153 देशों के 11 हजार से अधिक वैज्ञानिकों ने जलवायु आपातकाल की घोषणा कर दी है. इन वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि अगर जीवमंडल के संरक्षण के लिए तत्काल कदम नहीं उठाए जाते हैं तो "अनकही पीड़ा" सामने आएगी.
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पर्यावरण को लेकर दुनिया को अब गंभीर रूप से कदम उठाने की जरुरत है. भारत के उत्तरी राज्यों में हाल के दिनों में जिस तरह का प्रदूषण देखने को मिला उससे वहां की सरकार, सर्वोच्च न्यायालय और आम जनता पर्यावरण को लेकर गहरी चिंता में डूब गई. अब दुनिया भर के 11 हजार वैज्ञानिकों ने जलवायु आपातकाल की घोषणा की है.
मंगलवार को बायोसाइंस पत्रिका में एक रिसर्च रिपोर्ट छापी गई है. जलवायु आपातकाल की घोषणा पर हस्ताक्षर करने वाले वैज्ञानिकों ने इस रिपोर्ट में लिखा है, "वैज्ञानिकों का यह नैतिक दायित्व है कि वे किसी भी ऐसे संकट के बारे में स्पष्ट रूप से आगाह करे जिससे महान अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा हो. "
वैज्ञानिकों की इस रिसर्च का नेतृत्व करने वाले ओरेगॉन स्टेट यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता विलियम रिपल और क्रिस्टोफर वुल्फ लिखते हैं, "वैश्विक जलवायु वार्ता के 40 सालों के बावजूद हमने अपना कारोबार उसी तरह से जारी रखा और इस विकट स्थिति को दूर करने में असफल रहे हैं."
वैज्ञानिक चेतावनी देते हुए कहते हैं, "जलवायु संकट आ गया है और वैज्ञानिकों की उम्मीदों से कहीं अधिक तेजी से यह बढ़ रहा है."
वैज्ञानिकों की चेतावनी को गंभीरता से लेने की जरूरत
वैज्ञानिकों ने जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने के लिए 6 व्यापक कदम उठाने के सुझाव दिए हैं.
इस घोषणा पर हस्ताक्षर करने वाले वैज्ञानिकों ने जीवाश्म ईंधन की जगह उर्जा के अक्षय स्रोतों का इस्तेमाल, मीथेन गैस जैसे प्रदूषकों के उत्सर्जन को कम करना. धरती की पारिस्थितिकी तंत्र को सुरक्षित करना, पौधे आधारित भोजन का इस्तेमाल करना और जानवर आधारित भोजन कम करना, कार्बन मुक्त अर्थव्यवस्था को विकसित करना और जनसंख्या को कम करना शामिल है.
वैज्ञानिकों का कहना है कि जलवायु को लेकर जिस तरह से चिंता जाहिर की गई है उससे वे प्रभावित हुए हैं. शुक्रवार को पर्यावरण को लेकर छात्रों के प्रदर्शन और जमीनी स्तर पर अभियान से वे उत्साहित हैं.
वैज्ञानिकों का कहना है,"विश्व के वैज्ञानिकों का गठबंधन होने के नाते, हम फैसले लेने वाले नेताओं को हर स्तर पर मदद करने को तैयार हैं. मानवता को भी पृथ्वी ग्रह पर जीवन बनाए रखने के लिए कार्य करना होगा, क्योंकि हमारा एक ही घर है और वह पृथ्वी है."
एए/एनआर (डीपीए)
बदलेगा मौसम तो ऐसा होगा मंजर..
जलवायु परिवर्तन हमारी जिंदगी को आश्चर्य से भर देगा. न केवल पर्यावरण पर इसका असर होगा बल्कि यह इंसानों के मस्तिष्क को भी प्रभावित करेगा. बिजली कड़केगी, ज्वालामुखी फटेगा और हो सकता है कि रेगिस्तान की मिट्टी भी उड़ जाये.
