14 साल की बच्ची कुछ ही दिनों में 23 साल की हो गई. वो बड़ी दिखने भी लगी और पासपोर्ट पर भी उसकी उम्र 23 साल दर्ज थी. रही सही कसर झूठ बोलने की ट्रेनिंग ने पूरी कर दी.
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इंडोनेशिया के पूर्वी जावा प्रांत के एक निर्धन परिवार से मिलने कुछ लोग गए. उन्होंने 14 साल की बच्ची सिती को देखा और मां बाप से कहा कि उनकी बच्ची को विदेश में घरेलू कामकाज करने के बदले अच्छे पैसे मिलेंगे. मां बाप बेटी को विदेश भेजने के लिए राजी हो गए. लेकिन एक समस्या थी. सिती नाबालिग थी. विदेश जाकर नौकरानी का काम करने के लिए इंडोनेशिया में कानूनन उम्र 21 साल होनी चाहिए.
लेकिन यह कोई बड़ा रोड़ा नहीं था. कानून को गच्चा देने के लिए जॉब्स एजेंसी के तस्करों ने सिती का पासपोर्ट बनाने की तैयारी शुरू की. सिती को बड़ी महिला के रूप में दिखाने के लिए उसका चेहरा मोहरा भी बदला. भौंहों और दूसरे नैन नक्श बदले गए. कोशिश की गई कि सिती 23 साल की दिखे. सिती के मुताबिक, "उन्होंने मुझे उम्र के बारे में झूठ बोलने की ट्रेनिंग भी दी. मैं बार बार खुद से कहती थी कि मैं 23 साल की हूं."
बच्चे नहीं, मजदूर
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बच्चे नहीं, मजदूर
हर साल 12 जून को बाल श्रम विरोधी अंतरराष्ट्रीय दिवस के रूप में मनाया जाता है. लेकिन दुनिया भर में अब भी करीब 17 करोड़ बच्चे मजदूरी कर रहे हैं. 1999 में विश्व श्रम संगठन (आईएलओ) के सदस्य देशों ने एक संधि कर शपथ ली कि 18 साल के कम उम्र के बच्चों को मजदूर और यौनकर्मी नहीं बनने दिया जाएगा.
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मेड इन इंडिया तौलिये
दक्षिण भारतीय राज्य तमिलनाडु में बाल मजदूर. इस फैक्ट्री में तौलिये बनाए जाते हैं. मजदूरी करने वाला यह बच्चा करोड़ों बाल मजदूरों में एक है. आईएलओ के मुताबिक एशिया में ही 7.80 करोड़ बच्चे मजदूरी कर रहे हैं. पांच से 17 साल की उम्र की युवा आबादी में से करीब 10 फीसदी से नियमित काम कराया जाता है.
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स्कूल से कोई वास्ता नहीं
पढ़ाई लिखाई या खेल कूद के बजाए ये बच्चे ईंट तैयार कर रहे हैं. भारत में मां-बाप की गरीबी कई बच्चों को मजदूरी में धकेल देती है. भारत के एक ईंट भट्टे में काम करने वाली इस बच्ची को हर दिन 10 घंटे काम करना पड़ता है, बदले में मिलते हैं 60 से 70 रुपये.
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सस्ते मजदूर
भारत की जनगणना रिपोर्ट के मुताबिक देश में 1.26 करोड़ बाल मजदूर हैं. ये सड़कों पर समान बेचते हैं, सफाई करते हैं, या फिर होटलों, फैक्ट्रियों और खेतों में काम करते हैं. व्यस्क मजदूरों की तुलना में बाल मजदूर को एक तिहाई मजदूरी मिलती है.
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अमानवीय हालात
आईएलओ की 2013 की रिपोर्ट के मुताबिक 50 फीसदी बच्चे खतरनाक परिस्थितियों में काम करते हैं. कई रात भर काम करते हैं. कई बच्चों को श्रमिक अधिकार भी नहीं मिलते हैं. उनकी हालत गुलामों जैसी है.
