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समाज

10 लाख से अधिक रोहिंग्या पंजीकृत

१८ जनवरी २०१८

बांग्लादेश में प्रवासी विभाग के अधिकारियों ने 10 लाख से ज्यादा रोहिंग्या मुसलमानों को पंजीकृत कर दिया है. यह संख्या देशभर के शरणार्थी शिविरों में रह रहे अल्पसंख्यक समुदाय की कुल संख्या का लगभग 95 प्रतिशत है.

Bangladesch Rohingya Flüchtlinge
तस्वीर: Reuters/S. Vera

अगस्त में म्यांमार में हिंसा होने होने के बाद रोहिंग्या मुसलमानों ने वहां से पलायन करना शुरू किया और सीमा पार कर बांग्लादेश में प्रवेश किया. बांग्लादेश के के दक्षिण-पूर्व में स्थित कॉक्स बाजार जिले में रोहिंग्याओं ने शरण ली. अब यहां इनका पंजीकरण किया जा रहा है. बांग्लादेश पासपोर्ट और प्रवासी विभाग के उपनिदेशक अबू नोमान मोहम्मद जाकिर हुसैन ने कहा, "मंगलवार तक हमने 10,04,782 रोहिंग्या मुसलमानों का पंजीकरण कर दिया है. हमारा काम खत्म होने वाला है. हमने लगभग 95 प्रतिशत रोहिंग्याओं का पंजीकरण कर दिया है."

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उन्होंने आगे कहा, "यह काम शुरू करते समय हमारी प्राथमिकता थी कि किसी रोहिंग्या को बांग्लादेश का पासपोर्ट न मिल सके. अब हम जानते हैं कि यह जानकारी अन्य कामों जैसे राहत अभियान और अपने देश वापस भेजे जाने में लाभकारी साबित हो सकती है." हुसैन ने कहा कि रोहिंग्या शरणार्थियों से परिवार के सदस्यों का विवरण, म्यांमार में पता और परिवार के एक सदस्य की उंगलियों के निशान लिए जा रहे हैं.

संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, 25 अगस्त 2017 के बाद से लगभग 6,55,500 रोहिंग्या शरणार्थी बांग्लादेश में प्रवेश कर चुके हैं, जबकि 5,00,000 रोहिंग्या वहां पहले से ही रह रहे हैं. हाल में हुई हिंसा से पहले बांग्लादेश के प्रवासी विभाग ने 30,000 रोहिंग्याओं को शरणार्थी के तौर पर मान्यता दी थी. म्यांमार और बांग्लादेश सरकार में रोहिंग्याओं के देश प्रत्यावर्तन पर एक समझौता हुआ है. इसके तहत इस समझौते की शुरुआत के दिन से दो साल के भीतर सभी रोहिंग्याओं को बांग्लादेश से म्यांमार वापस भी दिया जाएगा.

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म्यांमार में रोहिंग्या मुससमानों के गढ़ रखाइन प्रांत में रोहिंग्या विद्रोहियों द्वारा सैन्य चौकियों पर हमला करने के बाद सुरक्षा बलों ने अगस्त के अंतिम सप्ताह में जवाबी कार्रवाई के तहत रोहिंग्या मुसलमानों के खिलाफ अभियान छेड़ दिया था. इसके बाद रोहिंग्या मुसलमानों ने म्यांमार से पलायन शुरू कर दिया. रखाइन प्रांत में लगभग 10 लाख से ज्यादा रोहिंग्या मुसलमान रह रहे थे, जिन्हें म्यांमार सरकार ने मान्यता नहीं दी थी.

संयुक्त राष्ट्र और अन्य मानवाधिकार संगठन बोल चुके हैं कि म्यांमार में मानवाधिकारों के हनन के स्पष्ट सबूत मिले हैं. संयुक्त राष्ट्र में मानवाधिकार उच्चायुक्त ने इस सैन्य अभियान को जातीय सफाया करार देते हुए इसे नरसंहार का संकेत बताया है.

आईएएनएस/आईबी

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