1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

होस्नी मुबारक ने दुनिया को कहा अलविदा

२५ फ़रवरी २०२०

मिस्र के पूर्व राष्ट्रपति और तीन दशकों तक सत्ता पर काबिज रहे होस्नी मुबारक का मंगलवार को देहांत हो गया. उन्होंने राष्ट्रपति बनने की उम्मीद नहीं की थी लेकिन एक बार बन गए तो फिर सत्ता छोड़ने को तैयार नहीं थे.

Hosni Mubarak Nachruf
तस्वीर: Reuters/A. Abdallah Dalsh

एक ऑपरेशन के दौरान मंगलवार को होस्नी मुबारक का देहांत हो गया. मिस्र के सरकारी टीवी चैनल ने यह खबर दी है. वह 91 साल के थे. सरकारी टीवी ने यह बताया कि उन्हें स्वास्थ्य की कुछ दिक्कतें थी लेकिन इस बारे में ज्यादा ब्यौरा नहीं दिया. मुबारक के बेटे अला ने सप्ताहांत में बताया था कि उनके पिता को इंटेंसिव केयर यूनिट में रखा गया है.

कभी बमवर्षक विमान के पायलट रहे होस्नी मुबारक ने राष्ट्रपति बनने के बाद एक तरह से ठान लिया था कि वह आजीवन इस पद पर बने रहेंगे. उनकी कहानी 30 सालों के लिए मिस्र की कहानी बन गई लेकिन जब देश के लोगों ने अपनी कहानी लिखने की ठान ली तो उन्हें सत्ता को विदाई देनी पड़ी.

तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/H. Koundjakjian

1981 में सेना की एक परेड के दौरान मिस्र के राष्ट्रपति अनवर सादात की हत्या कर दी गई. उस वक्त होस्नी मुबारक उपराष्ट्रपति थे और उनके साथ ही मौजूद थे. इस गोलीबारी में मुबारक भी घायल हुए. सादात तो नहीं बच सके लेकिन होस्नी मुबारक आठ दिन बाद देश के राष्ट्रपति बन गए. अपने ऊपर आए खतरों से लड़ते रहे और धीरे धीरे मिस्र के "फाराओ" में तब्दील हो गए. तीन दशकों का उनका शासन एक तरह से ठहराव और दमन का दौर था. मिस्रवासियों के पास दो ही विकल्प थे - या तो मुबारक की मानें या फिर उत्पात देखें.

बहुत से लोगों ने उन पर भरोसा किया और ऐसे लोग सिर्फ मिस्र में ही नहीं बल्कि अमेरिकी प्रशासनों में भी थे. उनके पास मध्यपूर्व की सबसे बड़ी सेना थी और सादात के शीत युद्ध को इस्राएल के साथ शांति और सहयोग में बदलने के लिए उन्हें अमेरिका से अरबों डॉलर मिले थे. 

हालांकि उनकी राजनीति की परिभाषा इस्लामिक ताकतों के साथ उनके संघर्ष ने लिखी. सादात की हत्या के बाद जल्दबाजी में इस्लामिक ताकतों ने सत्ता मुबारक को सौंप दी लेकिन उस वक्त यह अनुमान नहीं लगा सके कि अब यह 30 साल तक उनके पास ही रहेगी.

तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/B. Foley

मुबारक ने एक बार कहा था, "किसी ने कल्पना नहीं की होगी कि हम एक बटन दबाएंगे और आजादी आ जाएगी. अन्यथा देश अराजकता का शिकार हो जाएगा और यह लोगों के लिए खतरा होगा. "भविष्य में मिस्र का शासन कैसे चलेगा, मुबारक हमेशा इस प्रश्न का उत्तर टालते रहे और मुबारक के अलावा उनके पास कोई जवाब भी नहीं था. अमेरिका को आशंका थी कि चुनाव में गड़बड़ी से जीत कर वो सत्ता से चले जाएंगे और उनके बेटे गमाल उनकी जगह लेंगे.