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मेड इन बांग्लादेश
बांग्लादेश में बाल मजदूरी काफी प्रचलित है. यूनिसेफ के मुताबिक देश में करीब 50 लाख बच्चे टेक्सटाइल उद्योग में मजदूरी कर रहे हैं. टेक्सटाइल उद्योग बांग्लादेश का सबसे बड़ा एक्सपोर्ट सेक्टर है. यहां बनने वाले सस्ते कपड़े अमीर देशों की दुकानों में पहुंचते हैं.
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महानगर में अकेले
कंबोडिया में प्राइमरी स्कूल जाने वाले बच्चों की संख्या सिर्फ 60 फीसदी है. स्कूल न जाने वाले ज्यादातर बच्चे अपने माता-पिता के साथ काम करते हैं. हजारों बच्चे ऐसे भी है जो सड़कों पर अकेले रहते है. राजधानी नोम पेन्ह की ये बच्ची सामान घर तक पहुंचाती है.
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लंबी है सूची
हालांकि दुनिया भर में सन 2000 के बाद बाल मजदूरों की संख्या गिरी है लेकिन एशिया के ज्यादातर देशों में हालात नहीं सुधरे हैं. बांग्लादेश, अफगानिस्तान, नेपाल, कंबोडिया और म्यांमार में अब भी ज्यादा पहल नहीं हो रही.
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मानवाधिकार संगठनों के मुताबिक इसी तरह कानून की नजर में धूल झोंककर तस्कर हजारों बच्चों को हॉन्ग कॉन्ग, सिंगापुर और दूसरे एशियाई देशों में भेज रहे हैं. दूसरे देश में अगर ये बच्चे फंस भी जाएं तो वे लाचार होते हैं. उन पर फर्जी दस्तावेजों का मुकदमा भी चलता है. ऐसे कई मामले सामने आ चुके हैं.
नौकरी का झांसा देने वाले तस्करों ने पहले सिती को सिंगापुर भेजा. वहां उसने एक स्विस परिवार के घर में नौकरानी का काम किया. मालिक उसे सीधे तनख्वाह नहीं देते थे. वे जॉब एजेंसी को पैसा देते है और जॉब एजेंसी सिती को सैलरी देती थी. 14 महीने तक काम करने के बदले उसे सिर्फ 20 डॉलर मिले. सिती कहती है, "मैं रोज रोती थी." तनख्वाह मांगने जब सिती एजेंसी के पास गई तो उन्होंने उसे सिंगापुर के एक दूसरे परिवार के यहां भेज दिया. काम काज के दौरान उसके हाथ में चोट लगी और मालिक ने इलाज कराने से भी इनकार कर दिया.
विदेश में अच्छे पैसे कमाने का ख्वाब टूट चुका था. परेशान सिती तीन साल बाद इंडोनेशिया लौटी. तब उसकी उम्र 17 साल थी. सिती फिर उसी नौकरी दिलाने वाली एजेंसी के पास गई, इस बार उसे हॉन्ग कॉन्ग भेज दिया गया. सिती कहती है, "कइयों ने मेरा शोषण किया. मैंने अपना बचपन खो दिया. मुझे सिर्फ कड़ी मेहनत के बारे में पता है."
सिर्फ हॉन्ग कॉन्ग में ही 3,40,000 घरेलू सहायक हैं. इनमें से आधे फिलीपींस के हैं. दूसरे नंबर पर इंडोनेशियाई नागरिक हैं. नौकर नौकरानी का काम करने वाले ये लोग हर साल अरबों डॉलर की मुद्रा अपने देश भेजते हैं. यही सब्जबाग दिखाकर तस्कर गरीब परिवारों को गुमराह करते हैं. सिती समेत कई बच्चों को तस्करों और जॉब एजेंसियों से राहत दिलाने वाली मैलिन हार्टविक कहती हैं, "उनके लिये बच्चे सिर्फ कमाई का जरिया हैं. हजारों बच्चे ये काम कर रहे हैं क्योंकि हमेशा ही किसी न किसी को नौकरी की सख्त जरूरत रहती है."
