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हैकर्स के निशाने पर क्लाउड डाटा

३ अक्टूबर २०१२

क्लाउड पर निजी डाटा इसलिए सेव किया जाता है क्योंकि हम इसे कहीं भी इस्तेमाल कर सकते हैं. लेकिन इसे हैकर्स भी उतनी ही आसानी से इस्तेमाल कर सकते हैं. लेकिन क्लाउड कंप्यूटिंग की दीवानगी में लोग ये खतरा भूले.

तस्वीर: picture-alliance/dpa

कई नई तकनीक के विकास के साथ ही हाल के सालों में क्लाउड कंप्यूटिंग का फैशन भी बढ़ा है. आज इसे इतना पसंद किया जा रहा है कि इसे कोई चुनौती दे नहीं सकता. ऐसा माना जा रहा है कि चाहे कोई डाटा हो, म्यूजिक फाइल हो, फोटो या वर्ड फाइल, सब कुछ क्लाउड में रख दिया जाए. और बहुत सारे लोग ऐसा कर रहे हैं. अमेरिका स्थित सॉफ्टवेयर कंपनी यूनिवा के सीईओ और अध्यक्ष गैरी टिरमन कहते हैं, "क्लाउड कंप्यूटिंग एक क्षमता है ताकि आप जरूरत के हिसाब से कंप्यूटिंग रिसोर्सेस का इस्तेमाल कहीं से भी कर सकें."

लेकिन डाटा सुरक्षा का खतरा है और इसके साइबर अपराधियों के हाथ पड़ने की भी आशंका है. नॉर्टन साइबर क्राइम की सालाना रिपोर्ट कहती है कि दुनिया भर में होने वाले ऑनलाइन अपराधों के कारण दुनिया की अर्थव्यवस्था को 2011 में करीब 110 अरब डॉलर का नुकसान हुआ. साथ ही रिपोर्ट में कहा गया है कि करीब 556 अरब लोग दुनिया में साइबर अपराध का कभी न कभी शिकार हुए हैं. यह पूरे यूरोप की जनसंख्या से भी ज्यादा है.

बॉक्स क्रिप्टर का सॉफ्टवेयर प्रोग्रामतस्वीर: Secomba GmbH

एनक्रिप्शन से कम खतरा

डाटा को कोड में लिखना यानी एनक्रिप्शन. इससे वह लोग डाटा नहीं पढ़ सकते जिन्हें यह पढ़ने की अनुमति नहीं है. सामान्य तौर पर कोड एक पासवर्ड से ही खुल सकते हैं. इससे डाटा 100 फीसदी सुरक्षित तो नहीं हो सकता लेकिन यह हैकिंग पर ब्रेक लगा सकता है. ठीक साइकल के पैडल लॉक की तरह. क्लाउड के लिए एनक्रिप्ट करने वाली जर्मन कंपनी बॉक्सक्रिप्टर के सीईओ और संस्थापक आंद्रेया विटेक कहती हैं, "क्लाउड में डाटा जाने के पहले इसका एनक्रिप्शन किया जाता है. यह आपके डाटा सुरक्षा के लिए जरूरी है और यह सुनिश्चित करता है कि आपका निजी और संवेदनशील डाटा निजी ही रहे."

विटेक का कहना है कि वित्तीय जानकारी, कर्मचारियों की निजी जानकारी या मिल्कियत संबंधी गोपनीय जानकारी रखने वाली कंपनियों के लिए एनक्रिप्शन जरूरी है. "सुरक्षा लीक होना या हैकरों के हमले की आशंका बहुत ज्यादा है क्योंकि क्लाउड सर्वर में बहुत सारा डाटा सेव किया जा सकता है और इसलिए यह हैकर्स के लिए आकर्षक होता है.

लेकिन यह किसी व्यक्ति के साथ भी हो सकता है, उनके साथ भी जिन्हें इसकी जानकारी है. टेक मैगजीन वायर्ड के लेखक मैट होनैन का पूरा डिजिटल डाटा अगस्त में चोरी हो गया. उनके एप्पल आई क्लाउड अकाउंट से उनका ट्विटर, आईपैड, लैपटॉप, आईफोन फाइलें, आठ साल के अहम इमेल, उनकी बेटी के फोटो, सब हैक कर लिया गया.

तस्वीर: picture-alliance/dpa

हालांकि डाटा इनक्रिप्शन भी इसका शिकार हो सकता है. एक अहम सवाल इस मुद्दे में यह है कि डाटा पर किसका अधिकार होना चाहिए जब लिखने वाली और एनक्रिप्ट करके उसे सेव करने वाली पार्टियां अलग अलग हैं.

कौन जवाबदेह

बॉक्सक्रिप्टर जैसी कुछ कंपनियां एनक्रिप्शन के सॉफ्टवेयर भी देती हैं. इसका मतलब है कि इस कंपनी का डाटा से कोई लेना देना नहीं है वह सिर्फ सॉफ्टवेयर पेश करती है. विटेक बताती हैं, "यूजर हमेशा डाटा का मालिक रहता है. हमारी कंपनी आपके डाटा को कभी नहीं छूती."

लेकिन यूनिवा के गैरी टिरमन कहते हैं कि डाटा चोरी होने या हैक होने की स्थिति में जिम्मेदारी तय करना पेचीदा है. "हम देखते हैं कि कई संगठन बौद्धिक संपदा या जवाबदेही के मुद्दे से जूझ रहे हैं. जवाबदेही तब होगी जब मैं अपना क्लाउड डाटा रखता हूं और वह हैक हो जाता है या फिर बिना अनुमति के इस्तेमाल कर लिया जाता है. इसके लिए कौन जिम्मेदार है. मुझे लगता है कि यही कई कंपनियों को (क्लाउड क्म्प्यूटिंग से) आज भी रोके हुए है." वहीं क्वांटा कंसल्टिंग के प्रबंध निदेशक मिचेल ओसाक कहते हैं, "क्लाउड सुविधा देने वाले लोगों के बीच डाटा अधिकार के बारे में मतभेद हो सकते हैं. वैसे तो एक व्यक्ति या कंपनी को उनके डाटा के अधिकार मिल जाते हैं. हालांकि सुविधा देने वाले को अक्सर खत्म नहीं किए जा सकने वाले स्थाई लाइसेंस की जरूरत होती है ताकि क्लाउड में डाटा स्टोर किया जा सके. यह इसलिए जरूरी है कि प्रोवाइडर बैकअप बना सके. जैसे कि डाटा एक जगह से दूसरी जगह कॉपी कर सके."

अमेरिका की नेटवर्किंग कंपनी सिस्को का अनुमान है कि अगले पांच साल में क्लाउड कंप्यूटिंग पांच गुना बढ़ जाएगी. अगर ऐसा होता है तो डाटा सुरक्षा बढ़ाने की मांग होगी. सुरक्षा बढ़ेगी भी क्योंकि बहुत सारे लोग संवेदनशील डाटा क्लाउड में रखेंगे. विटेक कहती हैं, "समस्या यह है कि जब तक डाटा चोरी न हो जाए या फिर हैक न हो जाए, आपको पता नहीं चलता कि आपके पास संवेदनशील डाटा है."

रिपोर्टः मैक बेंजामिन/एएम

संपादनः महेश झा

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