कभी कभी रोजमर्रा का काम करते हुए कुछ ऐसा हो जाता है जिसकी आप उम्मीद ही नहीं करते. हैम्बर्ग में एक स्पोर्ट्स फील्ड में खुदाई कर रहे मजदूरों के साथ कुछ ऐसा ही हुआ.
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हैम्बर्ग के एक स्पोर्ट्स क्लब में कुछ बदलाव होने थे, इसलिए यहां के मैदान में खुदाई का काम चल रहा था. इसी दौरान जमीन से 40 सेंटीमीटर नीचे कंक्रीट से बना एक ढांचा सा दिखा. मजदूरों ने बहुत ध्यान से इस पर से मिट्टी हटायी. अंत में जो मिला, उसे देख कर वे हैरान रह गये. यह एक विशालकाय स्वास्तिक था, जिसका आकार 13 गुणा 13 फीट बताया गया है.
जर्मनी में स्वास्तिक नाजी काल की निशानी है. हिन्दू धर्म में इस्तेमाल होने वाले स्वास्तिक को हिटलर ने अपनी पार्टी के निशान के रूप में इस्तेमाल किया. आज उग्रदक्षिणपंथी इसका इस्तेमाल करते हैं. जर्मनी में कपड़ों या गहनों में किसी भी रूप में स्वास्तिक पहनने पर मनाही है क्योंकि इसे यहूदियों पर हुई त्रासदियों के साथ जोड़ कर देखा जाता है.
बिलश्टेट हॉर्न नाम के स्पोर्ट्स क्लब के अध्यक्ष योआखिम शिर्मर ने समाचार एजेंसी डीपीए को बताया कि इस जगह पर 70 के दशक में एक नाजी स्मारक था, जिसे बाद में यहां से हटा दिया गया था. शिर्मर ने बताया कि स्वास्तिक इतना बड़ा था कि उसे वहां से हटाना भी मुश्किल था. शिर्मर के अनुसार ड्रिलिंग मशीन की मदद से इस कंक्रीट के छोटे छोटे टुकड़े किये गये. नगरपालिका की एक प्रवक्ता ने बताया कि स्वास्तिक की जानकारी मिलते ही, उसे वहां से हटाने के लिए टीम भेज दी गयी क्योंकि उन्हें डर था कि उग्रदक्षिणपंथी वहां पहुंच सकते हैं.
जर्मनी में कई बार अराजक तत्व स्प्रे पेंट से लोगों के घरों या गाड़ियों पर स्वास्तिक बना देते हैं. पकड़े जाने पर इन्हें सजा और जुर्माना, दोनों हो सकते हैं. अमेरिका में भी डॉनल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति चुने जाने के बाद कई जगह स्वास्तिक बना दिखा.
आईबी/ओएसजे (डीपीए, एपी)
क्या होता है जब गांव में निकलता है सोना
बन्टाको अफ्रीकी देश सेनेगल के दक्षिण-पूर्वी हिस्से में बसा एक छोटा सा गांव है. 2008 तक यह एक खेती किसानी करने वालों का एक आम गांव था लेकिन फिर इस गांव में मिला सोना और गांव की स्थिति ही बदल गयी.
तस्वीर: DW/F. Annibale
सुनहरे पत्थर
बन्टाको गांव में सोने की एक छोटी सी खदान का सारा काम देखने वाले डोऊसा कहते हैं, "जब हमने 2007-2008 में सोना खोजा, गांव पूरी तरह बदल गया. गांव में हम 2 हजार लोग रह रहे थे, लेकिन अब यहां 6 हजार से भी ज्यादा लोग रहते हैं". बन्टाको की खदानों में हर रोज 3 हजार से भी ज्यादा खनिक काम करते हैं, जहां उन्हें ऐसे पत्थर मिलते हैं, जिसमें थोड़ा सा सोना होता है.