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आकाश में बढ़ेगी हलचल
ब्रिटेन की एक स्टडी के मुताबिक जलवायु परिवर्तन का असर विमानों की उड़ान पर भी होगा. विमानों को आकाश में अधिक हलचल (टर्ब्युलेंस) का सामना करना होगा. इसमें तकरीबन 149 फीसदी की वृद्धि होगी.
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जहाजों के रास्ते होंगे बाधित
विशेषज्ञों के मुताबिक जलवायु परिवर्तन के चलते बड़े ग्लेशियर टूट सकते हैं, जो समुद्री यातायात प्रभावित करेंगे. असर कितना होगा, इस पर मोटा-मोटी कुछ कहना फिलहाल मुश्किल है.
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बिजली की कड़कड़ाहट बढ़ेगी
ताप ऊर्जा, तूफानी बादलों के लिये ईंधन का काम करती है. आशंका है कि अगर तापमान बढ़ता रहा तो आकाश में बिजलियों की कड़कड़ाहट बढ़ जायेगी, जिसके चलते जंगली आग एक समस्या बन सकती है.
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ज्वालामुखी होंगे सक्रिय
निष्क्रिय अवस्था में पड़े ज्वालामुखी सक्रिय हो सकते हैं. ग्लेशियर पिघलने से पृथ्वी की भीतरी परत पर पड़ने वाला दबाव घटेगा, जिसका असर मैग्मा चेंबर पर पड़ेगा और ज्वालामुखियों की गतिविधियों में वृद्धि होगी.
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आपका गुस्सा बढ़ेगा
हमारा मूड भी बहुत हद तक मौसम पर निर्भर करता है. शोधकर्ताओं के मुताबिक जैसे-जैसे तापमान में वृद्धि होगी लोगों में गुस्सा बढ़ेगा. यहां तक कि हिंसा की प्रवृत्ति में भी इजाफा होगा.
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समुद्रों में बढ़ेगा अंधेरा
कयास हैं कि जलवायु परिवर्तन का सबसे अधिक असर समंदरों में दिखेगा. तापमान बढ़ने से जलस्तर बढ़ेगा साथ ही इनका अंधेरा और भी गहरा होगा. कई इलाकों में वार्षिक वर्षा के स्तर में भी वृद्धि होगी.
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एलर्जी की समस्या
आपको न सिर्फ जल्दी गुस्सा आयेगा बल्कि इंसानों में एलर्जी की शिकायत भी बढ़ेगी. तापमान बढ़ने से मौसमी क्रियायें बदलेगी, पर्यावरण का रुख बदलेगा और बदले माहौल में ढलना इंसानों के लिये आसान नहीं होगा.
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पशुओं का आकार घटेगा
तापमान का एक असर स्तनपायी जीवों के आकार पर दिखेगा. एक अध्ययन के मुताबिक लगभग 5 करोड़ साल पहले जब तापमान बढ़ा था तब स्तनपायी जीवों का आकार घटा था, जो भविष्य में भी नजर आ सकता है.
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रेगिस्तान में रेत होगी कम
रेगिस्तान में कुछ ऐसे बैक्टरीया होते हैं जो मिट्टी के क्षरण को रोकने के लिये बायोक्रस्ट जैसी मजबूत परत का निर्माण करते हैं लेकिन तापमान बढ़ने से इनका आवास स्थान प्रभावित होगा और मिट्टी का क्षरण बढ़ेगा.
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चींटियों का व्यवहार बदलेगा
चींटियां पारिस्थितिकी के संतुलन में अहम भूमिका अदा करती है. अध्ययन बताते हैं कि चींटियां खेतों में कीड़े-मकौड़ों का सफाया करती हैं और मिट्टी के पोषक तत्वों को बनाये रखने में मददगार साबित होती है.
रिपोर्ट- इनेके म्यूल्स