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समाज

हैती: भूकंप पीड़ित महिलाओं को अब बलात्कार का डर

२६ अगस्त २०२१

हैती में भूकंप की वजह से अपने घर गंवा चुकीं महिलाओं को अब अस्थायी शिविरों में बलात्कार का डर सता रहा है. 2010 के भूकंप के बाद भी इसी तरह शिविरों में रह रही महिलाओं के बलात्कार के सैकड़ों मामले सामने आए थे.

तस्वीर: Joseph Odelyn/AP Photo/picture alliance

हैती की वेस्ता ग्वेरियर हाल ही में आए भूकंप में खुद को बचाने में तो सफल रहीं लेकिन उनका घर ढह गया. तब से वो एक अस्थायी कैंप में रहती हैं जहां उन्हें यह डर हमेशा सताता है कि उनके साथ कभी भी बलात्कार हो सकता है. 48 वर्षीय ग्वेरियर कहती हैं, "हमलोग सुरक्षित नहीं हैं...हमें कुछ भी हो सकता है. खासकर रात में, कोई भी कैंप में घुस आ सकता है."

यही चिंता दूसरी महिलाओं को भी है जो उस यौन हिंसा के बारे में अच्छी तरह से जानती हैं जो देश में इसके पहले आई प्राकृतिक विपदाओं के बाद हुई है. ग्वेरियर, उनके पति और तीन बच्चों का घर लकड़ी की छड़ियों और प्लास्टिक की चादरों से बनाया कच्चा घर था. उन्होंने उसे राजधानी पोर्ट-ओ-प्रिंस के दक्षिण पश्चिम में स्थित प्रायद्वीप के शहर 'ले कायेस' के स्पोर्ट्स सेंटर में बनाया था. इस शहर पर भूकंप का काफी भारी असर हुआ है.

डर बेवजह नहीं

14 अगस्त को 7.2 तीव्रता का जो भूकंप आया था उसमें 2,200 से भी ज्यादा लोग मारे गए थे. हजारों घर या तो नष्ट हो गए या बुरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गए थे. अभी भी 2010 के विनाशकारी भूकंप से उबर रहे देश के लिए यह बड़े संकट का समय है.

भूकंप के बाद शिविर में भारी बारिश के बीच संघर्ष करते बेघर लोगतस्वीर: Joseph Odelyn/AP Photo/picture alliance

11 साल पहले आए उस भूकंप में तो 2,00,000 से ज्यादा लोग मारे गए थे. उसके बाद कुछ लोगों को अस्थायी शिविरों में कई साल बिताने पड़े थे जहां हथियारबंद पुरुषों के समूहों ने उनका शोषण किया था. ठसाठस भरे हुए इन शिविरों में ज्यादा रोशनी नहीं होती थी और यह लोग शाम ढलने के बाद इनमें घूमा करते थे.

2011 में एमनेस्टी इंटरनेशनल द्वारा जारी की गई एक रिपोर्ट के मुताबिक आपदा के बाद के लगभग पांच ही महीनों में बलात्कार के 250 से भी ज्यादा मामले दर्ज किए गए. एमनेस्टी ने यह भी कहा कि कई गैर सरकारी समूहों का मानना था कि असली संख्या इससे कहीं ज्यादा थी.

ग्वेरियर जिस कैंप में हैं वहां करीब 200 लोग रह रहे हैं और ऐसे हालात में प्राइवेसी लगभग असंभव है. हमले की आशंका से ग्वेरियर इतनी डरी रहती हैं कि वो अंधेरा होने की बाद ही नहाती हैं और तब भी नहाते वक्त सारे कपड़े नहीं उतारतीं. जब कभी कैंप के अंधेरे में उन पर रोशनी पड़ती है तो वो इस सोच में डूब जाती हैं कि रोशनी डालने वाला उनका कोई पड़ोसी है या कोई ऐसा "जो वो करना चाहता है."

युवा लड़कियों की रक्षा

कैंप में चालू टॉयलेट नहीं हैं जिसकी वजह से ग्वेरियर डरी और लज्जित महसूस करती हैं क्योंकि "लोग आपको हर दिशा से देख सकते हैं." वो कहती हैं, "मैं जो आपको बता रही हूं वो सिर्फ लड़कियां समझ सकती हैं. हम महिलाएं और यहां के छोटे बच्चे, हम बहुत कष्ट भोग रहे हैं."

बेघर लोग इस तरह के शिविरों में रह रहे हैंतस्वीर: Ralph Tedy Erol/REUTERS

कैंप में मौजूद दूसरे लोगों ने भी अपने डरों के बारे में बताया. तीन महीनों से गर्भवती फ्रांसिस डोरिमोंड कहती हैं, "हम बहुत डरे हुए हैं. हम अपने बच्चों के लिए सही में डरे हुए हैं. हमें टेंट चाहिए ताकि हम फिर से अपने परिवारों के साथ रहना शुरू कर सकें."

इस कैंप पर हमलों के खतरे की वजह से थोड़ी ही दूर एक और अस्थायी कैंप तैयार हो गया है. पास्टर मिलफोर्ट रूजवेल्ट ने बताया कि वहां "सबसे ज्यादा असुरक्षित" लोगों को रखा गया है. 31 साल के पास्टर ने समझाया, "हम युवा लड़कियों की रक्षा करते हैं. हमने एक सिक्योरिटी टीम बनाई है जो रात को गश्त लगाती है और सुनिश्चित करती है कि कोई भी इन महिलाओं के खिलाफ हिंसा ना कर पाए."

"सही मायनों में जी ही नहीं रहे"

2016 में आए तूफान मैथ्यू ने जिस नाइटक्लब को पूरी तरह से नष्ट कर दिया था, उसके अवशेषों में दर्जनों लोगों ने पनाह ले रखी है. वो दीवारों के बीच लगाए हुए चादरों और तिरपाल के नीचे रह रहे हैं. यहीं पर जैस्मीन नोएल ने अपने 22 महीने के बच्चे के लिए एक बिस्तर बनाने की कोशिश की.

अस्थायी शिविरों में महिलाएं काफी डर में जी रही हैंतस्वीर: Ricardo Arduengo/REUTERS

उन्होंने बताया, "जिस रात भूकंप आया था, मैं बगल के मैदान में सोने जा रही थी लेकिन उन लोगों ने मुझसे कहा कि यह ठीक नहीं है, तो उन लोगों ने मुझे यहां जगह दे दी." उन्होंने यह भी कहा, "कुछ लोग हमेशा इस तरह के हालात का फायदा उठा कर कुछ गलत करने की कोशिश करते हैं. उन्होंने कहा कि उन्हें अपने कष्टों की वजह से लगता है कि अब वो "सही मायनों में जी नहीं रही हैं."

नोएल उम्मीद कर रही हैं की गलियों में सामान बेचने वाली उनकी मां की उस दिन इतनी कमाई हो गई हो कि वो उनके लिए खाना ला सकें. वो कहती हैं, "हमारे शरीर तो यहीं हैं, लेकिन हमारी आत्माएं नहीं."

सीके/एए (एएफपी)

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