अपने पूरे शासन के दौरान वह एक मजबूत अमेरिकी सहयोगी रहे जिसने इस्लामिक चरमपंथ से लड़ाई लड़ी और इस्राएल के साथ शांति के रक्षक बने रहे. अरब वसंत की लड़ाई में उनके पहले ट्यूनीशिया में सत्ता परिवर्तन हो गया था लेकिन मिस्र से मुबारक की विदाई इस क्रांति की शायद सबसे बड़ी घटना थी. इसने पूरे अरब जगत को हिला कर रख दिया.

ट्यूनीशिया से शुरू हुई अरब वसंत की आंधी ने जब नील नदी के इस देश का रुख किया तो दशकों से सत्ता पर काबिज होस्नी मुबारक को भी उम्मीद नहीं थी कि उनके शासन के आखिरी दिन करीब हैं. 18 दिनों की रस्साकशी के बाद आखिरकार उन्हें गद्दी छोड़नी पड़ी. 

2012 में उन्हें उनके पूर्व सुरक्षा प्रमुख के साथ उम्रकैद की सजा सुनाई गई. 18 दिन की क्रांति के दौरान उन्हें करीब 900 लोगों की जान नहीं बचा पाने का दोषी माना गया. ये लोग उनके तानाशाही शासन का विरोध करने काहिरा की सड़कों पर निकले थे. दोनों ने इसके खिलाफ ऊंची अदालत में अपील की और 2014 में दोषमुक्त हो गए.

इसके बाद लोगों का गुस्सा और भड़का और उनके खिलाफ सड़कों पर प्रदर्शन होने लगे. इसके एक साल बाद मुबारक और उनके दो बेटों को भ्रष्टाचार के आरोपों में तीन साल की सजा हुई. उनके बेटे तो 2015 में ही छूट गए लेकिन मुबारक 2017 में ही जेल से बाहर आ सके.

तस्वीर: AFP/Getty Images/M. El Shahed

अप्रैल 2011 में गिरफ्तार होने के बाद मुबारक ने करीब छह साल कैदी के रूप में अस्पताल में बिताए. मुबारक के बारे में कभी लोग बात करने से भी डरते थे. उनकी आलोचना के लिए मीडिया में एक शब्द कहना भी मुश्किल था. वही शख्स खुद कैद में चला जाए तो उसके मन को गहरा सदमा लगना स्वाभाविक ही है. जब मुबारक को 2011 में अदालत से जेल लाया गया तो वह विरोध में रो पड़े और हेलीकॉप्टर के बाहर आने से मना कर दिया.

बाद के सालों में मुबारक ने कुछ सुधारों को लागू किया लेकिन बड़े बदलावों से बचते रहे. वह हमेशा देश को इस्लामिक चरमपंथ और सांप्रदायिक विभाजनों से बचाने वाला अकेला शख्स मानते रहे. अमेरिका ने उन पर सुधारों के लिए बहुत दबाव बनाया लेकिन कुछ भी काम नहीं आया. अमेरिका अरब जगत के इस मजबूत सहयोगी को छोड़ना नहीं चाहता था और यहीं से मुबारक अपनी जिद को मनवाने का रास्ता बनाते गए.

हालांकि बार बार किए वादों पर जब अमल नहीं हुआ तो लोगों की नाराजगी बढ़ती गई और लोग लोकतांत्रिक भविष्य की मांग के साथ एकजुट होते गए. जब मुबारक ने अपने कारोबारी बेटे को सत्ता की विरासत सौंपने की कोशिशें शुरू की तो लोगों का उनसे पूरी तरह मोहभंग हो गया.

 एनआर/आईबी (एपी)

__________________________

हमसे जुड़ें: Facebook | Twitter | YouTube | GooglePlay | AppStore

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें

इस विषय पर और जानकारी

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी को स्किप करें

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें को स्किप करें

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें