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हॉलीवुड अभिनेताओं के लिए भारतीय हथियार

१४ जून २०१२

दिल्ली के पास एक छोटे से वर्कशॉप में काम कर रहे अशोक राय भारत में तो नहीं, लेकिन हॉलीवुड में काफी मशहूर है. ऐतिहासिक फिल्मों के लिए तलवार और तीर कमान बनाने वाले राय विश्व भर में अपनी इस कारीगरी के लिए विख्यात हैं.

तस्वीर: Reuters

चाहे हॉलीवुड दूसरे विश्व युद्घ पर फिल्म बना रहा हो या जापानी समुराई लड़ाकों पर, अशोक राय की मांग बढ़ती रहती है. 31 साल के राय बचपन से इतिहास प्रेमी रहे हैं. कहते हैं, "मैं थियेटर में आने वाली हर फिल्म देखता था. मैंने इतिहास में सारे बड़े युद्धों के बारे में पढ़ा है. अब जब हम मध्यकालीन लड़ाइयों के लिए हथियार बनाते हैं तो मैं आराम से अपने कारीगरों को समझा सकता हूं." राय की वर्कशॉप में कवच, तलवार, कटारी, बंदूक, भाले और हेल्मेट बनते हैं.

राय ने 17 साल की उम्र में यह काम शुरू किया. उनके पिता की यादगार तोहफे बनाने वाली फैक्ट्री थी. फिर एक दिन राय को पता चला कि फ्रांस में शैंपेन बनाने वाले एक उद्योगपति को 1000 तलवारों की जरूरत थी जिसे वह तोहफे के तौर पर देना चाहते थे. राय कहते हैं, "'ऑर्डर खत्म करने में थोड़ा वक्त लगा लेकिन फिर मैं सोचने लगा. यह एक ऐसा काम है जिसके बारे में सोचा जा सकता है."

इसके बाद राय ने कॉलेज छोड़ने का फैसला किया और अपने पिता की फैक्ट्री में मध्यकालीन से लेकर आधुनिक कहानियों वाली फिल्मों के लिए हथियार बनाने लगे. कुछ ही दिनों बाद हॉलीवुड निर्माता अपनी फिल्म किंगडम ऑफ हेवन के लिए हथियार बनवाने राय की चौखट पर पहुंचे. धीरे धीरे राय ने विश्व युद्ध के लिए सैनिकों के यूनिफॉर्म भी बनाना शुरू किया. किंगडम ऑफ हेवन के बारे में कहते हैं, "हमने 1,500 जंजीर के कवच बनाए और इसमें अलुमीनियम का इस्तेमाल किया ताकि यह भारी न हों." इस काम में 500 महिलाओं ने बड़ी मेहनत से जंजीरों की कड़ियों को जोड़ा.

राय ने जर्मनी और स्पेन में भी अपनी कंपनी शुरू कर दी है. उनका कहना है कि यूरोप की कंपनियां सुंदरता और दिखावे पर ज्यादा ध्यान देती हैं, लेकिन उनके सामान में वह प्लास्टिक का इस्तेमाल नहीं करते. साथ ही, वह इस बात पर ध्यान देते हैं कि हथियार ऐतिहासिक रूप से सही हों. हाल ही में उन्होंने जर्मन शहर न्यूरेम्बर्ग में काइजरबर्ग संग्रहालय का दौरा किया और वहां पुराने हथियारों के बारे में जानकारी हासिल की. दूसरे विश्व युद्ध के लिए हेल्मेट बनाने से पहले उन्होंने तय किया कि हेल्मेट के अंदर असली नंबर लगाए जाएं.

राय का कहना है कि भारत में बिजली की कमी और धीमी गति से काम उनके उद्योग के लिए मुश्किलें खड़ी करता है. लेकिन इन सब चुनौतियों और आर्थिक संकट के बावजूद राय सालाना 30 लाख डॉलर कमा लेते हैं. कॉलेज छोड़ने का उन्हें कोई मलाल नहीं है. कहते हैं, "मैं शायद किसी दफ्तर में काम कर रहा होता या बैंक में. लेकिन मुझे लगता है अब मैं दुनिया भर के लिए हथियार बनाता हूं."

एमजी/एमजे (एपी)

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