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हेडली की गवाही से उठते सवाल

कुलदीप कुमार१२ फ़रवरी २०१६

मुंबई हमले के लिए अमेरिका में सजा काट रहे डेविड हेडली ने चौंकाने वाले खुलासे किए हैं. कुलदीप कुमार का कहना है कि सरकारी गवाह के बयान की जब तक स्वतंत्र पुष्टि नहीं होती, कानूनी व्यवस्था में उसे तथ्य नहीं माना जाता.

तस्वीर: AP

मुंबई हमले के लिए अमेरिका में सजा काट रहे डेविड हेडली ने चौंकाने वाले खुलासे किए हैं. कुलदीप कुमार का कहना है कि सरकारी गवाह के बयान की जब तक स्वतंत्र पुष्टि नहीं होती, कानूनी व्यवस्था में उसे तथ्य नहीं माना जाता.

दाऊद गिलानी से डेविड हेडली बनकर लश्कर-ए-तैयबा के लिए मुंबई के विभिन्न स्थानों की तस्वीरें खींचने और वीडियो फिल्म बनाकर 26/11 के आतंकवादी हमलों के लिए जमीन तैयार करने वाले डबल एजेंट की वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये मुंबई की एक अदालत के सामने दी जा रही गवाही से एक बार फिर उन्नीस वर्षीय इशरत जहां की हत्या और उसकी कथित आतंकवादी पृष्ठभूमि को लेकर राजनीति शुरू हो गई है. हालांकि हेडली ने सरकारी वकील उज्ज्वल निकम के पूछने पर पहले यह कहा कि उसे कुछ याद नहीं आ रहा, लेकिन फिर उनके याद दिलाने पर उसने माना कि उसे लश्कर के एक महत्वपूर्ण कमांडर ने बताया था कि वह संगठन के मॉड्यूल का हिस्सा थी. क्योंकि हेडली को उसका नाम भी याद नहीं आ रहा था, इसलिए निकम ने तीन नाम देकर उससे पूछा कि इनमें से कौन सा सही है. इस पर हेडली ने कहा कि उसे लगता है कि इशरत जहां का नाम ही बताया गया था और कहा गया था कि वह एक पुलिस के साथ हुई गोलीबारी में मारी गई थी. लेकिन हेडली को उस राज्य का नाम भी याद नहीं था जहां यह घटना घटी थी. जब निकम ने उससे महाराष्ट्र, कर्नाटक और गुजरात में से चुनने को कहा तब उसने गुजरात चुना. यानी अभी भी हेडली पूरी तरह से यकीनी तौर पर कुछ कहने की स्थिति में नहीं है.

लेकिन केंद्र सरकार और भारतीय जनता पार्टी को विपक्ष पर निशाना साधने का मौका मिल गया है और केन्द्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने कांग्रेस और उसकी अध्यक्ष सोनिया गांधी से कहा है कि उन्हें देश से माफी मांगनी चाहिए क्योंकि उन्होंने गुजरात पुलिस के इस दावे पर संदेह प्रकट किया था कि इशरत जहां आतंकवादी थी. उधर कांग्रेस प्रवक्ता मनीष तिवारी ने एक बयान जारी करके कहा है कि मूल प्रश्न यह है कि क्या इशरत जहां असली मुठभेड़ में मारी गई या गुजरात पुलिस के अधिकारियों ने योजना बना कर उसे और उसके तीन साथियों को मुंबई से अगवा किया और गुजरात लाकर मार दिया क्योंकि गुजरात हाईकोर्ट की निगरानी में सीबीआई द्वारा की गई जांच का यही निष्कर्ष था कि उसे झूठी मुठभेड़ दिखाकर मारा गया.

डेविड हेडली और उसके पहले मुंबई पर हमला करने वाले आतंकवादियों में से एक अजमल कसाब की गवाहियों से यह बात स्पष्ट हो जाती है कि पकड़े गए आतंकवादियों को जिंदा रखकर उनसे कितनी महत्वपूर्ण जानकारी हासिल की जा सकती है. किसी भी लोकतंत्र में, जहां संविधान के तहत कानून का शासन लागू है, पुलिस और सुरक्षाबलों को यह इजाजत नहीं दी जा सकती कि वे खुद ही अदालत की भूमिका भी निभाने लगें और अपराधियों या आतंकवादियों का नकली मुठभेड़ों में सफाया करने लगें.

सबसे पहला सवाल तो यही है कि क्या डेविड हेडली की हर बात को सच माना जा सकता है? कानूनी व्यवस्था यह है कि जब तक सरकारी गवाह द्वारा कही गई बातों की स्वतंत्र रूप से पुष्टि नहीं होती, तब तक उसे तथ्य नहीं माना जाता. यहां यह याद दिलाना अनुचित न होगा कि महात्मा गांधी की हत्या के बाद नाथूराम गोडसे और अन्य अभियुक्तों पर चले मुकदमे में विनायक दामोदर सावरकर सिर्फ इसलिए बरी हो गए थे क्योंकि सरकारी गवाह ने उनके और गोडसे के बीच हुई मुलाकात के बारे में जो जानकारी दी थी, उसकी पुष्टि के लिए अदालत के सामने कोई और प्रमाण पेश नहीं किया जा सका था. इसलिए हालांकि शक की सुई उनकी तरफ घूम चुकी थी, लेकिन सावरकर को साजिश के आरोप से बरी कर दिया गया. इसलिए जब तक भारतीय जांच एजेंसियां इशरत जहां के आतंकवादी होने का कोई अन्य प्रमाण नहीं जुटातीं, तब तक उसे आतंकवादी नहीं माना जा सकता. दूसरे, यदि वह आतंकवादी थी, तब भी नकली मुठभेड़ में उसका मारा जाना किसी भी तरह उचित नहीं ठहराया जा सकता. हां, यदि आने वाले दिनों में सीबीआई यह स्वीकार करती है कि उसकी पहली जांच रिपोर्ट गलत थी और इशरत जहां असली मुठभेड़ के दौरान गुजरात पुलिस की गोलियों का शिकार बनी, तब स्थिति बदल जाएगी. इशरत जहां और उसके साथियों के खिलाफ पुलिस का आरोप था कि वे नरेंद्र मोदी की हत्या की साजिश रचकर गुजरात आए थे. मोदी उस समय गुजरात के मुख्यमंत्री थे.

डेविड हेडली के बयान पर राजनीतिक बयानबाजी ऐसे माहौल में हो रही है जब अफजल गुरु की फांसी का विरोध करने वालों को देशद्रोही और नाथूराम गोडसे की फांसी का विरोध करने और उसके जन्मदिन पर सार्वजनिक रूप से उत्सव मनाने वालों को देशप्रेमी कहा जा रहा है. इससे देश में पनप रही राजनीतिक संस्कृति के बारे में भी बहुत कुछ पता चलता है.

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