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गांव के हवाले खनन का काम
इन अस्थाई सुरंगों में काम करने वाले खनिकों पर गांव के लोग अनाधिकारिक रूप से नजर रखते हैं. वे इस बात का ध्यान रखते हैं कि यहां जो भी खनन के लिए आए उनके पास खनन मंत्रालय का जारी किया हुआ कार्ड हो. डोऊसा कहते हैं,"आप देखिए यहां स्टेट पूरी तरह गायब है, तो हम, गांव के लोग खनन के काम को देखते और नियंत्रित करते हैं. वो यह भी कहते हैं कि अगर किसी ने पहले उनसे बात नहीं की है तो वे वहां काम नहीं कर सकता.
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कमाई का जुगाड़
खदान में काम करने वाले मामाडोऊ कहते हैं, "मैं यहां बस काम करने के लिए हूं. मेरे गांव में कोई काम नहीं था. वहां नौकरियां नहीं थीं. यहां मैं घर भेजने के लिए पर्याप्त पैसे बचा रहा हूं. मुझे बस इसी बात की परवाह है. यहां काम करने की परिस्थितियां बहुत कठिन हैं. स्वास्थ्य, सुरक्षा नियम और श्रमिक अधिकार को कोई अता पता नहीं हैं."
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गांव की बढ़ी रफ्तार
सोने की खानों से पहले, गांव में कोई मोटरसाइकिल नहीं थी. सोने का व्यापार करने वालों को बन्टाको से दूर के इलाकों में आने जाने की जरूरत पड़ी. इसके बाद पेट्रोल बेचने वाले, मैकेनिक और दूसरे लोग इस गांव में पहुंचे और लोगों के मूलभूत जीवन को बदल दिया.
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औजारों की दुकानें भी खुलीं
बन्टाको की मुख्य सड़क के साथ-साथ गांव के कई हिस्सों में छोटी छोटी दुकानें खुल गयी हैं. इन दुकानों में घातु के वे सब औजार बिकते हैं जो मजदूरों को खुदाई के लिए चाहिए. गांव के एक दुकानदार मलिक कहते हैं, "मैं यहां बस व्यापार करने आया हूं". वे बन्टाको से दूर दूसरे इलाके में रहते हैं. कुछ साल पहले तक यहां दूर दूर तक ऐसा व्यापार कर सकने की कोई गुंजाइश नहीं थी.
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खेती से खनन तक का सफर
इस गांव में रह रहे 45 वर्षीय वाले केईटा कहते हैं, "सोने की खोज करने से पहले इस गांव में मुश्किल से कोई पक्का घर था. यहां तक कि मेरा अपना घर भी, जो अब सीमेंट और ईंट का बन गया है. ये कभी संभव नहीं था अगर मैं खेती ही करता रहता". केईटा पहले किसान थे लेकिन सोने के बारे में पता चलने के बाद वे भी खुदाई करने लगे.
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खनन के पुराने तरीके
सोने के खनन के लिए उद्योग में बहुत अच्छी मशीने हैं जो सोने और पत्थर को अलग कर देती हैं, लेकिन ये मशीनें महंगी हैं. गांव के जो लोग सोने की खुदाई करते हैं वे इन पत्थरों को तोड़ते हैं फिर उन्हें गीला करके कुछ समय के लिए छोड़ देते हैं. फिर इन्हें दुबारा पीस कर उसमें से सोना खोजने की कोशिश करते हैं.
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मेहनत का काम
दूसरी बार पत्थरों को थोड़कर बारीक किया जाता है. इसके बाद उन्हें एक छलनी से छाना जाता है और इस बात को सुनिश्चित किया जाता है कि उस मिश्रण में से सोने का हर टुकड़ा चुन लिया जाए. इस काम को करने में घरों में सभी लोग साथ देते हैं. गर्मियों की दिनों में जब स्कूलों में छुट्टी होती है तब बच्चे भी इस काम में हाथ बंटाते हैं.
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पर्यावरण को नुकसान
गांव की आर्थिक स्थिति में जो उछाल आया उससे गांव में काम करने वाले लोगों के साथ नयी परेशानियां भी साथ आईं. जैसे खनन से निकलने वाले कचरे की समस्या. गांव के लोग खुदाई के बाद के सारे कचरे को गांव के पास की नदी में यूं ही बहा देते हैं. गांव के कुछ लोगों को इस बात की भी चिंता है कि एक दिन जमीन से सोना निकलता बंद हो जाएगा. तब इस गांव का क्या होगा.