी हैं. वे ऐसे लड़ाके हैं कि अगर उनसे कहा जाए तो एक आदमी बचने तक भी वे पूरे जोश और जज्बे से लड़ेंगे."
एके/एनआर (एएफपी)
हाथ फैलाने को मजबूर यमन के बदनसीब बच्चे
यमन में जारी संघर्ष की बच्चों पर सीधी मार पड़ रही है. राजधानी सना में बहुत से ऐसे बच्चे हैं जिन्हें अब भीख मांग कर गुजारा करना पड़ रहा है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/M. Huwais
हाथ फैलाने को मजबूर
सना की सड़कों पर भीख मांगने वाले बच्चों में कई ऐसे हैं जिनके माता पिता दोनों लड़ाई में मारे गए हैं जबकि कई बच्चे अपने परिवार की मदद के लिए ऐसा कर रहे हैं.
तस्वीर: Getty Images/AFP/M.Huwais
गुजारा मुश्किल
सना में रहने वाले बहुत से लोग ऐसे हैं जिन्हें लड़ाई के कारण वेतन नहीं मिल रहा है. ऐसे में परिवार का गुजारा चलाना उनके लिए मुश्किल हो रहा है.
तस्वीर: Reuters/M. al-Sayaghi
नहीं मिला काम तो...
दो साल पहले लड़ाई में अपने पिता को गंवाने वाला 15 साल का मुस्तफा कहता है, “मैंने काम तलाशने की कोशिश की लेकिन मिला नहीं. जब खाने का संकट खड़ा हो गया तो मैं भीख मांगने लगा.”
तस्वीर: Reuters/Faisal Al Nasser
बिगड़े हालात
यमन में मार्च 2015 से हालात तब ज्यादा खराब हो गए जब सऊदी अरब के नेतृत्व में खाड़ी देशों के सैन्य गठबंधन में सना पर कब्जा करने वाले हूथी बागियों के खिलाफ कार्रवाई शुरू की.
तस्वीर: AFP/Getty Images/M. Huwais
लड़ाई की कीमत
संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि यमन में जारी लड़ाई में अब तक 7,400 से ज्यादा लोग मारे गए हैं जिनमें 1,400 बच्चे भी शामिल हैं.
तस्वीर: Getty Images/AFP/M. Huwais
कुपोषित बच्चे
लड़ाई से पहले भी यमन में खाने का संकट रहा है. संयुक्त राष्ट्र की बाल संस्था यूनिसेफ के मुताबिक यमन में 22 लाख बच्चे अत्यधिक कुपोषण के शिकार हैं.
तस्वीर: picture-alliance/AA/M. Hamoud
बच्चों से बेपरवाह
सना में काम करने वाले एक डॉक्टर अहमद यूसुफ का कहना है कि बच्चों के कुपोषण की समस्या से निपटने पर न तो सरकार ध्यान दे रही है और न ही गैर सरकारी संगठन. वह कहते हैं, “बच्चों को उनके हाल पर छोड़ दिया गया है.”
तस्वीर: picture-alliance/dpa/Y. Arhab
खाली जेब
सितंबर में राष्ट्रपति अब्दरब्बू मंसूर हादी ने केंद्रीय बैंक को सना से बाहर ले जाने का एलान किया. तभी से बहुत कर्मचारियों का वेतन नहीं मिला है. राष्ट्रपति हादी की सरकार की अस्थायी राजधानी अदन है.
तस्वीर: AP
संख्या में इजाफा
बच्चों के अधिकारों के लिए काम करने वाले एक यमनी संगठन सेयाज के प्रमुख अहमद अल-कुरैशी कहते हैं, “सना में सरकारी कर्मचारियों के वेतन रोके जाने के बाद भीख मांगने वाले बच्चों की संख्या में काफी इजाफा हुआ है.”
तस्वीर: picture-alliance/dpa/Y. Arhab
बेबसी
यूसुफ कहते हैं कि कुछ माता पिता बच्चों के इलाज के लिए अपना सामान बेच रहे हैं. लेकिन कुछ मामलों में, “बच्चा मर जाता है और पिता के हाथ में सिर्फ दवाई का पर्चा रह जाता है.”