श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से भारतीय समयानुसार 9 बजकर 28 पर पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (PSLV) ने उड़ान भरी. धधकते इंजनों की मदद से रॉकेट 27,000 किलोमीटर प्रतिघंटे की रफ्तार भरता हुआ अंतरिक्ष की ओर रवाना हुआ. लॉन्च के 11 मिनट बाद ही रॉकेट ने उपग्रहों को उनकी कक्षा में छोड़ना शुरू किया. 11 मिनट बाद सभी सैटेलाइट्स कक्षा में स्थापित कर दी गईं.
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान एजेंसी इसरो के मुताबिक टेक ऑफ से लेकर रिलीज तक पूरा मिशन 30 मिनट में पूरा हुआ. सफल लॉन्च के बाद सबसे पहले बधाई देने वालों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी थे. ट्विटर पर भारतीय प्रधानमंत्री ने कहा, "यह जबरदस्त उपलब्धि हमारे अंतरिक्ष वैज्ञानिक समुदाय और देश के लिए गर्व का एक मौका है."
इससे पहले एक बार में सबसे ज्यादा उपग्रह भेजने का रिकॉर्ड रूस के नाम था. जून 2014 में रूस ने एक साथ 37 उपग्रह पृथ्वी की कक्षा में स्थापित किये थे.
भारत का मंगलयान 24 सितंबर को मंगल की कक्षा में सफलतापूर्वक पहुंच गया. इसी के साथ भारत पहला ऐसा देश बन गया है जिसने पहली ही बार में अपने यान को सफलतापूर्वक मंगल तक पहुंचा है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/Jagadeesh NVभारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान इसरो के वैज्ञानिकों ने कहा कि मंगल की कक्षा में जाने की प्रक्रिया बिना किसी गड़बड़ी के हो गई. तरल इंजन के 24 मिनट के बर्न आउट के बाद यान कक्षा में स्थापित हो गया.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/Jagadeesh NVप्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इस दौरान बैंगलोर में इसरो के वैज्ञानिकों के साथ थे. उन्होंने बधाई देते हुए कहा, "हमने इंसानी साहस और नवीनता की सीमा पार कर ली है. हमने अपने यान को एक ऐसे रास्ते पर भेजा जो बहुत कम लोगों को ही मालूम है. सभी वैज्ञानिकों और भारतीयों को बधाई."
तस्वीर: picture-alliance/dpa/Jagadeesh NVमंगल पर यान भेजना कोई आसान काम नहीं है. अब तक आधी कोशिशें ही सफल हो पाई हैं. इसी के साथ भारत अमेरिका, रूस और यूरोप के साथ मंगल तक पहुंचने वाले शामिल हो गया है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/Indian Space Research Organisationमंगलयान लाल ग्रह की सतह पर नहीं उतरेगा, बल्कि उसके आस पास चक्कर काटेगा और मंगल ग्रह के वातावरण पर शोध करेगा. इससे जीवन के लिए जरुरी मीथेन गैस के बारे में जानकारी मिल सकेगी.
तस्वीर: imago/United Archives1,350 किलोग्राम का मंगलयान अगले छह महीने लाल ग्रह के आस पास रहेगा और मंगल के बारे में आंकड़े जमा करेगा. इसमें पांच सौर पैनल लगे हैं जिससे यह ऊर्जा ले रहा है.
तस्वीर: picture-alliance/dpaनासा ने मार्स पर मंगलयान के पहुंचने का उसका स्वागत किया. भारतीय वैज्ञानिकों ने मंगल यात्रा के लिए कम इस्तेमाल की जाने वाली तकनीक स्लिंगशॉट का इस्तेमाल किया.
तस्वीर: imago/Xinhuaनासा के मार्स क्यूरियोसिटी मिशन ने ट्विटर पर मंगलयान को बधाई देते हुए 'नमस्ते' लिखा. नासा का मेवन भी सोमवार को ही मंगल की कक्षा में पहुंचा है.
तस्वीर: Twitter2013 में पांच नवंबर को भारत ने मंगलयान को श्रीहरिकोटा से प्रक्षेपित किया था. भारत के वैज्ञानिकों के लिए यह मिशन बहुत अहम और गर्व करने वाला है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/Indian Space Research OrganisationPSLV के कार्गो में सबसे भारी 714 किलोग्राम वजनी अर्थ ऑब्जर्वेशन सैटेलाइट थी. इसके अलावा 103 छोटी सैटेलाइट्स थीं. सबसे हल्की का वजन सिर्फ 1.1. किलोग्राम था. भारतीय रॉकेट के जरिये सबसे ज्यादा 96 उपग्रह अमेरिका ने भेजे. इस्राएल, कजाखस्तान, नीदरलैंड्स, स्विट्जरलैंड और यूएई ने नैनो सैटेलाइट्स भेजीं. रॉकेट में भारत की सिर्फ तीन सैटेलाइट्स थीं.
यह PSLV का 39वां सफल मिशन है. सफल और किफायती अंतरिक्ष प्रोग्राम के चलते भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी अपनी पहचान बना चुकी है. 2013 में इसरो ने सिर्फ 7.3 करोड़ डॉलर की लागत से मंगल तक अपना रॉकेट पहुंचाया. ऐसा ही रॉकेट भेजने में अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा को 67.1 करोड़ डॉलर लगे. अब इसरो बृहस्पति और शुक्र तक पहुंचने की तैयारी कर रहा है.
अंतरिक्ष में कमर्शियल सैटेलाइट्स छोड़ने का कारोबार अरबों डॉलर का है. फोन, इंटरनेट और अन्य कंपनियों की बढ़ती संख्या के चलते अंतरिक्ष में नई नई सैटेलाइट्स पहुंचाई जा रही हैं. अमेरिका, यूरोप, रूस, चीन और जापान के मुकाबले भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी काफी सस्ते में उपग्रहों को उनकी जगह पहुंचा रही है.
नई दिल्ली स्थित इंस्टीट्यूट फॉर डिफेंस स्ट्डीज एंड एनालिसिस के सीनियर फेलो अजय लेले कहते हैं, "लागत और भरोसे के चलते भारत एक व्यवहारिक विकल्प साबित हो रहा है. लंबे समय से सफल प्रक्षेपण करने के बाद भारत ने एक भरोसेमंद खिलाड़ी के रूप में अपनी पहचान बनाई है." दूसरे विशेषज्ञों के मुताबिक भी सफल मंगल अभियान के बाद भारत ने काफी प्रतिष्ठा हासिल की है.
(भारत की मंगल उड़ान
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भारत ने अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में लंबी छलांग लगाते हुए मंगलवार को आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा से मंगल ग्रह के लिए मंगलयान प्रक्षेपित किया. मंगलयान पर और जानकारी तस्वीरों में..
तस्वीर: picture-alliance/APअपने ताजा मिशन के साथ भारत ने अपना तकनीकी कौशल साबित कर दिखाया है. इस अभियान के तहत मंगल ग्रह पर मीथेन की संभावना को तलाशा जाएगा. मीथेन को पृथ्वी पर जीवन के लिए अहम माना जाता है. सैटेलाइट लाल ग्रह पर विज्ञान प्रयोग करेगा साथ ही मंगल की सतह का अध्ययन करेगा.
तस्वीर: picture-alliance/dpaमंगल मिशन के लिए भारत ने करीब 450 करोड़ रुपये खर्च किए हैं. यह बोइंग 787 के निर्माण पर होने वाली लागत का आधा हिस्सा है. अनौपचारिक तौर पर मिशन का नाम मंगलयान है. 300 दिन की यात्रा के बाद मंगलयान 24 सितंबर 2014 को मंगल की कक्षा में प्रवेश करेगा. मंगल ग्रह तक जाने के लिए इसे करीब 78 करोड़ किलोमीटर का सफर तय करेगा.
तस्वीर: Getty Images/Afp/Sajjad Hussainमंगल मिशन में अगर भारत कामयाब होता है तो वह उन चुनिंदा देशों के क्लब में शामिल हो जाएगा जिन्होंने मंगल पर यान भेजा है. अब तक रूस, अमेरिका और यूरोप ने ही मंगल पर मिशन भेजा है. मिशन सफल होने पर भारत एशिया का पहला देश बन जाएगा.
तस्वीर: imago/Xinhuaमंगल पर पहुंचना आसान नहीं. दुनिया भर में अब तक 40 में 23 कोशिशें नाकाम साबित हुईं हैं. 1999 में जापान और 2011 में चीन का मिशन असफल रहा.
तस्वीर: picture-alliance/AP15 अगस्त, 2012 को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने स्वतंत्रता दिवस के भाषण के दौरान मंगलयान योजना की घोषणा की थी. यह घोषणा चीन और रूस की मंगल पर मिशन भेजने की असफल कोशिश के बाद की गई थी. जानकारों ने सवाल उठाए थे कि क्या दिल्ली और बीजिंग के बीच अंतरिक्ष की दौड़ शुरू हो रही है.
तस्वीर: picture-alliance/dpaभारत सालाना एक अरब डॉलर अपने अंतरिक्ष कार्यक्रम पर खर्च करता है. भारत ने अंतरिक्ष कार्यक्रम के तहत सैटेलाइट, संचार और रिमोट सेंसिंग तकनीक का विकास किया है जिसकी मदद से तटीय इलाकों में मिट्टी का कटाव, बाढ़ और वन्यजीव अभयारण्यों की देखरेख में सहायता मिलती है.
तस्वीर: picture-alliance/dpaभारतीय अंतरिक्ष एजेंसी 2016-17 में चांद पर दूसरा मिशन भेजना चाहती है. इसरो मानव को अंतरिक्ष में भेजने की योजना बना रही है. सरकार से स्वीकृति का इंतजार है.
तस्वीर: picture-alliance/AP ओएसजे/एमजे (एएफपी, पीटीआई, रॉयटर्स)