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समाज

होमी के भाभा ने उठाई शरणार्थियों की गरिमा की बात

१७ सितम्बर २०१९

भारतीय मूल के ब्रिटिश स्कॉलर और उत्तर-उपनिवेशवाद विषयों के अग्रणी विचारक माने जाने वाले होमी के भाभा से जर्मनी के रुअर में होने वाले सालाना संगीत और कला महोत्सव रुअरट्रीनाले में डीडब्ल्यू ने की खास बातचीत.

Deutschland Homi K. Bhabha | Ruhrtriennale 2019
तस्वीर: Daniel Sadrowski/Ruhrtriennale 2019

"अनजाने देशों में ठिकाना पाने के लिए वे अपनी मातृभूमि छोड़ देते हैं, कभी तो अपने ही देश में भागते हैं, कभी रबड़ के बूट पहने भूमध्य सागर में खतरनाक यात्राओं पर निकल जाते हैं, हमेशा एक बेहतर जीवन की आस में, गरिमामय जीवन की उम्मीद में." जर्मनी के बोखुम में आयोजित सालाना संगीत और कला महोत्सव रुअरट्रीनाले को संबोधित करते हुए होमी के भाभा ने मानव अधिकारों, रास्ते में मरने वाले रिफ्यूजियों और आप्रवासन के साथ साथ जीवन ही नहीं मृत्यु की गरिमा की भी बात की.

अमेरिका की प्रतिष्ठित हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर भाभा निर्वासन और आप्रवासन के मामलों में सांस्कृतिक विविधताओं के बारे में बात करते हुए सैद्धांतिक बातों से ज्यादा ताजा हालात पर ध्यान देते हैं. डीडब्ल्यू से बातचीत में उन्होंने कहा, "मैं अमेरिका में रहता हूं. मुझे मिस्टर ट्रंप का नजरिया और नीतियां निन्दायोग्य लगती हैं." भाभा का मानना है कि ट्रंप की भाषा एक लोकतांत्रिक बातचीत का हिस्सा ही नहीं लगती. वे कहते हैं, "मुझे लगता है कि जैसी भाषा वे लोगों के बारे में, अलग अलग नस्ल के लोगों के बारे में, महिलाओं के बारे में, दूसरे देशों के लोगों के बारे में इस्तेमाल करते हैं - वह शर्मनाक है."

टोनी मॉरिसन की याद में

भाभा ने रुअरट्रीनाले में अपना भाषण अफ्रीकी-अमेरिकी लेखिका टोनी मॉरिसन की स्मृति में दिया. साहित्य का नोबेल पुरस्कार जीतने वाली मॉरिसन की मृत्यु अगस्त 2019 में हुई. भाभा ने मॉरिसन के साथ कई यूनिवर्सिटी के प्राख्यानों के लिए व्यक्तिगत तौर पर भी साथ काम किया था.

साहित्य के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित पहली अश्वेत महिला लेखिका थीं टोनी माॉरिसन. तस्वीर: picture-alliance/AP Photo

मॉरिसन ने चार शब्दों वाली मशहूर हो चुकी पंक्ति, "ये किसका घर है?" , से 2012 में आई अपनी किताब 'होम' की शुरुआत की थी. उस घर के लिए भाभा की परिकल्पना राष्ट्रीय इतिहास के उस अंधेरे घर की है जो नए निवासियों के इतिहास को नजरअंदाज करता है. भले ही उस विदेशी घर की चाबी प्रवासी के पास हो. भाभा बताते हैं कि आप्रवासी अपने घरों में भी कैसे अजनबीपन महसूस करते हैं. मेक्सिको के वे लोग जो कानूनी तौर पर अमेरिका में रहते और काम करते हैं, उन्हें भी मेक्सिको के लोगों को राष्ट्रपति ट्रंप द्वारा चोर, खूनी और बलात्कारी कहे जाने से अपमानित महसूस होता है.

ट्रंप को ऐसी "असभ्य" बयानबाजी करने के लिए बाकायदा सलाह मिली थी. 2016 का चुनाव जीतने के लिए ट्रंप के पूर्व सलाहकार स्टीव बैनन ने उन्हें कहा था, इसका खुलासा बैनन के एक इंटरव्यू से हुआ जो उन्होंने 2018 में न्यूजवीकली 'द इकोनॉमिस्ट' को दिया था.

निरंकुश पुरुष और बढ़ता राष्ट्रवाद

ऐसा अमानवीय बर्ताव करने वाले पॉपुलिस्ट और नौसिखिए राष्ट्रवाद को  भाभा "कबीलाई राष्ट्रवाद" कहते हैं. ऐसा नहीं कि केवल अमेरिका में ऐसा हो रहा है बल्कि भारत में मोदी, वेनेजुएला में मादुरो, ब्राजील में बोल्सोनारो, रूस में पुतिन से लेकर हंगरी में ओरबान तक इसी कतार में हैं.

