जर्मन शहर बोखुम और अमेरिका में टैक्सास के वैज्ञानिकों ने पता किया है कि हैजा के कीटाणु मानव शरीर के तापमान की मदद से अपना शिकार खोजते हैं. अब ऐसी दवाएं बनाने की कोशिश हो रही है जो बैक्टीरिया को मानव शरीर में बेअसर कर दे.
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हैजा हर साल दुनिया भर में हजारों लोगों की जान लेता है. ये बीमारी गंदे पानी से फैलती है. इसे रोकने के लिए असरदार दवाओं का विकास बेहद अहम है. जर्मनी में बोखुम विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने पता किया है कि 37 डिग्री सेल्सियस के तापमान में ही हैजे का बैक्टीरिया विब्रियो कोलेरे एक्टिवेट होता है.
बोखुम विश्वविद्यालय के प्रोफेसर फ्रांत्स नार्बरहाउस इसे समझाते हैं, "बीमारी फैलाने वाले जीन्स 20 से 25 डिग्री तापमान में अपना काम शुरू नहीं कर पाते. लेकिन जब बैक्टीरिया मानव शरीर पर हमला करता है, यानी जब हम इसे निगलते हैं और जब यह हमारे पेट में 37 डिग्री तापमान वाले माहौल में आता है, तो बीमारी फैलाने वाले जीन्स इस गर्मी में सक्रिय होने लगते हैं."
37 डिग्री में चकमता बैक्टीरिया
तापमान को लेकर बैक्टीरिया की संवेदनशीलता का पता शोधकर्ताओं को एक प्रयोग के दौरान लगा जिसमें एक रंग की मदद के सक्रिय जीन सीक्वेंस को मापा गया. 37 डिग्री में जब बीमारी वाले जीन्स सक्रिय होते हैं तो वे पराबैंगनी किरणों से चमकने लगते हैं. 20 डिग्री में ऐसा नहीं होता. बैक्टीरिया के सक्रिय होने का कारण उसके आरएनए यानी राइबोन्यूक्लिक एसिड के ढांचे में छिपा है. अगर ढांचा खुला होता है, तो बैक्टीरिया बीमारी फैलाता है. अगर आरएनए बंद है, तो कुछ नहीं होता.
प्रयोग के जरिए आरएनए के बंद या खुले होने को चेक किया जाता है. वैज्ञानिक एक एन्जाइम का इस्तेमाल करते हैं जो सिर्फ खुले आरएनए के छोटे टुकड़े कर सकता है. प्रयोग दिखाता है कि आरएनए मुड़ा है या खुला. हम देख सकते हैं कि कम तापमान में वह बंद रहता है और इसलिए यहां कोई टूटे टुकड़े नहीं हैं. तापमान बढ़ने पर आरएनए ढांचा खुलने लगता है और वह मुड़ा नहीं रहता.
स्वस्थ रहने के 13 आसान तरीके
हमारे आसपास हवा और पानी में कई तरह की बीमारियां मौजूद होती हैं, जिन पर हम ध्यान नहीं देते. लेकिन खुद को इनसे दूर रखने के लिए कुछ बातें अपनाना बेहद जरूरी है...
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कार, रिक्शा, कुर्सी हो या दरवाजे का हैंडल, कब उन पर किस तरह के संक्रमण मौजूद हैं हमें पता नहीं चलता. ये हमें गंभीर रूप से बीमार कर सकते हैं. इन्हें छूने के बाद साबुन से हाथ धोना हमें इनसे बचा सकता है.
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आजकल लगभग हर काम के लिए कंप्यूटर का इस्तेमाल होता है. काम खत्म करने के बाद हाथों को सफाई से धोना या फिर सैनिटाइजर से साफ करना अच्छा होता है. कहीं बाहर से घर आने पर भी हाथ मुंह सफाई से धोना चाहिए.
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रसोई में भी कई भयानक बीमारियों वाले जीवाणु हमारे मुंह में जा सकते हैं. कटिंग बोर्ड पर मांस या कोई भी सब्जी काटने के बाद इसे धोना जरूरी है. इस्तेमाल से पहले चेक कर लें कि आप धुला हुआ बोर्ड ही इस्तेमाल कर रहे हैं.
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नहाने की जगह भी कई बीमारियों को न्यौता देती है. स्नानगृह का गीला होना खतरे पैदा कर सकता है. जितना हो सके इसे साफ और सुखाकर रखना चाहिए.
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आपके घर में इस्तेमाल होने वाले तरह तरह के ब्रश भी कई बीमारियों का घर हो सकते हैं. इस्तेमाल के बाद इन्हें धो कर रखना चाहिए. अगर मुमकिन हो तो ब्रश को हर महीने बदलना चाहिए.