हॉन्ग कॉन्ग में तैनात इंडोनेशिया के कंसुल जनरल त्री थारयट कहते हैं, "एजेंसियां सिर्फ तेजी से पैसा बना रही हैं." ज्यादातर मामलों में बच्चों को पता भी नहीं चलता कि उनके हाथ में फर्जी दस्तावेज हैं, उन्हें इनका पता एयरपोर्ट पर ही चलता है और तब तक वे घर से बहुत दूर आ चुके होते हैं. 2013 से अब तक इंडोनेशिया के कॉन्सुलेट ने दर्जनों फर्जी पासपोर्ट पकड़े हैं.
(भारत में कहां कहां हैं मानव तस्करी के गढ़)
भारत में कहां कहां हैं मानव तस्करी के गढ़
कई राज्यों में मानव तस्करी के मामले बढ़ गये है. 2016 के आंकड़ों के हिसाब से सबसे ऊपर है पश्चिम बंगाल तो उससे थोड़ा ही पीछे रहा राजस्थान. देखिये भारत में कहां कहां हैं सबसे बुरे हालात.
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पश्चिम बंगाल
2016 में मानव तस्करी के सबसे ज्यादा मामले पश्चिम बंगाल में दर्ज हुए. देश भर में एक साल में कुल 8,132 शिकायतों में से 3,576 केवल इसी राज्य से आईं.
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राजस्थान
मानव तस्करी के कुल मामलों में से 60 फीसदी से ज्यादा मामले केवल पश्चिम बंगाल और राजस्थान से मिले. राजस्थान से 1,422 शिकायतें आयीं.
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गुजरात और महाराष्ट्र
राजस्थान के बाद 548 मामलों के साथ गुजरात का नंबर आता है. सरकारी आंकड़ों के अनुसार, 517 मामलों के साथ महाराष्ट्र में भी ऐसा ही हाल रहा.
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केंद्र शासित प्रदेश
केंद्र शासित (यूटी) प्रदेशों में दिल्ली मानव तस्करी की शियाकतों के मामले में सबसे ऊपर है. यूटी के कुल 75 मामलों में से 66 केवल दिल्ली में थे. हालांकि पिछले साल ये आंकड़ा इससे कहीं ज्यादा 87 था.
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तमिलनाडु और कर्नाटक
दक्षिण भारतीय राज्यों में सबसे बुरा हाल तमिलनाडु का रहा. वहां 2016 में मानव तस्करी के 434 मामले दर्ज हुए. इसके बाद कर्नाटक में 404 मामले सामने आए.
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आंध्र प्रदेश और तेलांगना
आंध्र प्रदेश में 239 और तेलांगना में 229 मामलों के साथ हालात एक से रहे. केरल में मात्र 21 शिकायतें दर्ज हुईं.
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असम
पूर्वोत्तर के राज्यों में 91 मामलों के साथ असम का हाल सबसे खराब रहा. फिर भी 2014 के मुकाबले हालात बहुत बेहतर हुए हैं जब राज्य में 380 ऐसे मामले दर्ज किए गए थे.
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एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग स्क्वॉड
पूर्वोत्तर के कई राज्यों में सरकारों ने मानव तस्करी को रोकने के लिए खास दस्ते बनाए हैं. ऐसे 10 दस्ते असम में, 8 अरुणाचल में और 5 मणिपुर में हैं.
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पूर्वी राज्य
झारखंड में 109, पड़ोसी राज्य ओडीशा में 84 और बिहार में 43 मानव तस्करी के मामले सामने आए. उत्तर प्रदेश में 79 और मध्य प्रदेश में 51 मामले दर्ज हुए.
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अंतरराष्ट्रीय सहयोग
भारत सरकार ने बांग्लादेश और संयुक्त अरब अमीरात के साथ भी सहयोग के लिए सहमति पत्र पर हस्ताक्षर किए हैं. आरपी/एके (पीटीआई)