बांग्लादेश में प्रवासी विभाग के अधिकारियों ने 10 लाख से ज्यादा रोहिंग्या मुसलमानों को पंजीकृत कर दिया है. यह संख्या देशभर के शरणार्थी शिविरों में रह रहे अल्पसंख्यक समुदाय की कुल संख्या का लगभग 95 प्रतिशत है.
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अगस्त में म्यांमार में हिंसा होने होने के बाद रोहिंग्या मुसलमानों ने वहां से पलायन करना शुरू किया और सीमा पार कर बांग्लादेश में प्रवेश किया. बांग्लादेश के के दक्षिण-पूर्व में स्थित कॉक्स बाजार जिले में रोहिंग्याओं ने शरण ली. अब यहां इनका पंजीकरण किया जा रहा है. बांग्लादेश पासपोर्ट और प्रवासी विभाग के उपनिदेशक अबू नोमान मोहम्मद जाकिर हुसैन ने कहा, "मंगलवार तक हमने 10,04,782 रोहिंग्या मुसलमानों का पंजीकरण कर दिया है. हमारा काम खत्म होने वाला है. हमने लगभग 95 प्रतिशत रोहिंग्याओं का पंजीकरण कर दिया है."
हर रोहिंग्या शरणार्थी की है एक कहानी
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उन्होंने आगे कहा, "यह काम शुरू करते समय हमारी प्राथमिकता थी कि किसी रोहिंग्या को बांग्लादेश का पासपोर्ट न मिल सके. अब हम जानते हैं कि यह जानकारी अन्य कामों जैसे राहत अभियान और अपने देश वापस भेजे जाने में लाभकारी साबित हो सकती है." हुसैन ने कहा कि रोहिंग्या शरणार्थियों से परिवार के सदस्यों का विवरण, म्यांमार में पता और परिवार के एक सदस्य की उंगलियों के निशान लिए जा रहे हैं.
संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, 25 अगस्त 2017 के बाद से लगभग 6,55,500 रोहिंग्या शरणार्थी बांग्लादेश में प्रवेश कर चुके हैं, जबकि 5,00,000 रोहिंग्या वहां पहले से ही रह रहे हैं. हाल में हुई हिंसा से पहले बांग्लादेश के प्रवासी विभाग ने 30,000 रोहिंग्याओं को शरणार्थी के तौर पर मान्यता दी थी. म्यांमार और बांग्लादेश सरकार में रोहिंग्याओं के देश प्रत्यावर्तन पर एक समझौता हुआ है. इसके तहत इस समझौते की शुरुआत के दिन से दो साल के भीतर सभी रोहिंग्याओं को बांग्लादेश से म्यांमार वापस भी दिया जाएगा.
म्यांमार में रोहिंग्या मुससमानों के गढ़ रखाइन प्रांत में रोहिंग्या विद्रोहियों द्वारा सैन्य चौकियों पर हमला करने के बाद सुरक्षा बलों ने अगस्त के अंतिम सप्ताह में जवाबी कार्रवाई के तहत रोहिंग्या मुसलमानों के खिलाफ अभियान छेड़ दिया था. इसके बाद रोहिंग्या मुसलमानों ने म्यांमार से पलायन शुरू कर दिया. रखाइन प्रांत में लगभग 10 लाख से ज्यादा रोहिंग्या मुसलमान रह रहे थे, जिन्हें म्यांमार सरकार ने मान्यता नहीं दी थी.
संयुक्त राष्ट्र और अन्य मानवाधिकार संगठन बोल चुके हैं कि म्यांमार में मानवाधिकारों के हनन के स्पष्ट सबूत मिले हैं. संयुक्त राष्ट्र में मानवाधिकार उच्चायुक्त ने इस सैन्य अभियान को जातीय सफाया करार देते हुए इसे नरसंहार का संकेत बताया है.
आईएएनएस/आईबी
रोहिंग्या शरणार्थी कैंप में शादी की धूम..
रोहिंग्या शरणार्थी शिविरों से आम तौर दर्द भरी कहानियां ही मिलती हैं. लेकिन दुख और तकलीफों के बीच खुशी के पल भी आते हैं. ऐसा ही मौका था सद्दाम हुसैन और शौफीका बेगम की शादी.
तस्वीर: Reuters/D. Sagolj
हम दोनों, दो प्रेमी..
सद्दाम की उम्र 23 साल है जबकि शौफीका बेगम 18 साल की है. दोनों इस समय बांग्लादेश के कोक्स बाजार में शरणार्थी शिविर में रहते हैं और हाल ही में शादी के बंधन में बंधे हैं.