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टूथब्रश इस्तेमाल करने के बाद इसमें कई जीवाणु छूट सकते हैं. जरूरी है कि इस्तेमाल के बाद इसे हमेशा सफाई से धोकर रखा जाए. और गर्म पानी से धोना सबसे अच्छा है.
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पौधों के लिए पानी जरूरी है ये सही है लेकिन गमलों में जमा पानी बीमारियों की वजह बन जाता है. ज्यादा पानी भरा रहने से मच्छर और अन्य कीड़ों के पानी में रहने की आशंका बढ़ जाती है. ये कीड़े आपको बीमार कर सकते हैं.
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कभी भी इंजेक्शन लगवाएं तो इस बात का खास ख्याल रखें कि सूई हमेशा नई हो. किसी संक्रमित व्यक्ति के शरीर में इस्तेमाल की जा चुकी सूई गंभीर बीमारियों का कारण बन सकती है.
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बस, ट्रेन या मीटिंग में किसी बीमार व्यक्ति से आपको भी जुकाम और अन्य हवा से फैलने वाली बीमारियां लग सकती हैं. इनसे दूर रहें. खासकर वे जो शारीरिक रूप से कमजोर हैं क्योंकि ऐसे में बीमारी ज्यादा आसानी से आक्रमण करती है.
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पानी पीने से पहले यह पता करना जरूरी है कि वह पानी साफ है या नहीं. कई बीमारियों को फैलाने वाले सूक्ष्म जीव पानी में रहते हैं. अगर शक हो तो केवल मिनरल वॉटर ही लें.
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बच्चों को बहुत बचपन में ही संक्रमण के बारे में जानकारी दी जानी चाहिए. उन्हें यह समझाना बहुत जरूरी है कि गंदगी उन्हें बीमार कर सकती है. खासकर शरीर की साफ सफाई की जानकारी अच्छे से दी जानी चाहिए.
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सड़क पर ठेलों पर बिकने वाला चटपटा खाना किसे अच्छा नहीं लगता लेकिन यह बीमारियों की जड़ हो सकता है. जितना हो सके इससे बचना चाहिए. फल और सलाद को खाने से पहले बहुत देर तक खुला नहीं रखना चाहिए. इन्हें काटते ही खा लेना चाहिए.
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कई बार छुट्टियों से लौट कर हम बीमार हो जाते हैं. यात्रा के दौरान हम खानपान और सफाई का ज्यादा ख्याल नहीं रखते. यह ठीक नहीं. इस दौरान सेहत का ज्यादा ध्यान रखना चाहिए.
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आरएनए डीएनए की कॉपी होता है. बैक्टीरिया को आरएनए प्रोटीन बनाने का कोड देता है. प्रोटीन बनाने वाले बैक्टीरिया की छोटी फैक्ट्रियां आरएनए से जुड़ती हैं और वहीं से प्रोटीन बनाने का कोड लेती हैं. अगर हैजे का बैक्टीरिया 20 डिग्री ठंडे पानी में मौजूद है, तो उसका आरएनए मुड़ा हुआ होता है. बीमार करने वाले जहर को पैदा करने वाले प्रोटीन का कोड बैक्टीरिया के आरएनए में होता है. प्रोटीन के कोड वाली जगह में आरएनए बंद रहती है.
प्रोटीन बनने से गड़बड़
अगर बैक्टीरिया मनुष्य के पेट में पहुंचता है तो वहां उसे 37 डिग्री वाली गर्मी मिलती है, जिसमें आरएनए का बंद ढांचा खुल जाता है और बीमारी वाले प्रोटीन बनने लगते हैं. इंसान को हैजा हो जाता है. जानवरों पर प्रयोग कर रहे शोधकर्ता अब आरएनए को इस हद तक बदल पाए हैं कि आरएनए का बंद ढांचा गर्मी में भी न खुले. हैजे के बैक्टीरिया के बावजूद यह चूहे स्वस्थ हैं.
लेकिन इंसानों के लिए ऐसी दवा बनाने में अभी वक्त लगेगा. वैज्ञानिक एक ऐसे पदार्थ को खोज रहे हैं जो हैजे के आरएनए से ऐसा जुड़ जाए कि वह शरीर के 37 डिग्री वाले तापमान में भी बंद रहे. इस तरह की दवा को पीने के पानी में मिलाया जा सकेगा. प्रोफेरसर नार्बरहाउस के मुताबिक, "अगर हैजे की बीमारी फैलने का खतरा हो तो आप यह पदार्थ, यह दवा, पानी में मिला सकते हैं और जब वह बैक्टीरिया पर असर करेगी तो वह बैक्टीरिया के आरएनए को खुलने से रोकेगी और अगर बैक्टीरिया बेअसर रहता है तो वह बीमारी भी नहीं फैला सकता." अगर ये प्रयोग सफल रहता है, तो हैजे के बैक्टीरिया को बेअसर करना संभव हो सकेगा.