भाभा इस बात पर खासे हैरान हैं कि इनमें से ज्यादातर लोकतांत्रिक तरीके से चुन कर आए हैं. वे कहते हैं, "मुझे इस बात से डर है कि राष्ट्रवाद के हर इन रूपों की अपनी अलग ही बात है. पूरे विश्व में आज ऐसे निरंकुश आदमियों का दबदबा है, किसी महिला को तो कभी ऐसी भूमिका में नहीं देखा है."

'विदेशी घर' में गरिमा का संघर्ष

अपने भाषण में ट्यूनिशिया के तटीय शहर जारसिस में कचरे के पहाड़ का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि ये वो जगह है जहां पानी में बह कर आने वाली आप्रवासियों की लाशों को फेंका जाता है. उन्होंने बताया कि तट पर कई लोग ऐसे भी हैं स्वेच्छा से आगे आकर ऐसे फेंके हुए शवों को समुद्र तट पर गाड़ पर उनकी मौत को कुछ गरिमा देने की कोशिश करते हैं.

शवों को दफना कर मृत्यु को थोड़ा गरिमापूर्ण बनाने की कोशिश.तस्वीर: picture-alliance/dpa/S. Kremer

भाभा ने पाया है कि निरंकुश सरकारें गरिमा की धज्जियां उड़ाने में खासी आगे होती हैं. शरणार्थियों के लिए बने कानूनों, मानवाधिकार और आप्रवासन पर आयोजित सम्मेलनों को धीरे धीरे करके कम करती हैं. रिफ्यूजियों को बेहद खराब माहौल में लंबे लंबे समय के लिए कैंपों में रख कर इंतजार करवाया जाता है. भाभा बताते हैं कि ये सब करने से उन्हें बंधन में रख कर बेइज्जत करने का मकसद पूरा होता है. उदाहरण के तौर पर अमेरिका-मेक्सिको सीमा पर चल रहे कैंपों को ही देखा जा सकता है.

सरकारें अपनी आर्थिक और राजनीतिक गलतियों के लिए समाज के सबसे कमजोर तबकों पर आरोप लगाती हैं. जैसे कि भारत में अलग संस्कृति, ट्रांसजेंडर और अलग जाति वालों पर आरोप मढ़ा जाता है. भाभा कहते हैं कि ऐसे में गरीब होना ही आपकी गलती बन जाती है और पॉपुलिस्ट सरकारें कहती हैं, "गरीबों को घर दो तो वे उसे ठीक से नहीं रखते. समाज कल्याण के लिए कुछ करो तो वे उसका फायदा उठाते हैं. काम नहीं करते क्योंकि आलसी होते हैं."

बाहर से आए लोगों के प्रति घृणा का भाव पैदा करके कुछ राष्ट्रवादी सोच वाले पॉपुलिस्ट नेता जो करते हैं उसका मुकाबला कोई कानून नहीं कर सकता. कानून आपको अल्पसंख्यकों के प्रति भेदभाव करने से भले ही रोक पाए लेकिन किसी को नीचा दिखाने के खिलाफ कौन सा कानून काम करेगा.

विदेशियों के प्रति डर हटाना

भाभा का मानना है कि शिक्षा से ही ऐसा हो सकता है कि लोगों के मन से विदेशियों के प्रति डर को हटाया जा सके. उनका मानना है कि प्रगतिशील सरकारों और मीडिया का ये कर्तव्य होना चाहिए कि वे इस पर आम बहस करवाएं. अपने भाषण में उन्होंने आम लोगों से भी आगे बढ़ कर रिफ्यूजियों से एकजुटता दिखाने और जिम्मेदारी उठाने का आह्वान किया. इस पर भी भाभा का कहना है कि ऐसा दया खाकर नहीं बल्कि ये सोच कर करें कि वे भी आपकी ही तरह इंसान हैं, जिन्होंने आंखों के सामने मौत देखी है और फिलहाल आपकी हालत उनकी हालत से बेहतर है. 

जर्मन लेखिका और दार्शनिक हाना आरेंट के सिद्धांतों को भाभा ने विस्तार से पढ़ा है. उन्होंने लिखा था कि आजादी की परिकल्पना में आवाजाही की आजादी निहित होनी चाहिए. भाभा ने उन्हीं के विचारों पर बल देते हुए कहा कि शरणार्थियों को भी आवाजाही की आजादी होनी चाहिए. उन्होंने कहा कि जिन लोगों ने अपनी मातृभूमि को छोड़ने का कठिन फैसला किया है, अपनी जान का जोखिम उठाया है और किसी नए घर को अपनी चाभी से खोलने की कोशिश कर रहे हैं, वे ऐसा केवल और केवल गरिमापूर्ण जीवन जी सकने के लिए करते हैं. अगर सवाल अब भी यही है कि "ये किसका घर है?", तो जवाब केवल एक हो सकता है: यह रिफ्यूजियों और आप्रवासियों का भी घर है.

गाबी रॉयशर/आरपी

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