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पहले से थी जान पहचान
म्यांमार से भागने से पहले ही दोनों एक दूसरे को जानते थे और एक दूसरे से शादी करने चाहते थे. लेकिन उनका यह सपना म्यांमार में तो नहीं, लेकिन कुतुपालोंग शरणार्थी शिविर में पूरा हुआ.
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घर गृहस्थी
दोनों का संबंध म्यांमार में माउंगदाओ इलाके के फोरिया बाजार गांव से था, जिसे वहां की सेना ने जला दिया. अब शरणार्थी शिविर का यही कामचलाऊ सा तंबू उनकी घर गृहस्थी है.
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सद्दाम की दुकान
सद्दाम शिविर में ही अपनी परिवार की एक छोटी सी दुकान पर बैठता है. सद्दाम का परिवार म्यांमार में भी दुकान चलाता था. उनके गांव में लगभग एक हजार दुकानें थी इसलिए उसके नाम में बाजार आता है.
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शादी की तैयारी
शादी से पहले दुल्हे राजा को तैयार किया जा रहा है. म्यांमार से भागे तो कई हफ्तों तक सद्दाम को शौफीका का कुछ अता पता नहीं चला. लेकिन उनकी किस्मत में मिलना लिखा था और वे कुतुपालोंग के शिविर में एक दूसरे मिले.
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सजना है मुझे..
शौफीका के हाथों पर सद्दाम के नाम की मेहंदी का सुर्ख रंग. शादी वाले दिन शौफीका को एक अलग टेंट में बिठाया गया, जहां उसकी कई महिला रिश्तेदार उसके साथ थीं.
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कैंप की जिंदगी
कॉक्स बाजार के इस शरणार्थी शिविर में लगभग 6.6 लाख रोहिंग्या लोग रहते हैं. इनमें बहुत से अगस्त में म्यांमार में छिड़ी हिंसा के बाद भागकर यहां पहुंचे. सद्दाम और शौफीका के परिवार अक्टूबर में यहां पहुंचे.
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मुझे भी चाहिए...
सद्दाम और शौफीका की शादी के मौके पर सबको को मुफ्त खाना बांटा गया जिसे लेने के लिए कैंप के बच्चों में होड़ मच गई. वैसे भी शरणार्थी शिविर में रहने वालों को कहां रोज रोज ऐसा खाना मिलता है.
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दस्तरखान
मेहमानों के लिए बैठ कर खाने का अलग से इंतजाम किया गया था जहां पारंपरिक लजीज खाना परोसा गया. इसके लिए एक बड़ा सा टेंट तैयार किया गया जिसमें बैठकर एक साथ 20 लोग खाना खा सकते थे.
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डांस वांस
नाच गाने के बिना कैसे शादी हो सकती है. इसके लिए एक प्रोफेशनल डांसर को बुलाया गया जिसने अपने दो साथियों के साथ रंग जमा दिया. वहां मौजूद लोगों की तालियां बता रही थीं कि उन्हें कितना मजा आ रहा है.
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कबूल है
पांरपरिक तरीके से सद्दाम और शौफीका की शादी हुई. सभी ने हाथ उठा कर उनकी खुशहाल जिंदगी की कामना की. हालांकि दर दर भटकते रोहिंग्या लोगों के लिए खुशी एक मरीचिका है. ना उनके रहने का कोई ठिकाना है और न ही जिंदगी का.
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लाडो चली..
फिर आ पहुंचा विदाई का समय. यूं तो शौफीका के टेंट से सद्दाम का टैंट बहुत दूर नहीं था, लेकिन वह माता पिता के घर से अपने पति के घर जा रही थी. भावनात्मक रूप से यह बहुत अहम सफर होता है.
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भविष्य अनिश्चित
शरणार्थी शिविर में रहने वाला यह नया जोड़ा जानता है कि उनका भविष्य अनिश्चित है. इसीलिए उन्हें परिवार बढ़ाने की कोई जल्दबाजी नहीं है. सद्दाम कहते हैं कि यह तो तय हो जाए कि हम यहीं रहेंगे या फिर वापस म्यांमार में.
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नागरिकता का सवाल
सद्दाम का कहना है कि वह तभी म्यांमार जाना चाहेगा जब वहां की सरकार नागरिकता दे. म्यांमार ने रोहिंग्या लोगों को आज तक अपना नागरिक नहीं माना है और इसीलिए उन्हें उन्हें अपनी नागरिकता नहीं दी है.
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आम जिंदगी
यह तस्वीर शादी के कुछ दिन बात की है, जिसमें शौफीका अपने टेंट में खाना पका रही है. सफर मुश्किल हो सकता है लेकिन सद्दाम और शौफीका ने एक नई शुरुआत की तरफ कदम बढ़ा दिया है.